ओडिशा कैसे बन रहा नकली दवाओं का आसान शिकार?
ओडिशा में पकड़ी जाने वाली ज्यादातर नकली दवाएं दूसरे राज्यों से यहां आती हैं

ओडिशा में आम लोगों की सेहत से जुड़ी खतरनाक जानकारी सामने आई है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मुकेश महालिंग ने ओडिशा विधानसभा में एक लिखित जवाब पेश किया है जिसके मुताबिक बीते चार वर्षों में राज्य में कुल 168 नकली और 388 घटिया दवाइयों की पहचान की गई है.
साल 2021 से 2024-25 के बीच, अधिकारियों ने 2.5 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की नकली दवाइयां जब्त की हैं, जो खुले बाजार में फल-फूल रहे अवैध दवा कारोबार के बड़े पैमाने को दिखाती हैं. स्वास्थ्य मंत्री के मुताबिक 2021 में 79, 2022 में 64, 2023 में 14 और 2024 में अब तक 11 नकली दवाइयां पकड़ी गई हैं. इसके अलावा, सैकड़ों निम्न-स्तरीय दवाइयां मानक परीक्षण मानदंडों पर खरा नहीं उतर पाईं. इस खुलासे के बाद आम लोगों में चिंता बढ़ गई है, क्योंकि बड़ी संख्या में लोग आवश्यक दवाइयों के लिए स्थानीय दवा दुकानों पर निर्भर रहते हैं.
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, ये नकली दवाएं उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कोलकाता और हैदराबाद जैसे दूसरे राज्यों से ओडिशा में सप्लाई की गई थीं. चौंकाने वाली बात है कि इस दौरान ओडिशा स्टेट मेडिकल कॉरपोरेशन ने जो दवाएं खरीदीं, उनमें से 100 से ज्यादा दवाएं घटिया पाई गईं. इसके बाद पिछले तीन वर्षों में 4 सप्लायर्स को ब्लैकलिस्ट किया गया है. ब्लैकलिस्ट की गई फार्मास्यूटिकल कंपनियों में एलए केमिको प्राइवेट लिमिटेड कोलकाता, स्वरूप फ़ार्मास्यूटिकल प्राइवेट लिमिटेड यूपी. आईव्स ड्रग्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड मध्य प्रदेश और एलायंस बायोटेक हैदराबाद शामिल है.
डॉ. महालिंग ने जानकारी दी है, “वित्तीय वर्ष 2022-23 में कुल 45 टैबलेट और रिंगर लैक्टेट, जिसमें जिंक सल्फेट और सोडियम लैक्टेट शामिल हैं, को घटिया घोषित किया गया था. वहीं वित्तीय वर्ष 2023-24 में 32 दवाएं फर्जी पाई गईं और 2024-25 में 26 नकली दवाएं मिलीं.”
इससे पहले कटक में 6 सितंबर 2022 को एक नकली फार्मास्यूटिकल कंपनी द्वारा निर्मित नकली बीपी दवाएं टेल्मा एएम और टेल्मा-40 की बिक्री सामने आने के बाद राज्य सरकार ने इस समस्या पर रोक लगाने के लिए एसटीएफ का गठन किया था. इसके बाद 28 फरवरी 2023 को एसटीएफ को मेडली फ़ार्मास्यूटिकल्स के नाम पर एक नकली कंपनी द्वारा बनाई गई नकली O2 टैबलेट्स की बिक्री का पता चला. यह दवा दो एंटीबायोटिक्स के संयोजन के रूप में, बैक्टीरियल और परजीवी संक्रमण के इलाज में उपयोग होती है.
इसके बाद एसटीएफ ने जुलाई 2023 में अंगुल में सन फ़ार्मास्यूटिकल इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड के नाम पर एक नकली कंपनी द्वारा निर्मित नकली पैंटोसीड DSR की बिक्री का पता लगाया. पैंटोसीड DSR का उपयोग गैस, एसिडिटी और पेप्टिक अल्सर के इलाज में होता है.
ओडिशा कैसे बन रहा आसान शिकार
ओडिशा का दवा उत्पादन उद्योग बहुत छोटा है. लगभग 4.5 करोड़ की आबादी वाले राज्य में केवल 60 के आसपास लाइसेंसधारी दवा निर्माता हैं. इनमें से अधिकांश सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) सेक्टर में हैं, जो जेनेरिक दवाएं और इंजेक्टेबल्स (इंजेक्शन से दी जाने वाली दवाइयां) बनाते हैं. इसका मतलब है कि राज्य को बाहरी स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे वह नकली उत्पादों के जोखिम के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है. दवा निर्माण और सप्लाई चेन इतनी जटिल है कि निम्न-स्तरीय या फर्जी दवाओं का पता लगाना बेहद कठिन काम है.
जन स्वास्थ्य अभियान से बीते 26 साल से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता गौरांग महापात्रा भी इस बात की पुष्टि करते हैं. वे बताते हैं, "पहले ओडिशा में 57 ड्रग कंपनियां थी, जो दवाई यहीं बनाती थीं. लेकिन अब मात्र 6 बची हैं, जो दवाई तो बनाती हैं, लेकिन हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड की कंपनियों के लिए. इसके अलावा ऐसी फर्म भी हैं जो यूपी, हैदराबाद आदि की कंपनियों की दवाई की पैकेजिंग यहां कर रही हैं. ऐसे में राज्य सरकार की मशीनरी के लिए इन पर निगरानी रखना इतना आसान नहीं होता.”
महापात्रा आरोप लगाते हुए यह भी कहते हैं कि सरकार खुद से आगे बढ़ कर इन दवा कंपनियों की निगरानी नहीं करती, शिकायत होने पर ही जांच होती है. इससे आसानी से समझा जा सकता है कि आम आदमी भला कैसे समझेगा कि कोई दवा नकली है या असली. ऐसे में नकली दवाओं को लेकर शिकायत भी नहीं होती है. दूसरी बात, अगर सरकार आगे बढ़ कर किसी दवाई की जांच करती भी है, तो उसकी एक खेप की जांच होती है, दूसरे खेप की तो बिल्कुल भी नहीं. पहली खेप की जांच के बाद सरकार मान लेती है कि सब सही है.
साल 2023 में भुवनेश्वर के एक मरीज ने ड्रग कंट्रोलर विभाग के पास एक शिकायत की. जिसमें उन्होंने बताया कि वे हाई ब्लड प्रेशर की जो दवाई ले रहे हैं, उससे फायदा नहीं हो रहा रहा. विभागीय जांच में पता चला कि जिस दवाई का वे सेवन कर रहे थे, वह नकली था. पूरे मामले में SIT का गठन किया गया. जिसने यूपी से कुछ आरोपियों को गिरफ्तार किया. लेकिन इस मामले में भी अभी तक किसी को सजा नहीं हो सकी है.
हाल ही में नकली ORS के पैकेट भी ओडिशा में बड़ी संख्या में पाए गए हैं. स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ दिनों में विभिन्न कंपनियों के करीब 7.92 लाख भ्रामक लेबल वाले ORS पैक, जिनकी कीमत लगभग 4 करोड़ रुपये है, दवा दुकानों से वापस मंगाए गए हैं. यह अभियान मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) किट की अवैध बिक्री, गर्भपात की गोलियों के दुरुपयोग और असुरक्षित सेल्फ-मेडिकेशन के खिलाफ हुई कार्रवाई के बाद शुरू किया गया. इस मामले पर ओडिशा की ड्रग कंट्रोलर मामिना पटनायक कहती हैं, "स्वास्थ्य सुरक्षा उपायों के तहत, ड्रग्स कंट्रोल निदेशालय के अधिकारियों की अलग-अलग टीमें सभी जिलों में छापेमारी कर रही हैं, ताकि दवा दुकानों से ऐसे भ्रामक ORS पैकेटों का पता लगाया जा सके और उन्हें वापस लिया जा सके.’’