'भीम संसद' से खुश हुए नीतीश लेकिन इस कार्यक्रम पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?
संविधान दिवस यानी 26 नवंबर को जदयू ने दलितों को एकजुट करने और उन्हें अपने पाले में लाने के लिए पटना में 'भीम संसद' नाम से एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया था

जदयू का राजनीतिक कार्यक्रम हो, मंच पर नीतीश कुमार हों और सामने एक लाख से अधिक लोगों की भीड़ हो. अमूमन ऐसे संयोग कम ही होते हैं. इसलिए 26 नवंबर रविवार को जब पटना के वेटनरी कॉलेज मैदान में जदयू के आयोजन 'भीम संसद' में भारी भीड़ उमड़ी तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी खुशी से चहकने लगे.
अपने भाषण में उन्होंने इस बात का जिक्र करते हुए कहा, “यह मेरा 18वां साल है. मैं यहां आयोजनों में आता रहता हूं. मगर आज तक किसी आयोजन में इतनी बड़ी संख्या में लोग नहीं जुटे. मुझे खुशी है कि आप लोग इतनी बड़ी संख्या में यहां आए हैं. इसलिए मैंने भी तय किया है कि हम आप लोगों की सेवा इसी तरह करते रहेंगे.”
संविधान दिवस के दिन राज्य में दलितों को एकजुट करने और उनको जदयू के पक्ष में लाने के लिए आयोजित भीम संसद के दौरान 65 से 70 हजार की क्षमता वाला वेटनरी मैदान खचाखच भरा था. यही नहीं मैदान के बाहर बेली रोड तक लगभग एक किमी की लंबाई में लोगों का रेला चलता आ रहा था. कहा जा रहा है कि हाल के आठ-दस वर्षों में भीड़ के नजरिये से जदयू का यह सबसे बड़ा आयोजन था. बिहार में अमूमन बड़ी रैलियां राजद की हुआ करती हैं. लालू प्रसाद आज भी बिहार के सबसे बड़े भीड़ जुटाऊ नेता हैं. भाजपा की रैलियों में भी भीड़ जुटती रही है, मगर जब नरेंद्र मोदी या अमित शाह जैसे राष्ट्रीय नेताओं की रैली होती है तब. नीतीश अमूमन भीड़ जुटाऊ नेता नहीं माने जाते इसलिए ऐसे अवसर नीतीश और जदयू के इतिहास में कम आए हैं.
इस आयोजन में भारी भीड़ जुटाने का श्रेय जदयू के सबसे बड़े दलित नेता अशोक चौधरी को दिया जा रहा है. उन्होंने अक्टूबर में भीम संवाद की शुरुआत की थी और पूरे बिहार में यात्रा कर दलितों के बीच पार्टी का कामकाज पहुंचाने का अभियान चलाया. मंच से नीतीश कुमार ने भी इस काम के लिए अशोक चौधरी की कई बार तारीफ की. इस भीम संसद का प्रस्ताव उन्हीं का था. इस आयोजन के समन्वयक भी वही थे.
इंडिया टुडे से बातचीत में अशोक चौधरी कहते हैं, “यह एक तरह से बिहार के दलित समाज का अपने नेता नीतीश कुमार को थैंक्स गिविंग था. उन्होंने बिहार में सत्ता में आने के बाद से लगातार दलितों के लिए काम किया है. इसलिए दलित समाज के लोगों ने भी बड़ी संख्या में पटना आकर अपने नेता का शुक्रिया अदा किया और उन्हें कहा कि हम आपके साथ हैं.”
अशोक चौधरी कहते हैं, “हमारे नेता नीतीश कुमार से बड़ा दलितों का हितचिंतक कौन है. उन्होंने जब कुर्सी छोड़ी तो अपना उत्तराधिकारी एक महादलित नेता को बनाया. अब वह नेता नीतीश कुमार के सिद्धांतों का अनुसरण नहीं कर पाया, यह उसकी गलती है. भारत के इतिहास में शायद मैं अकेला ऐसा मंत्री रहा हूं जो बिना किसी सदन का सदस्य रहे आठ महीने तक मंत्री रहा. ऐसा अवसर कौन किसी दलित नेता को देता है.”
भीम संसद में अपने संबोधन के दौरान अशोक चौधरी ने नीतीश कुमार को संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के बाद दलितों का सबसे बड़ा हितचिंतक बताया.
यह आयोजन इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि महागठबंधन में आज की तारीख में न कोई दलितों की पार्टी है, न कोई बड़ा दलित नेता. बिहार में दलितों की राजनीति करने वाली तीन प्रमुख पार्टियां चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास), पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी और जीतनराम मांझी की हिंदुस्तान आवामी मोर्चा, तीनों एनडीए का हिस्सा हैं. ऐसे में अगर जदयू दलितों के बीच पैठ बना पा रही है और दलितों के वोट का कुछ हिस्सा भी हासिल कर पा रही है तो यह न सिर्फ जदयू बल्कि महागठबंधन के लिए भी बड़ी उपलब्धि है.
हालांकि इस आयोजन में जुटी भीड़ को लेकर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं. भाजपा का आरोप है कि यह भीड़ सत्ता का दुरुपयोग करके जुटाई गई है. बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने आरोप लगाया कि दलित बस्तियों में काम करने वाले ‘विकास मित्र’, ‘टोला सेवक’, ‘तालिमी मरकज’ के हजारों कर्मियों को प्रलोभन देकर भीड़ जुटाई गई कि उन्हें राज्य कर्मी का दर्जा और वेतन वृद्धि दी जाएगी.
यह आरोप बेवजह नहीं है. रैली में बड़ी संख्या में न सिर्फ टोला सेवक और तालीमी मरकज नजर आए बल्कि शिक्षा प्रेरकों की भी अच्छी खासी संख्या मौजूद थी. कई साक्षरता प्रेरक तो बाकायदा टोपी पहनकर आए थे. दरभंगा से आए एक प्रेरक राकेश ठाकुर ने कहा, "हम लोग 2011 ही यह काम करते थे. 2018 में केंद्र सरकार ने हमसे सेवा लेना बंद कर दिया. हम लोग अपनी सेवा फिर से लागू कराने की मांग करने आए हैं.” मधेपुरा से आए प्रेरक मो. जाकिर हुसैन कहते हैं, “हमें बुलाया गया है कि आएं, नीतीश कुमार हमारा समायोजन करेंगे.” उन्होंने यह दावा भी किया कि इस आयोजन में पूरे बिहार से 15 से 17 हजार प्रेरक आए हैं.
इस आयोजन में टोला सेवकों की भी बड़ी संख्या नजर आई. दरअसल बिहार में टोला सेवकों का पद अनुसूचित जाति के लिए पूरी तरह रिजर्व है. हाल ही में सरकार ने उनका मानदेय बढ़ाकर 22 हजार रुपए प्रतिमाह कर दिया है. उनका पदनाम बदलकर शिक्षा सेवक कर दिया गया है. इस आयोजन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बात का उल्लेख भी किया और कहा कि वे जल्द इन टोला सेवकों का मानदेय फिर से बढ़ाने वाले हैं.
इस आयोजन में औरंगाबाद के देव से ऐसे ही एक शिक्षा सेवक महादेव चौधरी आए थे. उन्होंने बताया कि वे एक सरकारी कर्मी के तौर पर यहां नहीं आए हैं, बल्कि भीमराव आंबेडकर के अनुयायी के तौर पर आए हैं. महादेव कहते हैं, "हमारे मुख्यमंत्री और भवन निर्माण मंत्री अशोक कुमार चौधरी राज्य में हम आंबेडकर को मानने वालों के लिए बड़ा काम किया है." यह पूछे जाने पर कि क्या आप लोगों को अपने साथ भीड़ लाने की जिम्मेदारी मिली थी, वे इससे इनकार करते हैं और कहते हैं कि लोग अपनी मर्जी से यहां आए हैं.
अब यह भीड़ जैसे भी आई हो, मगर इस भीड़ ने एक तरफ जदयू के अंदर उर्जा का संचार किया है, तो वहीं विरोधी दल इसे खारिज करने के तर्क तलाशने में जुटा है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इतनी बड़ी भीड़ जुटाने की वजह से अशोक चौधरी का पार्टी में कद बढ़ेगा, यह तय माना जा रहा है.