बिहार : पूर्णिया में 'अधूरे' एयरपोर्ट से उड़ान का सपना पूरा; जमीन देने वाले नाराज, और उदास क्यों हैं आंदोलनकारी!

पूर्णिया एयरपोर्ट 2015 के पीएम पैकेज में शामिल था और अब जाकर 10 साल बाद इसका उद्घाटन हुआ है

उद्घाटन के पहले आनन-फानन में तैयार की जा रही पूर्णिया एयरपोर्ट की टर्मिनल बिल्डिंग

पूर्णिया एयरपोर्ट के नए-नवेले एयरपोर्ट के गेट पर पिछले कुछ दिनों से लोगों की भीड़ जुटी रहती है. कोई सेल्फी लेता नजर आता है, तो कोई वीडियो बनाता. इन्हीं लोगों में एक तनवीर हैं, जो यहां से दस किमी दूर एक मधेली गांव से आए हैं. वे फेसबुक लाइव कर रहे हैं और अपने फॉलोवर्स को इस एयरपोर्ट की खूबियां बता रहे हैं.

इंडिया टुडे से बातचीत में वे कहते हैं, “एयरपोर्ट बनने से पूर्णिया-कटिहार और आसपास के जिलों के लोगों को बड़ी राहत होने वाली है. हवाई सफर के लिए हमें कभी बागडोगरा एयरपोर्ट जाना पड़ता था, कभी दरभंगा, तो कभी कोलकाता. इतने लंबे सफर में बड़ी दुश्वारी होती थी. अगर गाड़ी जाम में फंस गई तो फ्लाइट छूट जाने का खतरा रहता था. अब लगता है, ये मुश्किलें आसान हो जाएंगी.”

तनवीर और उनके जैसे सीमांचल के हजारों हवाई यात्रियों का सपना सोमवार, 15 सितंबर को तब पूरा हुआ, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस एयरपोर्ट की टर्मिनल बिल्डिंग का उद्घाटन किया.

पूर्णिया एयरपोर्ट पर पीएम मोदी के साथ केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री किंजरापु राम मोहन नायडू और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

मगर इस मौके पर इसी एयरपोर्ट कैंपस की दक्षिणी चारदीवारी से सटे गांव गोआसी में एयरपोर्ट और हवाई उड़ान को लेकर न कौतुहल है, न उत्साह. इसी गांव के संजय कुमार मेहता हमें एयरपोर्ट कैंपस के अंदर झांकने को कहते हैं, जहां उनके और उनके दो भाइयों के पक्के मकान हैं. उदास होकर वे बताते हैं, “हमारा मकान अंदर  चला गया. हम नहीं चाहते थे, मगर सरकार ने एयरपोर्ट के लिए हमसे हमारी जमीन, हमारा घर सब ले लिया.”

अब संजय कुमार मेहता और उनके भाई टीन के बने घरों में रहते हैं. उन्हें रहने के लिए ऐसी जगह मिली है, जहां पहुंचने का रास्ता तक नहीं है. एयरपोर्ट निर्माण के लिए इस गांव की 67 एकड़ जमीन अधिगृहीत की गई है. गांव के लोग अपनी जमीन एयरपोर्ट के लिए नहीं देना चाहते थे, क्योंकि यहां ज्यादातर लोग सीमांत किसान हैं. इस अधिगृहण के बाद कई लोग बिल्कुल भूमिहीन हो गए हैं.

गांव के एक बुजुर्ग किसान शिवपूजन मेहता दावा करते हैं, “हम किसी सूरत में जमीन नहीं देना चाहते थे, हमारी आजीविका का यही एक आधार था. मगर हमसे जबरदस्ती जमीन ले ली गई है. हम लोगों  ने कहा था कि जिनके घर हैं, उन्हें बचा लिया जाए मगर प्रशासन नहीं माना. हमने विरोध किया तो सीईओ (एयरपोर्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी) ने हम लोगों पर एससी-एसटी प्रताड़ना का केस कर दिया. इस आधार पर कि वे दलित हैं. हम तो बस जमीन मापी का विरोध कर रहे थे. उनका व्यक्तिगत अपमान थोड़े ही कर रहे थे. हमें तो यह भी नहीं मालूम था कि सीईओ साहब दलित हैं.”

गांव के तकरीबन 75 किसानों की जमीनें अधिगृहीत की गई हैं. अपनी जमीन बचाने के लिए संघर्ष  करने वाले इनमें से कई किसान अब एससी-एसटी प्रताड़ना का मुकदमा झेल रहे हैं. ज्यादातर किसानों ने अभी तक मुआवजा नहीं लिया है. उन्होंने इस मामले को लेकर पटना हाईकोर्ट की शरण ली है. इनका एक आरोप यह भी है कि जमीन अधिगृहण के वक्त किसानों की जमीन की प्रकृति भी बदल दी गई है.

दावे के मुताबिक इस आवासीय जमीन को खेतिहर बता दिया गया है. खेतिहर जमीन का मुआवजा 17-18 हजार रुपये डिसमिल की दर से मिल रहा है. जबकि आवासीय जमीन का 2.5 लाख रुपये डिसमिल. ग्रामीणों का आरोप यह भी है कि सरकार पहले उत्तरी दिशा में बसे बनभाग और कदमपुर गांव की जमीन का अधिगृहण करने वाली थी, मगर उस गांव के कुछ प्रभावशाली लोगों के दबाव में फैसला बदल दिया गया.

एयरपोर्ट की चारदीवारी के पास खड़े अशोक कुमार मेहता बेघर हो चुके हैं, इनका मकान अब एयरपोर्ट परिसर के भीतर जा चुका है

शिवपूजन मेहता आरोप लगाते हैं, “उधर तत्कालीन डीएम प्रदीप कुमार झा के जाति-समाज के लोग बसते हैं. इसलिए उन्होंने यह फैसला ले लिया कि जमीन उत्तर के बदले दक्षिण दिशा के गांव गोआसी से ली जाएगी. नतीजा यह हुआ कि हम पहले गरीब थे, अब और दरिद्र हो गए. 1962 में जब यहां एयरफोर्स स्टेशन बना था, तब भी हमारे पूर्वजों ने ही उसके लिए जमीन दी थी.” 

यह तो गोआसी गांव के किसानों का हाल है जो पूर्णिया वासियों के हवाई उड़ान के सपनों की कीमत चुका रहे हैं. दूसरी तरफ जिन लोगों ने इस एयरपोर्ट को बनवाने के लिए लंबा संघर्ष किया है, वे भी बहुत खुश नजर नहीं आते. 

पूर्णिया शहर का नागरिक समाज यहां से उड़ान सेवा शुरू कराने के लिए लंबे अरसे से आंदोलन चलाता आ रहा है. इस आंदोलन के अगुआ लोगों में से एक विजय कुमार श्रीवास्तव कहते हैं, “2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त ही घोषित पीएम पैकेज में पूर्णिया एयरपोर्ट की घोषणा कर दी गई थी. हमारे यहां चूनापुर के एयरफोर्स स्टेशन में हवाई पट्टी पहले से थी, बस एक टर्मिनल बिल्डिंग का निर्माण होना था. उसकी राह में कई तरह की बाधाएं खड़ी की गईं. इसमें जदयू के एक बड़े नेता का हाथ था, जो मिथिलांचल के क्षेत्र से आते थे. इसके बाद दरभंगा में एयरपोर्ट बन गया, देवघर में बन गया. मगर पूर्णिया का काम अटका रह गया. फिर हमने इसके लिए लंबी लड़ाई लड़ी, तब जाकर यह सपना पूरा हुआ. मगर अभी भी यह आधा-अधूरा ही है.”

अपने साथियों के साथ पूर्णिया एयरपोर्ट के लिए अभियान चलाने वाले विजय कुमार श्रीवास्तव

आधा अधूरा क्यों, इसके जवाब में वे बताते हैं, “एयरपोर्ट तो शुरू हो गया मगर देश की राजधानी दिल्ली जाने के लिए भी हमारे पास कोई सीधी फ्लाइट नहीं है. कनेक्टिंग फ्लाइट है, उसमें 11 घंटे लगते हैं और किराया है 16 हजार रुपये. हमने दस साल का इंतजार और तीन साल का संघर्ष क्या इसी के लिए किया था?”

दरअसल अभी इस एयरपपोर्ट से सिर्फ दो हवाई जहाज उड़ान भरने जा रहे हैं. पहला अहमदाबाद के लिए दूसरा कोलकाता के लिए. जबकि पूर्णिया से ज्यादातर यात्री दिल्ली, मुंबई और बंगलुरू के हैं. विजय श्रीवास्तव के पास ही बैठे एक युवा विकास आदित्य कहते हैं, “यह इकलौता संकट नहीं है. इस एयरपोर्ट में अभी दोपहर ढाई बजे तक की वॉच अवर की सुविधा है. यानी इसके बाद हवाई जहाज उड़ान नहीं भर सकते. एयरपोर्ट पर जरूरी लैंडिग सिस्टम नहीं है. इसके लिए अलग से 16 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जाना है. इसके बिना ठंड के दिनों में कोहरा होने पर विमान के उड़ान भरने और उतरने में दिक्कतें होंगी और विमान सेवा बाधित रहेगी. अब तक स्थायी एयरपोर्ट टर्मिनल नहीं बना है. ” उद्घाटन के वक्त पीएम मोदी ने जिस टर्मिनल बिल्डिंग को रिकार्ड पांच महीने में तैयार हुआ बताया है वह दरअसल पोर्टा केबिन (अस्थाई) है. 

विजय कुमार श्रीवास्तव कहते हैं, “पीएम मोदी के इस कार्यक्रम में स्थायी टर्मिनल बिल्डिंग का शिलान्यास भी होना था. इसके लिए अलग से 15 एकड़ जमीन भी अधिगृहीत की गई थी. मगर वह कार्यक्रम टल गया है, क्योंकि टर्मिनल बिल्डिंग के लिए पर्यावरण मंजूरी अब तक नहीं मिली है. कुल मिलाकर हम समझते हैं कि यही बड़ी बात हुई है कि एयरपोर्ट चालू हो गया है, मगर इसे पूरी तरह स्थापित होने में कम से कम पांच साल का वक्त लगेगा. हमें भी धैर्य के साथ दबाव बनाए रखना पड़ेगा. हम यह आशा भी करते हैं कि अब हमारे साथ कोई और साजिश नहीं होगी.”

किसानों के मसले और एयरपोर्ट के अधूरे विकास के मसले पर बात करने के लिए इंडिया टुडे ने पूर्णिया एयरपोर्ट के नवनियुक्त निदेशक दीप प्रकाश गुप्ता से मिलने का समय मांगा. काफी इंतजार कराने के बाद वे मिलने के लिए तैयार हो गए. मगर इन तमाम सवालों को सुन लेने के बाद उन्होंने यह कहते हुए जवाब देने से इनकार कर दिया कि वे नए हैं, इसलिए अभी इस मसले में बात नहीं करना चाहते.

Read more!