KGMU में ‘धर्मांतरण’ : ऐसे मामले लगातार क्यों बढ़ रहे हैं?

KGMU के कथित धर्मांतरण विवाद ने प्रोफेशनल कोर्स के कॉलेजों में छात्रों की सुरक्षा, प्रेम संबंधों की आड़ में शोषण और कैंपस में सक्रिय निगरानी तंत्र की कमी जैसे गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं

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सांकेतिक तस्वीर

लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में सामने आया कथित धर्मांतरण और शोषण का मामला सिर्फ एक विश्वविद्यालय या एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है. इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या देश के प्रतिष्ठित चिकित्सा और तकनीकी संस्थान भी अब ऐसे नेटवर्क से अछूते नहीं रहे, जहां व्यक्तिगत रिश्तों की आड़ में धर्म परिवर्तन का दबाव, मानसिक उत्पीड़न और शोषण के आरोप सामने आ रहे हैं.

KGMU मामला : एक केस स्टडी

दिसंबर 2025 के मध्य में लखनऊ के प्रतिष्ठित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में एक महिला जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर ने गंभीर शिकायत दर्ज कराई कि उनके सहकर्मी ने शादी के नाम पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया. परिवार के अनुसार, जब रिश्ते की गंभीरता और विवाह की बात आई, तब आरोपी डॉक्टर ने कहा कि वह तभी शादी करेगा जब पीड़िता अपना धर्म बदल लेगी. इस मानसिक दबाव और शोषण के चलते पीड़िता गहरे डिप्रेशन में चली गई और उसने आत्महत्या की कोशिश की. 

उसे विश्वविद्यालय के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया, जहां उसकी स्थिति अब स्थिर बताई जा रही है. पीड़िता के पिता ने मुख्यमंत्री के जनसुनवाई पोर्टल पर लिखित शिकायत की, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि आरोपी डॉक्टर ने उन्हें प्यार के झांसे में फंसाया, धोखा दिया और जब शादी की बात आई तो धर्म बदलने का दबाव बनाया. उन्होंने यह भी दावा किया कि आरोपी पहले से शादीशुदा है और उसने पहले भी एक युवती का धर्मांतरण कराया था. ये आरोप जांच का हिस्सा बने हैं.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संज्ञान में यह मामला आते ही सरकार ने इसे गंभीर रूप से लिया. उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि उच्च स्तरीय जांच का आदेश दिया गया है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी. उन्होंने स्पष्ट किया कि जो भी पीड़िता को प्रताड़ित करेगा या कानून तोड़ेगा, उसके खिलाफ कठोर कानून लागू किया जाएगा. योगी सरकार का रुख यह रहा कि मामले को सांप्रदायिक नहीं होने देना है, बल्कि इसे अपराध और मानसिक उत्पीड़न के रूप में देखा जाए. 

KGMU प्रशासन ने तत्काल कदम उठाया. सबसे पहले आरोपी रेजिडेंट डॉक्टर रमीजुद्दीन नायक को निलंबित कर दिया गया और उसे परिसर में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया गया. नायक पर विश्वविद्यालय के मानदंडों के उल्लंघन और पुलिस जांच के लिए सहयोग न करने के आरोपों के कारण यह कदम उठाया गया. 

विश्वविद्यालय ने प्रारंभिक जांच के लिए आंतरिक जांच प्रक्रिया शुरू की और दोनों पक्षों को विश्वविद्यालय परिसर में बुलाकर पूछताछ की. प्रशासन ने कहा कि लिखित शिकायत मिलने के बाद निरीक्षक, विभागाध्यक्ष और प्रॉक्टरियल सेल की टीम मामले की बेहद संवेदनशीलता को देखते हुए जांच कर रही है. यह जांच न केवल घटना की सच्चाई का पता लगाएगी, बल्कि यह भी देखेगी कि क्या विश्वविद्यालय के नियम-कानून का उल्लंघन हुआ है. KGMU के प्रवक्ता प्रो. के.के. सिंह ने जोर देकर कहा कि संस्थान छात्रों की सुरक्षा और गरिमा को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है और किसी भी गंभीर आरोप को हल्के में नहीं लेगा. 

इस घटना के आधार पर पुलिस ने FIR दर्ज कर ली है. FIR में धार्मिक स्वतंत्रता को बाधित करने और धमका कर धर्म परिवर्तन का आरोप शामिल है, जो यूपी के अवैध धर्मांतरण प्रतिबंध कानून के तहत आने वाले मामलों में गिना जाता है. पुलिस ने जांच शुरू कर दी है और आरोपी के खिलाफ सबूत जुटाए जा रहे हैं.

सवाल सिर्फ KGMU तक सीमित नहीं

KGMU का मामला सामने आने के बाद यह बहस तेज हो गई कि क्या मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों जैसे संस्थानों में पढ़ने वाली छात्राएं और छात्र भी संगठित या असंगठित धर्मांतरण के प्रयासों के निशाने पर हैं. बीते कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां प्रेम संबंध, दोस्ती या शादी के नाम पर धर्म परिवर्तन का आरोप लगा. 

2021 में लखनऊ के ही एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने वाली छात्रा ने आरोप लगाया था कि उसका सहपाठी लंबे समय से उससे शादी का वादा करता रहा और बाद में धर्म बदलने का दबाव बनाने लगा. छात्रा की शिकायत पर पुलिस ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था. जांच के बाद आरोपी छात्र को कॉलेज से निष्कासित किया गया और उसे जेल भी भेजा गया था. 

उत्तर प्रदेश के सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में भी ऐसे विवाद सामने आए हैं. वर्ष 2022 में मेरठ मेडिकल कॉलेज में एक इंटर्न डॉक्टर ने अपने सीनियर पर संबंध बनाने और बाद में धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया था. इस मामले में कॉलेज प्रशासन ने आरोपी डॉक्टर को तत्काल ड्यूटी से हटाया और पुलिस जांच शुरू कराई गई. इसी तरह, कानपुर के एक निजी मेडिकल संस्थान में पढ़ने वाली नर्सिंग छात्रा ने आरोप लगाया था कि उसे सोशल मीडिया के जरिए संपर्क में आए युवक ने प्रेमजाल में फंसाया. बाद में शादी के लिए धर्म बदलने की शर्त रखी गई. परिवार की शिकायत पर पुलिस ने कार्रवाई की और संस्थान ने आंतरिक जांच बैठाई. 

जानकार बताते हैं कि इंजीनियरिंग और तकनीकी कॉलेजों में छात्र-छात्राओं की संख्या ज्यादा होती है, हॉस्टल लाइफ और सोशल इंटरैक्शन अधिक होता है. ऐसे में रिश्ते बनना स्वाभाविक है, लेकिन आरोप यह है कि कुछ मामलों में इन रिश्तों का इस्तेमाल धर्मांतरण के लिए किया गया. 2023 में नोएडा के एक नामी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने वाली छात्रा ने पुलिस में शिकायत की थी कि उसका सीनियर कई महीनों से उसे मानसिक रूप से परेशान कर रहा था. छात्रा का आरोप था कि युवक ने पहले खुद को अविवाहित बताया, लेकिन बाद में पता चला कि वह पहले से शादीशुदा है और उसने अपनी पहली पत्नी का धर्म परिवर्तन कराया था. इस खुलासे के बाद छात्रा सदमे में चली गई. कॉलेज प्रशासन ने आरोपी छात्र को सस्पेंड किया और पुलिस ने केस दर्ज किया.

पैटर्न क्या दिखता है

एडवोकेट कार्तिकेय सिंह बताते हैं, “इन मामलों को अगर एक साथ देखा जाए, तो कुछ समान बातें सामने आती हैं. पहला, रिश्ते की शुरुआत अक्सर दोस्ती या प्रेम के नाम पर होती है. दूसरा, शादी का वादा किया जाता है. तीसरा, बाद में धर्म परिवर्तन की शर्त रखी जाती है. चौथा, इनकार करने पर मानसिक दबाव, दूरी बनाना या उत्पीड़न शुरू हो जाता है. और अंत में, पीड़िता की मानसिक स्थिति पर इसका गहरा असर पड़ता है.” 

हालांकि, हर मामला अलग होता है और जांच के बाद ही सच सामने आता है, लेकिन इन आरोपों की संख्या ने सरकार और संस्थानों दोनों को सतर्क किया है. उत्तर प्रदेश सरकार ने 2020 में विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम लागू किया था. इस कानून के तहत धोखे, जबरदस्ती, प्रलोभन या शादी के नाम पर धर्म परिवर्तन कराना अपराध है. मेडिकल और तकनीकी संस्थानों में सामने आए कई मामलों में इसी कानून के तहत कार्रवाई हुई है. 

सरकार का दावा है कि वह शिक्षा संस्थानों में जागरूकता बढ़ाने पर भी जोर दे रही है. कॉलेजों को निर्देश दिए गए हैं कि वे एंटी-रैगिंग और विशाखा कमेटी की तरह ही संवेदनशील मामलों के लिए सक्रिय शिकायत तंत्र रखें. छात्राओं की सुरक्षा के लिए हेल्पलाइन, काउंसलिंग और हॉस्टल वार्डन की जिम्मेदारी तय की गई है.

संस्थानों की जिम्मेदारी

KGMU जैसे प्रतिष्ठित संस्थान का मामला यह दिखाता है कि केवल कानून होना पर्याप्त नहीं है. विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अपने स्तर पर भी सतर्क रहना होगा. कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत बनी विशाखा कमेटियों की भूमिका सिर्फ कागजी नहीं होनी चाहिए. मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. देवाशीष शुक्ल कहते हैं, “मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं अत्यधिक तनाव में रहते हैं. ऐसे में भावनात्मक शोषण और मानसिक दबाव का खतरा ज्यादा होता है. संस्थानों को काउंसलिंग सिस्टम मजबूत करना चाहिए, ताकि छात्र किसी भी तरह के दबाव या उत्पीड़न की स्थिति में समय रहते मदद ले सकें.” 

KGMU मामला सामने आने के बाद राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हुई. सत्ताधारी दल ने इसे धर्मांतरण से जोड़ते हुए सख्त कार्रवाई की मांग की, जबकि विपक्ष ने कहा कि किसी भी मामले को सांप्रदायिक रंग देने से पहले निष्पक्ष जांच जरूरी है. सामाजिक संगठनों का कहना है कि पीड़िता की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य सबसे बड़ा मुद्दा होना चाहिए, न कि केवल धार्मिक एंगल. 

KGMU का विवाद यह याद दिलाता है कि उच्च शिक्षा के संस्थान समाज का आईना होते हैं. अगर यहां ऐसे आरोप सामने आ रहे हैं, तो यह एक चेतावनी है. सरकार, प्रशासन और संस्थानों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि व्यक्तिगत रिश्तों की आड़ में किसी भी तरह का शोषण या दबाव न पनपे. धर्मांतरण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर कानून के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता भी जरूरी है. छात्रों को यह भरोसा होना चाहिए कि अगर वे किसी गलत स्थिति में फंसते हैं, तो उनके लिए शिकायत करने का सुरक्षित और भरोसेमंद मंच मौजूद है. लेकिन इतना तय है कि इस घटना ने मेडिकल और तकनीकी संस्थानों में सुरक्षा, निगरानी और जवाबदेही को लेकर एक बड़ी बहस छेड़ दी है. यह बहस सिर्फ आज की नहीं, बल्कि आने वाले समय में शिक्षा व्यवस्था की दिशा तय करने वाली साबित हो सकती है.

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