झारखंड: वाजपेयी राज में हुए बहाल, अब डिग्री हो गई अवैध! किस आफत में फंसे हजारों पारा शिक्षक?
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान झारखंड में हजारों पारा शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी लेकिन अब हेमंत सोरेन सरकार के एक फैसले के बाद उनकी नौकरी पर तलवार लटक रही है

राजधानी रांची से 155 किलोमीटर दूर लातेहार जिले के मनिका प्रखंड के जमुना गांव के मध्य विद्यालय में कुल छह कमरे हैं. लेकिन यहां एक ही कमरे में कक्षा एक से आठ तक के कुल 108 बच्चे एक साथ बैठते हैं. स्कूल की छात्रा नमीता कुमारी के मुताबिक दिनभर में एक से दो विषयों की पढ़ाई होती है. स्कूल में मात्र एक शिक्षक पढ़ाने आते हैं.
झारखंड विधानसभा में स्कूली शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक पूरे राज्य में ऐसे एक नहीं, 7930 स्कूल हैं. जहां केवल एक शिक्षक पढ़ा रहे हैं.
वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार के एक फैसले से राज्य के पारा शिक्षकों में हड़कंप मचा हुआ है. शिक्षा सचिव के 19 मई को दिए आदेश पर झारखंड एजुकेशन प्रोजेक्ट काउंसिल (जेईपीसी) ने राज्य के सभी 24 जिला शिक्षा अधिकारियों को पत्र लिख कर पूछा है कि कितने पारा शिक्षक फर्जी डिग्री के आधार पर नौकरी कर रहे हैं? ऐसे शिक्षकों के खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई की गई है?
इस फैसले की जद में अधिकतर वो शिक्षक हैं, जिन्हें साल 2002-05 की अवधि के दौरान सर्व शिक्षा अभियान के तहत नौकरी मिली थी. पूरे राज्य में इनकी संख्या करीब 61 हजार है. उस वक्त मैट्रिक पास को इस नौकरी का आधार बनाया गया था. इनकी नियुक्ति ग्राम पंचायत ने की थी. बाद के सालों में राज्य सरकार ने कहा कि ऐसे मैट्रिक पास पारा शिक्षकों को इंटर पास करना होगा. जिसके बाद कई शिक्षकों ने झारखंड और झारखंड के बाहर अन्य राज्यों से डिग्री हासिल कर इंटर का प्रमाण पत्र सौंपा.
इन शिक्षकों में कईयों ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, प्रयाग महिला विद्यापीठ इलाहाबाद, भारतीय शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश, राजकीय मुक्त विद्यालय शिक्षण संस्थान, हिन्दी विद्यापीठ देवघर, बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड, हिन्दी साहित्य सम्मेलन बहादुरगंज इलाहाबाद जैसे संस्थानों से इंटर की डिग्री जमा कराई. राज्य सरकार इन डिग्रियों को अवैध बता रही है. हालांकि झारखंड एकेडमिक काउंसिल की ओर से अखबारों में सितंबर 2008 को छपे एक विज्ञापन में हिन्दी विद्यापीठ देवघर और हिन्दी साहित्य सम्मेनल इलाहाबाद से प्राप्त की हुई इंटर की डिग्री को वैध माना था.
देवघर जिले के लालमोहन प्रसाद यादव ऐसे ही एक शिक्षक हैं. इन्होंने साल 2003 में देवघर जिले के ही उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय सलैया में 1000 रुपए के मानदेय पर पारा शिक्षक की नौकरी शुरू की थी. साल 2008 में इन्होंने भारतीय शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश, लखनऊ से इंटर की डिग्री ली. जिसे शिक्षा विभाग ने साल 2013 और 2023 सत्यापित माना. अब बीते अगस्त महीने से इनकी सैलरी रोक दी गई है. उनके ऊपर कुल 3 लाख रुपए का कर्ज है. फिलहाल वे बिना वेतन के पढ़ा रहे हैं. वे बताते हैं, "बेटी की शादी कर्ज सधा नहीं है (चुका नहीं पाए हैं), बेटा इंटर पास किया है, लेकिन अब उसे आगे पढ़ा नहीं पाएंगे."
झारखंड सहायक अध्यापक संघर्ष मोर्चा के प्रदेश महासचिव विकास कुमार चौधरी कहते हैं, "जिस वक्त इन शिक्षकों की बहाली हुई थी, उस समय कहीं स्कूल नहीं था. यही शिक्षक कहीं पेड़ के नीचे तो कहीं किसी के घर के बरामदे में बच्चों को पढ़ाया करते थे. जिन इलाकों में सड़क नहीं थी, वहां बिना शिकायत के जाकर पढ़ाते रहे. नौकरी के 20 साल बाद सरकार को याद आया है कि इनकी डिग्री अवैध है. ये सब मैंया सम्मान योजना में घट रहे पैसों की भरपाई के लिए किया जा रहा है."
हेमंत सरकार अगस्त 2024 से राज्य भर के महिलाओं को मैंया सम्मान योजना के तहत पहले 2000 और अब 2500 रुपया देती है. राज्य भर की 2 लाख 48 हजार 644 महिलाओं को फिलहाल इसका लाभ मिल रहा है. इसके लिए सरकार ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए कुल 13,363 हजार करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया है.
झारखंड राज्य प्रशिक्षित सहायक अध्यापक संघ मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष जितेंद्र दुबे भी सरकार के फैसले की आलोचना करते हैं. वे कहते हैं, "इन शिक्षकों की नियुक्ति ग्रामसभा की ग्राम शिक्षा समिति ने की है. सरकार इन्हें सीधे तौर पर नौकरी से नहीं निकाल सकती. दूसरी बात ये भी है कि जब इनकी बहाली ही मैट्रिक बेसिस पर हुई है, तो इंटर कि डिग्री का बहाना बनाकर कैसे निकाल सकते हैं. यही नहीं, साल 2023 में आकलन परीक्षा हुई थी. यहां सभी के कागजात जांच कर परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई. जब यहां तक सबकुछ सही पाया गया, तो अब सब फर्जी कैसे हो गया."
फैसले पर पक्ष-विपक्ष दोनों को आपत्ति
पूरे मामले को लेकर विपक्ष भी हेमंत सरकार पर हमलावर है. नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी कहते हैं, ‘’सरकार का यह निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण है. ये शिक्षक पिछले 15-20 वर्षों से दूरदराज के क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हैं. इन्हें हटाने से न केवल इनका भविष्य संकट में आ जाएगा, बल्कि शिक्षा व्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ेगा.’’
यही नहीं, सत्ता पक्ष के विधायकों ने भी सरकार के इस फैसले का विरोध किया है और उसे बदलने की अपील की है. झारखंड मुक्ति मोर्जा (जेएमएम) के विधायक और विधानसभा अध्यक्ष रविंद्रनाथ महतो की ओर से जामताड़ा जिला शिक्षा पदाधिकारी को लिखी गई चिट्ठी की मानें तो ऐसे शिक्षकों की संख्या राज्यभर में 8000 से अधिक हो सकती है. चिट्ठी में उन्होंने इन्हें हटाने के बजाय, किसी वैकल्पिक व्यवस्था पर विचार करने का अनुरोध किया है.
कांग्रेस विधायक राजेश कच्छप और सुरेश कुमार बैठा ने भी ऐसे शिक्षकों के भविष्य पर चिंता जाहिर की और स्कूली शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन से इस निर्णय पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है.
वहीं इस पूरे प्रकरण पर राज्य शिक्षा परियोजना के निदेशक शशि रंजन ने इंडिया टुडे से बात की. वे कहते हैं, "विभिन्न केस और उसके आधार पर कोर्ट के निर्णयों को देखते हुए कुछ संस्थानों को फर्जी पाया गया है. इसी के आधार पर हमने जिला शिक्षा अधिकारियों से पूछा है कि जिन संस्थानों को कोर्ट ने अवैध घोषित किया है, वहां से डिग्री पाए लोगों को हटाया जाए या नहीं. फिलहाल समीक्षा चल रही है, अंतिम निर्णय अभी नहीं लिया गया है."
झारखंड में स्कूली शिक्षा बदहाल
राज्य में सरकारी स्कूलों की स्थिति कुछ खास नहीं है. शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने बीते मार्च महीने में बजट सत्र के दौरान विधानसभा में कहा था कि पूरे झारखंड में 7930 स्कूल ऐसे हैं, जहां केवल एक शिक्षक पढ़ा रहे हैं. जबकि इन स्कूलों में कुल 3,81,455 छात्र नामांकित हैं. कुल 103 ऐसे स्कूल हैं, जहां एक भी छात्र नहीं है जबकि इन स्कूलों में 17 शिक्षक कार्यरत हैं.
ये हालात इसलिए भी हैं कि झारखंड में बीते दस साल से शिक्षकों की बहाली ही नहीं हुई है. साल 2015 में आखिरी बार शिक्षकों की बहाली हुई थी. झारखंड विधानसभा सत्र के दौरान सरकार की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक राज्य में सरकारी स्कूलों की संख्या 35,471 है. जिसमें कुल 40.15 लाख बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. यहां शिक्षकों की संख्या कुल 1,13,994 है.
देश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने झारखंड के स्कूली शिक्षा के इस हाल को देखते हुए शिक्षकों की बहाली के लिए झारखंड हाईकोर्ट में पीआईएल दायर की है. सुनवाई के तहत हाईकोर्ट के निर्देश के बाद झारखंड स्टाफ सेलेक्शन कमिशन ने कोर्ट के सामने स्वीकार किया है कि वह अगस्त के पहले हफ्ते में अपर प्राइमरी लेवल पर और दूसरे सप्ताह में प्राइमरी लेवल पर शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरा कर लेगा. इस दौरान कुल 26,000 शिक्षकों की नियुक्ति होनी है.
ज्यां द्रेज कहते हैं, "मेरे हिसाब से इस स्थिति का कोई बहाना नहीं हो सकता. जो राइट टू एजूकेशन एक्ट 2009 है, वो साफ कहता है कि प्रत्येक 30 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए. लेकिन झारखंड में वास्तिवकता अलग है. यहां एक तिहाई स्कूलों में एकमात्र शिक्षक हैं."
हर साल स्थिति और खराब होती जा रही है. क्योंकि साल 2016 से आज तक शिक्षकों की बहाली नहीं हुई है. इधर हर साल कुछ शिक्षक रिटायर हो जाते हैं, उधर बच्चों की संख्या बढ़ती जाती है.
इन स्कूलों में आदिवासी और दलित समुदाय के बच्चे ज्यादा पढ़ते हैं. इस बात का हवाला देते हुए ज्यां द्रेज कहते हैं, ‘’जो समुदाय, लोग सदियों से स्कूल प्रणाली से वंचित हैं, मुझे लगता है इन लोगों को सबसे अच्छी सुविधा मुहैया कराना चाहिए. लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है. जो पढ़े-लिखे परिवार हैं, उन्हें सबसे अच्छी सुविधा मिल रही है. यही कारण है कि वंचित समुदाय के बच्चे केवल पलायन के सहारे जी रहे हैं. वे साउथ इंडिया की 'रिजर्व आर्मी ऑफ लेबर' (ऐसे मजदूर जिन्हें कभी-भी जरूरत पड़ने पर बुला लिया जाता है) बन गए हैं.’’