गरीबी हटाने में सबसे तेज, फिर भी बिहार सबसे गरीब!
देश में गरीबी की स्थिति पर जारी नीति आयोग की 'मल्टी डाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स' के मुताबिक 2005 से बिहार की गरीब आबादी में 52 फीसदी की कमी आई है

बिहार में गरीबी सबसे तेज गति से घटी, मगर फिर भी देश में सबसे ज्यादा गरीबी बिहार में ही है. यह उलटबासी भरी सच्चाई नीति आयोग द्वारा देश में गरीबी की स्थिति पर जारी 'मल्टी डाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स' से सामने आयी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक 2005-06 में बिहार में 78.28 फीसदी आबादी गरीब थी, जो 2019-21 के बीच घटकर 33.76 फीसदी रह गयी और अनुमान है कि 2022-23 में यह 26.59 फीसदी रह गयी होगी.
इन 17 वर्षों के बीच बिहार की गरीब आबादी में 51.69 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी. यह देश में सर्वाधिक है. गरीब आबादी में इतनी गिरावट किसी और राज्य में नहीं आयी. मगर इसके साथ ही बिहार अभी भी गरीब आबादी के मामले में देश में सबसे आगे है. इस रिपोर्ट के मुताबिक जहां देश में अभी गरीबों की संख्या 11.28 रह गयी है. जबकि बिहार में राष्ट्रीय औसत से लगभग ढाई गुना अधिक गरीब हैं यानी 26.59 फीसदी.
इस खबर के आने पर जहां राज्य सरकार अपने गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की सफलता का ढिंढोरा पीट रही है, वहीं जानकार कह रहे हैं कि बिहार सरकार की मौजूदा नीतियों से गरीबी उन्मूलन में काफी वक्त लगने वाला है. अब राज्य सरकार को ढांचागत बदलाव अपनाने की जरूरत है, वहीं केंद्र को भी अब बिहार की विशेष राज्य के दर्जे वाली मांग मान लेनी चाहिए. गौरतलब है कि बिहार में हाल ही में हुए जाति आधारित सर्वेक्षण में भी पाया गया था कि राज्य की 34 फीसदी परिवार छह हजार से कम मासिक आय पर गुजर-बसर करते हैं.
12 मानकों के आधार पर गरीबी का आकलन करने वाली नीति आयोग की इस रिपोर्ट में शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन के स्तर से जुड़े मानक हैं. इन मानकों के आधार पर यह पाया गया है कि देश में 2005-06 के मुकाबले 2022-23 में गरीबी 55.34 फीसदी से घटकर 11.28 फीसदी रह गयी है. यानी लगभग 44.06 फीसदी की कमी दर्ज की गयी है. देश के 16 राज्यों में गरीबों की संख्या दस फीसदी से भी कम रह गयी है.
रिपोर्ट के आने के बाद बिहार के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रगतिशील नीतियों की वजह से हुआ है कि उनकी सरकार गरीबी उन्मूलन में देश भर में अव्वल हैं. मगर उन्होंने इस बात पर कोई टिप्पणी नहीं की कि क्यों बिहार इस रिपोर्ट के ज्यादातर मानकों पर आज भी सबसे नीचे है.
पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य नवल किशोर चौधरी इस रिपोर्ट पर कहते हैं, "मैं इस रिपोर्ट को लेकर आयोजित एक बैठक में शामिल हो चुका हूं. यह ठीक है कि इस बार बिहार और यूपी जैसे राज्यों में गरीबी घटी है, मगर इस रूटीन किस्म की गिरावट से बिहार में बहुत कुछ बदलने वाला नहीं. आज भी अगर बिहार देश का सबसे अधिक गरीब राज्य है तो इसकी जिम्मेदारी पिछले तीस सालों से बिहार पर राज कर रहे नेताओं को लेनी चाहिए."
चौधरी के मुताबिक मौजूदा नीतियों से बिहार गरीबी से बाहर निकलने वाला नहीं. इसके लिए राज्य सरकार को स्ट्रक्चरल रिफॉर्म को अपनाना होगा. भूमि सुधार और कॉमन स्कूल सिस्टम जैसी नीतियों को लागू करना होगा. साथ ही केंद्र सरकार को भी स्वीकार करना होगा कि बिहार जैसे राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देना जरूरी है. तभी ऐसे राज्य गरीबी के दलदल से बाहर निकल पाएंगे.”
भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल कहते हैं, “ये आंकड़े पहली ही नजर में झूठ के पुलिंदे प्रतीत होते हैं. रिपोर्ट के अनुसार बिहार के 3.77 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले चुके हैं. जबकि बिहार सरकार द्वारा हाल ही में किए गए जाति गणना की रिपोर्ट बतलाती है कि राज्य की तकरीबन 34 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है. गरीबी का यह आंकड़ा 6000 रु. तक मासिक आय वाले परिवारों का है. यदि 10000 रु. तक मासिक आय का पैमाना बनाया जाए तो राज्य की लगभग दो तिहाई आबादी भयानक गरीबी की चपेट में है. ऐसे में नीति आयोग का दावा हास्यास्पद लगता है."
कुणाल आगे यह भी कहते हैं कि बिहार की भयावह गरीबी की सच्चाई को खुद बिहार सरकार सामने लाई है और इसके लिए भाजपा कहीं से कम जिम्मेवार नहीं है. वह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग से लगातार भागती रही है. लंबे समय तक वह यहां की सत्ता में रही है इसलिए वह अपनी जिम्मेवारी से भाग नहीं सकती.
बिहार में लंबे अंतराल से गरीबी के मसले पर काम करने वाली संस्था आद्री की सदस्य सचिव अस्मिता गुप्ता भी इस रिपोर्ट पर सवाल उठाती हैं. वे कहती हैं, “दिक्कत यह है कि जिन आंकड़ों पर ये रिपोर्ट तैयार हुए हैं, वे आंकड़े पुराने हैं. कोरोना के वक्त सही आंकड़े उपलब्ध नहीं हो पाये थे, ऐसे में पुराने आंकड़ों के आधार पर ही नये अनुमानित आंकड़े तैयार किये गये और यह रिपोर्ट उसी पर आधारित है. मगर साथ ही यह भी सच है कि बिहार में गरीबी घटी है. हमने भी सीमांचल के इलाके में जो अध्ययन कराये हैं, उससे यही नतीजे सामने आते हैं.
अस्मिता गुप्ता के मुताबिक बिहार अगर गरीबी के मामले में आज भी देश में सबसे नीचे है तो इसकी वजह यहां के लोगों में अशिक्षा और जागरूकता का अभाव है. लोग सरकार की गरीबी उन्मूलन वाली योजनाओं का ठीक से लाभ उठा नहीं पाते. राज्य ऐतिहासिक भेदभाव का भी शिकार रहा है. इसलिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए.