हरियाणा विधानसभा चुनाव में यूपी की पार्टियां क्या खेल करने वाली हैं?

चंद्रशेखर आजाद से लेकर मायावती, अखिलेश यादव और जयंत चौधरी तक हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनी-अपनी पार्टियों के लिए संभावनाएं तलाश रहे हैं

अखिलेश यादव, चंद्रशेखर आजाद और जयंत चौधरी
अखिलेश यादव, चंद्रशेखर आजाद और जयंत चौधरी

हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में अपनी पहली सीट जीतने के बाद, चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व वाली आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) अब देश के दूसरे हिस्सों में अपनी राजनीतिक पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रही है. इस तरफ पहला कदम 27 अगस्त को उठाया गया जब चंद्रशेखर आज़ाद ने हरियाणा में विधानसभा चुनावों के लिए देवीलाल के पोते दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ गठबंधन की घोषणा की. 

माना जा रहा है कि हरियाणा में आजाद समाज पार्टी (आसपा) 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. खासतौर पर अंबाला-पलवल बेल्ट की वे सीटें जहां दलितों की अच्छी-खासी आबादी है. उत्तर प्रदेश से पास होने के कारण पार्टी के पास इस क्षेत्र में संगठनात्मक ताकत और कुछ प्रभाव भी है जिसका फायदा चुनाव में मिलने की संभावना जताई जा रही है. 

पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आजाद समाज पार्टी ‘अगली बड़ी बहुजन राजनीतिक ताकत’ के रूप में उभरेगी. हालांकि, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पार्टी के पिछले प्रयास सफल नहीं रहे. हरियाणा में पार्टी का संगठन अपेक्षाकृत नया है, लेकिन उसे हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में यूपी के नगीना लोकसभा क्षेत्र से जीतने के लिए भाजपा, समाजवादी पार्टी और बसपा उम्मीदवारों को हराने वाले अपने अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद की लोकप्रियता का लाभ मिलने की उम्मीद है. जेजेपी-आसपा गठबंधन दलित-जाट वोट बैंक को अपनी ताकत समझ रहा है. ये दोनों समुदाय हरियाणा की आबादी का 45 फीसद हिस्सा हैं. 

पश्च‍िमी यूपी के प्रसिद्ध मेरठ कालेज में अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मनोज सिवाच बताते हैं, “पश्चिमी उत्तर प्रदेश का हरियाणा से रोटी-बेटी का नाता है. आपस में रिश्तेदारियों के चलते यमुना नदी के साथ लगते यमुनानगर, पानीपत, कुरुक्षेत्र, करनाल, सोनीपत, फरीदाबाद और पलवल जिलों के साथ ही गुरुग्राम और भिवानी सहित विभिन्न जिलों की लगभग दो दर्जन विधानसभा सीटें यूपी से प्रभावित होती हैं. इसके अलावा हरियाणा का ब्रज इलाका भी उत्तर प्रदेश से सटा है. यहां भी लोगों की दोनों राज्यों में रिश्तेदारियां है. यूपी की राजनीतिक पार्टियां इन्हीं इलाकों को अपने लिए मुफीद मानकर पांव जमाने की तैया‍री कर रही हैं.” 

वहीं हरियाणा विधानसभा चुनाव में तीसरी बार सत्ता में आने का सपना संजोए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक जिताऊ गठबंधन तलाश रही है. भाजपा की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष नायब सिंह सैनी ने 12 मार्च को मनोहर लाल खट्टर के पद से इस्तीफा देने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. इसके बाद से भाजपा जाट समुदाय को भी विधानसभा चुनाव से पहले साधना चाहती है. इसी ने उत्तर प्रदेश में भाजपा की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के लिए गुंजाइश पैदा की है. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, “रालोद प्रमुख व राज्यसभा सांसद जयंत चौधरी को हरियाणा में दो से तीन सीटें मिल सकती हैं. उनके प्रत्याशियों को जाट बहुल हलकों में उतारने की योजना पर काम चल रहा है.” 

यूपी में लोकसभा का चुनाव भी जयंत ने भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था और अपनी दोनों लोकसभा सीटें जीती थीं. जयंत चौधरी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते हैं. चरण सिंह का नाम हरियाणा के किसानों में सम्मान के साथ लिया जाता है. लखनऊ में कान्यकुब्ज कॉलेज में राजनीति शास्त्र विभाग के प्रोफेसर ब्रजेश मिश्र बताते हैं, “हरियाणा में भाजपा पिछले दस वर्षों से सत्ता में है. ऐसे में सत्ता विरोधी माहौल भी वहां सत्तारूढ़ दल को परेशान कर रहा है. इसके अलावा किसान आंदोलन का भी वहां काफी प्रभाव है. चूंकि चौधरी चरण सिंह का नाम आज भी हरियाणा के किसानों के बीच काफी सम्मान के साथ लिया जाता है, इसी को देखते हुए भाजपा ने राज्य में रालोद को साथ लेकर चलने का मन बनाया है.”

पिछले दो वर्षों से सपा राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए जोर लगा रही है. सितंबर, 2022 में राष्ट्रीय कार्यसमिति में इसके नेताओं ने पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिलाने का संकल्प लिया था. लोकसभा में सीटों के लिहाज से सपा देश की तीसरी राष्ट्रीय पार्टी तो है ही, साथ ही वोट प्रतिशत के लिहाज से उसने भाजपा, कांग्रेस के बाद देश भर में सबसे ज्यादा वोट पाए हैं. इस कामयाबी के बावजूद सपा को इस बात का मलाल है कि वह अभी भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने की मंजिल से दूर है. 

लोकसभा चुनाव में पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) की रणनीति से स्वर्ण‍िम प्रदर्शन करने वाली सपा अब अपने लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ना चाहती है. इसके लिए पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव की नजर आगामी महीनों में चार राज्यों में होने वाले चुनावों पर है. सपा इन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में से तीन में मजबूती से लड़ेगी. महाराष्ट्र, हरियाणा व झारखंड में पार्टी ने अपने लिए उन सीटों की तलाश शुरू कर दी है जो पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंरक्षक) समीकरण के लिहाज से अनकूल हों. सपा नेताओं का मानना है कि अखिलेश यादव की अगुआई वाली पार्टी हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी के अहीर वोट बैंक में सेंध लगा सकती है - ज़्यादातर अहीर खुद को यादव समुदाय का हिस्सा मानते हैं. सपा हरियाणा के छह से आठ विधानसभा क्षेत्रों पर नज़र गड़ाए हुए है, जहां मुसलमानों और अहीरों की अच्छी खासी आबादी है. 

उत्तर प्रदेश विधान परिषद में विपक्ष के पूर्व नेता डॉ. संजय लाठर को अखिलेश यादव ने हरियाणा में जीत की संभावना वाली छह से आठ सीटों की पहचान करने को कहा है. लाठर के मुताबिक सपा गुरुग्राम, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ जिलों में जीतने योग्य सीटों की तलाश कर रही है. हरियाणा विधानसभा चुनाव में सपा कांग्रेस के साथ ‘इंडिया गठबंधन’ के झंडे तले भी चुनाव लड़ सकती है. सपा ने यूपी में विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस को सीटें देने के एवज में हरियाणा समेत अन्य दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनाव में सीटों की मांग की है. जानकारी के मुताबिक सपा हरियाणा में पांच सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छुक है. ब्रजेश मिश्र बताते हैं, “लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ जिस तरह की केमिस्ट्री दिखाई दी उससे सपा और कांग्रेस का हरियाणा और अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव में गठबंधन होने की पूरी संभावना है.”

अपने राजनीतिक जीवन के सबसे कठिन समय से गुजर रहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती हरियाणा के विधानसभा चुनाव में हाथी के लिए संभावनाएं मजबूत करने की जुगत में हैं. इसके लिए उन्होंने पूर्व उपप्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल द्वारा गठित इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से चुनावी गठबंधन किया है. इनेलो हरियाणा में सत्ता से 19 साल से दूर है. इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला प्रदेश में सबसे अधिक पांच बार मुख्यमंत्री बने हैं. 

सत्ता में वापसी के लिए इनेलो ने तीसरी बार बसपा से समझौते का दांव खेला है. गठबंधन में 53 सीटों पर इनेलो चुनाव लड़ेगा और बसपा 37 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. दोनों दलों की रणनीति जाट और पिछड़ा वर्ग समुदाय के गठजोड़ से नए समीकरण बनाकर सत्ता में निर्णायक भूमिका में आने की है. 

इस तरह हरियाणा की राजनीति में इस बार के चुनाव में उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दलों का दखल बढ़ने जा रहा है लेकिन असर कितना होगा, ये चुनाव नतीजे बताएंगे.

Read more!