पश्चिम बंगाल में जगन्नाथ मंदिर बनने से लेकर विवादों तक की कहानी!
पुरी के जगन्नाथ धाम मंदिर की तर्ज पर पश्चिम बंगाल के दीघा में भव्य जगन्नाथ धाम मंदिर का निर्माण किया गया है

अप्रैल की 29 और 30 तारीख को पश्चिम बंगाल के तटीय शहर दीघा में जगन्नाथ धाम मंदिर परिसर के उद्घाटन को लेकर भव्य कार्यक्रम की तैयारी चल रही है. 24 एकड़ जमीन पर निर्मित यह मंदिर 12वीं शताब्दी में बने पुरी के प्रतिष्ठित जगन्नाथ मंदिर से प्रेरित है.
आने वाले समय में दीघा मंदिर बंगाल के धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. यह मंदिर सिर्फ भक्ति नहीं बल्कि एक शानदार आर्किटेक्चर का नमूना भी है.
मंदिर परिसर को चार प्रमुख हिस्से में बांटा गया है, जिनमें गर्भगृह, सभा कक्ष, नृत्य कक्ष और भोग मंडप है. मंदिर के हर हिस्से में वैदिक काल के मंदिरों जैसे वास्तुकला के शानदार नजारे देखने को मिलते हैं.
कलिंग सम्राज्य के वास्तुकला शैली का भी इस मंदिर में इस्तेमाल किया गया है. पुरी के मंदिर की तरह दीघा मंदिर के ऊपरी हिस्से में भी पवित्र रत्नबेदी पर भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित की गई हैं.
इस मंदिर में 3 लाख क्यूबिक फीट से भी ज्यादा बंसी पहाड़पुर के मशहूर गुलाबी बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है. इस मंदिर को बनाने में 3,000 से अधिक मजदूरों ने 36 महीने तक मेहनत की है. मंदिर के विशाल कैंपस में एक खूबसूरत लॉन है, जहां 500 से अधिक पौधे लगाए गए हैं.
दीघा मंदिर में स्थापित होने वाली मूर्तियां पुरी के जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों से थोड़ी अलग हैं. एक ओर जहां पुरी में भगवान की मूर्तियां नीम की लकड़ी से बनाई गई हैं और उन्हें 'दारुब्रह्म' यानी लकड़ी के भगवान के रूप में जाना जाता है. वहीं, दीघा में भगवान की मूर्तियां पत्थर से बनाई गई हैं.
हालांकि, मंदिर में कुछ मूर्तियां लकड़ी की भी बनी हुई है. हल साल निकाले जाने वाली रथ यात्रा के दौरान इन लकड़ी की मूर्तियों की ही झांकी निकाली जाएगी. दीघा में एक पुराने जगन्नाथ मंदिर को 'मासिर बारी' यानी भगवान की मौसी के घर के रूप में विकसित किया जा रहा है, जहां यात्रा उत्सव के दौरान रथ यात्रा समाप्त होगी.
दीघा में प्रतिष्ठा समारोह 29 अप्रैल को अनुष्ठानिक यज्ञों के साथ शुरू होगा, जिसका समापन 30 अप्रैल को देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा के साथ होगा. पुरी जगन्नाथ मंदिर के सेवक और इस्कॉन के पुजारी इस पवित्र अनुष्ठानों में भाग लेंगे. दरअसल, इस मंदिर के बनाए जाने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. 6 दिसंबर, 2018 को पुराने दीघा से नए दीघा की ओर जाते समय संयोगवश
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नजर स्थानीय जगन्नाथ मंदिर पर पड़ी. गाड़ी रुकवाकर उन्होंने न सिर्फ वह मंदिर के अंदर गई, बल्कि उन्होंने उसी वक्त दीघा में इस मंदिर को नए सिरे से बनाने की घोषणा कर दी. अब पुरी के प्रसिद्ध मंदिर की तर्ज पर इसे बनाया गया है. इसे बनाने में लगभग छह साल का समय और लगभग 250 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. तब जाकर ममता बनर्जी का यह सपना साकार हुआ है.
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, दीघा मंदिर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के लिए एक बड़ा चुनावी मैदान हो सकता है, क्योंकि अगले साल विधानसभा चुनावों से पहले हिंदू एकजुटता के लिए भाजपा द्वारा किए जा रहे बड़े प्रयास के खिलाफ ममता के पास रक्षा कवच के तौर पर यह मंदिर होगा.
इस मंदिर के उद्घाटन समारोह की तैयारी के बीच भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने मंदिर को बनाने की योजना और मंशा पर ही सवाल उठा दिए हैं. सेवानिवृत्त नौकरशाह और पश्चिम बंगाल हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (WBHIDCO) के उपाध्यक्ष एच.के. द्विवेदी को संबोधित करते हुए शुभेंदु अधिकारी ने कहा, “यदि आप मेरी कुछ चिंताओं का समाधान कर दें, तो मैं खुशी-खुशी समारोह में शामिल होऊंगा.” दरअसल, राज्य सरकार की इसी एजेंसी ने दीघा मंदिर का निर्माण किया है.
अधिकारी ने इस बात पर स्पष्टीकरण मांगा है कि जिस इंफ्रास्ट्रक्चर का उद्घाटन किया जा रहा है वह मंदिर है या सांस्कृतिक केंद्र? शुभेंदु के इस सवाल के पीछे की वजह यह है कि आधिकारिक निविदा दस्तावेजों में इस परियोजना को ‘जगन्नाथ धाम सांस्कृतिक केंद्र’ बताया गया है.
अधिकारी ने कहा, " मंदिर बनाने वाली सरकारी एजेंसी को दोबारा से स्पष्टता के साथ निमंत्रण कार्ड को छपवाना चाहिए." अधिकारी ने मंदिर बनाने वाली सरकारी एजेंसी WBHIDCO को लेकर कहा कि उसके उपाध्यक्ष ने उन्हें निमंत्रण दिया था, लेकिन इसकी वेबसाइट पर अभी भी फिरहाद हकीम को अध्यक्ष के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
शुभेंदु अधिकारी ने पूछा, "निमंत्रण कार्ड पर फिरहाद हकीम का नाम क्यों नहीं छपा है?" उन्होंने वर्तमान प्रशासनिक प्रमुख और परियोजना में उनकी भूमिका के बारे में पारदर्शिता की मांग की है. अधिकारी ने मंदिर को मिलने वाले दान के प्रबंधन पर भी सवाल उठाए. धार्मिक स्थल की पवित्रता और वित्तीय स्वायत्तता के बारे में चिंता जताते हुए उन्होंने पूछा, "क्या इसे मंदिर की संपत्ति माना जाएगा या फिर यह सिर्फ सरकारी एजेंसी WBHIDCO की आय का स्रोत बनकर रह जाएगा?"
अधिकारी ने आगे कहा कि इस मंदिर को बनाने वाली एजेंसी दावा करती है कि वह धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी. ऐसे में क्या गैर-हिंदुओं को मंदिर परिसर में काम करने के लिए नियुक्त किया जाएगा?
इन सभी सवालों को उठाते हुए शुभेंदु अधिकारी ने ममता सरकार को चेतावनी देते हुए कहा, “आप और आपकी राज्य सरकार छल, कपट और विश्वासघात को सार्वजनिक नीति के रूप में इस्तेमाल करके करोड़ों हिंदुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं.”
हालांकि, राज्य सरकार की पहल से निस्संदेह दीघा में एक शानदार धार्मिक स्थल बनकर तैयार हुआ है, लेकिन इस मंदिर को लेकर शुरू हुआ विवाद समकालीन बंगाल में आस्था, शासन और राजनीति के बीच जटिल अंतर्संबंध को भी दिखाता है.
अकर्मय दत्ता मजूमदार