झारखंड : पूर्व सीएम चंपाई सोरेन के लिए घाटशिला उपचुनाव कैसे बन रहा अग्निपरीक्षा?
झारखंड की घाटशिला विधानसभा सीट पर 11 नवंबर को उपचुनाव होना है. यह सीट सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के विधायक और पूर्व शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन के निधन से खाली हुई है

बिहार विधानसभा चुनाव के साथ झारखंड में भी एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव की घोषणा हुई है. दूसरे चरण यानी 11 नवंबर को घाटशिला विधानसभा सीट पर चुनाव होना है. यह सीट सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) कोटे के विधायक और पूर्व शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन के निधन से खाली हुई है. रामदास सोरेन ने बीते विधानसभा चुनाव में पूर्व सीएम चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन को 22 हजार वोटों से हराया था. चुनाव आयोग की घोषणा के साथ ही दोनों पार्टियों में रायशुमारी और तैयारियों को लेकर बैठकों का दौर शुरू हो चुका है.
बीते 5 अक्टूबर को घाटशिला में JMM और विरोधी भारतीय जनता पार्टी (BJP), दोनों दलों के नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की. JMM के नेता और मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू ने कार्यकर्ताओं से साफ कहा कि वे विधायक नहीं मंत्री चुनने जा रहे हैं. वहीं BJP विधायक दल के नेता और प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने पिछली गलतियों से सबक लेते हुए कार्यकर्ताओं से JMM को हराने के लिए कमर कस लेने को कहा.
इन सब के बीच बीते 7 अक्टूबर को एनडीए की बैठक रांची के हरमू स्थित BJP मुख्यालय में हुई. घटक दल ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) पार्टी के मुखिया सुदेश महतो, जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद खीरू महतो, पूर्व सीएम चंपाई सोरेन सहित अन्य नेता मौजूद रहे. यहां चंपाई को उम्मीद थी कि उनके बेटे बाबूलाल सोरेन को टिकट दिए जाने की घोषणा होगी, लेकिन यहां उनके साथ–साथ लखन मार्डी, सुनीता देवदूत सोरेन और रमेश हांसदा का नाम भी केंद्रीय नेतृत्व को भेज दिया गया. बाबूलाल सोरेन की जगह तीन और नाम भेजे जाने की वजह पूछे जाने पर बाबूलाल मरांडी ने कहा, “BJP एक लोकतांत्रिक पार्टी है. यहां फरमान की राजनीति नहीं होती है. तय प्रक्रिया के तहत नाम भेजे गए हैं, केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा कि किसे चुनाव लड़ना है और किसे नहीं.’’
वहीं बाबूलाल सोरेन ने कहा, "पार्टी की नजर में मैं क्या हूं, वो पार्टी तय करेगी. लेकिन पार्टी जानती है कि साल 2019 के चुनाव में जितने वोट उसको मिले थे, 2024 में मेरे लड़ने के बाद 25 हजार वोट अधिक मिले. इस वक्त भी मैं अपने इलाके में एक बिजली का पोल जो टूट गया था, वही बनवा रहा हूं. दूसरी बात कि इस इलाके में मैं कॉलेज के दिनों से सक्रिय हूं. हालांकि उस वक्त मैं JMM में था. इस पूरे क्षेत्र को किसी और से बेहतर जानता हूं.’’
बताया जा रहा है कि BJP के प्रदेश संगठन ने घाटशिला वरिष्ठ नेताओं से संभावित प्रत्याशियों के बारे में बात की थी. पंचायतों में सर्वे कराया गया था. इसके बाद चार नाम सामने आए थे. सर्वे के सवाल पर बाबूलाल सोरेन कहते हैं, "जहां तक बात सर्वे की है, तो वो पार्टी हर महीने करवाती है. ऐसे में सर्वे के माध्यम से जो मेरे अलावा तीन और नाम भेजे गए हैं, ये चिंता की कोई बात नहीं है.’’
JMM प्रत्याशी को टिकट से पहले मंत्री बनने का इंतजार
वहीं पूर्व मंत्री रामदास सोरेन के बेटे सोमेस सोरेन को इंतजार है कि उन्हें पहले मंत्री बनाया जाएगा, फिर चुनाव का टिकट दिया जाएगा. लेकिन निधन के डेढ़ महीने से अधिक के बाद भी उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया है. यह फॉर्मूला JMM पहले भी अपना चुकी है. इससे पहले भी राज्य के एक और शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के निधन के बाद उनकी पत्नी बेबी देवी को पहले उसी विभाग का मंत्री बनाया गया, बाद में उन्हें उप-चुनाव में उतारा गया. चुनाव में जीत भी मिली. लेकिन बीते विधानसभा चुनाव में बेबी देवी को मंत्री रहते हुए हार का सामना करना पड़ा था.
15 अक्टूबर को रांची में JMM के केंद्रीय कार्यकारिणी परिषद की बैठक होने जा रही है, जहां ये तय होगा कि रामदास सोरेन के बेटे या पत्नी को टिकट दिया जाएगा. हालांकि संभावना अधिक इसी बात की है कि बेटे को ही उम्मीदवार बनाया जाएगा. चर्चा इस बात की भी थी कि उन्हें दशहरा के तत्काल बाद मंत्री पद की शपथ दिलवाई जाएगी. लेकिन फिलहाल ऐसा होता दिख नहीं रहा है.
सोमेस भी इंतजार ही कर रहे हैं. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "मेरे पिता का सपना था कि घाटशिला को शिक्षा का हब बनाया जाए. मैं उनके इस सपने को पूरा करना चाहता हूं.’’ अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि उनकी ये इच्छा या महत्वाकांक्षा किस रास्ते से पूरी होगी. हालांकि उनकी मां को टिकट दिए जाने के सवाल पर उनका कहना है कि "मां को मिले या मुझे मिले, बात बराबर है. वैसे भी ये सब तय करने के लिए पार्टी और पार्टी के मुखिया सक्षम हैं. मुझे इसकी चिंता नहीं करनी है.’’
इस सबके बीच यह उपचुनाव एकतरफा माना जा रहा है. घाटशिला राज्य की 28 ST आरक्षित सीटों में से एक है. बीते विधानसभा चुनाव में JMM को इनमें से 27 सीटों पर जीत मिली थी. हेमंत सरकार के इस दूसरे कार्यकाल के एक साल होने को हैं, लेकिन राज्य में इस वक्त उनके खिलाफ कोई माहौल नहीं है. दूसरी बात स्वभाविक तौर पर सहानुभूति की लहर रहेगी और उसका फायदा JMM को ही मिलेगा. हालांकि BJP को उम्मीद है कि आदिवासी नेता सूर्या हांसदा एनकाउंटर, डीएमएफटी घोटाला, जमीन घोटालों जैसे मुद्दों के सहारे मैच एकतरफ नहीं होगा. स्थानीय स्तर पर संगठन दोनों दलों के पास हैं.
हालांकि चुनौती दोनों दलों के पास इस बात की रहेगी कि बिहार और झारखंड के बीच चुनावी अभियान में तालमेल कैसे बिठाएं. खासकर उस स्थिति में तब, जब प्रत्याशी से ज्यादा दोनों दलों के मुखिया (हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी) की साख पर इस उप-चुनाव का भी असर होगा. साख दांव पर चंपाई सोरेन की भी लगी है या यूं कहें कि फिलहाल बेटे को टिकट दिलाने से लेकर चुनाव जिताने तक, उनके सिर पर दोहरी चुनौती है.