राहुल गांधी गलत हों या सही, लेकिन चुनाव आयोग जवाब देने में टाल-मटोल क्यों कर रहा है?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के महाराष्ट्र चुनाव में धांधली के दावों में ठोस सबूतों का अभाव है, लेकिन इसके बावजूद चुनाव आयोग को भारत की चुनावी प्रक्रिया में विश्वास बनाए रखने के लिए डेटा और फैक्ट-फिगर के साथ इसका जवाब देना चाहिए

राहुल गांधी (फाइल फोटो)
राहुल गांधी (फाइल फोटो)

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पिछले साल हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में धांधली के आरोप लगाए हैं, जबकि चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज किया है.

इन आरोपों की वजह से चुनावों की निष्पक्षता को लेकर कांग्रेस और चुनाव आयोग (EC) के बीच टकराव जारी है.  

एक ओर जहां ठोस सबूतों के अभाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के चुनावी हेरफेर के आरोप कमजोर लगते हैं. वहीं, दूसरी तरफ चुनाव आयोग द्वारा इस आरोप पर हिकारत से भरे जवाब चुनावी पारदर्शिता से जुड़ी चिंताओं को दूर करने में नाकाम रहे हैं.

इसमें कोई दो राय नहीं कि देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस और चुनाव आयोग के बीच का यह विवाद देश की चुनावी प्रणाली में जनता के विश्वास की नींव को कमजोर कर सकता है.

26 जून को कांग्रेस ने अपनी मांगों को दोबारा मजबूती से उठाते हुए चुनाव आयोग से पिछले साल होने वाले महाराष्ट्र लोकसभा और विधानसभा चुनावों की मतदाता सूचियों की डिजिटल कॉपी और EVM मशीन से वोट देने के बाद निकलने वाली पर्ची की मांग की है.

इतना ही नहीं, कांग्रेस ने मतदान केंद्रों की सीसीटीवी फुटेज की भी मांग की है. कांग्रेस की ओर से यह मांग ईगल (इम्पावर्ड एक्शन ग्रुप ऑफ लीडर्स एंड एक्सपर्ट्स) टीम के माध्यम से की गई है. इस टीम को विशेष रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और चुनाव आयोग के बीच चुनावी मामलों के समन्वय के लिए बनाया गया है.

12 जून को चुनाव आयोग की ओर से कांग्रेस को एक पत्र लिखा गया था. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणामों पर भ्रम को दूर करने के उद्देश्य से राहुल गांधी को चर्चा के लिए बुलाने के मकसद से यह पत्र भेजा गया था. इसके जवाब में दोबारा पत्र लिखकर कांग्रेस ने आयोग से वोटर डेटा और सीसीटीवी फुटेज दिए जाने के बाद ही चर्चा में शामिल होने की शर्त रखी.

राहुल गांधी ने कई मौकों पर यह दावा किया है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन के पक्ष में धांधली की गई. उनका आरोप है कि मतदाता सूची में हेरफेर की गई. इतना ही नहीं मतदान के दिन अंतिम समय में ज्यादा वोटिंग हुई है. मतदान प्रतिशत में हुई अचानक बढ़ोतरी दिखाती है कि मतदान केंद्रों पर भारी धांधली हुई है.

7 जून को एक अखबार के कॉलम में राहुल गांधी ने अपना पक्ष रखा, जिसमें उन्होंने उन निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता पंजीकरण में तेज और अचानक वृद्धि का हवाला दिया, जहां बीजेपी ने लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन किया था. उन्होंने अपने संपादकीय में लिखा कि कैसे चुनाव वाले दिन शाम 5 बजे के बाद मतदान में असामान्य उछाल देखने को मिला है. राहुल का कहना है कि यह अब तक के वोटिंग पैटर्न से अलग और असमान्य है.

चुनाव आयोग ने आरोपों को भ्रामक बताते हुए खारिज कर दिया और राहुल को चर्चा के लिए आमंत्रित किया.

चुनाव आयोग पर यह आरोप लगाते हुए राहुल गांधी सबसे मजबूत तर्क यह देते हैं कि महाराष्ट्र में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या मई 2024 (लोकसभा चुनाव) में 92.9 करोड़ से बढ़कर नवंबर 2024 (विधानसभा चुनाव) तक 97 करोड़ हो गई. इतने कम समय में मतदाताओं की इतनी संख्या बढ़ना आश्चर्यजनक है.

उन्होंने कहा कि 2019 से 2024 तक पांच साल में केवल 3.1 करोड़ मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई. जबकि 2024 में केवल पांच महीनों में 4.1 करोड़ मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हो गई. राहुल कम समय में मतदाताओं की इतना संख्या बढ़ने पर सवाल खड़े करते हैं.

हालांकि, अगर ऐतिहासिक डेटा को देखें तो पता चलता है कि महाराष्ट्र में मतदाताओं की संख्या में इस तरह की बढ़ोतरी पहली बार नहीं हुई है. 2004 में कांग्रेस के शासन के दौरान, विधानसभा चुनावों से पहले पांच महीनों में मतदाता पंजीकरण में 32 फीसद की वृद्धि हुई थी. इसी तरह 2009 के चुनावों में कांग्रेस के शासन के दौरान ही पंच महीनों के अंतराल में मतदाताओं की संख्या में 30 फीसद की वृद्धि देखी गई थी.

सबसे आश्चर्यजनक रूप से मतदाताओं की संख्या में वृद्धि तो साल 2019 में हुई. चुनावों से पहले अंतिम पांच महीनों में यहां 84 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई थी. इस तरह अगर 2024 में पांच महीनों के अंतराल में मतदाताओं की संख्या में 49 फीसद की वृद्धि देखें तो यह पर्याप्त प्रतीत होती है. ऐसे में इन आंकड़ों को ऐतिहासिक रूप से असामान्य तो नहीं ही कहा जा सकता है.

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इसके अलावा राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र में कुल 1 लाख बूथों की संख्या है. इनमें से केवल 12 हजार बूथों पर ही सबसे ज्यादा नए मतदाता पंजीकृत हुए थे. इनमें से 85 फीसद वे पोलिंग बूथ थे, जहां बीजेपी ने लोकसभा में खराब प्रदर्शन किया था.

कामठी निर्वाचन क्षेत्र का उदाहरण देते हुए उन्होंने अपनी बात रखी है. उनका कहना है कि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में (136,000) और विधानसभा चुनाव में (134,000) वोट यहां हासिल किए. जबकि इसी सीट पर भाजपा के वोटों की संख्या 119,000 से बढ़कर 175,000 हो गई, जो 56,000 वोटों की वृद्धि थी. राहुल गांधी का कहना है कि इस निर्वाचन क्षेत्र में 35,000 नए पंजीकृत मतदाताओं के कारण बीजेपी की वोटिंग इतनी ज्यादा बढ़ी है. ऐसे में इन नए पंजीकृत मतदाताओं की जांच की जानी चाहिए.

हालांकि, डेटा एनालिसिस करने पर राहुल गांधी के इस तर्क की सीमाएं भी उजागर होती हैं. 2024 चुनाव में भाजपा का यहां 54 फीसद वोट शेयर रहा, जो 2019 में 44 फीसद और 2014 में  54 फीसद था.  

पार्टी 2004 से लगातार इस सीट पर जीत हासिल करती रही है. ऐसे में राहुल का सिर्फ नए मतदाताओं के रजिस्ट्रेशन के आधार पर सवाल खड़ा करना इन आरोपों को थोड़ा कमजोर करता है. मतदाताओं का रजिस्ट्रेशन जांच का विषय है, लेकिन केवल नए पंजीकरण के आधार पर मतदान पैटर्न को समझना उचित नहीं है.

राहुल का कहना है कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य की वयस्क आबादी 9.54 करोड़ बताई गई है, जबकि राज्य में पंजीकृत मतदाता 9.7 करोड़ हैं. राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग द्वारा भारत और राज्यों के लिए 2019 की जनसंख्या अनुमान रिपोर्ट में 2021 में महाराष्ट्र की वयस्क आबादी 9.14 करोड़ बताई गई है, जो 2026 तक बढ़कर 9.81 करोड़ हो जाने का अनुमान है. 2024 के लिए मध्य बिंदु अनुमान लगभग 9.53 करोड़ होगा, जो मतदाता सूची की गिनती से कम है.

हालांकि, ध्यान रखने वाली बात ये है कि ये सिर्फ अनुमान है, सटीक आंकड़े नहीं हैं. इसी तरह की विसंगतियां अन्य राज्यों में भी देखने को मिली हैं. उदाहरण के लिए, 2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनावों में राज्य की 2023 की अनुमानित जनसंख्या केवल 50.1 करोड़ होने के बावजूद 52.1 करोड़ मतदाता पंजीकृत थे.

यह 2026 के पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 51.9 करोड़ के अनुमान से भी अधिक थी. कांग्रेस ने मतदाता सूची में गड़बड़ी की चिंता किए बिना वह चुनाव जीता था.

राहुल का सबसे दिलचस्प आरोप वोटिंग के दिन आखिरी घंटों के दौरान मतदान में नाटकीय वृद्धि से संबंधित है. वोटिंग के दिन शाम 5 बजे मतदान 58.22 फीसद था,  जो अगली सुबह तक बढ़कर 66.05 फीसद हो गया, जो करीब 7.6 करोड़ वोटों की बढ़ोतरी थी.

राहुल का दावा है कि मतदाताओं की संख्या में बदलाव पिछले महाराष्ट्र चुनावों के पैटर्न से अधिक है, इसलिए उन्होंने इसकी जांच के लिए सीसीटीवी फुटेज और डिजिटल मतदाता सूचियों की मांग की है.

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हालांकि, इस पूरे मामले में चुनाव आयोग (EC) का रक्षात्मक रवैया चिंताजनक है. CCTV फुटेज की मांग पर चुनाव आयोग ने गोपनीयता और मतदाता सुरक्षा का हवाला दिया. आयोग का कहना है कि फुटेज से मतदाताओं की पहचान हो सकती है और फिर उन्हें डराने-धमकाने का खतरा हो सकता है.

30 मई को राहुल गांधी के लिखे आर्टिकल के पब्लिश होने से ठीक एक सप्ताह पहले चुनाव आयोग ने चुनाव से जुड़े दिशानिर्देशों में बदलाव कर चुनावी CCTV फुटेज रखने की समय सीमा को एक वर्ष से घटाकर चुनाव परिणाम की घोषणा के 45 दिन बाद तक कर दिया है. साथ ही यह भी कहा कि यह फुटेज केवल आंतरिक प्रबंधन के लिए है, कानूनी बाध्यता नहीं.

कांग्रेस अब 2024 लोकसभा और विधानसभा वोटर लिस्ट की डिजिटल कॉपी मांग रही है. ताकि तुलना करके आंकड़ों को मिलाया जा सके. हालांकि, कांग्रेस के आरोप चुनिंदा डेटा व्याख्या और ऐतिहासिक मिसालों को नजरअंदाज करते हैं. वहीं, दूसरी तरफ चुनाव आयोग द्वारा डेटा के जरिए जवाब देने की अनिच्छा उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाती है.

चुनावी प्रक्रिया में आम लोगों का भरोसा कम नहीं हो, इसके लिए जरूरी है कि अगर चुनाव निष्पक्ष था, तो चुनाव आयोग कांग्रेस के आरोपों का जवाब सबूतों और डेटा के साथ दे. संदेह को तथ्यों के जरिए दूर किया जाना चाहिए.

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