राजस्थान : थार का ऐतिहासिक बासनपीर गांव कैसे बन गया सियासी अखाड़ा?
जैसलमेर के इस ऐतिहासिक गांव में चल रहे विवाद को लेकर आमने-सामने हुए कांग्रेस-बीजेपी

राजस्थान में जैसलमेर जिले का विरासतकालीन गांव बासनपीर अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास की बसाहट है और सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील भी माना जाता है. हालांकि शौर्य और बलिदान के लिए पहचाना जाने वाला यह गांव इन दिनों अजब सा सियासी अखाड़ा बना हुआ है.
10 जुलाई को गांव में ऐतिहासिक छतरियों के पुनर्निमाण के बाद हुई पत्थरबाजी की घटना ने इस गांव ही नहीं बल्कि पूरे थार की सियासत में बवाल मचा दिया. अब इस पूरे प्रकरण में बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने हैं.
दोनों पार्टियां एक दूसरे पर थार का सौहार्द बिगाड़ने के आरोप लगा रही हैं. बीजेपी ने बासनपीर गांव का नाम बदलकर बासणपी किए जाने की मांग की है. बीजेपी के बाड़मेर से पूर्व जिलाध्यक्ष स्वरूप सिंह खारा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है, ‘‘बासणपी जैसलमेर जिले का प्राचीन, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व वाला गांव है. 1940 तक इस गांव को बासणपी गांव के नाम से ही जाना जाता था, मगर 1985 के बाद इसका नाम बदलकर बासनपीर कर दिया गया.’’
क्या है इस गांव और विवाद का इतिहास
बासनपीर रियासतकालीन पालीवाल ब्राह्मणों के 84 गांवों में से एक है. बताया जाता है कि साल 1828 में जैसलमेर और बीकानेर रियासतों के बीच हुए बासनपीर के युद्ध में जैसलमेर की तरफ से लड़ते हुए यहां रामचंद्र सोढ़ा नामक एक युवक वीरगति को प्राप्त हुआ था.
जिस जगह पर रामचंद्र सोढ़ा की मृत्यु हुई वहां इसी गांव के हदूद पालीवाल ने एक तालाब का निर्माण करवाया था. 1835 में जैसलमेर के तत्कालीन महारावल गज सिंह ने रामचंद्र सोढ़ा और हदूद पालीवाल की स्मृति में यहां दो छतरियों का निर्माण करवाया. सेना के सैन्य अभ्यास के लिए पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज का निर्माण चला तो नवातला गांव के इन परिवारों को वहां से बासनपीर गांव में बसाया गया. यहां उन्हें 27 जनवरी 1976 में इन्हें खातेदारी मिली.
आगे का किस्सा ये है कि सरकार के खातेदारी दिए जाने के फैसले के विरोध में जैसलमेर का पूर्व राजपरिवार न्यायालय में गया और 2011 में राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकार के पक्ष में स्टे दे दिया. बताया जाता है कि धीरे-धीरे यहां रहने वाले अधिकांश पालीवाल ब्राह्मण यह गांव को छोड़कर दूसरी जगह व्यापार और रहने के लिए चले गए. ये ऐतिहासिक छतरियां भी जीर्ण-शीर्ण होती चली गईं. 2019 में कुछ उपद्रवियों ने इन छतरियों को क्षतिग्रस्त कर दिया.
एक पक्ष का यह भी कहना है कि ये छतरियां जर्जर हालत में थीं, स्कूली बच्चों को नुकसान न हो इसलिए इनके पत्थर हटाकर दूसरी ओर रख दिए गए थे. छतरियों को क्षतिग्रस्त किए जाने पर झुंझार धरोहर बचाओ संघर्ष समिति विरोध में आ खड़ी हुई. उस समय भी इस गांव में आपसी संघर्ष और तनाव की स्थिति बन गई थी जिसे प्रशासन ने बातचीत के जरिए टाल दिया था. तभी से इन छतरियों के पुनर्निर्माण की कवायद चल रही है.
पिछले दिनों प्रशासन ने गांव के लोगों से बातचीत कर छतरियों के पुनर्निमाण का काम शुरू किया. निर्माण के अगले ही दिन 10 जुलाई को गांव के कुछ युवकों और महिलाओं ने छतरियों का निर्माण कर रहे कारीगरों और पुलिस पर पत्थरबाजी कर दी. बाद में इस गांव में बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात करना पड़ा.
उसी दिन पोखरण विधायक महंत प्रतापपुरी इस गांव में पहुंच गए और यहां डेरा डाल दिया. प्रतापपुरी ने 10 जुलाई की रात निर्माण स्थल पर समर्थकों के साथ भजन-कीर्तन किया और घोषणा की कि जब तक छतरियां पूरी नहीं बन जातीं वे वहां से नहीं हटेंगे. इसके अगले ही दिन 11 जुलाई की सुबह शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी और जैसलमेर विधायक छोटू सिंह भी मौके पर पहुंचे और निर्माण कार्य को समर्थन दिया.
महंत प्रतापपुरी बासनपीर तक ही नहीं रुके. इसके दो दिन बाद ही वो पोखरण में पूर्व राजपरिवार की स्मृति में बनी छतरियों पर पहुंच गए और वहां मुसलमानों को ‘समस्याओं’ के लिए जिम्मेदार ठहराया और इसे हिंदू बनाम मुस्लिम मुद्दा बना दिया. हालांकि थार क्षेत्र में ऐसा तनाव न के बराबर ही देखने को मिलते हैं. स्थानीय पत्रकार कुलदीप छंगाणी कहते हैं, ‘‘थार में हिंदू-मुस्लिम हमेशा एक जाजम पर बैठते रहे हैं, मगर पिछले कुछ समय से यहां का माहौल खराब करने का षड़यंत्र चल रहा है.’’
बासनपीर में बीजेपी नेताओं के पहुंचने के दो दिन बाद ही कांग्रेस नेता हरीश चौधरी ने भी थार की अपनायत और महोब्बत का पैगाम लेकर 19 जुलाई को बासनपीर पहुंचने का ऐलान कर दिया. जिला प्रशासन ने आपसी टकराव होने की आशंका के चलते बासनीपर गांव और इसके आस-पास के क्षेत्रों में धारा 163 लागू कर दी. सुबह बाड़मेर-जैसलमेर से सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल, बायतू विधायक हरीश चौधरी, कांग्रेस नेता हेमाराम चौधरी सहित कई बड़े नेता हजारों समर्थकों के साथ बाड़मेर से जैसलमेर के लिए रवाना हुए मगर प्रशासन ने उन्हें बासनपीर से 100 किलोमीटर पहले ही रोक दिया. इस दौरान पुलिस और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच टकराव की भी स्थिति बनी.
यहां पहुंचे हरीश चौधरी का कहना था, ‘‘बासनपीर में बीजेपी नेताओं ने गैर-संवैधानिक और आपस में नफरत फैलाने वाले बयान दिए. जैसलमेर जिला प्रशासन ने उन्हें पूरा संरक्षण दिया. थार की अपणायत और महोब्बत के लिए हम बासनपीर जाना चाहते थे मगर प्रशासन ने बीजेपी के इशारों पर काम करते हुए हमें वहां नहीं जाने दिया.’’
वहीं सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल का कहना है, ‘‘बासनपीर की ये घटना थार को शर्मसार करने वाली है. प्रशासन ने हमारे साथ जो सख्ती दिखाई है, वो यदि उस दिन दिखाई होती तो ये घटना नहीं होती.’’
महंत प्रताप पुरी ने कहा, ‘‘हरीश चौधरी जो सर्व धर्म सभा और राम धुनी कराने का हवाला दे रहे हैं, दरअसल वो पत्थर मारने वालों को संरक्षण देने का काम कर रहे हैं. भविष्य में भी हमारी आस्था को कोई चोट पहुंचाएगा तो हम बर्दाश्त नहीं करेंगे. हरीश चौधरी की महोब्बत की दुकान ऊंची दुकान फिके पकवान से ज्यादा कुछ नहीं है.’’