राजस्थान : कानून मंत्री के बेटे को मिली पोस्टिंग अब राज्य सरकार की मुसीबत बनती क्यों दिख रही है?
राजस्थान के कानून मंत्री जोगाराम पटेल के बेटे को वैसे तो मार्च 2024 में हाईकोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) पद पर नियुक्ति दी गई थी लेकिन हालिया विधानसभा सत्र में कांग्रेस ने इस मुद्दे को जिस तरह उठाया है उससे राज्य की बीजेपी सरकार घिरती दिख रही है

राजस्थान के कानून व संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल के बेटे की राजस्थान हाईकोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) पद पर की गई नियुक्ति विवादों में आ गई है. सूबे में विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र के आखिरी दो दिन यानी पांच और छह अगस्त मंत्री पुत्र की इसी ताजपोशी की भेंट चढ़ गए.
कांग्रेस ने विधानसभा में जब यह मामला उठाया तो विधानसभाध्यक्ष वासुदेव देवनानी भजनलाल सरकार के बचाव में आ खड़े हुए. देवनानी ने नागौर जिले के लाडनूं विधानसभा क्षेत्र से आने वाले कांग्रेस के युवा विधायक मुकेश भाखर को पहले दो दिन और बाद में छह माह तक के लिए सदन की कार्यवाही में भाग लेने से निलंबित कर दिया.
दरअसल लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने से तीन दिन पहले 13 मार्च 2024 को राज्य के विधि एवं विधिक कार्य विभाग की ओर से जोगाराम पटेल के बेटे मनीष को राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर खंडपीठ से अतिरिक्त महाधिवक्ता बनाने के आदेश जारी हुए थे. कांग्रेस ने उनकी नियुक्ति के समय भी यह मामला उठाया था, लेकिन तब यह मामला ज्यादा तूल नहीं पकड़ पाया, लेकिन एक माह से अधिक समय तक चले विधानसभा के बजट सत्र की समाप्ति के दो दिन पहले विपक्ष ने जोरदार तरीके से यह मामला उठाकर सत्ता पक्ष को सकते में ला दिया.
सत्ता पक्ष को यह उम्मीद नहीं थी कि मंत्री के बेटे का यह मामला विधानसभा में उठाया जाएगा. ऐसे में राजस्थान विधानसभाध्यक्ष वासुदेव देवनानी सरकार के बचाव में आगे आए और इस मामले को उठाने वाले प्रतिपक्ष के सदस्यों को जमकर फटकार लगाई. इसके बाद बात यहां तक आ पहुंची कि एक सदस्य को निलंबित करना पड़ा.
राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने जोगाराम पटेल के बेटे की नियुक्ति का यह मामला विधानसभा में उठाते हुए कहा, ‘‘ भारत सरकार के गृहमंत्री अमित शाह ने यह गाइडलाइन जारी की थी कि कोई भी मंत्री अपने परिवार को लाभ का पद नहीं देगा. कानून और नियमों के खिलाफ जाकर जोगाराम के प्रभाव में आकर उनके उनके बेटे की अतिरिक्त महाधिवक्ता के पद पर नियुक्ति की गई है. जब तक मंत्री अपने पद से इस्तीफा नहीं देंगे, हम चुप नहीं बैठेंगे.’’
इधर, जोगाराम पटेल ने अपने बेटे का बचाव करते हुए दलील दी है, ‘‘मेरे बेटे की अतिरिक्त महाधिवक्ता पद पर नियुक्ति पारदर्शी प्रक्रिया और योग्यता के आधार पर हुई है. अतिरिक्त महाधिवक्ताओं की नियुक्ति प्रक्रिया जनवरी 2024 से शुरू हो गई थी. जिला कलेक्टर्स ने अतिरिक्त महाधिवक्ताओं के चयन के लिए संबंधित सेशन कोर्ट से सलाह करके 7 वर्ष या उससे अधिक समय का कार्यानुभव रखने वाले अधिवक्ताओं के पैनल तैयार कर सरकार के पास भिजवाए थे. इन पैनल की स्क्रूटनी का काम भी नई भारतीय न्यास संहिता लागू होने से बहुत पहले हो गया था.’’
हालांकि विधिक मामलों के जानकार भी कानून मंत्री के बेटे को हाईकोर्ट में कानून से संबंधित मामलों की पैरवी के लिए अतिरिक्त महाधिवक्ता बनाया जाना संवैधानिक नियमों के खिलाफ मानते है. राजस्थान के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता विभूति भूषण का कहना है, ‘‘किसी जज का बेटा अगर वकील है तो नियमानुसार वह अपने पिता की अदालत में पैरवी नहीं कर सकता. उसी तरह कानून मंत्री का बेटा अगर किसी मामले में सरकार की तरफ से पैरवी करेगा तो उससे न्याय की निष्पक्षता प्रभावित होने का अंदेशा रहेगा. विधि मंत्री के बेटे को उनके ही विभाग की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता बनाया जाना गलत है. मंत्री को चाहिए कि नैतिक आधार पर वो अपने बेटे को इस पद से हटा दें.’’
इधर, कांग्रेस ने इस मामले में कानून मंत्री जोगाराम पटेल के इस्तीफे की मांग करते हुए प्रदेशव्यापी आंदोलन का ऐलान किया है. मंत्री पुत्र के इस मामले को लेकर राजस्थान विधानसभा में दो दिन तक खूब बवाल हुआ. मुकेश भाखर के निलंबन के खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट नजर आया. विपक्ष ने जब सदन के गलियारे में आकर मंत्री के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी तो राजस्थान विधानसभाध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने सत्ता पक्ष के प्रस्ताव पर कांग्रेस विधायक मुकेश भाखर को सदन की शेष अवधि की बैठकों में भाग लेने से निलंबित कर दिया.
निलंबन के बाद मुकेश भाखर जब सदन से बाहर नहीं गए तो मार्शल बुलाकर उन्हें बाहर निकालने के लिए कहा. मार्शल जब भाखर को निकालने के लिए आए तो कांग्रेस विधायकों और मार्शल के बीच जमकर धक्कामुक्की हुई. इस दौरान कांग्रेस की महिला विधायक और दो तीन सुरक्षाकर्मियों को हल्की चोटें आईं. कांग्रेस ने सत्ता पक्ष की इस तानाशाही के खिलाफ 5 तारीख को रातभर विधानसभा में धरना दिया.
एएजी को मिलते हैं सवा करोड़ रुपए सालाना
अतिरिक्त महाधिवक्ता को राज्य सरकार की ओर से हर केस के लिए फीस दी जाती है जो प्रति माह 7 से लेकर 10 लाख रुपए तक होती है. हर अतिरिक्त महाधिवक्ता को 5 करोड़ रुपए तक के वित्तीय मामलों में राज्य सरकार की ओर से बहस के लिए 17 हजार रुपए प्रति हाजिरी दिए जाते हैं. 10 करोड़ रुपए तक के वित्तीय मामलों के लिए 34 हजार रुपए प्रति हाजिरी और 10 करोड़ रुपए से अधिक के वित्तीय मामलों की सुनवाई के लिए 50 हजार रुपए प्रति हाजिरी प्रदान किए जाते हैं.
एक अतिरिक्त महाधिवक्ता पूरे साल में राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में 60 मामलों में पैरवी कर सकता है. ऐसे में उन्हें सरकार की ओर से पूरे साल में करीब एक करोड़ रुपए तक का भुगतान किया जाता है. इसके अलावा हर अतिरिक्त महाधिवक्ता को एक लाख रुपए प्रति माह की रिटेनरशिप प्रदान की जाती है. यह इसलिए दी जाती है ताकि, वह राज्य सरकार के खिलाफ कोई भी केस ना ले. पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर खंडपीठ में 10 और जोधपुर खंडपीठ में 6 अतिरिक्त महाधिवक्ताओं की नियुक्ति की जाती थी, लेकिन मौजूदा भजनलाल सरकार ने इसे बढ़ाकर डेढ़ गुना कर दिया है. अब जयपुर में 17 अतिरिक्त महाधिवक्ता बनाए गए हैं.