स्टालिन का यह कदम केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों में ला सकता है भूचाल!

मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने 15 अप्रैल को तमिलनाडु विधानसभा के भाषण में ऐलान किया कि केंद्र सरकार की ओर से राज्यों के संवैधानिक अधिकारों पर बार-बार हो रहे हमले को रोकने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति बनाई जा रही है

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन

तमिलनाडु की सियासत में एक नया मोड़ आया है. मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले संघवाद को अपने सियासी हथियार का केंद्र बना लिया है. 15 अप्रैल को तमिलनाडु विधानसभा के अपने भाषण में उन्होंने ऐलान किया कि केंद्र सरकार की ओर से राज्यों के संवैधानिक अधिकारों पर बार-बार हो रहे हमले को रोकने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति बनाई जा रही है.

यह समिति राज्यों के हक की रक्षा और भारत की संघीय संरचना को फिर से संतुलित करने के लिए सुझाव देगी. इस तीन सदस्यीय समिति की अगुआई सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज कुरियन जोसेफ करेंगे. उनके साथ पूर्व आईएएस अधिकारी अशोक वर्धन शेट्टी और अर्थशास्त्री एम. नागनाथन होंगे.

चुस्त-दुरुस्त प्रशासनिक शैली के लिए मशहूर अशोक वर्धन शेट्टी पिछले डीएमके शासन में स्टालिन के साथ काम कर चुके हैं. वहीं, राज्य योजना बोर्ड में अहम भूमिका निभा चुके नागनाथन डीएमके से गहरे तौर पर जुड़े हैं और स्टालिन के पिता, दिवंगत करुणानिधि के साथ उनकी दोस्ती थी.

स्टालिन का यह ऐलान सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के कुछ दिनों बाद ही आया जब कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल को राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों पर ‘बैठे रहने’ के लिए फटकार लगाई थी. स्टालिन ने इस समिति को राज्यों और उनकी स्वायत्तता के लिए बड़ी जीत करार दिया.

इस समिति के बारे में ऐलान करते हुए स्टालिन ने कहा, "राज्यों के जायज हक की रक्षा और केंद्र-राज्य संबंधों को बेहतर करने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की गई है."

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने अपनी हालिया घोषणा के लिए तमिलनाडु विधानसभा में नियम 110 का सहारा लिया, जो मुख्यमंत्री या किसी मंत्री को बिना विपक्ष को जवाब देने या अपनी राय रखने का मौका दिए कोई बयान या ऐलान करने की इजाजत देता है. इस नियम ने विपक्ष को शुरूआत में ही खामियां उजागर करने या आपत्ति जताने से रोक दिया.

यह समिति ऐसे वक्त में बनी है, जब डीएमके की अगुवाई वाली तमिलनाडु सरकार और बीजेपी शासित केंद्र के बीच तनाव चरम पर है. शिक्षा नीति, टैक्स, वित्तीय हस्तांतरण और संस्थागत स्वायत्तता जैसे मुद्दों पर दोनों के बीच ठनी हुई है. स्टालिन के भाषण में चेतावनी के साथ इस नई नीति के क्रियान्वयन के लिए रोडमैप और राजनीति, दोनों शामिल थी.

उनके भाषण का मूल केंद्र था केंद्र सरकार की वह नीति, जो संस्थानों, नीतियों और वित्तीय उपायों के जरिए सत्ता को अपने हाथ में केंद्रित कर विपक्ष शासित राज्यों को नजरअंदाज कर रही है. स्टालिन ने विधानसभा को याद दिलाया कि संघवाद की वकालत में तमिलनाडु हमेशा सबसे आगे रहा है. उन्होंने कहा कि राज्य स्वायत्तता पर हर बहस में पहली आवाज तमिलनाडु से उठी है.

तमिलनाडु की बढ़ती उपेक्षा को बयां करने के लिए स्टालिन ने कहा, "मां को सबसे बेहतर पता होता है कि अपने भूखे बच्चे को क्या खाना देना है. लेकिन अगर दिल्ली में बैठा कोई तय करे कि बच्चे को क्या खाना है, क्या सीखना है, और कौन सी सड़क पर चलना है—तो क्या मां का प्यार और ममता बगावत नहीं करेगी?"

उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुरई और एम. करुणानिधि के योगदान को भी रेखांकित किया, जिन्होंने 1969 में राजमन्नार समिति बनाकर केंद्र-राज्य संबंधों का अध्ययन शुरू किया था.

क्यों 'संघवाद' का पाठ दोहरा रहे हैं स्टालिन?

यह कदम खासा अहम है, क्योंकि तमिल दलों में यह डर बढ़ रहा है कि संसद में तमिलनाडु की हिस्सेदारी पर खतरा मंडरा रहा है. कुछ ही समय में होने वाली परिसीमन प्रक्रिया के कारण, जनसंख्या नियंत्रण में सफलता के चलते तमिलनाडु की सीटें कम हो सकती हैं. स्टालिन ने इसे 'सफलता की सजा' करार दिया. उन्होंने सदन में कहा, "प्रस्तावित परिसीमन तमिलनाडु की संसदीय हिस्सेदारी को काफी कम करने का खतरा पैदा कर रहा है- मानो यह हमारी उपलब्धि की सजा हो."

स्टालिन का यह ऐलान सिर्फ नीतिगत कदम नहीं, बल्कि एक सियासी संदेश भी है. 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले वह संघवाद को एक असरदार मुद्दा और सरकार के लिए भी एक अहम मुद्दा बनाना चाहते हैं. यह तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब तमिलनाडु का मुख्य विपक्षी दल, AIADMK, औपचारिक रूप से बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में शामिल हो गया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक साल पहले ही राज्य में एनडीए का चुनावी अभियान शुरू कर दिया है.

सियासी तौर पर, स्टालिन ने जो मुद्दे उठाए—जैसे राज्य स्वायत्तता की मांग, नीट परीक्षा का विरोध, और जीएसटी से राजस्व का नुकसान—ये कभी AIADMK के दिग्गजों जैसे एम.जी. रामचंद्रन और जे. जयललिता के भी मुद्दे थे. दोनों ने केंद्र के अतिक्रमण, खासकर कांग्रेस शासन के दौरान, तमिलनाडु की वित्तीय और प्रशासनिक स्वतंत्रता के पक्ष में जमकर आवाज उठाई थी.

लेकिन अब, जब AIADMK बीजेपी के साथ खड़ी है, स्टालिन ने राज्य स्वायत्तता के पैरोकार की भूमिका फिर से हथिया ली है. यह भूमिका तमिलनाडु की द्रविड़ सियासत में गहरी भावनात्मक और ऐतिहासिक जड़ें रखती है. इस नई समिति के जरिए डीएमके सिर्फ नीतिगत सुझाव नहीं चाहती - वह एक नए संघवादी अभियान की नींव रख रही है, जिसके परिणाम देशभर में फ़ैल सकते हैं. स्टालिन के ही शब्दों में कहें तो, "तमिलनाडु एक बार फिर अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी निभाने के लिए आगे बढ़ रहा है."

शिक्षा, वित्त और ‘हिंदी थोपने’ का आरोप

स्टालिन ने अपने भाषण में शिक्षा पर खासा जोर दिया. पहले राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाला यह विषय, अब टकराव का मैदान बन गया है. उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि केंद्र ने समग्र शिक्षा अभियान के तहत तमिलनाडु को मिलने वाले 2,500 करोड़ रुपये रोक दिए, जिसे उन्होंने छात्रों के हित के साथ विश्वासघात बताया.

नीट प्रवेश परीक्षा की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि यह केवल एक वर्ग को फायदा पहुंचाती है और ग्रामीण व पिछड़े छात्रों के सपनों को चकनाचूर करती है. उन्होंने बताया कि नीट से तमिलनाडु को छूट देने वाला राज्य का कानून अभी भी मंजूरी के इंतजार में है.

वहीं, वित्तीय मोर्चे पर स्टालिन ने कहा कि भारत की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, तमिलनाडु को हर एक रुपये के टैक्स के बदले सिर्फ 29 पैसे मिलते हैं. उनके मुताबिक, राज्यों से अपनी आय जुटाने की शक्ति छीन ली गई है.

कब तक आएगी नई समिति की रिपोर्ट?

स्टालिन ने बताया कि समिति जनवरी 2026 तक अंतरिम रिपोर्ट और दो साल में अंतिम रिपोर्ट देगी. तमिलनाडु में गठित नई समिति के कंधों पर एक अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है. इसका मकसद उन शासन और नीति-निर्माण के क्षेत्रों को फिर से राज्यों के हवाले करना है, जो कभी पूरी तरह राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में थे, लेकिन अब केंद्र और राज्य मिलकर संभालते हैं. यह समिति संवैधानिक प्रावधानों, कानूनों और नीतियों की समीक्षा करेगी. यह कदम केंद्र की बढ़ती दखलंदाजी के खिलाफ राज्यों के हक की लड़ाई को और मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा संकेत है.

लेकिन इसके नतीजों से पहले ही सियासी संदेश साफ है - डीएमके ने संघवाद की जंग को चुना है, जो अब सिर्फ किताबी बात नहीं रही. प्रतिनिधित्व, संसाधन और सम्मान का सवाल और तमिलनाडु की आवाज कौन उठाएगा—ये डीएमके के चुनावी अभियान के मुख्य मुद्दे होंगे.

Read more!