राजस्थान में जातीय पंचायतों के फरमानों के आगे बेबस क्यों है सरकारॽ

राजस्थान के जालौर जिले में एक जातीय पंचायत ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि महिलाएं अपने साथ स्मार्टफोन नहीं रख सकेंगी

village panchayat
जालौर की वह जाति पंचायत जहां महिलाओं के स्मार्टफोन रखने पर पाबंदी लगाई गई

22 दिसंबर की दोपहर जालोर जिले के सुंधामाता मंदिर के निकट गाजीपुर गांव में चौधरी (कलवी) समाज के 14 पट्टी के पंचों की पंचायत जुटी थी. इस पंचायत में कारनोल पट्टी के देवाराम की ओर से महिलाओं और लड़कियों के स्मार्टफोन रखने पर पाबंदी लगाने के लिए एक प्रस्ताव रखा गया. पंच हिम्मताराम ने इस प्रस्ताव को पढ़कर सुनाया तो वहां मौजूद सभी पंचों ने एक मत से प्रस्ताव पर सहमति दे दी.  

इस प्रस्ताव के अनुसार कलबी समाज के 15 गांवों की महिलाएं 26 जनवरी के बाद किसी भी सार्वजनिक समारोह, शादी समारोह या घर से बाहर जाते वक्त स्मार्टफोन का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगी. पड़ोसी के घर जाते समय भी स्मार्टफोन ले जाने पर पाबंदी रहेगी. पढ़ाई करने वाली लड़कियां स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर सकेंगी मगर सिर्फ घर की चारदीवारी के भीतर. घर के बाहर उन्हें भी इसके इस्तेमाल की छूट नहीं है. 

घर के बाहर जाते वक्त महिलाओं को केवल साधारण की-पैड फोन उपयोग करने की छूट रहेगी. यह फरमान 14 गांवों की पट्टी में आने वाले गजीपुरा, पावली, कालड़ा, मनोजिया वास, राजीकावास, दातलावास, राजपुरा, कोड़ी, सिदरोड़ी, आलड़ी, रोपसी, खानादेवल, साविधर, भीनमाल के हाथमी की ढ़ाणी व खानपुर में लागू होगा. पंचायत के इस फैसले का विरोध हुआ तो पंचायत ने यह दलील दी कि मोबाइल के कारण बच्चों की आंखें खराब होती हैं. इसलिए बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए यह फैसला किया गया है. पंचों की इस दलील पर जालोर के सामाजिक कार्यकर्ता भरत कुमार सवाल उठाते हैं,  ‘‘क्या मोबाइल के उपयोग से सिर्फ महिलाओं व लड़कियों की आंखें ही खराब हो रही हैं, अगर ऐसा है तो लड़कों व पुरुषों पर मोबाइल के इस्तेमाल किए जाने से रोक क्यों नहीं लगाई गईॽ’’ हालांकि पंचायत के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है.

राजस्थान में जातीय पंचायत के तुगलकी फरमान का यह कोई नया मामला नहीं है. इसी साल 12 जून को जालोर के बागरा में एक जातीय पंचायत ने 55 परिवारों का हुक्का-पानी महज इस कारण से बंद कर दिया क्योंकि इन्होंने पंचायत के कहने पर अपनी पुरखों की जमीन खाली करने से इंकार कर दिया था. दरअसल, यहां मंदिर की जमीन को लेकर दो परिवारों के बीच लंबे समय विवाद चल रहा था. पंचायत में किसी तरह का समझौता नहीं हुआ तो पंच-पटेलों ने एक गुट के 55 परिवारों का सामाजिक बहिष्कार करने का फरमान सुना दिया. पंचों ने कहा कि इस गुट के 55 परिवारों को किसी भी शादी व सामाजिक कार्यक्रम सहित गांव में किसी की मौत होने पर भी नहीं बुलाया जाएगा. 

इसी तरह 9 दिसंबर 2023 को नागौर जिले की खींवसर तहसील के दांतिणा गांव में एक खाप पंचायत ने ग्राम पंचायत के चुने हुए सरपंच को ही कई घंटों तक एक पैर पर खड़ा रखा और फिर समाज से बहिष्कृत कर दिया. खाप ने पहले सरपंच को पद छोड़ने के लिए कहा. उसने मना कर दिया तो पांच लाख रुपए जुर्माना लगा दिया गया और पूरे गांव को यह हिदायत दी गई कि कोई भी सरपंच श्रवण कुमार व उसके परिवार को सामाजिक कार्यक्रम में नहीं बुलाएगा, किराना की दुकान से उसके परिवार को सामान नहीं दिया जाएगा. यहां तक की सरपंच के घर पीने के पानी का टैंकर और पशुओं के लिए चारा काटने की मशीन लाने तक पर पाबंदी लगा दी गई. घर की जरुरतों का सामान उसे आज भी कई किलोमीटर दूर दूसरे गांव से लाना पड़ता है. 

कानून भी बेअसर

राजस्थान में जातीय पंचायतों के फैसलों और सामाजिक बहिष्कार के मामलों पर रोक लगाने के लिए 2019 में एक कानून बनाया गया था पर यह कानून भी इस भयंकर सामाजिक बीमारी की रोकथाम करने में नाकाफी साबित हुआ है. राजस्थान में जातिगत बहिष्कार व ऑनर किलिंग जैसी घटनाओं को रोकने के लिए 8 अगस्त, 2019 को विधानसभा ने ''राजस्थान सम्मान और परंपरा के नाम पर वैवाहिक संबंधों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप का प्रतिषेध अधिनियम 2019'' पारित किया था.  

दो कुटुंबों, जातियों, समुदायों या धर्मों के लोगों के बीच संबंधों को लेकर किसी तरह की प्रताड़ना पर यह कानून लागू होता है मगर जातीय पंचायतों को इस कानून का कोई खौफ नहीं है. राजस्थान हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिमन्यु यदुवंशी कहते हैं, ‘‘जालौर की हालिया जातीय पंचायत का यह फैसला 'राजस्थान सम्मान और परंपरा के नाम पर वैवाहिक संबंधों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप का प्रतिषेध अधिनियम 2019’ ही नहीं बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 (1)(A) और 21  के भी उल्लंघन की श्रेणी में आता है. अनुच्छेद 14 के तहत यह महिलाओं के समानता के अधिकार, अनुच्छेद 15 के तहत लिंग आधारित भेदभाव और अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत अभिव्यक्ति और संचार की स्वतंत्रता को बाधित करता है. अनुच्छेद 21 के तहत यह महिलाओं के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का भी हनन है. पुलिस को इस मामले पंचायत में मौजूद पंचों पर कार्रवाई करनी चाहिए.’’

आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले कुछ सालों में जातीय पंचायतों के तुगलकी फरमानों के हजारों मामले सामने आ चुके हैं. बाल एवं महिला चेतना समिति की ओर से राजस्थान में पांच साल (2017-2021) में जातीय पंचायतों के फैसलों को लेकर एक अध्ययन किया गया था. इसमें यह सामने आया कि इस समयावधि में सामाजिक बहिष्कार व हुक्का-पानी बंद किए जाने के 8600 मामले सामने आए हैं. ये तो वो मामले थे जो पुलिस थानों और मीडिया रिपोर्ट्स के जरिए सामने आ गए. सामाजिक बदनामी और डर के कारण बहुत सारे मामले तो सामने ही नहीं आ पाते. अब धौलपुर के बल्दियापुर के गांव के उस फैसले को ही देख लें जिसमें पंच-पटेलों ने स्कूल व कॉलेज में पढ़ने वाली लड़कियों के मोबाइल रखने और जींस पेंट पहनने पर रोक लगाने का दकियानूसी फैसला सुना दिया. राजस्थान की तत्कालीन महिला मुख्यमंत्री वसुंधराराजे के गृह जिले से यह मामला जुड़ा था. उस वक्त वहां की विधायक और जिला कलेक्टर भी महिला थी. 

हालांकि, वसुंधराराजे और विधायक शोभारानी की इस फैसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई मगर कलेक्टर शुचि त्यागी ने इसे गंभीरता से लिया. उन्होंने कौलारी पुलिस थाने और स्थानीय एसडीएम को जांच के लिए भेजा. पुलिस और प्रशासन के डर से पंच-पटेलों ने अपना निर्णय वापस ले लिया.
बाड़मेर के सिवाना थाना क्षेत्र में तो पंच-पटेलों को एक लड़की द्वारा अपनी पसंद के लड़के से शादी करना ही नागवार गुजरा. अगस्त 2021 में जातीय पंचों ने अपनी पसंद से शादी करने वाली लड़की के परिवार को समाज से बहिष्कृत कर 34 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया. लूदराड़ा गांव के खंगारसिंह ने पंचों के इस फरमान के खिलाफ मामला दर्ज कराया कि बेटी ने मनमर्जी से शादी कर ली तो पंचायत ने मेरे और मेरे भाई फोजराज सिंह पर 17-17 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया.  

पंचायत ने दोनों भाइयों से एक लाख रुपए के मुचलके भी भरवाए ताकि वे पंचों पर किसी तरह का आरोप नहीं लगा सकें.  इसमें यह हवाला दिया गया कि अगर उन्होंने पंचों के फैसलों पर आपत्ति जताई तो 2-2 लाख रुपए का जुर्माना ओर लगाया जाएगा. खंगारसिंह और फोजराज सिंह ने पंचायत का जुर्माना नहीं चुकाया तो उन्हें 12 साल के लिए समाज से बहिष्कृत कर दिया गया. 
बाड़मेर की ही सिवाना तहसील के मेली गांव में बेटियों के घोड़ी पर चढ़कर बिंदोली निकालने से नाराज जातीय पंचों ने ढाई माह बाद पंचायत बुलाकर परिवार को समाज से बहिष्कृत कर 51 हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया. पीड़ित परिवार ने मुकदमा भी दर्ज करवाया मगर किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. 

राजस्थान में सामाजिक बुराइयों और जातीय पंचायतों के फैसलों के खिलाफ पिछले तीन दशक से संघर्ष कर रही बाल एवं महिला चेतना समिति की अध्यक्ष तारा अहलुवालिया कहती हैं, ‘‘जातीय ठेकेदारों द्वारा महिलाओं और लड़कियों पर इस तरह के फरमान लागू करना सामाजिक भेदभाव का जीता-जागता सबूत है. राजस्थान की जातीय पंचायत आज भी अपनी पुरुषवादी और सामंती मानसिकताा से नहीं उबर पाई हैं.’’  कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने जालोर की घटना पर प्रतिक्रिया जताई. डोटासरा ने कहा, ‘‘महिलाओं से मोबाइल छीनना उनकी आजादी छीनने जैसा है. सरकार को अपनी चुप्पी तोड़ते हुए इस तरह का फरमान सुनाने वाले लोगों पर कार्रवाई करनी चाहिए.’’  

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