राजस्थान: कैसे आउटसोर्स ऑनलाइन जॉब परीक्षा कराने में फेल हुई सरकार?
राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने भर्ती परीक्षाओं में धांधली की जांच और गिरफ्तारी के बाद ‘सरकारी भर्ती मॉडल’ की कमजोरी को उजागर कर दिया है

राजस्थान में नौकरशाह अक्सर सरकारी भर्तियों में ऑनलाइन परीक्षा शुरू करने के लिए खुद की पीठ थपथपाते रहे हैं. उनका कहना है कि यह सबसे ज्यादा पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त तरीका है.
हालांकि, 15 साल पहले जब यह व्यवस्था शुरू की गई थी, तब भी इसकी निष्पक्षता को लेकर संदेह था. उस वक्त भी आरोप लगे थे कि इस व्यवस्था में मोटी रिश्वत देकर आसानी से परीक्षा के नतीजों में हेराफेरी किया जा रहा है.
इस साल राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप यानी एसओजी ने सरकारी भर्ती परीक्षा धांधली के एक मामले में जांच के बाद पूरी भर्ती प्रक्रिया की खामियों को जगजाहिर कर दिया.
पुलिस की जांच में पता चला कि भर्ती प्रक्रिया में प्राइवेट कंपनियों को शामिल करने से हेरफेर कराने का रास्ता साफ हो गया है. मार्च के आखिरी हफ्ते में राजस्थान एसओजी ने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज यानी TCS के मैनेजर जगजीत सिंह और दो अन्य को 2018 में जेल वार्डन की भर्ती परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक करने के आरोप में गिरफ्तार किया है.
पुलिस के मुताबिक, सिंह ने कथित तौर पर दो दोस्तों के जरिए बिचौलियों को 60 लाख रुपए में प्रश्नपत्र बेचा, जिन्होंने कथित तौर पर उम्मीदवारों को इसे बेचकर 2 करोड़ रुपए कमाए.
इस मामले में अब तक 20 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. विडंबना यह है कि यह परीक्षा जोधपुर में सरदार पटेल पुलिस, सुरक्षा और आपराधिक न्याय विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित की गई थी.
जांच में पता चला कि परीक्षा से पहले ही उम्मीदवारों को आंसर की दे दी गई थी, जिससे भर्ती प्रक्रिया में सीधेतौर पर गड़बड़झाला हुआ. इसके कारण परीक्षा रद्द कर दी गई और बाद में इसमें शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई.
डिजिटल और ऑनलाइन भर्ती परीक्षाओं में लीकेज का पर्दाफाश करते हुए एसओजी और जयपुर पुलिस ने जनवरी में 14 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया. गिरफ्तारी के बाद पता चला कि अभ्यर्थियों की ओर से परीक्षा देने के लिए 'सॉल्वर' को काम पर रखा गया था.
इस ऑपरेशन ने नेशनल सीड्स कॉरपोरेशन लिमिटेड की एग्री ट्रेनी भर्ती परीक्षा के दौरान कुछ अभ्यर्थियों को नकल कराने के लिए रिमोट स्क्रीन-शेयरिंग सॉफ्टवेयर में हेरफेर की.
गिरोह ने अपनी सेवाओं के लिए अभ्यर्थियों से 50,000 रुपए का अग्रिम भुगतान लिया, जिसमें प्रश्नों को देखने के लिए स्क्रीन तक दूरस्थ पहुंच और एक 'पेपर सॉल्वर' शामिल था, जो तुरंत सही उत्तर ढूंढ लेता था.
राजस्थान में हाल ही में हुई जांच में भर्ती परीक्षा के पेपर लीक होने की एक के बाद एक कई घटनाएं सामने आई हैं, जिससे परीक्षा प्रक्रिया की ईमानदारी पर सवाल उठ रहे हैं.
उदाहरण के लिए दिसंबर 2024 में परीक्षा के पेपर लीक करने में उनकी भूमिका के लिए तीन संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया था. उनमें से एक बीकानेर में मंडी विकास समिति का वरिष्ठ सहायक था, जिसने कथित तौर पर परीक्षा से पहले प्रश्नपत्रों को एक्सेस करके उसे कुछ अभ्यर्थियों को वितरित किया था.
एक अन्य महत्वपूर्ण मामले में, एसओजी ने तुलसाराम कलेर को गिरफ्तार किया, जिसकी पहचान पिछले 12 साल में कई परीक्षा पेपर लीक कराने के कथित मास्टरमाइंड के रूप में की गई. पुलिस जांच में ये भी पता चला कि कलेर 1994 में सेवा से बर्खास्त होने वाला पूर्व पुलिसकर्मी है, जो कथित तौर पर उम्मीदवारों को परीक्षा से पहले प्रश्नपत्र लीक करवाकर उस छात्रों को उपलब्ध करवा रहा था. इतना ही नहीं वह कपड़ों में ब्लूटूथ डिवाइस छिपाकर भर्ती परीक्षाओं में नकल कराने में भी मदद करता था.
जांच से पता चला है कि पिछले 10-15 सालों में आयोजित की गई ज्यादातर परीक्षाओं में गड़बड़ी की गई है. एसओजी प्रमुख वीके सिंह ने हाल ही में कहा कि अगर जांच लगातार जारी रही तो अकेले सांचौर और आस-पास के इलाकों से ही एक हजार से ज्यादा पेपर घोटालेबाजों और लाभार्थियों की गिरफ्तारी हो सकती है.