अजमेर सेक्स कांड: आरोपी बचते रहे और इस अपराध की सजा पूरे शहर की लड़कियों ने भुगती!

अजमेर सेक्स कांड में पॉक्सो कोर्ट ने 32 साल बाद 6 आरोपियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है, हालांकि अभी-भी इसे पूरा न्याय नहीं कहा जा सकता

अजमेर केस की दैनिक नवज्योति अख़बार में छपी ख़बरें और आरोपियों की फोटो
अजमेर केस की दैनिक नवज्योति अख़बार में छपी ख़बरें और आरोपियों की फोटो

कोलकाता में एक जूनियर डॉक्टर के रेप और हत्या के केस में रोज़ होते नए खुलासों के बीच 20 अगस्त को अजमेर की एक ख़बर सामने आई. ख़बर ये कि 32 साल बाद अजमेर सेक्स केस में 6 आरोपियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई है. ऊपरी ढंग से देखने पर यह ख़बर आपको भारतीय न्याय व्यवस्था की लेट-लतीफी का एक और उदाहरण लग सकती है. लेकिन तफ्सील से जानने पर ये मामला उससे कहीं ज़्यादा संगीन और झकझोर देने वाला है.
 
ये कहानी है 1992 में सामने आए अजमेर सेक्स कांड की. कैसे शहर में सैकड़ों लड़कियों को उनकी न्यूड तस्वीरों के नाम पर ब्लैकमेल किया गया. कैसे एक लड़की को ब्लैकमेल कर, इस जाल में दूसरी लड़की और फिर उसे ब्लैकमेल कर तीसरी लड़की को फंसाया गया और ये गिनती कहां जाकर रुकी असल में किसी को नहीं मालूम.
 
इंडिया टुडे मैगज़ीन के 15 अक्टूबर, 1992 के अंक में अजमेर से विजय क्रांति की रिपोर्ट ‘ब्लैकमेल का मारक धंधा’ इस सेक्स स्कैंडल की कहानी के लिए खिड़की की तरह है. इससे झांकने पर अजमेर का अंधियारा मंजर कुछ यूं दिखता है. अपनी रिपोर्ट में विजय लिखते हैं, "लगता है इन दिनों ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की धार्मिक नगरी अजमेर में किसी चालू फिल्म की शूटिंग चल रही है. एक हाथ से दूसरे हाथ में घूमती लड़कियों की न्यूड तस्वीरें, सामूहिक बलात्कार, हड़ताल और प्रदर्शन और इन सब के समानांतर चलती राजनीति."
 
ये कहानी शुरू होती है 1991 के अंत और 1992 की शुरुआत में. इंडिया टुडे की रिपोर्ट बताती है कि अजमेर के एक स्कूल में पढ़ने वाली 9वीं क्लास की छात्रा और शहर के एक रईसजादे के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा था. बाद में यह रईसजादा लड़की को अपने उस फार्म हाउस पर ले जाता है जो शहर के बाहरी इलाके में था. जहां चहल-पहल कम थी. फार्म हाउस पर लड़की का रेप करता है. और आरोपी के दोस्त उस लड़की की तस्वीरें खींच लेते हैं. इसके बाद लड़की को ब्लैकमेल किया जाता है कि वो अपनी कुछ सहेलियों को फार्म हाउस पर लेकर आए वरना उसकी न्यूड तस्वीरें शहर भर में फैला दी जाएंगी. यही इस घटना की पहली कड़ी है.

वो फार्म हाउस जहां लड़कियों को ले जाते थे आरोपित

 
एक के जरिए दूसरी लड़की तक पहुंचने के इस हथकंडे में अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ 100 से 200 लड़कियां शिकार बनीं. लेकिन क्राइम तक के मैनेजिंग एडिटर शम्स ताहिर खान ये कहानी सुनाते हुए कहते हैं, “असल में ये कड़ी कहां जाकर रुकी और अंतिम संख्या कितनी रही, किसी को नहीं मालूम. क्योंकि यह सिलसिला साल भर तक चलता ही रहा.”
 
1991 के बाद से ही लड़कियां इस साजिश की शिकार बन रही थीं. आरोप लगते हैं कि स्थानीय प्रशासन को इसकी ख़बर थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी. वजह थी आरोपियों का सियासी और सामाजिक रसूख. तो आख़िर ये मामला खुला कैसे? बकौल शम्स ताहिर खान, “तब ऐसे फोन नहीं थे फोटो खींचने के लिए. पुराने जमाने के कैमरा थे. तो फोटो खींचने के बाद आरोपी अपनी ही गैंग के एक शख्स के फोटो लैब में तस्वीर प्रिंट कराने के लिए भेजते थे. स्टूडियो का मालिक तो आरोपियों के गैंग का ही था लेकिन जो टेक्नीशियन थे उनका इससे कोई संबंध नहीं था. ऐसे में फोटो निकालते वक़्त नीचे के टेक्नीशियन 8-10 कॉपी एक्स्ट्रा निकालकर रख लेते थे. धीरे-धीरे इनके हाथों ही तस्वीरें दूसरे लोगों तक पहुंचने लगीं.”
 
शम्स आगे जोड़ते हैं, “बाद में ब्लैकमेलिंग का यह सिलसिला इतना बढ़ा कि जैसे-जैसे ये तस्वीरें आम लोगों के हाथ जाती रहीं उन लोगों ने अपने लेवल पर लड़कियों को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया. तो एक लड़की को पहले गैंग वाले ब्लैकमेल करते थे और दूसरी ओर वो लोग जिनके हाथ ये तस्वीरें लग जाती थीं. यहां तक कि स्थानीय स्तर के पत्रकार भी इसमें शामिल हो गए.”


 
इस बीच शहर की 6 लड़कियों ने एक के बाद एक सुसाइड कर लिया. कॉमन बात ये थी कि ये लड़कियां एक ही स्कूल में पढ़ने वाली थीं. बाद में पता चला कि इन सभी 6 लड़कियों के साथ भी रेप हुआ था. तस्वीरें हर किसी तक पहुंच ही रही थीं, इधर 6 लड़कियों ने सुसाइड कर लिया. लेकिन प्रशासन में कोई हरक़त नहीं दिख रही थी. आख़िर क्यों? राजस्थान से इंडिया टुडे मैगज़ीन से जुड़े आनंद चौधरी इसकी वजह बताते हैं, "इस मामले में पुलिस-प्रशासन की भूमिका शुरू से ही संदेहास्पद रही. जब लड़कियों की न्यूड तस्वीरें पूरे शहर में घूम रही थीं तो पुलिस और इंटेलिजेंस को इसकी ख़बर थी. इस मामले में जो आरोपी थे वे यूथ कांग्रेस से जुड़े हुए थे. राजस्थान में उस वक़्त बीजेपी की सरकार थी और भैरों सिंह शेखावत मुख्यमंत्री थे."
 
यानी आरोपियों का सियासी और सामाजिक रसूख ऐसा था कि पुलिस नज़र फेरे रही. आरोपियों में कुछ ऐसे लोग थे जिनका नाता अजमेर ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के ख़ादिम परिवार से था. ख़ादिम कहते हैं ख़िदमतगार को. यानी दरगाह के ख़िदमतगार परिवारों से जुड़े लोगों का नाम इस कांड में शामिल था.
 
मई, 1992 के शुरुआती दिनों में दैनिक नवज्योति अख़बार में रिपोर्टर संतोष गुप्ता की ख़बर छपी. ख़बर के साथ एक लड़की की ब्लर की हुई न्यूड तस्वीर भी छपी. ख़बर छपने के बाद आम जनता से लेकर पुलिस प्रशासन तक की नींद टूटी. अगले दो दिनों तक अजमेर में हड़ताल रही. आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग हो रही थी. इन सबके पीछे 3 मुख्य आरोपी थे. अजमेर यूथ कांग्रेस का तत्कालीन अध्यक्ष फारुख चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती और ज्वाइंट सेक्रेटरी अनवर चिश्ती.

अदालती कार्रवाई की टाइमलाइन

 
पुलिस ने कार्रवाई शुरू की तो सबसे पहले 30 लड़कियां मुकदमा दर्ज कराने और बयान देने के लिए सामने आईं. लेकिन बयान दर्ज होने से पहले ही 18 लड़कियां पीछे हट गईं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो लड़कियों के परिजनों को आरोपियों ने धमकी दी थी. इसके बाद बची 12 लड़कियां. पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया. लेकिन मुकदमा लिखे जाने के कुछ दिनों बाद 10 लड़कियां फिर पीछे हट गईं. आखिरकार सिर्फ दो लड़कियां बचीं और पूरा केस उन्हीं के बयान के आधार पर बना.

अदालती कार्रवाई की टाइमलाइन

 
लड़कियों की कुछ न्यूड तस्वीरों में आरोपियों के चेहरे भी दिख रहे थे. इन्हीं तस्वीरों के आधार पर पुलिस ने 18 आरोपियों की शिनाख्त की. इन आरोपियों में से 12 को गिरफ्तार भी किया गया. 6 आरोपी पकड़े नहीं जा सके. ऑर्गेनाइज़र वीकली की रिपोर्ट के मुताबिक़ मई की ही 30 तारीख को ये मामला जांच के लिए राजस्थान पुलिस की विशेष शाखा CID-CB को ट्रांसफर कर दिया गया था.

अदालती कार्रवाई की टाइमलाइन

 
इस मामले में दो चार्जशीट दाखिल की गई थीं. पहली चार्जशीट में 12 लोगों को आरोपी बनाया गया था. दूसरी में 6 लोग आरोपी बनाए गए. आरोपियों में से नसीम उर्फ ​​टार्जन 1994 में फरार हो गया था, जबकि जहूर चिश्ती को धारा 377 (यानी अप्राकृतिक यौन संबंध) के तहत दोषी पाया गया था और उसका मामला दूसरी अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया था. फारूक चिश्ती का मुकदमा अलग से चला, क्योंकि उसने खुद को सिजोफ्रेनिया का मरीज़ साबित कर दिया था और उसे 2007 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. आरोपियों में से एक ने आत्महत्या कर ली थी. अन्य आठ आरोपियों को 1998 में सेशन कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई. दूसरी चार्जशीट नफीस चिश्ती, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी, सईद ज़मीर हुसैन और अलमास के खिलाफ दायर की गई थी. इन्हीं 6 आरोपियों को 20 अगस्त को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई है.
 
तीन दशक बाद इस मामले में इंसाफ तो मिला लेकिन इसे आधा-अधूरा इंसाफ ही कहा जाएगा. लेकिन इस घटना के उजागर होने के बाद अजमेर में समाज ने किस तरह रिएक्ट किया वो कम हैरान करने वाला नहीं है. आनंद चौधरी बताते हैं, "1991 में ये मामला सामने आता है और उसके बाद 2001 के आसपास तक एक बड़ी अजीब बात देखने को मिली. अजमेर में लड़कियों की शादी करने में बहुत दिक्कतें आने लगीं. कोई भी रिश्ता जोड़ने से पहले लड़की की तस्वीर लेकर स्थानीय अख़बार के दफ़्तर जाता था. अख़बार में काम करने वाले लोगों से तस्वीर की पहचान कराई जाती थी कि कहीं ये लड़की भी सेक्स कांड की शिकार तो नहीं है."
 
आनंद चौधरी इस घटना को उजागर करने वाले दैनिक नवज्योति के रिपोर्टर संतोष गुप्ता से कुछ साल पहले हुई बातचीत साझा करते हुए बताते हैं,"संतोष गुप्ता से जब हम इस बारे में बता रहे थे तो वो कहते थे कि लोग हमसे भी फोटो दिखाकर ऐसी बातें पूछते थे. आप देखिए कि लड़कियों के साथ पहले रेप होता है. उसके बाद प्रशासन, सरकार और समाज मिलकर उन्हें इस हद तक प्रताड़ित करता है."

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