बिहार : बुजुर्गों की पेंशन बढ़ाना नीतीश का राजनीतिक ‘मास्टर स्ट्रोक’ लेकिन इससे और क्या बदलेगा?

बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने 21 जून को सामाजिक सुरक्षा पेंशन में बढ़ोतरी कर बुजुर्गों, दिव्यांगों, विधवा महिलाओं की एक बड़ी आबादी को खुश करने की कोशिश की है

CM Nitish Kumar (Photo/PTI)
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

अब बिहार में बुजुर्गों, दिव्यांगों और विधवा महिलाओं को सामाजिक पेंशन के तौर पर हर महीने 11 सौ रुपए मिला करेंगे. पहले सरकार इन्हें सिर्फ चार सौ रुपए प्रतिमाह दिया करती थी, जो आज की बढ़ी महंगाई के लिहाज से काफी कम माना जाता था. इसलिए इस साल होने वाले चुनाव से पहले विपक्षी पार्टियां, खास कर राजद और जनसुराज पेंशन की इस राशि को लेकर सरकार पर हमलावर रहा करती थी.

दोनों ने अपनी-अपनी तरफ से इस राशि को बढ़ाकर क्रमशः 1500 और 2000 रुपए प्रति माह करने की घोषणा की थी. अब ऐन चुनाव से पहले नीतीश सरकार ने इस राशि में ठीक-ठाक बढ़ोतरी की है. हालांकि यह बढ़ोतरी मांग और विपक्षी दलों के वादों के अनुरूप नहीं है. फिर भी यह माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने इस घोषणा के जरिये विपक्षी दलों से एक बड़ा चुनावी मुद्दा छीन लिया है. जानकार इसे नीतीश कुमार का एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक भी बताने लगे हैं.

क्यों है यह मास्टर स्ट्रोक?

इस बढ़ोतरी की घोषणा करते हुए में सीएम नीतीश कुमार ने सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट में लिखा है कि इस योजना का लाभ 1.11 करोड़ लोगों को मिलेगा. यह संख्या बिहार के कुल मतदाता 7.8 करोड़ का लगभग 14 फीसदी हिस्सा हो जाती है. यानी नीतीश सरकार के इस एक फैसले से राज्य के 14.23 फीसदी मतदाता प्रभावित होंगे. इन मतदाताओं में ज्यादातर ऐसे लोग हैं, जो बिहार में ही रहते हैं. वे पलायन नहीं के बराबर करते हैं. ऐसे में अगर इस फैसले से उनके जीवन में बदलाव आया तो उनका झुकाव सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन की तरफ हो सकता है.

खास है बिहार की सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना

हालांकि पेंशन राशि के मामले में यह देश के दूसरे संपन्न राज्यों से कम है. हरियाणा में बुजुर्गों को तीन हजार रुपए प्रति माह की पेंशन मिलती है. आंध्र प्रदेश में बुजर्गों को 2750 रुपए की पेंशन के साथ उसे महंगाई भत्ते से जोड़ा गया है और हर वर्ष उसमें पांच फीसदी की बढ़ोतरी होती है. पंजाब में 1500 रुपए प्रति माह पेंशन का प्रावधान है. दिल्ली में यह पेंशन दो श्रेणियों में 2000 और 2500 रुपये प्रति माह के बीच है. हालांकि पड़ोसी राज्य झारखंड और उत्तर प्रदेश में यह राशि एक हजार रुपये प्रति माह है.

विकसित राज्यों के मुकाबले बिहार में पेंशन राशि अभी भी कम है. मगर जानकार इसकी दो खूबियां बतातें हैं. हेल्पेज इंडिया से जुड़े गिरीशचंद्र मिश्र कहते हैं, “जहां कई दूसरे राज्यों में यह पारिवारिक पेंशन है, बिहार में यह इंडिविजुअल है. यानी एक परिवार में जितने भी बुजुर्ग हैं, उन्हें इस योजना का लाभ मिल सकता है. दूसरी बात, जहां दूसरे राज्यों में आय सीमा और गरीबी रेखा का बंधन है. यह पेंशन सिर्फ गरीबों को मिल सकती है, वहीं बिहार में ऐसा नहीं है. इस दायरे से सिर्फ उन्हीं लोगों को बाहर किया गया है, जो सरकार से किसी और तरह की पेंशन लेते हैं.”

मगर अभी भी बड़ी संख्या पेंशन से बाहर

इन खूबियों के बावजूद बिहार में खासकर बुजुर्गों की बड़ी संख्या इस दायरे से बाहर है. 22 जून को राज्य के समाज कल्याण विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 49.56 लाख बुजुर्गों को मुख्यमंत्री वृद्धजन पेंशन योजना के तहत और 35.59 लाख बुजुर्गों को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन के तहत राज्य सरकार पेंशन दे रही है. इस तरह दोनों आंकड़ों को मिला दें तो 85.49 लाख बुजुर्गों को पेंशन का लाभ मिल रहा है. 

जबकि चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 60 साल से अधिक उम्र के मतदाताओं की संख्या 1.28 करोड़ है. बिहार सरकार की बुजुर्गों की पेंशन से सिर्फ उन्हें ही बाहर रखा गया है, जिन्हें राज्य सरकार से कोई और पेंशन मिलती है. ऐसे लोगों की संख्या अधिकतम दस लाख भी मान लें तो भी इस योजना के पात्र बुजुर्गों की संख्या 1.18 करोड़ होगी और इस तरह लगभग 30-32 लाख पात्र बुजुर्ग इस योजना से वंचित हैं.

ऐसा क्यों है?

गिरीश इसकी दो वजहें बताते हैं. वे कहते हैं, “एक तो इस योजना का ठीक से प्रचार प्रसार नहीं हुआ है कि यह यूनिवर्सल है. किसी तरह की सरकारी पेंशन न पाने वाला हर बुजुर्ग इसका लाभ ले सकता है. ऐसे में सिर्फ गरीब और जरूरतमंद तबका ही इसके लिए आवेदन करता है. निम्न मध्य वर्ग और मध्य वर्ग की बड़ी आबादी इसके लिए प्रयास भी नहीं करती. वहीं दूसरी तरफ इसके आवेदन की प्रक्रिया ऑनलाइन है, गांव के बुजुर्ग आज भी इसको लेकर सहज नहीं हैं और पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हैं. इसके अलावा इस पेंशन को पाने वाले बुजुर्गों से प्रत्येक वर्ष लाइफ सर्टिफिकेट मांगा जाता है. इसमें भी कई लोग चूक करने पर सिस्टम से बाहर हो जाते हैं.”

सिर्फ पेंशन से नहीं बदलेंगे बुजुर्गों के हालात

बुजुर्गों की पेंशन राशि बढ़ाना जरूर अच्छी पहल है. मगर राज्य सरकार को 60 से 75 वर्ष की आयु वाले सक्रिय बुजुर्गों के बारे में भी सोचना चाहिए. ये लोग अमूमन अनौपचारिक क्षेत्र से आते हैं और 60 साल की उम्र के बाद भी काम करना चाहते हैं. मगर न इनके रोजगार के लिए कोई योजना है, न इन्हें बैंक लोन देता है. और तो और बीमा योजना में भी इनके लिए कोई प्रावधान नहीं है. इन बातों का हवाला देते हुए गिरीश कहते हैं, “इतनी बड़ी आबादी को बिठाकर रखना कोई अच्छी बात नहीं. सरकार चाहे तो ये बुजुर्ग भी राज्य की जीडीपी बढ़ाने में भूमिका अदा कर सकते हैं.” हेल्पेज इंडिया पिछले डेढ़ दशक से बिहार के कई इलाकों में बुजुर्गों के स्वयं सहायता समूह बनाकर उन्हें आजीविका से जोड़ रही है. हाल ही में बिहार के आजीविका मिशन ने इन स्वयं सहायता समूहों को अपना हिस्सा बनाने की स्वीकृति दी है.  

खबर आते ही सक्रिय हो गये डिजिटल बिचौलिये!

पेंशन की राशि में बढ़ोतरी की खबर आते ही बिहार के अंदरूनी इलाके में बिचौलिये सक्रिय हो गए हैं. अक्षयवट बुजुर्ग महासंघ के अध्यक्ष सीताराम मंडल कहते हैं, "ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट संचालकों ने यह अफवाह फैलाना शुरू कर दिया है कि इस पेंशन का लाभ लेने के लिए हर बुजुर्ग को अपना बैंक अकाउंट अपडेट कराना पड़ेगा और इसमें दो सौ रुपये लगेंगे. ऐसे में सीएसपी संचालकों और नेट कैफे चलाने वालों के लिए भारी भीड़ लगने लगी है. हमलोगों ने अपने संगठन के लोगों को इस अफवाह से बचने की सलाह दी है."

हालांकि सीताराम मंडल इस फैसले से काफी खुश नजर आते हैं. वे कहते हैं, “कम से कम अब इतना पैसा तो मिलेगा कि बुजुर्गों के लिए दूध और फल का इंतजाम हो जाएगा. दवा खरीदने के लिए किसी का मोहताज नहीं होना पड़ेगा. यह बड़ी बात है.

विकलांगों, विधवा महिलाओं की भी बढ़ेगी पेंशन

सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक 85.49 लाख बुजुर्गों के अलावा 14.96 लाख विधवा, 10.75 लाख निःशक्तों को भी पेंशन में बढ़ोतरी का लाभ मिलेगा. इस तरह कुल 1.11 करोड़ लोगों को पेंशन में बढ़ोतरी का लाभ मिलेगा.

श्रेय लेने की होड़

पेंशन बढ़ोतरी की इस घोषणा के बाद बिहार के राजनीतिक दलों में इसका श्रेय लेने की होड़ मची है. खासकर विपक्षी दल इसे अपनी कोशिशों का नतीजा बता रहा है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने 22 जून को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर नीतीश सरकार को 'नकलची सरकार' बताया और कहा, “जो मुख्यमंत्री 20 साल से लाख अनुनय, विनय एवं आंदोलन व आलोचना के बावजूद पेंशन नहीं बढ़ा रहे थे उसी सामाजिक सुरक्षा पेंशन को हमने 1500 रुपये प्रतिमाह करने की घोषणा थी. उसके प्रचार-प्रसार की वजह से मजबूरन सरकार को पेंशन बढ़ानी पड़ी.”

वहीं अपनी घोषणा में सामाजिक सुरक्षा पेंशन को दो हजार रुपये प्रति माह करने का वादा करने वाले जन सुराज नेता प्रशांत किशोर ने कहा, “सरकार ने दबाव में आकर चार सौ रुपये की पेंशन को दो हजार किया है. नवंबर के बाद अगर जन सुराज की सरकार आएगी तो इसे दो हजार कर दिया जाएगा.”

इसका श्रेय सत्ताधारी दल भी ले रहे हैं. 'हम' पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी कहते हैं, “जब हम बिहार के मुख्यमंत्री थे तो इसे बढ़ा कर दो सौ से चार सौ किया था. अब एक अरसा बीत जाने की वजह से इसमें बढ़ोतरी की जरूरत थी. हमने सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात के दौरान कई बार इस तरफ उनका ध्यान खींचा था. ऐसे में उन्होंने यह महत्वपूर्ण फैसला लिया है.”

क्या होगा इस फैसले का राजनीतिक असर? 

क्या इस फैसले का सरकार को चुनावी लाभ होगा, यह पूछने पर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पूर्व प्राध्यापक पुष्पेंद्र कहते हैं, “हाल के चुनाव में यह देखा गया है कि कैश बैनिफिट वाली योजनाओं से चुनाव में लाभ होता है. इसलिए सत्ताधारी पार्टी अब उन योजनाओं को चुनाव से पहले लागू करा लेती है, जिसका वादा विपक्षी पार्टियां करती हैं. यह भी वैसी ही एक कवायद है. मगर इससे यह भी लगता है कि एनडीए में आत्मविश्वास की कमी है. उन्होंने 20 साल में जिस मांग की अनदेखी की उसे अब वे लागू कर रहे हैं. लेकिन यह भी सच है कि इस फैसले का सत्ताधारी दल को फायदा मिलेगा.”

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