राजघरानों की राजनीति को कैसे बदल रहा मेवाड़ राजवंश का यह वारिस
QR कोड के जरिए परियोजनाओं की जानकारी से लेकर भव्य महाराणा प्रताप टूरिज्म सर्किट तक BJP के विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ अपने दखल से पारंपरिक राजनीति को बदल रहे हैं

राजस्थान में राजवंश से जुड़े होने का मतलब लंबे समय से राजनीतिक प्रतीकवाद भर रहा है. नाथद्वारा से पहली बार चुने गए BJP विधायक और मेवाड़ राजवंश के वारिस विश्वराज सिंह मेवाड़ कुछ अलग करने की कोशिश कर रहे हैं.
अपने कार्यकाल के बामुश्किल पहले दो सालों में ही विश्वराज ऐसे विधायक के तौर पर उभरे जो लीक से हटकर हैं. ऐसे विधायक जो डिजिटल जवाबदेही की भाषा बोलते हैं, लेकिन साथ ही सरकार की तरफ से भव्य तथा दिखावटी धरोहर परियोजनाओं को तरजीह दिए जाने और शिक्षकों पर गैर-शिक्षण कामों का बहुत ज्यादा बोझ डालने के अलावा जल निकायों को नुक्सान पहुंचाने वाले अतिक्रमणों के प्रति सरकारी उदासीनता को चुनौती देते हैं.
विश्वराज का सबसे जाहिर दखल अभी तक सीधा-सादा रहा है. नाथद्वारा और उसके आसपास के मंडलों में अब लोक निर्माण कार्यों के शिलान्यास पत्थरों और स्मृति पट्टिकाओं पर QR कोड लगे हैं जिनसे परियोजना की लागत, मंजूरी देने वाले प्राधिकार, क्रियान्वयन एजेंसी और समय सीमाओं सरीखे ब्योरों की जानकारी हासिल की जा सकती है. इसका मकसद पारदर्शिता बताया जाता है, ताकि यह पक्का किया जा सके कि विकास के काम अब और अपारदर्शी न रहें या जानकारियों के लिए राजनैतिक बिचौलियों पर निर्भर न रहना पड़े.
देरी, लागत में औनी-पौनी बढ़ोतरी और उलझे हुए स्पष्टीकरणों के आदी हो चुके निर्वाचन क्षेत्र में QR कोड की पहल अहम बदलाव लेकर आई. इसकी बदौलत जवाबदेही दफ्तरों से निकलकर सार्वजनिक जगहों पर आ गई, जहां लोग स्वतंत्र रूप से दावों की तस्दीक कर सकते हैं. पहली बार बने विधायक की तरफ से यह व्यवस्थागत बदलाव का असामान्य कदम था. ऐसा कदम जो संरक्षण की पारंपरिक राजनीति के ऊपर सांस्थानिक छानबीन को प्राथमिकता देता है.
नियम-संयम पर यह जोर विचाराधारा से भी जुड़ा है और निजी भी है. राजवंशीय उपनाम होने के बावजूद विश्वराज सिंह के परिवार का मेवाड़ कुल शाही शान-शौकत से दूर जिंदगी बसर करता रहा है. मेवाड़ का राजपरिवार दशकों से पुश्तैनी संपत्तियों को लेकर लंबी अदालती लड़ाई में उलझा है. इस विवाद की वजह से उनके पिता और पूर्व सांसद दिवंगत महेंद्र सिंह मेवाड़ और उनके बिल्कुल नजदीकी परिवार का राजवंशीय संपत्तियों पर नियंत्रण न के बराबर रह गया.
मुकदमेबाजी और हाशिये पर धकेल दिए जाने के उन सालों ने ऐसी जिंदगी गढ़ी जिस पर विरासत में मिले विशेषाधिकारों के बजाय निस्बतन सादगी की छाप थी. इसी अनुभव की बदौलत विश्वराज अब सार्वजनिक रूप से इस बात पर जोर देते हैं कि इतिहास का सम्मान तमाशे से नहीं बल्कि उसके वास्तविक अर्थ में किया जाना चाहिए.
यह वैश्विक नजरिया तब भी सामने आया जब उन्होंने प्रस्तावित महाराणा प्रताप टूरिज्म सर्किट को लेकर आपत्तियां उठाईं. राजस्थान सरकार की इस परियोजना में 16वीं सदी के इस योद्धा से जुड़े स्थलों पर भव्य इमारतों, व्याख्या केंद्रों और वास्तुशिल्पी स्थापत्यों की परिकल्पना की गई है. महाराणा के वंशज विश्वराज ने कहा कि ऐसी भव्यता और शानशौकत महाराणा प्रताप की सादगी, प्रतिरोध और त्याग की विरासत का निरादर करती है. उन्होंने ये आपत्तियां उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी के साथ एक बैठक में विधिवत उठाईं और आगाह किया कि महलनुमा इमारतों से इतिहास के ऐसे दृश्य प्रदर्शन या तमाशे में बदल जाने का खतरा है जिसका कोई नैतिक मतलब नहीं होगा.
विश्वराज का कहना है कि महाराणा प्रताप का स्मरण और कीर्तिगान करने के लिए भव्यता की नहीं बल्कि संयम की जरूरत है. उन्होंने ज्यादा विनम्र और शालीन मॉडल का प्रस्ताव रखा, जिसमें सीमित बुनियादी ढांचा हो, ऐतिहासिक रूप से सटीक व्याख्याएं हों, और बहुत-से स्मारकों के निर्माण के बजाय एक ही अच्छे ढंग से संजोया गया संग्रहालय हो. उन्होंने किसी भी डिजाइन को अंतिम रूप देने से पहले इतिहासकारों, स्थानीय समुदायों और पारंपरिकता को तरजीह देने वालों के साथ सलाह-मशविरा करने की जरूरत पर भी जोर दिया.
विश्वराज की दलीलों को तब और भी खासा समर्थन मिला जब मौजूदा धरोहर स्थलों की उपेक्षा को लेकर व्यापक चिंताएं व्याप्त हैं. महाराणा प्रताप की विरासत में केंद्रीय महत्व रखने वाली जानी-मानी रणभूमि हल्दीघाटी की हालत उसकी प्रतीकात्मक अहमियत और सैलानियों के लगातार आने के बावजूद खराब है. टूटे-फूटे रास्तों, नाकाफी साइनबोर्ड और अधकचरे रखरखाव लगातार इस स्थल की गरिमा को नुक्सान पहुंचा रहे हैं. विश्वराज ने हल्दीघाटी को सबूत की तरह सामने रखते हुए बताया कि राजस्थान की धरोहर नीति मौजूदा जगहों के संरक्षण के बजाय नई परियोजनाओं की घोषणाओं को प्राथमिकता देती है.
नाथद्वारा के विधायक धरोहर के अलावा सड़क कनेक्टिविटी और नागरिक सुविधाओं से लेकर प्रशासनिक प्रतिक्रिया तक निर्वाचन क्षेत्र के कई मुद्दे उठाते रहे हैं. टकराववादी राजनीति के बजाय उन्होंने अक्सर ये मुद्दे लिखित अभिवेदनों, औपचारिक आपत्तियों और सार्वजनिक स्पष्टीकरणों की शक्ल में उठाए. उनके इन तरीकों से व्यवस्था के इर्द-गिर्द काम करने के बजाय व्यवस्था भीतर काम करने के सोचे-समझे चयन की झलक मिलती है.
राजनैतिक रूप से विश्वराज का उदय अपने आप में राजवंश से जुड़े होने का विस्तार नहीं था. BJP के अंदरूनी लोगों का कहना है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के वरदहस्त से नाथद्वारा का टिकट हासिल करके राजनीति में प्रवेश किया. इसी सांस्थानिक समर्थन की बदौलत उनकी पत्नी महिमा कुमारी मेवाड़ का राजनैतिक मार्ग प्रशस्त हुआ और अब वे राजसमंद से सांसद हैं. जानकारों का कहना है कि उनका राजनैतिक उभार ऐसे बदलाव को दर्शाता है जिसमें विरासत को स्वीकार तो किया जाता है लेकिन वैधता वंशानुगत अधिकार के बजाय पार्टी संगठन से ही मिलती है.
BJP के अंदरूनी हलकों में विश्वराज के तौर-तरीकों पर बहुत करीब से नजर रखी जा रही है. यहां तक कि छोटे से छोटे लोक निर्माण कार्य में भी पारदर्शिता पर उनका जोर निर्वाचन क्षेत्र के स्तर पर आमफहम व्यक्तित्व-केंद्रित राजनीति के विपरीत है. साथ ही बड़ी और प्रतिष्ठा से जुड़ी परियोजनाओं पर सवाल उठाने की उनकी तत्परता विकास के उस मॉडल को चुनौती देती है जो अक्सर पैमाने को ही सफलता मानता है.
नतीजों पर कोई भी फैसला देना अलबत्ता अभी जल्दबाजी होगी. QR कोड बस उतने ही असरदार हैं जितना डेटा वे सामने लाते हैं और धरोहरों को लेकर आपत्तियां तभी मायने रखती हैं जब परियोजना के अंतिम डिजाइन पर उनका असर पड़े. मगर इस शुरुआती पायदान पर भी विश्वराज ने आम ढर्रे की राजनीति से हटकर चलने का संकेत तो दे ही दिया है.
इतिहास से ओतप्रोत राज्य में नाथद्वारा के विधायक एक असहज प्रश्न उठा रहे हैं, और वह यह कि विरासत का जश्न भव्यता से मनाया जाए या संयम और जवाबदेही से उसका सम्मान किया जाए? उनके शुरुआती कदम ऐसे उत्तर की तरफ इशारा करते हैं जिसकी जड़ें जितनी जिए गए अनुभव में हैं उतनी ही राजवंश से जुड़े होने में भी हैं. यह ऐसा उत्तर भी है जो राजस्थान में सत्ता, धरोहर और राजकाज के संधिस्थल को नए सिरे से परिभाषित कर सकता है.