झारखंड उपचुनाव : क्या चंपाई सोरेन बेटे की हार के बाद अपना राजनीतिक भविष्य बचा पाएंगे?

झारखंड की घाटशिला सीट पर हुए उपचुनाव में JMM उम्मीदवार ने पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के बेटे और BJP उम्मीदवार बाबूलाल सोरेन का तगड़ी मात दी है

Former Jharkhand CM Champai Soren
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन

झारखंड में एक सीट पर हुए उपचुनाव में पूर्व सीएम चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन 38,601 वोट से चुनाव हार गए हैं. यह दूसरा मौका था, जब BJP ने उनके बेटे को घाटशिला सीट से उम्मीदवार बनाया था. चुनाव प्रचार के आखिरी दिन उनका रोना भी काम नहीं आया. वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) प्रत्याशी सोमेश सोरेन की मां के आंसू उनके काम आ गए. इस सीट से पूर्व मंत्री दिवंगत रामदास सोरेन के बेटे यानी सोमेश सोरेन को जीत मिली है. 

हैरानी की बात यह रही कि बाबूलाल सोरेन इस बार ज्यादा बड़े अंतर से हारे. साल 2024 के नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें 22,446 मतों से हार मिली थी. जबकि इस बार इसमें 16,155 मतों का इजाफा हुआ और वे 38,601 मतों से हार गए. आखिर में यह उनके पिता के लिए बहुत बड़ा झटका है. 

ऐसे में यह सवाल एक बार फिर खड़ा हो गया है कि जीवन भर JMM में रहने के बाद, सीएम पद के लालच में पार्टी छोड़ BJP का दामन थामने वाले चंपाई सोरेन की राजनीति हर दिन सिमटती क्यों जा रही है? क्या आनेवाले चार साल के बाद वे राज्य की राजनीति में बस एक नाम भर रह जाएंगे? झारखंड में आदिवासी राजनीति को बेहद करीब से समझने वाले और शिबू सोरेन के प्रेस सलाहकार रह चुके शफीक अंसारी कहते हैं, ‘’शैलेंद्र महतो को छोड़कर आज तक जितने भी नेताओं ने JMM को छोड़ा, राजनीतिक तौर पर सबकी दुर्दशा ही हुई. जिस दिन चंपाई सोरेन ने BJP का दामन थामा था, उस दिन कभी JMM के बहुत बड़े नेता रहे सूरज मंडल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. उन्होंने खुद का उदाहरण देते हुए कहा था कि JMM से बाहर होने पर जो हमारी स्थिति हुई, चंपाई सोरेन की उससे अधिक दुर्दशा होगी.’’ 

अंसारी आगे यह भी जोड़ते हैं, “चंपाई के लिए यह आखिरी मौका था. अब वे अगले चार साल राजनीतिक वनवास में ही रहेंगे. दूसरी बात अगर उनका बेटा जीत जाता तो BJP में उनकी हैसियत बढ़ जाती. भला BJP के अन्य दूसरे बड़े नेता ऐसा क्यों चाहेंगे. ये अंतरद्वंद तो BJP में उनके आने के साथ ही चल रहा है.’’ 

आदिवासियों के इतिहास पर कई किताब लिख चुके लेखक अश्विनी पंकज के मुताबिक घाटशिला में JMM को ही जीतना था. पंकज के मुताबिक, “BJP यह भी नहीं कह सकती है कि कई सीटों पर चुनाव था, जिस वजह से संसाधन और ताकत बंट गए. लेकिन मूल बात ये है कि चंपाई सोरेन का अतीत ही उनकी वर्तमान राजनीति के लिए विरोधाभासी साबित होता है. वे जीवन भर JMM के लाइन वाली आदिवासी राजनीति करते रहे, अब BJP की लाइन वाली करने लगे हैं. चंपाई को शुक्रगुजार होना चाहिए कि सम्मानित नेता होने की वजह से जनता ने बीते साल उनको खुद की सीट पर जिता दिया था. लेकिन साथ में बेटे को हराकर एक चेतावनी भी दी थी कि उस राजनीति पर टिके रहिए जिससे आप इतने बड़े नेता बने हैं.’’   

जाहिर है, यह परिणाम चंपाई और उनके बेटे, दोनों के लिए दुखद है. फिलहाल झारखंड में BJP जिस स्थिति में है, उसका राजनीतिक पुनर्जन्म दूर नजर आ रहा है. जब पार्टी का ही नहीं होगा, तो चंपाई या उनके बेटे का भी नहीं होगा. हालांकि राजनीति लड़ते रहने की चीज है. लेकिन यह समय मांगती है. 

नहीं छोड़ रहे घुसपैठिया राग 

बीते विधानसभा चुनाव और हालिया उप-चुनाव में भी चंपाई आदिवासियों के धर्मांतरण और बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाते रहे हैं. बेटे की हार के बाद उन्होंने कहा, “झारखंड में हमारी लड़ाई घुसपैठियों की वजह से बदलती डेमोग्राफी एवं धर्मांतरण के खिलाफ, तथा आदिवासी समाज की भाषा, संस्कृति, परंपरा एवं अस्तित्व को बचाने के लिए है. मुझे पता है कि यह रास्ता काफी जटिल है, और इसमें कई बाधाएं आएंगी, लेकिन हम झुकेंगे नहीं. घाटशिला विधानसभा क्षेत्र के सभी समर्थकों को धन्यवाद. इस बार, शायद हम जनता को अपनी बातें समझाने में सफल नहीं हो पाए.” 

इसके जवाब में JMM के वरिष्ठ नेता और परिवहन मंत्री दीपक बिरुआ ने कहा, “मैं आपसे छोटा हूं, लेकिन राजनीति में आप हमारे विपक्षी हैं. आप जो भी लड़ाई लड़ रहे हैं, वह बेतुकी है. आने वाले समय में आप सरायकेला (चंपाई यहीं से विधायक हैं) भी हार जाएंगे. ” 

चुनाव परिणाम पर वरिष्ठ पत्रकार आनंद कुमार कहते हैं, “BJP के नेता रिजॉर्ट में टिके थे और होटल में चुनाव कार्यालय खोला था. दूसरी तरफ JMM स्व. रामदास सोरेन के बनवाए दफ्तर से चुनाव का संचालन कर रहा था और माझी परगना महाल के भवन में भोजन का इंतजाम था. यही अपने-आप में बड़ा स्टेटमेंट था. बस इसी फाइव स्टार संस्कृति ने BJP को न घर का रहने दिया न घाट का. घाटशिला उपचुनाव का कुल निचोड़ यही है.” 

हालांकि झारखंड BJP ने इस हार को हावी नहीं होने दिया. रांची स्थिति BJP राज्य मुख्यालय में पार्टी के नेताओं ने 14 नवंबर को अबीर-गुलाल और पटाखों के साथ बिहार की जीत का जश्न मनाया. इस बीच सोशल मीडिया में इस पर लोगों ने कटाक्ष भी किया कि झारखंड BJP के हिस्से एक बड़ा काम– सिर्फ दूसरे राज्यों की जीत पर पटाखे फोड़ना, मिठाइयां बांटना ही है. 

क्या RJD को बाहर का रास्ता दिखाएगी JMM 

रांची के मोरहाबादी मैदान में 15 नवंबर को राज्य का स्थापना दिवस मनाया जाना है. झारखंड 25 साल का हो चुका है. लेकिन इन सबके बीच सबसे अधिक चर्चा इस बात की है कि JMM अब आगे क्या रणनीति अपनाएगी. क्या वह बिहार विधानसभा चुनाव में RJD की तरफ से मिली ‘बेइज्जती’ का बदला लेगी और पार्टी के एक मंत्री संजय प्रसाद यादव को मंत्री मंडल से बाहर करेगी. पार्टी नेताओं के पूर्व के बयानों को मानें तो हां, ऐसा हो सकता है. 

दरअसल RJD ने बिहार चुनाव के महागठबंधन में JMM को सीटें देने से मना कर दिया था और यहां तक कि तेजस्वी यादव पार्टी प्रतिनिधियों से बातचीत करने को भी राजी नहीं हुए थे. तब झारखंड की सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने इसे JMM की बेइज्जती करार दिया था. इसीलिए हेमंत सोरेन सरकार से RJD कोटे के मंत्री को बाहर किए जाने की चर्चा चल रही है.  

अब सवाल यह भी है कि कांग्रेस और RJD का साथ छोड़ने से हेमंत सोरेन को क्या हासिल हो जाएगा. जाहिर है, बतौर विपक्षी केंद्र के साथ हेमंत सोरेन की रार लगातार जारी है. कई विभागों के फंड रुके पड़े हैं. योजनाओं के ठप्प होने, लोगों को योजनाओं का लाभ न मिलने पर जब सीएम सहित विभागीय मंत्री से सवाल किया जाता है तो अक्सर एक ही जवाब होता है कि केंद्र ने पैसा रोक रखा है. यह बात पूरी तरह गलत नहीं है. पेयजल विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, खान विभाग सहित कई अन्य विभागों से संबंधित हजारों करोड़ों की राशि, जिसे केंद्र सरकार को देना है, तकनीकी कारणों को वजह बताकर नहीं दी जा रही है. लेकिन क्या आगामी चार सालों तक हेमंत सरकार इसी तर्क के सहारे जनता को जवाब देती रहेगी. 

ऐसे में अगर वे इंडिया गठबंधन से बाहर होते हैं तो केंद्र से फंड मिलने की संभावना बढ़ जाएगी. साथ ही हेमंत सोरेन अगर चाहें तो देश के अन्य राज्यों में पार्टी के विस्तार के बारे में भी सोच सकते हैं. लेकिन दुविधा ये भी है कि इंडिया गठबंधन से बाहर होने के लिए कोई मजबूत आधार या कारण उन्हें अपने मतदाताओं को बताना होगा. बिहार में मिली ‘बेइज्जती’ तो फिलहाल वह मजबूत आधार बनती नहीं दिख रही है. इस स्थिति में कई जानकारों का मानना है कि अब JMM थोड़ ठहरकर ही सही, राज्य में गठबंधन के स्वरूप पर विचार जरूर करेगी.

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