दीघा के जगन्नाथ मंदिर की पहली ‘रथ यात्रा’ ममता बनर्जी के लिए क्यों है बेहद खास?
जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अप्रैल में दीघा में बने इस जगन्नाथ मंदिर का उद्घाटन किया, तो यह राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और सांप्रदायिक रूप से विवादास्पद कदम साबित हुआ

जून की 27 तारीख को पश्चिम बंगाल के दीघा में नवनिर्मित जगन्नाथ मंदिर से पहली बार रथ यात्रा होने जा रही है. इस आयोजन की मेजबानी के लिए पूरबा मेदिनीपुर जिला प्रशासन और दीघा शंकरपुर विकास प्राधिकरण (DSDA) जोरशोर से तैयारियां कर रहे हैं.
रथ यात्रा के दौरान भारी भीड़ उमड़ने की आशंका है, जिससे निपटने के लिए प्रशासन तैयारियों में जुटा है. स्थानीय प्रशासन का कहना है कि रथ यात्रा को लेकर दो मुख्य लक्ष्य हैं. पहला- पूरे यात्रा क्षेत्र को प्लास्टिक मुक्त बनाए रखना, दूसरा- किसी भी अप्रिय घटना या भगदड़ को रोकने के लिए चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था रखना.
इस रथ यात्रा में 1.5 से 2 लाख भक्तों के शामिल होने की उम्मीद है, जो राज्य प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अप्रैल में जगन्नाथ मंदिर का उद्घाटन किया, तो यह राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और सांप्रदायिक रूप से विवादास्पद कदम साबित हुआ.
पश्चिम बंगाल सरकार ने इस मंदिर के निर्माण को लेकर जो फैसले लिए, उसके नतीजे राज्य के राजनीतिक दायरे से कहीं आगे तक गए. ममता बनर्जी की सरकार ने दीघा मंदिर को एक नए तीर्थस्थल और पर्यटन स्थल के रूप में पेश किया, जो उनके बड़े आध्यात्मिक पर्यटन अभियान का हिस्सा था.
हालांकि, ममता सरकार के इस फैसले पर ओडिशा सरकार ने "जगन्नाथ धाम" शब्द के इस्तेमाल पर कड़ी आपत्ति जताई. ओडिशा का कहना है कि "जगन्नाथ धाम" एक ऐसा शब्द है जो पारंपरिक रूप से सदियों पुराने पुरी मंदिर से जुड़ा है.
साथ ही ओडिशा ने पश्चिम बंगाल सरकार पर यह आरोप लगाया गया कि यह नामकरण पुरी मंदिर की पवित्रता और उसकी विरासत को खत्म करने की कोशिश है. इस मंदिर का पूरे भारत में हिंदुओं के लिए बहुत बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. ऐसे में पश्चिम बंगाल सरकार की इस कोशिश से उनकी भावनाएं आहत हो सकती है.
दीघा में जगन्नाथ मंदिर के नामकरण को लेकर दोनों राज्यों की सरकार के बीच कानूनी नोटिसों का आदान-प्रदान हुआ. पश्चिम बंगाल में भी इस मुद्दे पर सत्ताधारी दल और विपक्ष के नेताओं के बीच सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे से बहस हुई.
पश्चिम बंगाल सरकार ने पर्यटन परियोजना के तहत जिस जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया, वह जल्द ही दो राज्यों ओडिशा और बंगाल के बीच सांस्कृतिक प्रभुत्व की प्रतीकात्मक प्रतियोगिता बन गया.
हालांकि, इस विवाद का दीघा आने वाले तीर्थयात्रियों पर ज्यादा असर नहीं पड़ा. मंदिर के उद्घाटन के बाद से दीघा में लोगों की भीड़ तेजी से बढ़ी है, जहां हर दिन 30,000 से 40,000 लोग आ रहे हैं. वहीं, शनिवार और रविवार के दिन यहां 60,000 से 80,000 लोग आ रहे हैं.
इन आंकड़ों से अंदाजा लगता है कि रथ यात्रा के दौरान यहां भारी भीड़ जमा हो सकती है. यही वजह है कि यहां भगदड़ का डर बना हुआ है. भारत में धार्मिक समारोह के दौरान अनियंत्रित भीड़ के कारण कई दुखद घटना घटी है.
हाल ही में इलाहाबाद महाकुंभ के दौरान भगदड़ मची, जिसमें काफी सारे लोग मारे गए. इस भगदड़ में मारे जाने वाले लोगों की संख्या को लेकर अलग-अलग एजेंसी अलग-अलग दावा कर रही है.
यही वजह है कि सीएम ममता बनर्जी ने जिला अधिकारियों को रथ यात्रा के दौरान परिवहन और सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त रखने का निर्देश दिया है. रथ यात्रा मार्ग पर 1,000 से अधिक पुलिस कर्मियों और स्वयंसेवकों को तैनात किया जाएगा.
रथ यात्रा के समय पर निगरानी के लिए वॉचटावर स्थापित किए जाएंगे और ड्रोन ऊपर से भीड़ की निगरानी करेंगे. रथ को एक किलोमीटर लंबी रस्सी से बांधी जाएगी. रथ यात्रा को देखने के लिए आने वाले भक्त बैरिकेडिंग मार्ग के दोनों ओर से इस रस्सी को छूकर प्रतीकात्मक रूप से भाग ले सकेंगे.
इस प्रयास का मुख्य उद्देश्य रथों के पास भीड़ को जमा होने से रोकना है. मंदिर प्रांगण से लेकर ‘मासीर बारी’ नाम की जगह तक करीब एक किलोमीटर लंबे मार्ग पर यह रथ यात्रा निकाला जाएगा.
यहां सड़क के दोनों ओर 120 से 130 मीटर तक बफर जोन बनाया जा रहा है. इसके लिए बैरिकेड्स लगाए जा रहे हैं, ताकि पैदल आवागमन के लिए पर्याप्त स्थान सुनिश्चित किया जा सके.
स्थानीय प्रशासन इस रथ यात्रा के जरिए पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने की भी कोशिश कर रही है. अब इस मंदिर में पहले की तुलना में तीन गुना ज्यादा भक्त आते हैं, इसलिए यहां कचरा प्रबंधन की भी व्यवस्था की गई है.
राज्य सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग (PHE) विभाग को स्पष्ट रूप से प्लास्टिक मुक्त नीति को फॉलो करने का निर्देश दिया है. इसके अलावा, दीघा में 30-40 पानी पीने का कियोस्क भी लगाया जा रहा है. हर कियोस्क में डिस्पेंसर और लगभग 1,000 पेपर कप लगे हैं. अगर मांग अपेक्षा से अधिक होती है तो अतिरिक्त आपूर्ति की भी व्यवस्था की गई है.
यहां बड़े पैमाने पर सफाई अभियान भी चल रहा है. वैसे तो इस इलाके में हमेशा 300 सफाई कर्मचारी तैनात रहते हैं, लेकिन DSDA ने इस प्रयास को और मजबूत करते हुए 150 अतिरिक्त कर्मचारी तैनात किए हैं.
वॉलंटियर्स यहां आने वाले लोगों से शहर भर में रखे गए कूड़ेदानों का इस्तेमाल करने का आग्रह कर रहे हैं. पूर्व मेदिनीपुर के जिला मजिस्ट्रेट पूर्णेंदु माझी कहते हैं, "अगर लोग अब भी कूड़ा इधर-उधर फेंकते हैं, तो हमारी टीमें सफाई करेंगी.” इतना ही नहीं कूड़ा फैलाने वालों पर भारी जुर्माना लगाने पर भी विचार किया जा रहा है.
दीघा में रथ यात्रा के दौरान कुल मिलाकर लगभग 750 होटल के कमरे पहले से ही बुक हो चुके हैं. प्रशासन ने होटलों से अनुरोध किया है कि वे भीड़ के दौरान किराए में बेतहाशा वृद्धि न करें. लगभग 10,000 लोगों के रहने की क्षमता वाला एक बड़ा अस्थायी हैंगर बनाया जा रहा है, ताकि उन लोगों को रखा जा सके जो होटल के कमरे नहीं खरीद सकते या उन्हें कमरा नहीं मिल पाता है.
हैंगर के बगल में बायो-टॉयलेट और अस्थायी स्वास्थ्य क्लीनिक बनाए जा रहे हैं. चिकित्सा तैयारियों को भी बढ़ाया जा रहा है. त्यौहार के दौरान आस-पास के सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर दीघा में तैनात रहेंगे, ताकि आपातकालीन स्थिति में तुरंत हालात को कंट्रोल में किया जा सके.
ममता बनर्जी खुद निगरानी कर रही हैं. हाल ही में एक उच्च स्तरीय बैठक में उन्होंने अधिकारियों और मंत्रियों को खास तौर पर रथ उत्सव के दौरान दीघा में रहने का निर्देश दिया है. वह कार्यक्रम से एक दिन पहले 26 जून को तैयारियों की व्यक्तिगत रूप से निगरानी करने के लिए वहां पहुंचने वाली हैं.
स्थानीय डीएम कहते हैं, "हम दीघा आने वाले श्रद्धालुओं को सबसे आरामदायक और सुरक्षित वातावरण प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं."
यह रथ यात्रा सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि इससे कहीं ज्यादा है. प्रशासन के लिए यह एक बड़ी चुनौती भी है. इस आयोजन की सफलता बंगाल और उसके बाहर भविष्य में होने वाले धार्मिक समारोहों के लिए एक आदर्श बन सकती है.
अगर प्रशासन वास्तव में इस पैमाने पर प्लास्टिक-मुक्त, दुर्घटना-मुक्त उत्सव सुनिश्चित कर सकता है, तो यह भक्ति, अनुशासन और स्थिरता का एक दुर्लभ संगम होगा.