लोकसभा चुनाव में किस पार्टी का सहारा बनेगी यूपी की पहली सीट सहारनपुर

यूपी की सहारनपुर लोकसभा सीट पर भाजपा, कांग्रेस और बसपा में त्रिकोणीय मुकाबला. तीनों ही पार्टियां अपने-अपने कोर वोटरों के सहारे जीतने की जुगत भिड़ा रही हैं

सहारनपुर में प्रधानमंत्री की दायीं ओर राघव लखन पाल और बायीं ओर प्रदीप चौधरी वहीं तस्वीर के दाहिनी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद
सहारनपुर में प्रधानमंत्री की दायीं ओर राघव लखन पाल और बायीं ओर प्रदीप चौधरी वहीं तस्वीर के दाहिनी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद

यमुना और गंगा के बीच दोआब क्षेत्र में स्थित उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की सीमाएं पश्चिम में हरियाणा, उत्तर-पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और उत्तर-पूर्व में उत्तराखंड से लगती हैं.

लकड़ी पर नक्काशी के अपने उद्योग के लिए प्रसिद्ध, सहारनपुर में शिवालिक पर्वतों की तलहटी में देवी शाकंभरी का बहुत प्रतिष्ठित पीठ और दूसरे सिरे पर मुजफ्फनगर की सीमा पर विश्वविख्यात इस्लामी मदरसा दारुल उलूम देवबंद है. 

देशभर में अपनी विभिन्न ख्यातियों के लिए जाना जाने वाला यह इलाका यूपी के लोकसभा सीटों के क्रमांक में भी पहला नंबर रखता है. राज्य के बाकी हिस्सों की तरह राजनीति के बदलते रंगों को देखने के बाद, सहारनपुर को कभी कांग्रेस का मजबूत आधार माना जाता था, जिसने 1951 से 2019 तक हुए 17 लोकसभा चुनावों में से छह में जीत हासिल की. यशपाल सिंह 1984 में सहारनपुर लोकसभा सीट जीतने वाले आखिरी कांग्रेस नेता थे. 

भाजपा के नकली सिंह ने 1996 और 1998 में दो बार सीट जीती. 2014 में सहारनपुर में भाजपा के राघव लखनपाल सांसद चुने गए. 1999 में बसपा के मंसूर अली खान और 2004 में समाजवादी पार्टी के रशीद मसूद ने सीट जीती. बहुजन समाज पार्टी नेता जगदीश सिंह राणा 2009 में और हाजी फजलुर रहमान 2019 में सांसद चुने गए. 

सहारनपुर तब सुर्खियों में था जब बसपा प्रमुख मायावती ने 1996 में हरोरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की और 2002 में सीट बरकरार रखी. इससे क्षेत्र में दलित राजनीति सामने आ गई. वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे ने जब पश्च‍िमी यूपी में ध्रुवीकरण की तासीर पैदा की तो वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में सहारनपुर से ही इसमें जोरदार तड़का भी लगा. 

सहारनपुर लोकसभा सीट एक बार फिर चर्चा में आई. 2014 में तत्कालीन कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद ने बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ की गई विवादित टिप्पणी ने ध्रुवीकरण का ऐसा माहौल बनाया कि सहारनपुर समेत पश्च‍िमी यूपी की सभी 14 सीटों पर भगवा लहरा गया. 

हालांकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भगवा लहर को सपा, बसपा और रालोद के गठबंधन से बुने गए जातीय जाल के जरिए थाम लिया गया. सहारनपुर से बसपा उम्मीदवार 22 हजार वोटों से विजयी हुए. 2019 के चुनाव में मोदी लहर होने की बावजूद भाजपा प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा था.

इसकी वजह थी कि भाजपा ने सपा-बसपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी को गंभीरता से नहीं लिया. भाजपा नेता अपना मुकाबला कांग्रेस से मानकर चल रहे थे, लेकिन दोनों के टकराव का फायदा गठबंधन से बसपा प्रत्याशी को मिल गया था.

पांच साल बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में सहारनपुर का राजनीतिक माहौल भी काफी बदला हुआ है. ध्रुवीकरण की आंच कुछ ठंडी हुई है लेकिन उसकी जगह जाति वैमनस्यता ने ले ली है.

बदली परिस्थ‍ितियों के इस चुनाव में एक तरफ भाजपा के उम्मीदवार राघव लखन पाल शर्मा हैं तो सपा की सहयोगी कांग्रेस ने इमरान मसूद पर दांव लगाया है. वहीं बसपा उम्मीदवार माजिद अली सहारनपुर से संसद पहुंचने की जंग को त्रिकोणीय करने की कोशिश कर रहे हैं.

सभी दलों के दावों और प्रतिदावों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 अप्रैल को सहारनपुर-दिल्ली रोड पर राधा स्वामी सत्संग मैदान में जनसभा करके भाजपा की उम्मीदों को परवान चढ़ाने की कोशिश की. मुस्ल‍िम-दलित बाहुल्य वाली सहारनपुर सीट पर रैली के दौरान मोदी ने कांग्रेस और सपा पर तो जमकर हमला बोला लेकिन बसपा का कोई जिक्र नहीं किया. 

कांग्रेस के घोषणा पत्र पर मुस्ल‍िम लीग की छाप होने की बात कहकर मोदी ने परोक्ष रूप से ध्रुवीकरण कार्ड भी खेलने की कोशिश की. मंच पर सहारनपुर के भाजपा उम्मीदवार राघव लखन पाल शर्मा और कैराना सीट के प्रदीप चौधरी के हाथ अपने हाथ में लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने यह जाहिर किया कि इन प्रत्याशियों की जीत असल में उनकी ही जीत होगी.

सहारनपुर से भाजपा उम्मीदवार राघव लखन पाल पिता की असमय मृत्यु के बाद खाली हुई सरसावा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वह पहली बार चुनावी राजनीति में उतरे थे. इस उपचुनाव में राघव ने शानदार जीत दर्ज की. लेकिन, साल 2002 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद राघव लखनपाल 2007 और 2012 में सहारनपुर शहर सीट से भाजपा के टिकट पर जीतकर विधायक बने. 

साल 2014 के आम चुनाव में राघव ने कद्दावर मुस्लिम नेता इमरान मसूद को 60 हजार से ज्यादा वोटों से हराया. 2 दिसंबर 2017 को राघव लखन पाल ने लोकसभा में जनसंख्या नियंत्रण कानून का ड्राफ्ट भी पेश किया. 2019 के आम चुनाव में एक बार फिर पार्टी ने उन्हें टिकट दिया लेकिन इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वह बसपा के हाजी फजलुर्रहमान से करीब 22 हजार मतों से चुनाव हार गए थे.

एक अनुमान के मुताबिक सहारनपुर लोकसभा सीट पर सवा छह लाख मुस्ल‍िम, तीन लाख दलित, सवा लाख पंजाबी, एक लाख से ज्यादा गुर्जर, 80 हजार ब्राह्मण, 50 हजार ठाकुर, 40 हजार वैश्य और 35 हजार जाट मतदाता हैं. सहारनपुर को दोबारा अपनी झोली में डालने के लिए भाजपा सभी जातियों में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. 

सहारनपुर में भाजपा ने अपने स्टार प्रचारकों की पूरी फौज उतार दी है. भाजपा की तरफ से 27 मार्च को उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक, 28 मार्च को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और 31 मार्च को देवबंद में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य आ चुके हैं. जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह भी कई दिनों तक जिले में सक्रिय रहे. छह अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी जनसभा की थी. 8 अप्रैल को केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर भी जिले में थे. 

हालांकि इस बार सहारनपुर इलाके में ठाकुर समुदाय के भाजपा विरोध के चलते राघव लखन पाल को कुछ दिक्कतों का भी सामना करना पड़ रहा है. इससे निबटने के लिए 10 अप्रैल को बेहट में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सभा कर रहे हैं तो 12 अप्रैल को मुख्यमंत्री योगी का देवबंद में कार्यक्रम प्रस्तावित है. 

सहारनपुर में भाजपा के जिलाध्यक्ष महेंद्र सैनी कहते हैं, "पिछले चुनाव में कई दलों का आपस में गठबंधन था. अब बसपा अलग है. बसपा और कांग्रेस से मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में हैं इसलिए मुस्लिम वोटों में बिखराव होगा. इसके अलावा भाजपा के अनुसूचित जाति संपर्क अभियान के भी सफल परिणाम भी इस चुनाव में दिखेंगे."

सहारनपुर में भाजपा को कड़ी टक्कर कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद से मिल रही है. वर्ष 2014 में आक्रामक छवि दिखाने वाले इमरान मसूद इस बार बहुत ही शांत ढंग से अपना चुनाव प्रचार कर रहे हैं. वे घर-घर जाकर जनसंपर्क पर जोर दे रहे हैं.

सबसे खास बात यह है कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को सीधे निशाने में लेने वाले इमरान मसूद इस बार भाजपा नेताओं पर तीखा हमला करने से बचते हुए स्थानीय मुद्दों को अपने प्रचार का हिस्सा बनाए हुए हैं. हालांकि इमरान मसूद को को सहयोगी पार्टी सपा के नेताओं के बीच आपसी खींचतान से नुकसान होता भी दिख रहा है. 

सपा से नाराज पूर्व विधायक संजय गर्ग साइकिल का साथ छोड़कर भाजपा में जा चुके हैं तो अनदेखी से नाराज सपा के राष्ट्रीय महासचिव रुद्रसेन चौधरी भी इमरान मसूद का विरोध कर रहे हैं. सहारनपुर से पांच बार के पूर्व लोकसभा सांसद रशीद मसूद के भतीजे इमरान मसूद कहते हैं, "मुझे सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त है. मुझे भीम आर्मी के चन्द्रशेखर आजाद का भी समर्थन प्राप्त है."

इस तरह इमरान मसूद दलित मुस्लिम गठजोड़ से अपनी जीत का दावा कर रहे हैं. सहारनपुर के वरिष्ठ वकील सर्वेश पुंडीर बताते हैं, "चूंकि कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है ओर इमरान मसूद की स्थानीय पकड़ भी है. इसलिए कांग्रेस को मुस्लिम वोटों के एकीकरण का फायदा मिल सकता है. दूसरी ओर, भाजपा गैर मुस्ल‍िम जातियों के ध्रुवीकरण की कोशिश में है. ऐसे में अगर बसपा के मुस्ल‍िम उम्मीदवार ने मुस्लिम वोटों में सेंधमारी की तो भाजपा की राह आसान हो जाएगी."

देवबंद से जिला पंचायत सदस्य माजिद अली, जो बसपा के टिकट पर सहारनपुर सीट से 18वीं लोकसभा चुनाव में उम्मीवार हैं, वे भी स्थानीय मुस्ल‍िमों पर तगड़ी पकड़ रखने के लिए जाने जाते हैं. सहारनपुर में बसपा जिलाध्यक्ष जनेश्वर प्रसाद का कहना है कि बसपा सुप्रीमो की सोशल इंजीनियरिंग इस बार फिर पार्टी की जीत का आधार बनेगी.

अभिनेता-सह-निर्माता कमाल राशिद खान उर्फ केआरके के भाई माजिद देवबंद के रहने वाले हैं. देवबंद के साथ एक मिथक भी जुड़ा है और वह ये है कि यहां का निवासी कोई उम्मीदवार अभी तक कभी सहारनपुर से लोकसभा चुनाव नहीं जीता है. जाहिर है सहारनपुर लोकसभा सीट को लगातार दूसरी बार जीतने के लिए बसपा को एक मिथक भी तोड़ना पड़ेगा.

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