झारखंड : सात महीने में ही JMM और कांग्रेस के साथ पर क्यों उठने लगे सवाल?
झारखंड में महागठबंधन सरकार के किचन में करीने से रखे बर्तन आपस में टकराने लगे हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा लगातार कोशिश कर रही है कि गठबंधन में उसे बॉस समझा जाए. जबकि कांग्रेस और राजद उसे महज सहयोगी से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं हैं

झारखंड में महागठबंधन सरकार के किचन में करीने से रखे बर्तन आपस में टकराने लगे हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) गठबंधन सरकार के सात महीने ही बीते हैं, लेकिन उनमें नाराजगी और तकरारों का दौर शुरू हो चुका है. जेएमएम लगातार कोशिश कर रही है कि गठबंधन में उसे बड़ा भाई यानी बॉस समझा जाए. जबकि बाकी दोनों दल उसे सिर्फ सहयोगी से और ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं हैं.
इसकी शुरुआत 6 मई को हुई, जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी की विस्तारित कार्यसमिति की बैठक में शामिल होने रांची आए. यहां उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा, "मैंने हेमंत जी से साफ कहा है कि हमारे कार्यकर्ताओं को भी महसूस होना चाहिए कि उनकी सरकार है." पिछली सरकार में कांग्रेस के विधायकों और कार्यकर्ताओं को इस बात की बहुत अधिक शिकायत थी कि उनकी बात प्रखंड स्तर के अधिकारी तक नहीं सुनते हैं.
इसके ठीक एक महीने बाद 6 जून को राज्य के वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता राधाकृष्ण किशोर ने सीएम हेमंत सोरेन को एक चिट्ठी लिखी. इसमें उन्होंने साफ लिखा कि राज्य में हरिजन की आबादी 50 लाख से अधिक है, लेकिन उनके हालात आदिवासियों से भी बदतर है. उन्होंने इनके लिए अनुसूचित जनजाति आयोग के गठन की मांग भी की.
इसके ठीक एक दिन बाद यानी 7 जून को जेएमएम के प्रवक्ता मनोज पांडेय ने एक बैनर टांग दिया. करीब पांच बाई चार के इस बैनर पर साफ लिखा था, "गुरुजी हैं तो गुरूर है, हेमंत है तो हिम्मत है, बसंत है तो बहार है, इसलिए ही तो जेएमएम की सरकार है." यहां गुरुजी का मतलब शिबू सोरेन, हेमंत से हेमंत सोरेन और बसंत से हेमंत के भाई बसंत सोरेन से है.
ऐसा लिखने के पीछे की वजह खीझ या गुरूर, दोनों हो सकते हैं. गुरूर को समझें तो यहां संख्याबल प्रमुख कारक हो सकता है. कुल 81 सीटों वाली झारखंड विधानसभा में बीते चुनाव में 'इंडिया' गठबंधन को कुल 56 सीटों पर जीत मिली. इनमें जेएमएम को 34, कांग्रेस को 16, राजद को 4 और दो सीटें सीपीआई (एमएल) के खाते में गईं.
हालांकि सीपीआई (एमएल) मौजूदा सरकार को मुद्दों पर आधारित समर्थन दे रही है, लेकिन मामला संख्याबल से इतर कुछ और भी है.
क्या कांग्रेस छीन रही जेएमएम के मुद्दे?
जिन मुद्दों पर जेएमएम अब तक अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकती आई है, उन्हें अब कांग्रेस अपने पाले में करने में लग गई है. इनमें सरना धर्मकोड लागू करना, 'पेसा' एक्ट को लागू करना और एससी-ओबीसी के मुद्दों को लेकर आगे बढ़ना जैसे मुद्दे शामिल हैं. आदिवासियों के लिए अलग से धर्मकोड यानी सरना धर्मकोड बिल को हेमंत सरकार अपने पिछले कार्यकाल में विधानसभा में पास करवा चुकी है, और अब ये मामला केंद्र के पाले में है.
जनगणना की घोषणा के बाद जेएमएम 9 मई को धर्मकोड के मुद्दे पर राज्यभर में आंदोलन करनेवाली थी. लेकिन पहलगाम अटैक के बाद इसे तत्काल स्थगित करना पड़ा. पार्टी दोबारा जब तक योजना बनाती, कांग्रेस ने 26 मई को इसी मुद्दे पर राजभवन के सामने विशाल धरना-प्रदर्शन का आयोजन कर दिया. कांग्रेस ने आगे बढ़ते हुए यहां तक कहा कि उसने इस मुद्दे पर राष्ट्रपति से मिलने का समय मांगा है और अब वो दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर भी धरना देने जा रही है.
दूसरा मुद्दा है - राज्य में पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरिया (पेसा) एक्ट लागू करना. इसका उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये ग्राम सभाओं के जरिए स्वशासन सुनिश्चित करना है. ये वो मुद्दा है जो झारखंड राज्य आंदोलन के साथ-साथ चला है, और झारखंडी मूल की सभी पार्टियों के टॉप एजेंडे में हमेशा से शामिल रहा है.
अपने पिछले कार्यकाल में हेमंत सरकार इसे लागू नहीं कर पाई थी. लोगों को उम्मीद है कि हेमंत अपने दूसरे कार्यकाल में इसे जरूर लागू करेंगे. सरकारी स्तर पर इसे लागू करने की प्रक्रिया चल ही रही थी, इस बीच प्रदेश कांग्रेस प्रभारी के. राजू ने पेसा नियमावली कार्यशाला आयोजित कर 20 जून तक इसको लेकर सुझाव की मांग कर डाली.
तीसरा मु्द्दा ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) से जुड़ा है. इसपर वित्त मंत्री की चिट्ठी के बाद कांग्रेस ने प्रदेश और जिला समितियों में एससी-एसटी-ओबीसी को 50 फीसद पद देने की कवायद शुरू कर दी है. साथ ही, कांग्रेस ने 11 जून को राज्यभर के ओबीसी समुदाय के प्रमुख लोगों को बुलाकर बैठक आयोजित की.
क्या ये पॉलिटिकल इनसिक्योरिटी (राजनीतिक असुरक्षा) का मामला है?
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष केशव हमतो कमलेश कहते हैं, "कौन क्या कह रहा है, ये फिलहाल कोई मुद्दा नहीं है. सरकार बेहतर को-ऑर्डिनेशन के साथ चल रही है."
वहीं, जेएमएम के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं, "पोस्टर पर जेएमएम के एक कार्यकर्ता की भावना है. जेएमएम कार्यकर्ता सोनिया गांधी और राहुल गांधी का जिंदाबाद तो नहीं करेगा न. उसके लिए तो शिबू सोरेन और हेमंत ही नेता हैं. अब सरकार चलाने के लिए हम अपनी राजनीति थोड़े न छोड़ देंगे. जहां तक वित्त मंत्री के उठाए मुद्दों की बात है, वो एक सुलझे हुए व्यक्ति हैं, उन्होंने एक जरूरी मुद्दा उठाया है."
जेएमएम के केंद्रीय महासचिव विनोद पांडेय का कहना है कि हमने अपनी पार्टी की तरफ से पोस्टर लगाए हैं, ऐसे में जेएमएम की ही बात होगी. अगर महागठबंधन की तरफ से पोस्टर लगाया जाता तो महागठबंधन की सरकार लिखा जाता.
इस पूरे प्रकरण पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं, "बैनर पर मनोज पांडेय ने बिल्कुल सच लिखा है. जो पिछले पांच साल से होता आ रहा है, वही लिखा है. कांग्रेस और राजद के मंत्रियों की कोई हैसियत नहीं है. सरना धर्मकोड पर कांग्रेस केंद्र में सरकार में रहते हुए लिखित तौर पर मना कर चुकी है. इधर जेएमएम क्रिश्चियन लॉबी के दबाव में पेसा एक्ट लागू नहीं कर रही है."
ये कोई पहला मौका नहीं है जब गठबंधन के नेताओं ने एक-दूसरे को उनकी स्थिति का एहसास कराया है. इससे पहले मार्च महीने में बजट सत्र के दौरान कांग्रेस के कोटे से स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी और जेएमएम के मंत्री सुदिव्य सोनू के बीच तीखी बहस हो गई थी. इस पर जेएमएम ने कहा था कि मंत्री सुदिव्य सोनू की बौद्धिक श्रेष्ठता, ज्ञान, शालीनता और धैर्य के सामने इरफान अंसारी की कोई तुलना ही नहीं है.
पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के विधायक डॉ. रामेश्वर उरांव सरकार बनने के पहले दिन से हमलावर रहे हैं. 5 जून को राजधानी रांची में एक फ्लाईओवर का उद्घाटन सीएम हेमंत सोरेन ने किया. इस फ्लाईओवर का रैंप सिरमटोली स्थित सरना स्थल के नजदीक बनना था, जिसका विरोध बीते दो महीने से आदिवासियों का एक समूह कर रहा था. इस विरोध का नेतृत्व पूर्व शिक्षा मंत्री और कांग्रेस की नेता गीताश्री उरांव कर रही थी.
उद्घाटन के बाद रामेश्वर उरांव ने कहा कि सरकार को विरोध करने वाले समूह से बात करनी चाहिए थी. इससे उन्हें धक्का लगा है. हालांकि उद्घाटन के बाद हेमंत सोरेन ने इस फ्लाईओवर का नाम गीताश्री उरांव के पिता, तीन बार लोकसभा के सांसद और पूर्व केंद्रीय नागरिक उड्डयन और संचार मंत्री कार्तिक उरांव के नाम पर रख दिया.
बहरहाल, इन सब बातों के इतर कांग्रेस के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "गठबंधन में पार्टियों के बीत पति-पत्नी का रिश्ता होता है. उनके बीच झगड़े भी होते हैं. लेकिन जिस दिन ये झगड़ा बंद कमरे से बाहर निकल कर सड़क पर आ जाता है, दोनों का एक दूसरे के प्रति विश्वास और सम्मान खत्म हो जाता है. जो काम एक मंत्री को सीएम से मिलकर, कैबिनेट में प्रस्ताव रखकर करवाना चाहिए, उसके लिए पत्र लिखा जा रहा है और उसे मीडिया में प्रसारित भी किया जा रहा है."
बिहार चुनाव पर जेएमएम का रुख
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए अंदरखाने में चर्चा ये है कि जेएमएम भी राजद की तरह बिहार में 20 सीटों की मांग करेगी. अगर बात नहीं बनी, तब भी वो 14 से 16 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
इधर, 12 जून को बिहार की राजधानी पटना में इंडिया गठबंधन की को-ऑर्डिनेशन कमेटी की बैठक बुलाई गई. इसमें जेएमएम को अनदेखा कर दिया गया. पार्टी के केंद्रीय महासचिव विनोद पांडेय ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा, "ये अनदेखी बर्दाश्त नहीं है. हम इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं. अगर अनदेखी हुई तो जेएमएम नई रणनीति अपनाएगा, इसका खुलासा भी जल्द किया जाएगा."
हालांकि, साल 2010 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद जेएमएम को बिहार में कभी सफलता नहीं मिली है, बेशक पार्टी चुनाव लड़ती रही है. लेकिन इस बार झारखंड की सीमा से सटे सीटों पर जेएमएम की कड़ी नजर है.