दिल्ली में आप की हार गुजरात में कांग्रेस के लिए कितनी अच्छी खबर है?
गुजरात की दो-दलीय राजनीति में पिछले पांच सालों में बड़ा बदलाव आया है, जिसमें आप के उदय से कांग्रेस का वोट शेयर कम हुआ तो वहीं बीजेपी को इसका फायदा मिला

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) की करारी हार के बाद गुजरात में कांग्रेस थोड़ा बेहतर महसूस कर रही होगी. यहां की राजनीति में बीते वक्त में काफी बदलाव देखने को मिला है. दरअसल 2020 में दिल्ली चुनावों में लगातार दूसरे उत्साहजनक प्रदर्शन के बाद आप ने गुजरात और गोवा में दोगुना जोर लगा दिया था.
गुजरात में पार्टी को थोड़ी सफलता भी मिली जिसने दशकों पुरानी दो-दलीय राजनीति से इतर एक विकल्प दिया. आप ने 2021 में कई स्थानीय निकाय चुनाव लड़े, कांग्रेस के वोट-शेयर में सेंध लगाई और अप्रत्यक्ष रूप से सत्तारूढ़ बीजेपी को फायदा पहुंचाने का चलन शुरू किया. उसी साल सूरत नगर निगम के चुनावों में भी आप ने 120 में से 27 सीटें जीती थी और बाकी सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं. इस चुनाव में कांग्रेस खाता भी नहीं खोल सकी थी.
2022 में गुजरात विधानसभा चुनावों में आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने काफी प्रचार किया. उनकी पार्टी ने 182 सीटों में से केवल पांच सीटें जीतीं, लेकिन कुल वोटों का 12.92 फीसद हिस्सा हासिल किया. कांग्रेस ने 17 सीटें जीतीं और उसका वोट-शेयर पिछले चुनाव (2017) की तुलना में 14 फीसद घटकर 27.28 पर आ गया.
विपक्षी वोटों के इस बंटवारे से बीजेपी की सीटें बढ़कर 156 हो गईं. यह गुजरात में बीजेपी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तो था ही, 2017 के विधानसभा चुनावों की तुलना में भी उसके पास अब 57 ज्यादा सीटें आ गईं. जबकि पार्टी का वोट-शेयर केवल 3.45 फीसद ही बढ़ा था. इधर गुजरात में एक नया राजनैतिक विकल्प मिलने से कांग्रेस के 41 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.
गुजरात के चुनावी मैदान में आप की मौजूदगी ने विधानसभा में कांग्रेस की ताकत को इस हद तक कम कर दिया कि उसे विपक्ष के नेता का पद नहीं दिया गया. पिछले दो सालों में आप का एक और कांग्रेस के पांच विधायक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.
राज्य में कांग्रेस के लिए मुसलमान और आदिवासी समुदाय मूल आधार रहे हैं. 2022 में वोटों के बंटवारे के अलावा आप ने इसके भी बड़े हिस्से को कांग्रेस से छीन लिया. चैतर वसावा आम आदमी पार्टी के ऐसे लोकप्रिय विधायक हैं जिन्होंने अनुसूचित जनजाति-आरक्षित डेडियापाड़ा सीट जीती और क्षेत्र की कम से कम पांच अन्य सीटों पर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया. हालांकि, गुजरात में आप के अध्यक्ष इसुदान गढ़वी सौराष्ट्र के जामनगर के पास खंबालिया से हार गए और इसी तरह सूरत शहर की कटारगाम सीट से संयुक्त महासचिव गोपाल इटालिया भी हार गए.
गुजरात कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार, 2022 में हार के बाद जिस चीज ने मामले को और बदतर बना दिया, वह पिछले साल राज्य में आप और कांग्रेस के बीच इंडिया ब्लॉक के तहत लोकसभा चुनाव का गठबंधन था. आप ने भरूच और भावनगर सीटों पर चुनाव लड़ा और दोनों ही सीटों पर हार गई.
भरूच से आने वाले एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता कहते हैं, "हालांकि दोनों पार्टियों के बीच वोटों का बंटवारा नहीं हुआ, लेकिन जनता तक अपनी बात पहुंचाने में दिक्कत हुई. उदाहरण के लिए, मुस्लिम बहुल भरूच शहर और आसपास के गांवों में हमने आप के लोकसभा उम्मीदवार चैतर वसावा के लिए प्रचार किया लेकिन 10 महीने बाद हम स्थानीय निकाय चुनावों के लिए उसी जगह आप उम्मीदवार के खिलाफ प्रचार करेंगे. इससे हमारे मतदाताओं में भ्रम की स्थिति पैदा होती है."
कांग्रेस नेता का इशारा 16 फरवरी को होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों की ओर है, जिसमें 66 नगर पालिकाएं, जूनागढ़ नगर निगम और तीन तालुका पंचायतें शामिल हैं. दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों का इन चुनावों पर तत्काल असर दिखने की उम्मीद है. 16 नगर निगमों और शेष तालुका और जिला पंचायतों के चुनाव 2026 की शुरुआत में होंगे.
दरअसल आम आदमी पार्टी जब 2020 के दिल्ली चुनाव में शानदार जीत के बाद गुजरात पहुंची तो वहां कांग्रेस और बीजेपी का विकल्प तलाश रहे पाटीदार युवाओं को उसने तुरंत आकर्षिक हुआ और वे बड़ी संख्या में उसमें शामिल हुए. दक्षिणी गुजरात में यह संख्या कहीं ज्यादा थी. पार्टी में आरक्षण की मांग करते हुए आंदोलन खड़ी करने वाली तत्कालीन पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (PAAS) से एक दर्जन से नेता भी शामिल हुए.
इस आंदोलन की शुरुआत हार्दिक पटेल ने की थी, जो 2020 में गुजरात में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बने और अब बीजेपी के विधायक हैं. धीरे-धीरे, पिछले तीन सालों में, पाटीदार युवाओं में से अधिकांश होनहार नेता बीजेपी में शामिल हो गए हैं.
गुजरात में पारंपरिक रूप से दो दलों के बीच ही मुकाबला रहा है. समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसी पार्टियां बार-बार कोशिशों के बावजूद विफल रही हैं. आम आदमी पार्टी को गुजरात में हमेशा जमीनी कार्यकर्ताओं और कैडर निर्माण के साथ संघर्ष करना पड़ा है. हालांकि, यह दिल्ली में पार्टी की सफलता और एक उभरती हुई राष्ट्रीय पार्टी के रूप में इसके नेताओं की लोकप्रियता थी जो गुजरात के मतदाताओं के साथ तालमेल बिठाने में कामयाब हुई. कांग्रेस को उम्मीद है कि दिल्ली में सरकार गंवाने के बाद अब गुजरात में आप की चमक और कम हो जाएगी. पार्टी के भीतर आमराय है कि इससे उसे बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने में मदद मिलेगी.