झारखंड : हेमंत सोरेन को आखिर राज्य के आयोगों से दिक्कत क्या है!

झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार राज्य के कई आयोगों में अध्यक्ष या सदस्यों की नियुक्ति नहीं कर पाई है और इस वजह से इनमें लोगों की शिकायतों का निपटारा नहीं हो पा रहा

सीएम हेमंत सोरेन- फाइल फोटो
सीएम हेमंत सोरेन- फाइल फोटो

रांची के हटिया इलाके की एक महिला की शादी साल 2019 में हुई. कुछ दिन बाद ही पति ने उसे छोड़ दिया. महिला के भाई ने महिला आयोग में उसी साल शिकायत दर्ज कराई. शिकायत में बताया गया कि बहन का पति उसे नहीं ले जा रहा है. पति का कहना है कि उसकी बहन सुंदर नहीं है. इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई और पीड़िता को आज तक न्याय का इंतजार है. 

रांची के ही एक सरकारी कार्यालय में एक अधेड़ उम्र की महिला झाड़ू-पोंछा का काम कर रही थी. काम के दौरान उसी कार्यालय के एक कर्मी ने छेड़खानी की. साल 2021 में पीड़िता ने इसकी शिकायत महिला आयोग में दर्ज कराई. न्याय तो नहीं मिला, उल्टे उसे नौकरी से निकाल दिया गया. 

ऐसे एक-दो नहीं, लगभग 5,200 से अधिक मामले राज्य महिला आयोग में लंबित है. आयोग में फिलहाल एक कंप्यूटर ऑपरेटर, एक चपरासी और एक सुरक्षाकर्मी तैनात है. हैरानी की बात यह कि बीते पांच सालों से आयोग में न तो कोई अध्यक्ष है, न ही कोई सदस्य. 

वहीं राज्य सूचना आयोग में बीते पांच सालों से न तो चीफ इनफॉर्मेशन कमिश्नर की नियुक्ति हुई है ना ही स्टेट इनफॉर्मेशन कमिश्नर की. आलम ये है कि यहां 20 हजार से अधिक मामले सुनवाई के लिए लंबित हैं. 

झारखंड में लोकायुक्त का पद 4 साल से खाली है. भ्रष्टाचार व लोक शिकायत से संबंधित लगभग 3,000 से अधिक पुराने और नये दर्ज मामले लंबित हो गए हैं. खाद्य आयोग में बीते एक साल से अध्यक्ष नहीं है. आयोग के पूर्व अध्यक्ष हिमांशु चौधरी को 3 जुलाई 2024 को हटा दिया गया था. वे जानकारी देते हैं, "खाद्य आयोग में दो सदस्य के बिना सुनवाई नहीं हो सकती है, ना ही कोई आदेश पारित किया जा सकता है. आयोग के सामने राज्य भर के पीडीएस सिस्टम संबंधी शिकायत, मध्यान्ह भोजन संबंधी शिकायत, मातृत्व योजना में गड़बड़ियों की शिकायत, कुपोषण केंद्र की शिकायतों का निबटारा होता है.” 

ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम जन को अपनी छोटी शिकायतों और उसके निबटान के लिए कितना लंबा इंतजार करना पड़ रहा है. 

राज्य मानवाधिकार आयोग में 2 साल से अध्यक्ष नहीं है. यहां लंबित मामलों की संख्या 1,114 हो गई है. आयोग में औसतन 30-35 मामले प्रतिदिन आ रहे हैं. उन्हें सिर्फ नोट किया जा रहा है. लोगों को केस नंबर नहीं मिल रहा है. विद्युत आयोग में भी 1 साल से कोई अध्यक्ष नहीं हैं. 

इसके अलावा झारखंड राज्य खनिज विकास निगम, माटी कला बोर्ड, झारखंड राज्य खादी बोर्ड, तेनुघाट विद्युत निगम लिमिटेड, झारखंड राज्य समाज कल्याण बोर्ड, झारखंड ट्राइबल डेवलपमेंट सोसाइटी,  झारखंड लिफ्ट इरिगेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड, झारखंड रियल स्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी में अध्यक्ष का पद कई साल से खाली है. 

आखिर ऐसा क्यों 

आयोगों के गठन को लेकर झारखंड हाइकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में सुनवाई चल रही है. हाइकोर्ट में सूचना आयुक्त, लोकायुक्त और मानवाधिकार आयोग सहित कई संवैधानिक संस्थाओं में खाली पदों पर नियुक्ति के लिए सुनवाई चल रही है. ऐसे में सवाल है कि आखिर क्यों हेमंत सोरेन के दोनों कार्यकाल में कई आयोगों के पद सालों से खाली हैं? 

हेमंत सोरेन के पिछले कार्यकाल में बीजेपी के नेता प्रतिपक्ष का चुनाव संवैधानिक तौर पर नहीं हो पाया था. बाबूलाल मरांडी को बीजेपी ने अपना नेता प्रतिपक्ष घोषित तो किया, लेकिन उनके ऊपर विधानसभा अध्यक्ष के कोर्ट में चल रहे दल-बदल मामले की सुनवाई के चलते उन्हें संवैधानिक तौर पर इसकी मान्यता नहीं मिली थी. 

ऐसे में नियमतः इन आयोगों में अध्यक्ष पद पर किसी को नियुक्त किया जाना संभव नहीं था. क्योंकि चयन समिति में नेता प्रतिपक्ष का होना जरूरी होता है. सोरेन के पहले कार्यकाल के आखिरी के एक साल के लिए बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी को हटाकर अमर कुमार बाउरी को नेता प्रतिपक्ष घोषित किया. वो पूरे 13 महीने इस पद पर रहे, लेकिन इस दौरान भी आयोगों में अध्यक्ष पद पर नियुक्ति नहीं की गई. 

सोरेन के दूसरे कार्यकाल में बाबूलाल मरांडी संवैधानिक तौर पर नेता प्रतिपक्ष हैं. सरकार बने सात महीने से अधिक हो चुके हैं, लेकिन गंठबंधन के तीनों दल- जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी की आपसी आंतरिक खींचतान के कारण अभी तक इन आयोगों में अध्यक्ष के पद खाली हैं. 

प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रभारी गुलाम अहमद मीर और नए प्रभारी के. राजू ने इस मसले पर कई बार हेमंत सोरेन से चर्चा की. हालांकि क्या चर्चा हुई और इस चर्चा का नतीजा कब तक निकलेगा, यह किसी को पता नहीं. आम जनता को न्याय के लिए समय, पैसा और सम्मान तीनों खर्च करना पड़ रहा है. 

नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी हेमंत सोरेन के नीयत पर सवाल खड़ा करते हैं. वे कहते हैं, "हेमंत सोरेन को कमाई से फुर्सत नहीं है. वे जमकर कमाने में लगे हैं. अगर लोकायुक्त, सूचना आयुक्त जैसे पदों पर नियुक्त होगी, तो लोग सूचना मांगने जाएंगे. उनके भ्रष्टाचार की शिकायत करने जाएंगे. ऐसे में भला कोई सरकार क्यों अपने पैर पर खुद से कुल्हाड़ी मारेगी.” 

बाबूलाल आगे कहते हैं, "पहले जब यहां कमा रहे थे तब ईडी ने रेड कर दी. झारखंड इनके लिए कमाई छुपाने के लिहाज से सुरक्षित नहीं रहा. अब सुनने में आया है कि लेनदेन दुबई में किया जा रहा है. सरकार जब काम नहीं करती है, तो ऐसी जानकारी को बल मिलता है.” 

वहीं जेएमएम के प्रवक्ता मनोज पांडेय इस पर सरकार और पार्टी का स्टैंड स्पष्ट करते हैं. वे कहते हैं, "मैं ये मानता हूं कि महत्वपूर्ण आयोग में अध्यक्षों की नियुक्ति में देरी हुई है. सभी आयोग में योग्य व्यक्ति की तलाश जारी है, इसके लिए स्क्रूटनी हो चुकी है. हमें उम्मीद है कि आगामी विधानसभा सत्र के दौरान सभी नेता एक छत के नीचे होंगे, तो इन सब नियुक्तियों पर मुहर लग जाएगी.” 

वहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो कमलेश के मुताबिक, "कुछ आयोग बोर्ड में नियुक्ति हुई है. हमारी पार्टी के लोग भी इनमें नियुक्त हुए हैं. जिनमें नियुक्ति नहीं हुई है, उसकी वजह सीएम हेमंत सोरेन की व्यस्तता है. हेमंत सोरेन बड़े भाई की भूमिका में हैं, समय मिलते ही इन सब विषयों पर भी निर्णय लिया जाएगा.” 

हालांकि इन्हीं व्यस्ताओं के बीच बीते 8 मई को पूर्व मंत्री और जेएमएम नेता बेबी देवी को राज्य बाल संरक्षण आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. हाल ही में 8 जुलाई को पूर्व विधायक जानकी यादव को पिछड़ा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. हेमंत सोरेन के पिछले टर्म में युवा आयोग, गो सेवा आयोग, हिन्दू धार्मिक न्यास बोर्ड में अध्यक्षों की नियुक्ति की गई थी. 

जेएमएम के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जिन लोगों के पास पैसा है, या फिर जो लोग किसी न किसी तरह के कारोबार से जुड़े हुए हैं, उन्हें इन आयोगों में आसानी से जगह मिल जा रही है. लेकिन जो लोग समर्पित होकर केवल राजनीति करते हैं, वे इस जोड़-तोड़ में खुद को साबित नहीं कर पाते और नतीजतन उन्हें किसी बोर्ड में महत्वपूर्ण पद नहीं मिलता. 

इन सब के बीच राज्यभर के नेता इन पदों पर खुद को नियुक्त कराने के लिए जोड़-तोड़ में लगे हुए हैं. कुछ को पद की लालसा है, तो कुछ विधायक, सांसद न होते हुए भी खुद को साबित करना चाहते हैं. 

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