यूपी से बिहार में बढ़ी शराब तस्करी; चुनावी मौसम में तस्करों ने कौन से नए तरीके खोजे?
बिहार चुनाव के दौरान शराब की तस्करी में अचानक बढ़ोतरी हुई है. यूपी से हरियाणा और राजस्थान की सस्ती शराब बिहार भेजी जा रही है

अभी नवंबर की ही बात है. लखनऊ की एक एक्साइज टीम की जीप जब गाजीपुर की तरफ़ बढ़ रही थी, तो धूल भरी सड़क पर सामने से आती एक बोलेरो ने उन्हें रोक दिया. ड्राइवर ने गाड़ी रोकने से इंकार किया और पुलिस को लगभग 300 मीटर तक पीछा करना पड़ा. जब गाड़ी पकड़ी गई, तो पीछे की सीट के नीचे से 180 ml की बोतलों के दर्जनों कार्टन निकले. बोलेरो बिहार की ओर जा रही थी. यही तस्वीर पिछले कुछ महीनों से उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर आम हो गई है.
बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले, ड्राई स्टेट में शराब की तस्करी अचानक तेज़ हो गई है. उत्तर प्रदेश के एक्साइज विभाग ने पिछले साढ़े पांच महीनों में 35,785 लीटर विदेशी शराब जब्त की है. 74 गाड़ियां पकड़ी गईं और 128 तस्कर गिरफ्तार हुए. यह संख्या आम दिनों के मुकाबले दोगुनी बताई जा रही है. लखनऊ के डिप्टी एक्साइज कमिश्नर राकेश कुमार सिंह कहते हैं, “हमने बिहार की ओर जाने वाले कंसाइनमेंट में असामान्य बढ़ोतरी देखी है. चुनावी मौसम में मांग अचानक बढ़ जाती है. इसलिए ऑपरेशंस को तेज किया गया है.”
बिहार में शराबबंदी को नीतीश कुमार की सरकार ने नैतिक और सामाजिक सुधार के तौर पर लागू किया था. लेकिन नौ साल बाद, यह नीति नशे को खत्म करने के बजाय एक छिपे हुए कारोबार में बदल चुकी है. हर साल लाखों लीटर शराब पकड़ी जाती है, लेकिन मांग खत्म नहीं होती. अब जब बिहार में चुनाव का मौसम आ गया है तो शराब एक बार फिर पर्दे के पीछे की “इलेक्शन करेंसी” बन चुकी है. विपक्षी दल सरकार पर सवाल उठा रहे हैं कि अगर शराबबंदी सफल है, तो हर महीने इतनी जब्ती क्यों होती है. वहीं, सत्तारूढ़ दल का तर्क है कि जब्ती बढ़ना इस बात का संकेत है कि सिस्टम काम कर रहा है.
शराब का रास्ता और तस्करी का भूगोल
बिहार में 2016 से लागू शराबबंदी ने एक समानांतर अवैध बाज़ार को जन्म दिया है. चुनाव आते ही यह बाज़ार और सक्रिय हो जाता है. पटना, भागलपुर, सीवान और छपरा जैसे इलाकों में शराब की मांग अचानक बढ़ जाती है, क्योंकि पार्टियों और उम्मीदवारों के लिए वोट जुटाने में यह एक “खुला टूल” बन चुकी है. शराब वितरण को लेकर भले कोई भी राजनीतिक दल खुलकर न बोले, लेकिन हर चुनाव में यह अघोषित अभियान का हिस्सा बन जाता है. उत्तर प्रदेश सरकार में एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, “बिहार में शराबबंदी के बाद से सबसे ज़्यादा सक्रियता चुनाव के महीनों में दिखती है. यूपी, हरियाणा और राजस्थान के रैकेट चुनाव से पहले स्टॉक भरने में जुट जाते हैं.”
यूपी और बिहार की सीमा करीब 700 किलोमीटर लंबी है. इस पूरे इलाके में बलिया, गाजीपुर, देवरिया, गोरखपुर और बस्ती जैसे ज़िले तस्करी के प्रमुख रूट हैं. एक्साइज विभाग के रिकॉर्ड बताते हैं कि बिहार की ओर जाने वाले ज़्यादातर कंसाइनमेंट इन्हीं जिलों से पकड़े गए. लखनऊ में 1 अप्रैल से 17 सितंबर के बीच 7,247 लीटर विदेशी शराब बरामद की गई. चार केस दर्ज हुए और चार गाड़ियां ज़ब्त हुईं. ये गाड़ियां हरियाणा, राजस्थान और चंडीगढ़ से शराब लेकर आती थीं, ऐसे राज्य जहां शराब न केवल सस्ती है, बल्कि खुले बाजार में आसानी से उपलब्ध भी. जब्ती में मिली ज़्यादातर बोतलें 180 ml और 350 ml की थीं. ये “पॉकेट साइज” बोतलें बिहार में सबसे ज़्यादा बिकती हैं क्योंकि इन्हें आसानी से छिपाया और ले जाया जा सकता है.
तस्करी के नए हथकंडे
एक्साइज इंस्पेक्टर विवेक सिंह बताते हैं, “पहले तस्कर गाड़ियों में गुप्त डिब्बे बनवाते थे. कार की सीटों के नीचे या ट्रक के डबल फ्लोर में शराब छिपाई जाती थी. ऊपर से कपड़े या फल-सब्जियां लाद दी जाती थीं ताकि शक न हो.” हालांकि अब यह तरीका पुराना हो गया है. जैसे-जैसे सड़कों पर चेकिंग कड़ी हुई, तस्करों ने रास्ता बदल लिया. एक अधिकारी बताते हैं, “अब वे ट्रेनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. लखनऊ और वाराणसी के रेलवे जंक्शनों पर हमने हाल में कई कंसाइनमेंट पकड़े हैं.”
रेलवे रूट का फायदा यह है कि यहां सामान की इतनी बड़ी आवाजाही होती है कि हर पैकेज की जांच संभव नहीं. यही वजह है कि अब तस्कर मालगाड़ियों या पार्सल बोगियों में शराब भेजने लगे हैं. एक्साइज विभाग की जांच में पता चला है कि यह नेटवर्क केवल स्थानीय नहीं, बल्कि कई राज्यों में फैला है. हरियाणा और राजस्थान से सस्ते दामों पर शराब खरीदी जाती है, फिर यूपी के ज़रिए बिहार भेजी जाती है. रास्ते में बिचौलिये, ड्राइवर और स्थानीय हैंडलर अपनी हिस्सेदारी लेते हैं. लखनऊ में तैनात एक एक्साइज अधिकारी कहते हैं, “यह एक सुव्यवस्थित और अच्छी तरह से फाइनेंस किया गया रैकेट है. इसमें हर स्तर पर लोग शामिल हैं, ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर से लेकर थोक कारोबारी तक. हम अब रैकेट के मास्टरमाइंड्स पर नज़र रख रहे हैं.” अधिकारियों के मुताबिक कई बार तस्करी का पैसा हवाला के जरिए चलता है. चुनाव से पहले अचानक नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है, और इसी के साथ शराब के ऑर्डर भी.
आसान नहीं तस्करी रोकना
यूपी की तरफ से शराब की तस्करी रोकने की कोशिश तो होती है लेकिन इसमें कई दिक्कते हैं. एक्साइज विभाग खुद कई चुनौतियों से जूझ रहा है. एक सीनियर अधिकारी बताते हैं, “मैनपावर की भारी कमी है. कई बार हमारी टीमें पूरी तरह मुखबिर की सूचनाओं पर निर्भर रहती हैं, और वो हर बार सही नहीं होती. गलत सूचना पर जाने से वक्त और संसाधन दोनों बर्बाद होते हैं.” उन्होंने बताया कि वाहनों में छिपी शराब का पता लगाने वाले स्कैनर भी कारगर नहीं निकले. “टेस्टिंग में खामियां मिलने पर स्कैनर की खरीद रद्द करनी पड़ी. कई बार हमें मैनुअल चेकिंग करनी पड़ती है, जो बेहद समय लेने वाली है.” ऑफिसर ने जोड़ा, “हमारे विभाग पर दोहरी जिम्मेदारी है, राजस्व जुटाने की भी और कानून लागू करने की भी. दोनों को साथ निभाना आसान नहीं.”
बाजार की चाल और तस्करों की समझ
बिहार में शराब की कीमतें ब्लैक मार्केट में तीन से चार गुना तक बढ़ जाती हैं. एक 180 ml की बोतल जो हरियाणा में 80 रुपये में मिलती है, वही बिहार में 300-400 रुपये में बिकती है. यही मार्जिन तस्करी को फायदे का सौदा बनाता है. एक्साइज अधिकारियों का कहना है कि चुनाव से पहले तस्कर जानबूझकर ज़्यादा स्टॉक बिहार में भरने की कोशिश करते हैं. “चुनाव खत्म होते ही यह गतिविधियां अपने आप कम हो जाती हैं” राकेश सिंह कहते हैं.
स्थानीय पुलिस भी मानती है कि तस्करी केवल कानून की समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक और राजनीतिक चुनौती भी है. “बिहार की शराब नीति और यूपी की शराब नीति बिल्कुल अलग हैं. जहां एक राज्य पूरी तरह प्रतिबंधित है, वहीं दूसरा राज्य खुली बिक्री से राजस्व जुटा रहा है. इसी विरोधाभास ने तस्करी का पूरा रास्ता खोल दिया है,” एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं. यूपी में बलिया, गाजीपुर, और चंदौली जैसे जिलों में चौकियों पर अतिरिक्त टीमें तैनात की गई हैं. लेकिन अधिकारी मानते हैं कि इतनी लंबी सीमा को चौबीसों घंटे कवर करना नामुमकिन है. एक अधिकारी बताते हैं, “हर चेकपोस्ट पर गहन जांच नहीं की जा सकती. तस्कर अक्सर गांव-देहात के रास्तों या नदी का इस्तेमाल करते हैं.” स्थानीय पुलिस और एक्साइज टीमों के बीच समन्वय की भी कमी है. कई बार सूचना साझा न होने के कारण कार्रवाई में देरी होती है.
बिहार की शराबबंदी और यूपी की खुली बिक्री, दो राज्यों की नीतियों के बीच यह टकराव अब कानून और व्यवस्था की बड़ी चुनौती बन चुका है. हर चुनाव के साथ यह चेन और सक्रिय होती है, और जब तक राजनीतिक-सामाजिक इच्छाशक्ति इस पर एकजुट नहीं होती, तब तक यूपी से बिहार जाने वाले ट्रकों के नीचे छिपे कार्टन यूं ही सीमा पार करते रहेंगे. बलिया में तैनात एक अधिकारी मुस्कुराते हुए कहते हैं “हम रोकते रहेंगे, वो नए रास्ते ढूंढते रहेंगे,” यह मुस्कान सिस्टम की जद्दोजहद भी है, और उस लड़ाई की निशानी भी जो शायद कभी खत्म न होने तक लड़ी जा रही है.