कांग्रेस का कर्नाटक संकट : सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच सुलह कब तक चल सकती है?

कर्नाटक सरकार आधा कार्यकाल पूरा कर चुकी है और डी.के. शिवकुमार खेमा दावा कर रहा है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया बाकी आधे कार्यकाल की कमान सौंपने के वादे से पीछे हट रहे हैं

karnataka cm siddaramaiah and Deputy CM DK Shivkumar
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार हाल ही में साथ में नाश्ता कर संकेत दिया था कि उनके बीच सब ठीक चल रहा है

करीब 30 महीने पहले सिद्धारमैया के नेतृत्व में कांग्रेस के कर्नाटक में सत्ता संभालने के बाद से ही यह सवाल अक्सर सार्वजनिक तौर पर चर्चा का विषय बना रहा कि मुख्यमंत्री अपना पूरा पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाएंगे या नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि सिद्धारमैया के डिप्टी डी.के. शिवकुमार को सीएम की कुर्सी का दावेदार माना जा रहा था, लेकिन उन्हें सेकंड-इन-कमांड बनाकर ही संतुष्ट कर दिया गया.

हालांकि, समय-समय पर अटकलें लगाई जाती रहीं कि आधा कार्यकाल पूरा होने के बाद नेतृत्व में बदलाव होगा, और इस चर्चा को अक्सर कांग्रेस के विधायक ही हवा देते रहे हैं. लेकिन पार्टी हाईकमान ने इस बात को कभी आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया. इसके अलावा, सिद्धारमैया ने कई मौकों पर कहा है कि उन्हें पूरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया है.

लेकिन जैसे ही नवंबर में उनकी सरकार ने आधा कार्यकाल पूरा किया, डिप्टी सीएम शिवकुमार को कमान सौंपने की मांग तेज हो गई. ऐसे में यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि कांग्रेस इस स्थिति से कैसे निपटेगी. दरअसल, पार्टी के लिए कई वजहों से इस पर कोई फैसला लेना मुश्किल काम हैं. इनमें एक बड़ा कारण यह भी है कि 78 वर्षीय सिद्धारमैया एक बेहद लोकप्रिय नेता हैं, खासकर OBC, अल्पसंख्यकों और दलितों के बीच, जो कर्नाटक में कांग्रेस का मुख्य जनाधार है.

पिछले हफ्ते, शिवकुमार के भाई डी.के. सुरेश ने CM बदलने के मुद्दे पर एक नया दांव चला और कहा कि सिद्धारमैया ऐसे व्यक्ति हैं जो “अपने वादे पूरे करते हैं.” जाहिर तौर पर इसका इशारा एक कथित समझौते की ओर था, जिसमें कार्यकाल के बीच में सत्ता साझा करने पर सहमति बनी थी और जिसके बारे में साफ तौर पर सिर्फ कांग्रेस के बड़े नेताओं को ही पता था. इस पूरे मामले में सियासी दिलचस्पी तब और बढ़ गई जब खुद शिवकुमार ने 25 नवंबर को पहली बार एक ऐसे ‘समझौते’ की बात की जिसके बारे में सिर्फ कुछ ही लोगों को पता था.

पिछले एक साल से सिद्धारमैया और उनके करीबी कहते रहे हैं कि मई 2023 में कार्यकाल के बीच नेतृत्व बदलाव पर कोई समझौता नहीं हुआ था. हालांकि, इस बात की तो तारीफ करनी होगी कि सत्तासीन इस जोड़ी ने अब तक बेहद सावधानी से काम किया है और अपने कामकाजी रिश्ते बहुत ही समन्वित बनाए रखे हैं. हालांकि, उनका आंतरिक तनाव 27 नवंबर को तब उभरकर सामने आया जब सिद्धारमैया और शिवकुमार सोशल मीडिया पर कुछ अजीब मैसेज के साथ कथित तौर पर एक-दूसरे पर हमला करने लगे.

शिवकुमार ने X पर एक पोस्ट में कहा, “अपना वचन निभाना दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है. चाहे कोई जज हो, प्रेसिडेंट हो या कोई और. यहां तक मैं खुद भी इसमें शामिल हूं. सभी को अपनी कही बात पर अमल करना होगा. वचन की शक्ति ही विश्व शक्ति है.”

कुछ घंटों बाद सिद्धारमैया का जवाब आया, “कोई बात तब तक ताकत नहीं है जब तक वह लोगों के लिए दुनिया को बेहतर न बनाए.” उन्होंने अपनी सरकार की उपलब्धियों पर एक रिपोर्ट कार्ड भी दिया, जिसमें कांग्रेस के 2023 के चुनाव घोषणापत्र में चुनाव पूर्व किए गए 593 वादों में से 243 को पूरा करने का जिक्र था.

मुख्यमंत्री ने कहा, “कर्नाटक के लोगों का दिया जनादेश एक घटना नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है जो पूरे पांच साल चलने वाली है. कांग्रेस पार्टी, जिसमें मैं भी शामिल हूं, अपने लोगों के कल्याण, निरंतरता और और साहस के साथ अपनी बात पर चल रही है. कर्नाटक के लिए हमारे वादा कोई नारा नहीं बल्कि यही हमारे लिए दुनिया में सब कुछ हैं.”

इस सबके बीच जाति समूहों ने भी अपनी नाराजगी सामने रखी. 27 नवंबर को राज्य वोक्कालिगारा संघ ने कांग्रेस को चेताया कि अगर उसके समुदाय से आने वाले शिवकुमार के साथ कोई अन्याय हुआ तो पार्टी को अंजाम भुगतना होगा. इस पर सिद्धारमैया समर्थक- कर्नाटक पिछड़ा वर्ग संघ ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि अगर उन्हें सत्ता से हटाया गया तो AHINDA समूह आंदोलन करेंगे.

यहां AHINDA शब्द कन्नड़ में ‘अल्पसंख्यतरु, हिंदुलिदावरु मट्टू दलितरु’ का संक्षिप्त रूप है, जिसका मतलब ‘अल्पसंख्यक, पिछड़े वर्ग और दलित’ हैं.

यह देखते हुए कि कुर्सी का झगड़ना और उस पर अनिश्चितता की स्थिति पार्टी के लिए नुकसानदायक हो सकती है, कांग्रेस आलाकमान ने दोनों को संयम बनाए रखने की नसीहत दी. 29 नवंबर को AICC के राष्ट्रीय महासचिव के.सी. वेणुगोपाल के सुझाव के बाद सिद्धारमैया ने शिवकुमार को नाश्ते पर बुलाया. इसके बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दोनों नेताओं ने साफ किया कि उनमें कोई मतभेद नहीं हैं. सिद्धारमैया ने कहा, “एकता बनी रहेगी, हम एकजुट हैं और डी.के. शिवकुमार और मेरे बीच कोई मतभेद नहीं है.” इस दौरान शिवकुमार उनके बगल में बैठे थे.

सिद्धारमैया के मुताबिक, यह बैठक पिछले एक माह से जारी “कन्फ्यूजन” दूर करने के लिए बुलाई गई थी. उन्होंने कहा कि 8 दिसंबर को कर्नाटक विधानसभा का सत्र शुरू होना है, इसलिए तस्वीर साफ करने और विपक्ष से निपटने की रणनीति बनाने की जरूरत है, जो अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कर रहा है. संयोग से विपक्षी दलों BJP और जनता दल (सेक्युलर) ने भी 29 नवंबर को एक समन्वय बैठक की थी. सिद्धारमैया ने यह भी कहा कि शिवकुमार के साथ बैठक में 2026 में प्रस्तावित स्थानीय निकाय चुनावों की रणनीति और 2028 में होने वाले विधानसभा चुनाव के रोडमैप पर भी चर्चा हुई.

शिवकुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “जहां तक सियासी मामलों की बात है, नेतृत्व का मसला है, हम पार्टी आलाकमान के कहे मुताबिक ही चलते हैं, हम पार्टी के वफादार सिपाही हैं.” सिद्धारमैया ने भी जोड़ा, “आलाकमान जो भी फैसला लेगा, हम उसे मानेंगे.”

संसद के शीतकालीन सत्र और कर्नाटक में विधानसभा का सत्र शुरू होने से पहले फिलहाल तो यही लगता है कि कांग्रेस ने अपनी इस सशक्त सियासी जोड़ी को मतभेद दूर करने के लिए मना लिया है. लेकिन असली सवाल ये है कि उनका समझौता कितने समय तक टिका रहेगा.

- अजय सुकुमारन

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