देर से आई, मगर कितनी दुरुस्त है बिहार की फिल्म पॉलिसी?
बिहार के फिल्मकार, अभिनेता और फिल्म निर्माण से जुड़े दूसरे लोग लगभग दो दशक से इस नीति के लागू होने का इंतजार कर रहे थे, क्या है इसमें खास और इस फिल्म नीति पर फिल्मकार क्या सोचते हैं

जुलाई की 19 तारीख को नीतीश कुमार की कैबिनेट ने 'बिहार राज्य फिल्म प्रोत्साहन नीति' को स्वीकृति प्रदान कर दी. राज्य के फिल्मकार, अभिनेता और फिल्म निर्माण से जुड़े दूसरे लोग लगभग दो दशक से इस नीति के लागू होने का इंतजार कर रहे थे. कई तो निराश भी हो चुके थे, लेकिन अब इस नीति ने एक बड़े तबके को खुश कर दिया है.
इस नीति के तहत राज्य में फिल्म, टीवी धारावाहिक, ओटीटी के निर्माण में तो सरकार सहायता देगी ही, साथ ही राज्य में फिल्में बनाने के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में भी अनुदान देने का प्रावधान रखा गया है. इस नीति की एक खासियत यह भी है कि इसमें राज्य की स्थानीय भाषाओं में बनने वाली फिल्मों के लिए खास सहायता और अनुदान देने का प्रावधान रखा गया है.
बिहार के कला संस्कृति विभाग से जुड़े लोगों का दावा है कि यह नीति भले देर से आई है, मगर आज की तारीख में देश की सबसे अच्छी फिल्म प्रोत्साहन नीति है. विभाग का कहना है कि इसमें अधिकतम चार करोड़ रुपए तक की सब्सिडी का प्रावधान है. इतना अनुदान देश के किसी राज्य में नहीं दिया जा रहा. जहां उत्तर प्रदेश में अधिकतम अनुदान 2.5 करोड़ रुपए है, वहीं झारखंड में अधिकतम अनुदान 3.75 करोड़ रुपए है, वह भी तीसरी फिल्म बनाने पर. इसलिए सरकार को उम्मीद है कि इस नीति की वजह से देश भर के फिल्मकार राज्य में फिल्म निर्माण के लिए प्रोत्साहित होंगे और इससे राज्य को आर्थिक लाभ होगा, स्थानीय कलाकारों को रोजगार मिलेगा और राज्य की बेहतर पहचान भी बनेगी.
सरकार ने फिल्म निर्माण के अनुदान को चार हिस्से में बांटकर रखा है. पहला फिल्म निर्माण है, इसके तहत -
* अगर किसी फिल्म की 75 प्रतिशत शूटिंग बिहार में हुई हो तो उसे अधिकतम चार करोड़ की राशि अनुदान के रूप में दी जाएगी.
* इनमें हिंदी और अंग्रेजी में बनने वाली फिल्मों को कुल लागत का 25 फीसदी और बिहार की स्थानीय भाषा में बनने वाली फिल्म को कुल लागत का 50 फीसदी अनुदान के रूप में प्राप्त होगा, अनुदान की अधिकतम सीमा चार करोड़ होगी.
* इनमें से जिस फिल्म में राज्य को प्रमुखता से दर्शाया गया हो उसे फिल्म निर्माण प्रकोष्ठ 50 लाख रुपए देगा.
* राज्य की कहानी या स्क्रिप्ट पर आधारित फिल्म जो राज्य की छवि की ब्रांडिंग करती हो, उसे लागत का 50 फीसदी या दो करोड़ में से जो कम हो, अनुदान के तौर पर दिया जाएगा.
*अगर फिल्म में राज्य के कलाकारों को अवसर दिया जाता है तो उनके मेहनताने का 50 फीसदी अनुदान होगा जिसकी सीमा 10 से 25 लाख के बीच होगी.
टीवी सीरियलों के लिए
* अगर 90 दिन की शूटिंग बिहार में हुई हो तो अनुदान कुल लागत का 25 फीसदी, अधिकतम एक करोड़ होगा.
*बिहार के कलाकारों को मौका दिया हो तो अनुदान 50 फीसदी, अधिकतम 25 लाख होगा.
ओटीटी निर्माण के लिए
* अगर 60 दिन या 70 फीसदी शूटिंग बिहार में हुई हो तो कुल लागत का 25 फीसदी अनुदान मिलेगा, जो अधिकतम तीन करोड़ होगा.
* राज्य के पर्यटन, वन्यजीव, इतिहास, विरासत, संस्कृति, भोजन, हस्तशिल्प, धार्मिक उत्सव, आदि विषयों पर डॉक्यूमेंट्री बनाने पर अनुभवी फिल्मकारों को 50 फीसदी अनुदान मिलेगा जो अधिकतम 30 लाख होगा.
*अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित होने वाली डॉक्यूमेंट्री के लिए अनुदान की अधिकतम राशि 40 लाख होगी.
इसके अलावा राज्य में फिल्म संबंधी इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए भी अनुदान मिलेगा. इसकी अधिकतम सीमा 1.5 करोड़ होगी.
इस नीति में यह भी तय किया गया है कि बिहार सरकार हर साल बिहार फिल्म महोत्सव का आयोजन करेगी, इस महोत्सव में फिल्मकारों को पुरस्कार भी दिया जाएगा.
इस नीति को लेकर बिहार से जुड़े फिल्मकारों में उत्साह है. 'अनारकली ऑफ आरा' फिल्म से चर्चा में आए निर्देशक अविनाश दास जो मूलतः बिहार के रहने वाले हैं, कहते हैं, "हम लोगों ने 2014 से ही इस फिल्म प्रोत्साहन नीति के लिए प्रयास किया था. तब कई बार इसको लेकर चर्चा शुरू होती, मगर मामला आगे नहीं बढ़ता. बीच में हम लोगों ने मान लिया था कि अब यह नीति बन नहीं पाएगी. ऐसे में जब यह नीति कैबिनेट से पास हो गई है तो लगता है, जैसे चमत्कार हो गया है. यह नीति बिहार के फिल्म से जुड़े कलाकारों के लिए बहुत जरूरी है. अभी यूपी और झारखंड की नीति की वजह से इन दोनों राज्यों में खूब शूटिंग होती है और वहां के कलाकार काफी आगे बढ़े हैं. अब फिल्मकारों का ध्यान बिहार की तरफ जाएगा, यहां की कहानियों, यहां के शूटिंग स्थलों और यहां के कलाकारों को हम फिल्मों में ज्यादा देखेंगे."
वहीं, भोजपुरी, मैथिली और मगही भाषा में फिल्में बनाने वाले फिल्मकार नितिन चंद्रा भी इस नीति से खुश है. वे कहते हैं, "हम लोग काफी समय से लगे थे. जो पॉलिसी आई है, वह पेपर पर काफी अच्छी लग रही है. इसमें फिल्मों के साथ, ओटीटी, स्थानीय भाषा की फिल्में, धारावाहिक आदि विषयों पर बात की गई है. यह अच्छी बात है. मगर इसे लागू करने के लिए भी अच्छे लोगों की जरूरत है. खासकर ऐसे लोग जो सिनेमा को समझते हैं. अगर सरकार ऐसे लोगों को इस नीति में शामिल करती है तो इसका सकारात्मक असर दिखेगा."