अखिलेश की पसंद आंजनेय सिंह कैसे बने योगी के भरोसेमंद अफसर?
मुरादाबाद के कमिश्नर के रूप में तैनात आईएएस आंजनेय कुमार सिंह की प्रतिनियुक्ति एक साल और बढ़ गई. कभी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पसंदीदा रहे सिंह अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सबसे भरोसेमंद अफसरों में शामिल हो गए हैं

लखनऊ के पावर कॉरिडोर में इस समय एक ही नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है, आईएएस आंजनेय कुमार सिंह. पिछले महीने यूपी के निर्वतमान मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह को सेवा विस्तार न देने वाली केंद्र सरकार ने 25 अगस्त को आंजनेय कुमार सिंह की इंटर-कैडर प्रतिनियुक्ति को अगस्त 2026 तक एक साल के लिए बढ़ाने को मंज़ूरी दे दी.
यह फैसला सिर्फ प्रशासनिक मजबूरी नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे राजनीतिक मतलब भी छिपे हैं. इन दिनों उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार के लिए प्रशासनिक दक्षता और राजनीतिक मैनेजमेंट दोनों की सख्त ज़रूरत है. आंजनेय सिंह इस बैलेंस का चेहरा बन चुके हैं.
मुरादाबाद के कमिश्नर के रूप में कार्यरत सिंह 14 अगस्त को उत्तर प्रदेश में अपनी प्रतिनियुक्ति समाप्त होने के बाद 60 दिनों की छुट्टी पर चले गए थे. इसी बीच उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रशासनिक निरंतरता का हवाला देते हुए केंद्र से उनकी प्रतिनियुक्ति एक साल के लिए बढ़ाने का औपचारिक अनुरोध किया था.
मूल रूप से मऊ जिले के रहने वाले वर्ष 2005 बैच के सिक्किम कैडर के आईएएस अधिकारी आंजनेय कुमार सिंह सपा सरकार के दौरान 22 फरवरी 2015 को यूपी में पांच साल के लिए प्रतिनियुक्ति पर आए थे. उस वक्त वे तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पसंद बताए गए थे. प्रतिनियुक्ति पर आते ही उन्हें सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग का विशेष सचिव नियुक्त किया गया. जुलाई 2016 में, उनका तबादला बुलंदशहर में जिला मजिस्ट्रेट के रूप में किया गया.
प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद अप्रैल 2017 में, उन्हें वाणिज्य कर का अतिरिक्त आयुक्त बनाया गया. हालांकि बाद में आंजनेय मुख्यमंत्री योगी के करीब आ गए. इसके बाद वे फतेहपुर और फिर 19 फरवरी 2019 को सपा के राष्ट्रीय महासचिव आजम खान के गृह जिले रामपुर के डीएम बने. उस वक्त आजम खां की सियासत बुलंदी पर थी.
यहीं से आजम खान और आंजनेय कुमार सिंह में तनातनी शुरू हो गई. उस वक्त यह अपने चरम पर पहुंची जब आजम खान ने 2019 के लोकसभा चुनाव में एक सभा के दौरान रामपुर के डीएम पर एक विवादित बयान दे दिया. आजम ने जनता के सामने कहा था कि चुनाव के बाद इसी डीएम से जूते साफ कराएंगे.
इसके बाद आजम के खिलाफ कानूनी शिकंजा कसता चला गया. जौहर ट्रस्ट के जरिए रामपुर में जमीनों पर हुए बड़े पैमाने पर हुए कब्जों पर कार्रवाई शुरू हुई. आजम के खिलाफ अलग अलग धाराओं में करीब 90 मुकदमे दर्ज हुए. उनको बाद में जेल भेज दिया गया. कोर्ट से आजम को तीन साल की सजा हुई और उन्हें विधानसभा की सदस्यता से भी हाथ धोना पड़ा. आजम की पत्नी तंजीन फातिमा और बेटे अब्दुल्ला आजम पर भी कानूनी शिकंजा कसा गया.
रामपुर में जिलाधिकारी रहने के दौरान ही आंजनेय की प्रतिनियुक्ति खत्म हुई और पहली बार फरवरी, 2020 को केंद्र सरकार ने इन्हें पहला एक्सटेंशन दिया. बीजेपी सरकार में आंजनेय कुमार सिंह की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 25 अगस्त को एक साल के लिए प्रतिनियुक्ति बढ़ाने से पहले उन्हें एक-एक साल के 4 एक्सटेंशन और 6-6 माह के दो एक्सटेंशन मिल चुके हैं. यह पहली बार है कि किसी आईएएस अधिकारी को सातवीं पर प्रतिनियुक्ति पर एक्सटेंशन मिला है.
नियुक्तियों को देखने वाले कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग यानी डीओपीटी के नियमों के मुताबिक अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति अधिकतम 5 साल के लिए ही हो सकती है. बहुत जरूरी होने पर इसमें संबंधित राज्य सरकार की सिफारिश पर केंद्र सरकार एक वर्ष का एक्सटेंशन दे सकती है. इस तरह अधिकतम 2 एक्सटेंशन देने की परंपरा रही है. हालांकि, आईएएस आंजनेय कुमार सिंह की प्रतिनियुक्ति अवधि यूपी में पांच साल की जगह अब 11 साल हो जाएगी और उन्हें कुल 7 एक्सटेंशन मिल चुके हैं. इस दौरान उनका प्रमोशन भी हुआ और मार्च 2021 में उन्हें मुरादाबाद मंडल जिसमें रामपुर, संभल जिले आते हैं, का कमिश्नर बनाया गया.
एक सख्त अधिकारी के रूप में पहचाने जाने वाले आंजनेय कुमार सिंह का उत्तर प्रदेश में कार्यकाल विवादों से भरा रहा है. समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजम के खिलाफ कार्रवाई में सिंह की भूमिका पर सवाल खड़े किए थे. जब 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सिंह को सेवा विस्तार दिया गया, तो अखिलेश ने खुले तौर पर इस फैसले पर सवाल उठाया और चुनाव आयोग के सामने इस आधार पर चुनौती दी कि यह सेवा नियमों के विरुद्ध है. दिलचस्प बात यह है कि सिंह उत्तर प्रदेश तब आए जब यादव मुख्यमंत्री थे.
मुरादाबाद में आंजनेय कुमार सिंह के कमिश्नर रहते हुए पड़ोस का जिला संभल में वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव बाद सुर्खियों में आ गया था. नवंबर 2024 में संभल में अदालती आदेश पर एक मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी. यह सर्वेक्षण इस दावे के आधार पर कराया गया था कि मस्जिद का निर्माण के मंदिर के ऊपर किया गया है. उस समय भी अखिलेश यादव और आंजनेय कुमार सिंह ने सोशल मीडिया पर काव्यात्मक व्यंग्य किए थे.
एक और वजह है जिसके चलते आंजनेय सिंह की प्रतिनियुक्ति बढ़ाना बीजेपी सरकार के लिए जरूरी हो गया. योगी सरकार ने पिछले आठ वर्षों में कई बड़े फैसले लिए- माफिया पर कार्रवाई से लेकर बुनियादी ढांचे तक. लेकिन इन सबका असर तभी दिखता है जब प्रशासनिक मशीनरी उसी स्पीड से काम करे. आंजनेय सिंह को इस मशीनरी का ‘ट्रबलशूटर’ माना जाता है. वे न केवल मुद्दों की पहचान जल्दी कर लेते हैं, बल्कि उनका समाधान निकालने की क्षमता भी रखते हैं. यही कारण है कि उन्हें सरकार के लिए ‘सिस्टम के साथ तालमेल बैठाने वाला अफसर’ कहा जाता है.
मुरादाबाद मंडल बीजेपी के लिए हमेशा से एक दुरुह राजनीतिक किला रहा है. 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी यहां की 27 विधानसभा सीटों में से केवल 11 ही जीत पाई थी. हालांकि इसके बाद बीजेपी ने रामपुर सदर और कुंदरकी के विधानसभा उपचुनाव में जीत दर्ज की. वहीं रामपुर (स्वार) विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में पहली बार बीजेपी के सहयोगी अपना दल ने जीत हासिल की. तब ऐसी चर्चा थी कि आंजनेय कुमार सिंह के ‘मैनेजमेंट’ ने पार्टी के इस प्रदर्शन में अहम भूमिका निभाई है.
मुरादाबाद में हिंदू कालेज में डिफेंस स्ट्रेटजी विभाग के प्रमुख और राजनीतिक विश्लेषक प्रो. ए. के. सिंह कहते हैं, “उत्तर प्रदेश जैसे विशाल और जटिल राज्य में सरकार चलाना महज़ अफसरशाही का मामला नहीं है. यहां सत्ता का समीकरण हमेशा राजनीतिक मैसेजिंग से जुड़ा होता है. बीजेपी नेतृत्व को यह भली-भांति पता है. आंजनेय सिंह की भूमिका यहां अहम हो जाती है. वे न केवल मुख्यमंत्री के भरोसेमंद अफसर हैं, बल्कि संगठन और सरकार के बीच ‘ब्रिज’ का काम भी करते हैं. बताया जाता है कि उनकी पकड़ पार्टी संगठन पर भी मजबूत है और वे अक्सर ऐसे मुद्दों पर इनपुट देते हैं जो जनता और कार्यकर्ताओं की नब्ज़ से जुड़े हों. यही कारण है कि उनकी मौजूदगी बीजेपी के लिए केवल एक प्रशासनिक फैसले तक सीमित नहीं है.”
बीजेपी ने वर्ष 2017 और 2022 में यूपी में शानदार जीत दर्ज की. लेकिन 2027 के विधानसभा चुनाव की राह आसान नहीं होगी. पार्टी को पता है कि विपक्ष की रणनीति अब ज्यादा संगठित होगी और एंटी-इन्कंबेसी भी एक बड़ा फैक्टर बन सकती है. ऐसे में सरकार को ऐसी प्रशासनिक टीम चाहिए जो विकास और सुशासन की ठोस तस्वीर खींच सके. आंजनेय कुमार सिंह की कार्यशैली यहां फिट बैठती है. वे योजनाओं की मॉनिटरिंग, तेज़ी से क्रियान्वयन और मीडिया-फ्रेंडली नैरेटिव बनाने में दक्ष माने जाते हैं.
योगी सरकार का यह फैसला नौकरशाही के लिए भी एक संदेश है. साफ है कि मुख्यमंत्री ऐसे अफसरों को महत्व दे रहे हैं जो डिलीवरी में सक्षम हों और राजनीतिक रूप से भरोसेमंद भी. इससे अफसरशाही के भीतर भी यह संकेत गया है कि सिस्टम में वही लोग टिक पाएंगे जो नतीजे देंगे और सरकार की सोच के हिसाब से काम करेंगे.
एक अहम पहलू यह भी है कि इस प्रतिनियुक्ति विस्तार पर दिल्ली से भी सहमति मिली है. इसका मतलब है कि आंजनेय सिंह की उपयोगिता सिर्फ लखनऊ तक सीमित नहीं है. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के लिए भी वे भरोसेमंद माने जाते हैं. पार्टी आलाकमान को पता है कि यूपी में 2027 के साथ-साथ 2029 का लोकसभा चुनाव भी दांव पर है. ऐसे में जिन अफसरों पर राज्य और केंद्र दोनों की सहमति हो, उनकी भूमिका और मजबूत हो जाती है.