हेमंत सोरेन के पूर्व सचिव को शराब घोटाले में मिली जमानत, क्या सबकुछ पहले से फिक्स था?
झारखंड के शराब नीति घोटाले में आईएएस विनय चौबे को एसीबी ने बीती 20 मई को गिरफ्तार किया था. उसी दिन उन्हें जेल भेज दिया गया लेकिन अब उन्हें जमानत मिल गई है

शराब नीति घोटालों में आरोपी आईएएस अधिकारी विनय चौबे को मंगलवार 19 अगस्त को जमानत मिल गई है क्योंकि झारखंड के एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने गिरफ्तारी के 90 दिन तक आरोप पत्र ही दायर नहीं किया.
वे सीएम हेमंत सोरेन के प्रधान सचिव भी रह चुके हैं. निलंबित चल रहे विनय चौबे को एसीबी ने बीती 20 मई को गिरफ्तार किया था. उसी दिन उन्हें जेल भेज दिया गया. कुल 92 दिन वे न्यायिक हिरासत में रहे. इसी मामले में कुछ और अधिकारी गिरफ्तार किए जा चुके हैं.
दरअसल, 2022 में झारखंड में नई शराब नीति लागू की गई थी. तब यह दावा किया गया था कि इससे राज्य सरकार को फायदा होगा लेकिन इससे सरकारी खजाने को 38 करोड़ रुपए का घाटा हो गया. बाद में यह बात सामने आई कि छत्तीसगढ़ के शराब सिंडिकेट और अवैध शराब की सप्लाई की वजह से यह घाटा हुआ है.
आरोप यह भी है कि दो कंपनियों ने फर्जी बैंक गारंटी दी थी और इसके कारण सरकार को नुकसान उठाना पड़ा है और इसमें सरकारी अधिकारी शामिल थे. इन अधिकारियों ने नीति में बदलाव कर एक सिंडिकेट को फायदा पहुंचाया, जिसमें शराब की आपूर्ति और मैनपावर सप्लाई के टेंडर में हेराफेरी की गई. छत्तीसगढ़ में एफआईआर दर्ज होने के बाद रांची एसीबी ने भी मामले में वर्ष 2024 में प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज की थी. फिर आरोप सही पाए जाने पर एफआईआर दर्ज की थी.
बता दें राकेश पॉल बनाम असम सरकार (2017) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर पुलिस तय समय सीमा में चार्जशीट दाखिल नहीं करती तो आरोपी को अपने आप ही जमानत का अधिकार मिल जाता है.
ऐसे में सवाल ये है कि आखिर चार्जशीट दायर क्यों नहीं हो पाई? फिलहाल इस मसले पर पुलिस के आला अधिकारी कुछ भी कहने से इंकार कर रहे हैं. लेकिन अंदरखाने की खबर है कि किसी अधिकारी पर मुकदमा चलाने के पहले राज्य सरकार से केस चलाने की स्वीकृति लेनी होती है. जांच एजेंसी ने इसकी मांग की, लेकिन सरकार ने अभी तक इसकी स्वीकृति नहीं दी है.
हालांकि चौबे अभी जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे क्योंकि उनपर हजारीबाग जिले में जमीन खोटाले का आरोप है. पिछले दिनों ही उन्हें इस मामले में रिमांड पर लिया गया है. अब उन्हें रांची से हजारीबाग जेल शिफ्ट किए जाने की तैयारी है.
इसी मामले में बीते 17 जून को पूर्व आईएएस अधिकारी और उत्पाद कमिश्नर रहे अमित प्रकाश को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. इसी मामले में गुजरात और महाराष्ट्र के सात आरोपियों के खिलाफ भी गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है. वहीं कुल 16 लोगों को फिलहाल आरोपी बनाया गया है.
बाबूलाल मरांडी ने कहा, 38 नहीं, 1000 करोड़ का है घोटाला
राज्य सरकार की इस संदेहास्पद जांच और फिर संबंधित कार्रवाई ने बीजेपी को नया मुद्दा दे दिया है. नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने आरोप लगाया है कि राज्य की पुलिस पहले खुद ही आगे बढ़कर गिरफ्तार करती है और 90 दिन बाद भी आरोपपत्र दायर नहीं करती. पहली नजर में ही यह नाटक और षडयंत्र के जैसा लगा.
वे आरोप लगाते हैं कि यह सब इसलिए किया गया ताकि ईडी की जांच प्रभावित हो सके और सबूतों को मिटाया जा सके. मरांडी का दावा है कि यह घोटाला 38 करोड़ा का नहीं, लगभग 1000 करोड़ से अधिक तक का घोटाला है. इसी को छिपाने के लिए सब कुछ पहले से फिक्स कर ये कार्रवाई की गई. उन्होंने पूरे मामले में ईडी से कार्रवाई का अनुरोध किया है.
ईडी के पास यह मामला पहले से दर्ज है. वह भी इस बात के लिए स्वतंत्र है कि इस मामले में विनय चौबे से पूछचाछ कर सकती है. पर्याप्त सबूत मिलने पर उन्हें गिरफ्तार कर सकती है.
इस पूरे मामले में यह बात भी दिलचस्प है कि जांच एजेंसी एसीबी के प्रमुख इस वक्त राज्य के डीजीपी अनुराग गुप्ता हैं. वे बीते 30 अप्रैल को रिटायर हो गए. इससे पहले राज्य सरकार ने पहली बार डीजीपी नियुक्ति नियमावली बनाकर उन्हें दो साल का सेवा विस्तार दे दिया. बाबूलाल उनकी नियुक्ति को अवैध बताते हुए मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बीते 18 अगस्त को खारिज कर दिया.
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी कुछ दिन पहले कहा था कि यह 600-700 करोड़ रुपए का घोटाला है और सीएम हेमंत सोरेन ने खुद को बचाने के लिए आईएस अधिकारी को जेल भेजा है.
झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के प्रवक्ता तनुज खत्री ने इस मसले पर पार्टी का पक्ष रखा. उन्होंने कहा, ऐसा पहली बार हुआ है कि राज्य सरकार की एजेंसी ने किसी आईएएस अधिकारी को गिरफ्तार किया हो. जब खुद सरकार आगे बढ़ कर कार्रवाई कर रही है, ऐसे में उस पर सवाल खड़ा करने का कोई औचित्य ही नहीं बनता है.
वो आगे कहते हैं, "इसी सरकार में राज्य सेवा के कई अधिकारी जेल गए हैं और उनकी नौकरी गई है. बाबूलाल मरांडी ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से कुछ सीखा नहीं है. जिसमें कोर्ट ने साफ कहा है कि राजनीतिक लड़ाई कोर्ट में नहीं, जनता के बीच सुलझाएं.”
वहीं कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू कहते हैं, "अगर ये फिक्स मैच होता तो वो अंदर ही नहीं होते. हालांकि ये सवाल जायज है कि एसीबी ने 90 दिन में भी चार्जशीट दायर क्यों नहीं की. इससे शक की सुई तो जाती है. हालांकि मेरा मानना है कि केस अभी खत्म नहीं हुआ है. जांच एजेंसी के आगे की कार्रवाई का इंतजार करना चाहिए.”
देर सबेर सरकार को, सरकार की जांच एजेंसी को इस बात का जवाब देना ही होगा कि आखिर किन परिस्थितियों में इतने गंभीर आरोपों के बावजूद चार्जशीट दायर नहीं हो पाई.