राजस्थान: राजघरानों के सियासी प्रेम की कहानी
भारत की आजादी के बाद से ही राजस्थान के राजघराने राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने लगे थे और अब तक ये कई दिलचस्प उतार-चढ़ाव देख चुके हैं

भाजपा इस बार जिन सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रही है उनमें एक नाम जयपुर के पूर्व राजपरिवार से जुड़ी दीया कुमारी का भी है. दीया कुमारी जयपुर के पूर्व महाराजा भवानी सिंह और पद्मनी देवी की इकलौती बेटी हैं. भाजपा दीया को जयपुर की हवामहल या किशनपोल सीट से चुनाव लड़ा सकती है.
दीया ने 2013 में सियासत में कदम रखा और सवाई माधोपुर से भाजपा की विधायक चुनी गईं. 2019 में भाजपा ने दीया को राजसमंद लोकसभा उम्मीदवार बनाया और वे साढ़े पांच लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीतकर सांसद बनीं. दीया कुमारी की दादी गायत्री देवी भी जयपुर से तीन बार सांसद रह चुकी हैं.
गायत्री देवी 1962, 1967 और 1971 में स्वतंत्र पार्टी से जयपुर की सांसद बनीं. 1971 के बाद गायत्री देवी ने राजनीति से संन्यास ले लिया. इसके बाद जयपुर राजघराने का कोई भी सदस्य जयपुर से विधायक या सांसद नहीं बन पाया. हालांकि, 1989 में दीया कुमारी के पिता ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर जयपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन एक गरीब परिवार से आने वाले गिरधारी लाल भार्गव से वो 84 हजार वोटों से चुनाव हार गए. इसके 24 साल बाद जयपुर घराने से जुड़ी दीया कुमारी ने राजनीति में कदम रखा है.
जयपुर के पूर्व राजपरिवार से जुड़ी दीया कुमारी ही नहीं बल्कि राजस्थान की कई अन्य पूर्व रियासतों को भी सियासत पसंद आ रही है. यहां के इन पूर्व राजपरिवारों की राजनीतिक आस्था माहौल के मुताबिक बदलती भी रही है. कभी ये राजघराने स्वतंत्र पार्टी के साथ रहे तो कभी जनसंघ या भाजपा के साथ चले गए. कई घरानों ने कांग्रेस का साथ निभाया और कई पूर्व रियासतों के सदस्य दोनों पार्टियों से राज्यसभा में चुनकर जाते रहे.
इस बार भी इन पूर्व रियासतों से जुड़े कई नेता विधानसभा चुनाव में भागीदारी करने की तैयारी कर रहे हैं. इनमें उदयपुर के पूर्व राजपरिवार से जुड़े लक्ष्यराज सिंह, धौलपुर रियासत की वसुंधराराजे, बीकानेर से सिद्धी कुमारी, भरतपुर से विश्वेंद्र सिंह, नदबई से कृष्णेंद्र कौर दीपा, जैसलमेर से विक्रम सिंह, अलवर से भंवर जितेंद्र सिंह, चौमूं से रूक्ष्मणी कुमारी, शाहपुरा से राव राजेंद्र सिंह, भींडर से रणधीर सिंह भींडर जैसे कई नाम शामिल हैं.
भाजपा में धौलपुर घराने का दबदबा
धौलपुर के पूर्व राजपरिवार की बहू वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. झालावाड़ के झालरापाटन विधानसभा क्षेत्र से वसुंधरा राजे 2003 से लगातार विधायक चुनी जा रही हैं. 1985 में वसुंधरा राजे पहली बार भाजपा के टिकट पर धौलपुर से विधायक चुनी गईं. इसके बाद उन्होंने झालावाड़ को अपना निर्वाचन क्षेत्र बनाया और 1989 में वसुंधरा राजे पहली बार झालावाड़ से सांसद चुनी गईं. वर्ष 1991, 1996, 1998, 1999 तक वसुंधरा राजे लगातार पांच बार यहां से लोकसभा पहुंचीं. इसके बाद वर्ष 2004, 2009, 2013 और 2019 में वसुंधरा राजे के पुत्र झालावाड़ से लगातार सांसद चुने जा रहे हैं.
जोधपुर रियासत को कांग्रेस-भाजपा दोनों पसंद
जोधपुर के पूर्व महाराजा हनुवंत सिंह ने 1952 में 28 साल की उम्र में अपनी पार्टी बनाई और चुनाव लड़ा. उस चुनाव में उन्होंने दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास को हरा दिया था लेकिन उसी दौरान हवाई जहाज हादसे में उनकी मौत हो गई. हनुवंत सिंह की पत्नी और जोधपुर राजघराने से जुड़ी कृष्णा कुमारी 1971 से 1977 तक जोधपुर की सांसद रही. 1977 के बाद जोधपुर के पूर्व राजपरिवार ने प्रत्यक्ष तौर पर तो राजनीति में शिरकत नहीं की, लेकिन यह परिवार अलग-अलग समय पर अलग-अलग पार्टियों और नेताओं के साथ खड़ा नजर आया.
करीब तीन दशक तक इस परिवार ने खुद राजनीति में भाग नहीं लिया. 1989 में जोधपुर राजपरिवार ने पूर्व विदेश मंत्री स्व. जसवंत सिंह जसोल की जीत में अहम भूमिका निभाई तो नागौर जिले के खींवसर विधानसभा क्षेत्र में गजेंद्र सिंह खींवसर की जीत में भी जोधपुर घराने का योगदान रहा है. वर्ष 2009 में कृष्णा कुमारी की बेटी और हिमाचल के पूर्व राजपरिवार से जुड़ी चंद्रेश कुमारी जोधपुर से सांसद चुनी गई. उस वक्त भी जोधपुर पूर्व राजपरिवार के सदस्य गजसिंह ने अपनी बहन के लिए पूरे जोधपुर शहर में घूम-घूमकर वोट मांगे. चंद्रेश कुमारी जोधपुर की सांसद बनकर मनमोहन सरकार में मंत्री बनीं.
राजनीतिक दबंगई के लिए मशहूर भरतपुर राजपरिवार
भरतपुर का पूर्व राजपरिवार सियासत में दबंगई के लिए भी जाना जाता है. भरतपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य गिरिराज शरण सिंह 1952 में पहली बार भरतपुर से सांसद चुने गए थे. 1957 में गिरिराज शरण सिंह बाबू राज बहादुर से चुनाव हार गए. इसके बाद 1967 में विश्वेंद्र सिंह के पिता और पूर्व राजपरिवार के सदस्य ब्रजराज सिंह भरतपुर के सांसद बने. वर्ष 1989 में विश्वेंद्र सिंह जनता दल के टिकट पर यहां से सांसद चुने गए तथा इसके बाद 1999 और 2004 में वो भाजपा के टिकट पर लोकसभा पहुंचे.
1991 में यहां से विश्वेंद्र सिंह की बहन कृष्णेंद्र कौर दीपा पूर्व विदेश मंत्री स्व. नटवर सिंह को हराकर भाजपा की सांसद बनीं तो 1996 में विश्वेंद्र सिंह की पत्नी महारानी दिव्या सिंह को यहां से जीत मिली. 2008 में विश्वेंद्र सिंह ने कांग्रेस का दामन थामा और डीग-कुम्हेर से विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन भाजपा के दिगंबर सिंह से वो चुनाव हार गए. 2013 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने दिंगबर सिंह को हरकार अपना बदला लिया.
2018 में विश्वेंद्र सिंह ने दिगंबर सिंह के बेटे शैलेष सिंह को चुनाव हराया. विश्वेंद्र सिंह के चाचा स्व. मानसिंह भी सात बार विधायक रहे हैं और उनकी चचेरी बहन कृष्णेंद्र कौर दीपा भी नदबई से विधायक रह चुकी हैं. मानसिंह वही नेता हैं जिन्होंने 21 फरवरी 1985 को अपनी खुली जीप से टक्कर मारकर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के हेलीकॉप्टर और मंच को क्षतिग्रस्त कर दिया था. बाद में पुलिस ने मानसिंह की जीप पर गोलियां चलाई जिससे उनकी मौत हो गई.
कभी कांग्रेस, कभी भाजपा के साथ कोटा राजपरिवार
कोटा के पूर्व महाराजा बृजराज सिंह दो बार लोकसभा सदस्य रहे और फिर राजनीति से विदाई ले ली. उनके बेटे इज्जेराज सिंह ने कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हैं. इज्जेराज 2009 में कोटा लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे. 2014 में लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला के सामने वो चुनाव हार गए. इसके बाद इज्जेराज और उनकी पत्नी कल्पना देवी भाजपा में शामिल हो गए.
राजनीति से दूर हुई डूंगरपुर रियासत
डूंगरपुर रियासत के राजा लक्ष्मण सिंह राज्यसभा के सदस्य रहे हैं. राजस्थान की चित्तौड़गढ़ सीट से आपातकाल के बाद 1977 में लक्ष्मण सिंह जनता पार्टी से विधायक चुने गए और 1977 से 1979 तक राजस्थान विधानसभाध्यक्ष रहे. उनके पोते हर्षवर्धन सिंह 2016 में कांग्रेस से राज्यसभा के सांसद चुने गए. डूंगरपुर जिले की सभी सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो जाने के कारण अब इस परिवार ने राजनीति से दूरी बना ली है.
70 साल से सियासत में सक्रिय बीकानेर रियासत
बीकानेर के अंतिम राजा करणी सिंह 1952 से लेकर 1971 तक लगातार सांसद चुने गए. वे 1952, 1957, 1962, 1967, 1971 में बीकानेर संसदीय क्षेत्र से लगातार सांसद निर्वाचित हुए. करणी सिंह की पौत्री और नरेंद्र सिंह बहादुर की बेटी सिद्धी कुमारी 2008, 2013 और 2018 में बीकानेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से लगातार सांसद चुनी जा रही हैं.
राजनीति की सीढ़ी चढ़ने को तैयार जैसलमेर घराना
जैसलमेर के महारावल रघुनाथ सिंह 1957 में बाड़मेर से लोकसभा सांसद चुने गए. 1980 में इस घराने से जुड़े चंद्रवीर सिंह जैसलमेर से भाजपा के विधायक चुने गए. काफी समय तक यह परिवार राजनीति से दूर रहा, लेकिन अब इस परिवार से विक्रम सिंह विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा से दावेदारी जता रहे हैं.
अलवर घराने की कांग्रेस में गहरी पैठ
अलवर के पूर्व राजघराना कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों के साथ रहा है. इस घराने के सदस्य भंवर जितेन्द्र सिंह की मां महेंद्र कुमारी 1991 में भाजपा के टिकट पर यहां से सांसद चुनी गईं. 1998 महेंद्र कुमारी ने निर्दलीय और 1999 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन वो चुनाव हार गईं. इसके बाद अलवर के पूर्व राजपरिवार से जुड़े भंवर जितेंद्र सिंह राजनीति में सक्रिय हुए. 1998 और 2003 में वो कांग्रेस के टिकट पर दो बार अलवर से विधायक चुने गए. इसके बाद 2009 में भंवर जितेंद्र अलवर से सांसद चुने गए और मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने. भंवर जितेंद्र सिंह राहुल गांधी के खास माने जाते हैं और अलवर जिले की राजनीति में उनका खासा दखल है.
सियासी सफर के लिए तैयार उदयपुर घराना
उदयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य महेन्द्र सिंह मेवाड़ एक बार कांग्रेस के टिकट पर चित्तौड़गढ़ से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं. इस बार उदयपुर घराने के लक्ष्यराज सिंह के राजनीति में उतरने को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं. लक्ष्यराज सिंह के भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों से बेहतर संबंध हैं. पिछले दिनों उदयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ उनकी मुलाकात के बाद उनके कांग्रेस से चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं.
सियासत से दूर हुआ करौली घराना
करौली के पूर्व राजपरिवार से जुड़े बृजेंद्रपाल सिंह यहां से लगातार पांच बार विधायक रह चुके हैं. बृजेंद्र पाल सिंह 1952, 1957 और 1972 में निर्दलीय तथा 1962 और 1967 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए. 41 साल बाद इस राजघराने से जुड़ी रोहिणी कुमारी 2008 में भाजपा के टिकट पर विधायक चुनी गईं.
छोटे ठिकानेदारों की सियासत में बड़ी छलांग
राजस्थान में बड़ी रियासत ही नहीं बल्कि छोटे ठिकानेदारों को भी सियासत भाती रही है. इनमें भींडर, शाहपुरा, रावतसर, सिरोही जैसे कई ठिकाने और पूर्व रियासत प्रमुख हैं. भींडर ठीकाने के रणधीर सिंह 2003 और 2013 में वल्लभनगर विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक रह चुके हैं. भींडर इस समय वो जनता सेना के प्रमुख हैं. शाहपुरा ठिकाने के राव राजेन्द्र सिंह भाजपा के टिकट पर 2003 से 2013 तक तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. इसी तरह रावतसर घराने से जुड़ी रानी लक्ष्मी कुमारी चूड़ावत 1962, 1967 और 1980 में भीम, देवगढ़ सीट से कांग्रेस के टिकट पर राजस्थान विधानसभा की सदस्य चुनी गईं.
1980 में जब वो कम वोटों के अंतर से जीत कर विधायक बनीं तो उन्होंने 1985 में राजनीति छोड़ने का फैसला कर लिया. लक्ष्मी कुमारी 1972 से 1978 तक राज्यसभा की सांसद रहीं. राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए किए गए प्रयास और सामंती युग में घूंघट प्रथा त्यागने के लिए भी रानी लक्ष्मीकुमारी चूड़ावत को याद किया जाता है.