बिहार : वोटरों पर निर्वाचन अधिकारी करेंगे आखिरी फैसला, राजनीतिक पार्टियां जता सकती हैं आपत्ति

बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल ने इंडिया टुडे के साथ इस विशेष बातचीत में गहन मतदाता पुनरीक्षण (SIR) से जुड़े कई सवालों के जवाब दिए

बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल
बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल

बिहार में चल रहे गहन मतदाता पुनरीक्षण (SIR) का अंतिम फैसला दस्तावेजों के आधार पर नहीं होगा. कौन मतदाता सूची में रहेगा, कौन नहीं, इस बात का आखिरी फैसला जिलास्तर के निर्वाचन पदाधिकारी ही करेंगे. ये बातें बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल ने इंडिया टुडे से विशेष बातचीत में कही हैं. वे दलील देते हैं कि संविधान ने इस काम के लिए उन्हें ही अधिकृत किया है. अगर लोग चुनाव आयोग द्वारा निर्देशित ग्यारह प्रमाणपत्रों में से एक फॉर्म के साथ जमा करते हैं तो निर्वाचन पदाधिकारी को यह फैसला करने में आसानी होगी.

अगर आप जरूरी प्रमाणपत्र नहीं दे पाते तो क्या? इसके जवाब में गुंजियाल का कहना है, "इसके बावजूद भी आप मतदाता होने की पात्रता रखते हैं या नहीं उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर यह तय करने का अंतिम अधिकार निर्वाचन पदाधिकारियों को ही होगा. हां, इस दौरान मतदाताओं को और राजनीतिक दलों को आपत्ति करने का पूरा अधिकार होगा और उनकी आपत्तियों की पूरी सुनवाई होगी.” 

बिहार इन दिनों गहन मतदाता पुनरीक्षण अभियान की वजह से गहमा-गहमी का माहौल है. जहां विपक्ष ने इस मसले पर लगातार चुनाव आयोग को घेर रखा है और निरंतर विरोध कर रहा है. वहीं चुनाव आयोग द्वारा निर्देशित ग्यारह प्रमाणपत्रों में से एक को जुटाने में आम मतदाताओं के भी पसीने छूट रहे हैं. 

इन्हीं परिस्थितियों में इंडिया टुडे ने बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल से इस पूरे मसले पर लंबी बातचीत की है. हमने उन्हें लगभग सभी विवादित विषयों पर सवाल पूछे और उन्होंने इसका जवाब भी दिया.

विनोद सिंह गुंजियाल ने कहा, “मतदाता पुनरीक्षण कार्य को संपन्न करने की जिम्मेदारी सिर्फ बूथ लेवल अधिकारी(बीएलओ) की ही नहीं है, राजनीतिक दलों की भी उतनी ही जिम्मेदारी है. हर बूथ पर सभी राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट(बीएलए) 50-50 मतदाताओं के फार्म रोजाना जमा करवा सकते हैं. हमने राजनीतिक दलों से हर बूथ पर एजेंट नियुक्त करने के लिए बार-बार कहा है और इस प्रक्रिया के शुरू होने से हमने इन एजेंटों की बकायदा ट्रेनिंग भी करवाई है. इसलिए किसी वीडियो में अगर किसी पार्टी का एजेंट फार्म भरवाता नजर आ रहा है तो उसमें कोई गलत बात नहीं है, वे भी इसका हिस्सा हैं.”

यह पूछे जाने पर कि जिन 11 प्रमाणपत्रों की मांग आयोग कर रहा है, वे ज्यादातर बिहारी मतदाताओं के पास नहीं है, गुंजियाल कहते हैं, “अभी तो हमने कहा है कि अगर आपके पास प्रमाणपत्र हैं तो जमा करवा दें, इससे निर्वाची पदाधिकारियों को फैसला लेने में सहूलियत होगी, अगर प्रमाणपत्र नहीं है तो जो भी प्रमाणपत्र है वह दे दें या सिर्फ फार्म जमा करवा दें. इससे आपका नाम कम से कम इलेक्टोरल रोल में आ जाएगा. इसके बाद जिनके पास उपयुक्त प्रमाणपत्र नहीं होगा उसके बारे में निवार्चन पदाधिकारी अपने पास उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर फैसला लेंगे. वे अमूमन स्थानीय परिस्थितियों को बेहतर समझते हैं, इसलिए उनके लिए यह फैसला लेना आसान होगा.”

गुंजियाल आगे कहते हैं, “जैसे कहा जा रहा है कि दलितों-महादलितों के पास किसी तरह के कागजात नहीं हैं, मगर राज्य के अनुसूचित जाति-जनजाति विभाग के पास 45 लाख ऐसे परिवारों का डीटेल उपलब्ध है. वहां से उनके बारे में निर्णय लिया जा सकेगा. जिला प्रशासन के पास जमीन के दस्तावेज हैं, उससे भी यह तय किया जा सकता है कि मतदाता इस देश का नागरिक है या नहीं. इसके अलावा इंदिरा आवास के रिकार्ड हैं. ऐसे कई दस्तावेज हैं, जिनके आधार पर निर्वाचन पदाधिकारी यह फैसला ले सकता है.”

मगर आधार क्यों नहीं. आधार तो ज्यादातर लोगों के पास है. लोगों के पास राशनकार्ड है, मनरेगा का जॉब कार्ड है. इन्हें क्यों आधार नहीं बनाया जा रहा? इस सवाल पर गुंजियाल कहते हैं, “क्योंकि आधार नागरिकता की पहचान नहीं है. यह स्पष्ट है. चुनाव आयोग को यह अधिकार है कि वह उन्हीं लोगों को मताधिकार दे, जो देश के नागरिक हैं. इसलिए हम ऐसे दस्तावेजों की तलाश कर रहे हैं, जिससे यह साबित हो सके कि मतदाता इस देश का नागरिक है.”

तो क्या कौन मतदाता है कौन नहीं, यह तय करने का आखिरी अधिकार निर्वाचन पदाधिकारियों को ही होगा? ऐसे में क्या वे अपनी मर्जी से सबकुछ तय तो नहीं करने लगेंगे?

गुंजियाल कहते हैं, “देखिये, संविधान ने तो उन्हें इसे तय करने का अधिकार दिया ही है. वे जिलों में एसडीएम, एलआरडीसी और एडीएम स्तर के अधिकारी हैं, स्थानीय परिस्थितियों को बेहतर समझते हैं. हालांकि यह ऐसा अधिकार नहीं है, जिसे चुनौती नहीं दी जा सके. अभी मतदाताओं ने जो फॉर्म जमा करवाए हैं और उससे जो पहला इलेक्टोरल रोल बनेगा उसकी साफ्ट कॉपी राजनीतिक दलों को दी जाएगी और मतदाता भी अपनी आपत्तियां निर्वाचन पदाधिकारी के पास रख सकेंगे. यह प्रक्रिया एक अगस्त से 31 अगस्त तक चलेगी. उसके बाद मतदाता सूची फाइनल होगी.”

जिनके पास उपयुक्त प्रमाणपत्र नहीं हैं, क्या निर्वाचन पदाधिकारी उन्हें नोटिस भेजेंगे? यह पूछने पर गुंजियाल कहते हैं, “अगर वे किसी भी तरह उस मतदाता के दावे से संतुष्ट नहीं होते तो वे नोटिस भेज सकते हैं.”

क्या इस पुनरीक्षण का असली मकसद विदेशी नागरिकों और घुसपैठियों को मतदाता सूची से बाहर करना है? इस सवाल के जवाब में गुंजियाल कहते हैं, “नहीं, हमारा पहला मकसद मृत, दूसरी जगह शिफ्ट कर गए लोग और ऐसे मतदाता जिनका दो जगह मतदाता सूची में नाम है, उन्हें बाहर करना है. आपने देखा ही होगा कि अब तक 1.59 फीसदी मतदाता मृत पाए गए हैं, 2.2 फीसदी स्थायी रूप से दूसरी जगह स्थानांतरित हो चुके हैं और 0.73 फीसदी मतदाताओं के दो जगह नाम पाए गए हैं. जहां तक विदेशी नागरिकों का सवाल है, वे खुद-ब-खुद इस प्रक्रिया से बाहर हो जाएंगे.” फिर नेपाल से शादी होकर बिहार में रह रही महिलाओं का क्या होगा, इस बारे में वे कुछ स्पष्ट नहीं बताते और कहते हैं, “इसका फैसला भी निर्वाचन पदाधिकारियों के हाथ में ही होगा.”    

चुनाव आयोग की तरफ से कहा गया था कि बीएलओ मतदाताओं के पास पहले से भरा हुआ फॉर्म लेकर जाएंगे, मगर कई जगह सादे फॉर्म आ रहे हैं, उनमें भी कई जगह बीएलओ के बदले कोई और व्यक्ति फॉर्म लेकर आ रहा है. इस सवाल पर गुंजियाल कहते हैं, “शहरों में यह काम करना हमारे लिए ज्यादा मुश्किल साबित हो रहा है. यहां लोगों के पते बदलते रहते हैं, इसके अलावा गांव में लोग जिस तरह एक दूसरे के बारे में अच्छी तरह जानते हैं, शहरों में इसके उलट स्थिति है. ऐसे में हमें मजबूरन नगर निगम के अधिकारियों की मदद लेनी पड़ी है. हमने नगर आयुक्तों को अतिरिक्त जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में नामित किया है. वे इसके लिए कूड़ा इकट्ठा करने वालों तक की मदद ले रहे हैं. इसी वजह से हमने शहरों के लिए सादा फार्म भी तैयार करवाये हैं. इसमें कोई गलत बात नहीं है.”

मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर ऐन चुनाव के वक्त इस काम को करने की क्या जरूरत थी? इस सवाल पर गुंजियाल सिर्फ इतना कहते हैं, “देखिए, अब तक 86.32 फीसदी फार्म जमा हो चुके हैं. सबकुछ ढंग से हो रहा है.”

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