माथेरान : देश के इस सबसे अनोखे हिल स्टेशन के लिए घोड़े कैसे बन रहे आपदा!
महाराष्ट्र का माथेरान भारत का इकलौता पेडेस्ट्रियन (पैदल) हिल स्टेशन है, जहां डीजल-पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के आवाजाही की मनाही है. इसीलिए यहां आवाजाही के लिए घोड़ों का खूब इस्तेमाल होता है

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित है माथेरान हिल स्टेशन. यहां बड़ी संख्या में पर्यटक घूमने आते हैं, और आने-जाने और यात्रा के लिए यहां घोड़ों का खूब इस्तेमाल होता है. लेकिन हाल में महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) ने एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें कुछ चिंताजनक बातें सामने आई हैं.
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) को सौंपी अपनी रिपोर्ट में एमपीसीबी ने बताया कि माथेरान हिल स्टेशन पर आवागमन के लिए घोड़ों के इस्तेमाल से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा है. यहां पहले से ही ईंधन से चलने वाले वाहनों पर प्रतिबंध है, सिर्फ एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड को ही छूट हासिल है.
मुंबई से करीब 80 किलोमीटर दूर माथेरान हिल स्टेशन 19वीं सदी के मध्य में वजूद में आया. इसके बाद से यह भारत का इकलौता पेडेस्ट्रियन (पैदल) हिल स्टेशन रहा है. यहां डीजल-पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के आवाजाही की मनाही है और सिर्फ एम्बुलेंस और दमकल गाड़ियों को छूट दी गई है. यहां जो भी पर्यटक घूमने आते हैं, उन्हें हिल स्टेशन से करीब 3 किमी दूर दस्तूरी नाका में अपनी गाड़ियों को पार्क करना पड़ता है और फिर माथेरान की चढ़ाई शुरू करनी होती है.
यह हिल स्टेशन एक इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) या पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाका है. यहां रहने वाले लोगों और पर्यटकों की आवाजाही के साधन के रूप में हाथ से खींचे जाने वाले 94 रिक्शा, 460 घोड़े और एक छोटी लाइन वाली 'टॉय ट्रेन' मौजूद हैं. इन पर परिवहन का सारा भार होता है.
माथेरान नैरो-गेज हिल रेलवे, जिसे 'टॉय ट्रेन' के नाम से जाना जाता है, नेरल से माथेरान तक 20 किलोमीटर की दूरी तय करने में लगभग दो घंटे का समय लेती है. इस हेरिटेज लाइट ट्रेन सेवा की स्थापना 1907 में परोपकारी सर आदमजी पीरभॉय ने की थी. सामान और अन्य जरूरी वस्तुओं को 127 लाइसेंस प्राप्त कुलियों और 200 से अधिक टट्टुओं का इस्तेमाल करके ऊपर लाया जाता है.
पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने हिल स्टेशन में एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत 20 बैटरी से चलने वाले ई-रिक्शा चलाने की अनुमति दी थी.
2011 की जनगणना के मुताबिक माथेरान की आबादी 4,393 थी, लेकिन पर्यटन और हॉस्पिटालिटी इंडस्ट्री से जुड़ी एक बड़ी अस्थायी आबादी यहां आती-जाती रहती है. हर साल लगभग 8 लाख पर्यटक माथेरान आते हैं.
फरवरी 2003 में, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने माथेरान को 'ईएसजेड' घोषित कर दिया था, और इस इलाके पर हानिकारक प्रभाव डालने वाली औद्योगिक और विकासात्मक गतिविधियों पर रोक लगा दी थी.
एनजीटी को दी गई अपनी याचिका में माथेरान के निवासी और रिटायर्ड शिक्षक सुनील शिंदे ने दावा किया कि घाटी में हर रोज तीन टन से अधिक घोड़ों की लीद फेंकी जा रही है, जिससे इकोसिस्टम को नुकसान पहुंच रहा है. उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि घोड़ों की लीद की वजह से यहां की हवा, मिट्टी और पानी प्रदूषित हो रहा है, और लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है.
इसके बाद रायगढ़ जिले के मानगांव के लोनेरे में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने सोलापुर के नागेश करजगी ऑर्किड कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के साथ मिलकर एक अध्ययन किया और अंतरिम रिपोर्ट पेश की.
एक्सपर्ट कमिटी ने अपनी इस रिपोर्ट में माथेरान की पर्यावरणीय स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए रोजाना सिर्फ 300 घोड़ों की वहन क्षमता सीमा लागू करने की सिफारिश की है. इसने घोड़े की लीद के प्रबंधन के लिए एक विस्तृत कार्य योजना की भी मांग की है, जिसमें खाद बनाने के प्रयोग, गोबर बायोचार उत्पादन, स्टॉर्म वाटर कंट्रोल सिस्टम और ट्रेल्स के रोटेशन शामिल हैं.
रिपोर्ट में घोड़ों की आवाजाही में साफ बढ़ोत्तरी का जिक्र किया गया है जो सीजन के दौरान हर रोज 800 घोड़ों की आवाजाही तक पहुंच जाती है. कहा गया कि इससे नगरपालिका प्रणालियों की अपशिष्ट प्रबंधन की क्षमता पर सवाल उठता है. एक्सपर्ट्स ने कहा कि यह अपशिष्ट भार कई पर्यावरणीय समस्याओं का कारण बनता है, जिनमें मीथेन और अमोनिया उत्सर्जन, पोषक तत्वों का रिसाव, अपवाह और जल निकायों में रोगजनक संदूषण और महीन कणों का फैलाव शामिल है.
विशेषज्ञों ने बताया, "माथेरन में प्री-मानसून सीजन के दौरान किए गए परिवेशी (खुली हवा) वायु गुणवत्ता विश्लेषण से एक मिश्रित पैटर्न सामने आया है. जबकि सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) का स्तर राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS, 2009) की 80 ug/m3 की सीमा के भीतर रहा, पार्टिकुलेट मैटर (PM10 और PM2.5) में काफी बढ़ोत्तरी देखी गई. AS2 में PM10 का मान 192.09 ug/m3 तक पहुंच गया, जो स्वीकार्य सीमा (100 ug/m3) से लगभग दोगुना है, जबकि PM2.5 का स्तर सभी स्थानों पर मानक (60 ug/m3) से 6-18 फीसद अधिक था."
रिपोर्ट में कहा गया कि प्राथमिक योगदानकर्ताओं में सूखे गोबर के कणों का एयरोसोलाइजेशन, बिना पक्की सड़कों पर खुरों के प्रभाव से धूल का पैदा होना, और गोबर के अपघटन के दौरान अमोनिया और मीथेन का उत्सर्जन शामिल हैं. यह डेटा जैव-कार्बनिक अपशिष्ट उत्सर्जन के कारण स्थानीय वायु गुणवत्ता में गिरावट का संकेत देता है.
रिपोर्ट में कहा गया, "माथेरन और उसके आसपास के सतही जल निकायों और रन-ऑफ इलाकों का आकलन एक चिंताजनक तस्वीर पेश करता है," जिसमें उच्च गंदलापन वैल्यू, सभी नमूनों में ई. कोलाई संदूषण, नाइट्रेट और फॉस्फेट के स्तर इकोलॉजिकल सेफ्टी लिमिट से अधिक होने, गोबर के ढेर से पोषक तत्वों का रन-ऑफ, और सीसा जैसे भारी धातुओं की मौजूदगी से दीर्घकालिक जैवसंचय और विषाक्तता की चिंता बढ़ी है.
रिपोर्ट में कहा गया है, "ये संकेतक मल प्रदूषण, पोषक तत्वों के संवर्धन और संभावित स्वास्थ्य खतरों की पुष्टि करते हैं. निष्कर्ष बताते हैं कि बफर जोन, बायोरेमेडिएशन वेटलैंड्स और स्टॉर्मवॉटर प्रबंधन बुनियादी ढांचे की तत्काल जरूरत है, ताकि चार्लोट झील और अन्य संवेदनशील जल निकायों में दूषित पदार्थों के प्रवाह को रोका जा सके."
मिट्टी के विश्लेषण ने भी अप्रबंधित घोड़े के मल के प्रभाव की पुष्टि की. प्रमुख निष्कर्षों में सात में से छह जगहों पर अत्यधिक ऑर्गेनिक कार्बन की मौजूदगी, मूत्र और गोबर के रिसाव से स्थानीय अम्लीकरण, और सूक्ष्म पोषक असंतुलन शामिल थे जो सॉयल फैटिग और माइक्रोबियल इकोलॉजी का संकेत देते थे.
रिपोर्ट में कहा गया है, "ये निष्कर्ष बताते हैं कि खासतौर पर घोड़ों की आवाजाही वाले इलाकों में मिट्टी की सेहत खराब होती जा रही है. इसके जोखिमों में देशी वनस्पतियों का नष्ट होना, बीजों का खराब अंकुरण और रोगाणुओं का बने रहना शामिल है. लंबे समय तक संपर्क में रहने से मिट्टी की संरचना को अपरिवर्तनीय नुकसान हो सकता है और उर्वरता कम हो सकती है."
माथेरान को ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने विकसित किया था. मई 1850 में, महाराष्ट्र के ठाणे के जिला कलेक्टर ह्यूग पोयंट्ज मैलेट को पश्चिमी घाट में एक विचित्र स्थान मिला, जिसे धीरे-धीरे एक हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया गया.
लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, शहर का नाम माथेरान इसलिए रखा गया क्योंकि एक गांव वाले ने मैलेट से मराठी में कहा था: 'माथे राण है' (वहां ऊपर एक जंगल है). धीरे-धीरे, ब्रिटिश और औपनिवेशिक अभिजात वर्ग ने मुंबई की गर्मी से बचने के लिए माथेरान का इस्तेमाल किया, यह परंपरा घरेलू पर्यटकों के माध्यम से जारी रही.
संरक्षित वन्यजीव आवासों के अलावा, माथेरान और महाबलेश्वर-पंचगनी के हिल स्टेशन और गुजरात की सीमा से सटे पालघर के दहानु तटीय शहर कुछ उन इलाकों में शामिल हैं जिन्हें ESZ के रूप में नामित किया गया है.