आर्थिक सफलता के बावजूद गुजरात की ‘सेहत’ खराब क्यों हैं?

CAG ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि भले ही गुजरात के आर्थिक विकास की कहानी देश में बाकी राज्यों से बेहतर हो, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण यह विकास, समग्र मानव विकास में परिवर्तित नहीं हो पा रहा है

गुजरात की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर आई CAG की रिपोर्ट
गुजरात की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर आई CAG की रिपोर्ट

देश में गुजरात को उसकी आर्थिक प्रगति के लिए सराहा जाता है, लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे में उसे अभी भी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी CAG ने अपनी ताजा रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है.

CAG के मुताबिक, गुजरात में स्वास्थ्य सेवाओं की ग्रांट का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है. यही वजह है कि फंडिंग में शॉर्टेज के कारण स्वास्थ्य विभाग में कर्मचारियों और नए इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी हो गई है. CAG रिपोर्ट से पता चलता है कि गुजरात ने अपने बजट का सिर्फ 5.34 फीसद ही स्वास्थ्य सेवा पर खर्च किया, जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 द्वारा निर्धारित 8 फीसद के मानक से काफी कम है.

ऐसे में पैसे की कमी से प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत खस्ता हो गई है. इसके अलावा, 2016 से 2022 के बीच गुजरात ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) अनुदान के तहत केंद्र से भेजे गए पैसे को भी पूरी तरह से खर्च नहीं किया है. रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य ने इस अनुदान के तहत भेजे गए कुल पैसे में से 29.79 करोड़ रुपए खर्च नहीं किए. इतना ही नहीं इस फंड के 54.07 करोड़ रुपए खर्च करने से जुड़े प्रमाणपत्र भी पेंडिंग रह गए, जिससे इस पैसे का उपयोग नहीं हुआ.

खजाने में पैसा होने के बावजूद राज्य सरकार का यह रवैया स्वास्थ्य सेवाओं में होने वाले सुधारों के प्रति अक्षमता को दर्शाता है. इन्हीं वजहों से गुजरात स्वास्थ्य विभाग में स्टाफ की कमी, बुनियादी ढांचे की कमी और प्रदेश में बच्चों के पोषण की स्थिति नाजुक है.

CAG ने स्टाफ की कमी का आकलन करते हुए बताया कि 2016 से 2022 के बीच 9,983 स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती के बावजूद, राज्य में डॉक्टरों के लिए 23 फीसद यानी लगभग 1,500 पद, नर्सों के लिए 6 फीसद यानी 24,466 स्वीकृत पदों में से 1,422 पद और पैरामेडिक्स के लिए 23 फीसद यानी लगभग 2,000 पद खाली हैं. 

इतना ही नहीं प्रदेश के उप-जिला अस्पतालों में 51 फीसद और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में 49 फीसद तक विशेषज्ञों की कमी है, जिससे आपातकालीन और शल्य चिकित्सा सेवाएं चरमरा गई हैं.

राज्य के 19 में से 16 जिला अस्पताल भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों (आईपीएचएस) के मानदंडों से कम बिस्तरों के साथ काम कर रहे हैं, जबकि प्रदेश में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) और सीएचसी का वितरण असमान है.

राज्य के 14 जिलों में जितना होना चाहिए उससे एक से तीन सीएचसी यानी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की कमी है, जबकि नौ जिलों में दो से नौ पीएचसी यानी प्राइमरी हेल्थ सेंटर की कमी है. इसके अलावा भारतीय नर्सिंग परिषद के मानदंडों के मुकाबले राज्य के नर्सिंग कॉलेजों में शिक्षण कर्मचारियों की 76 फीसद की कमी है.

19 जिला अस्पतालों में से तीन में रक्त बैंक उपलब्ध नहीं हैं. वहीं, सभी 19 जिला अस्पतालों में पैथोलॉजी सेवाएं आंशिक रूप से ही काम कर रहे हैं. 15 जिला अस्पतालों में एम्बुलेंस सेवाएं आंशिक रूप से उपलब्ध हैं जबकि चार जिला अस्पतालों में शवगृह सेवाएं मौजूद नहीं हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि एक जिला अस्पताल में तो मरीजों को भोजन देने के लिए आहार सेवाएं भी नहीं हैं.

इन सभी पैमाने पर देखें तो बाकी कई राज्यों की स्थिति इस मामले में गुजरात से ज्यादा अच्छी नजर आती है. उत्तर प्रदेश की स्थिति भी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करने के मामले में काफी अच्छी नहीं है. लेकिन, यहां 2019 से एनएचएम खर्च में सालाना 15 फीसद की वृद्धि हुई है. इसका नतीजा ये हुआ है कि राज्य में पीएचसी की कमी 10 फीसद तक कम हो गई है.

गुजरात के पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र ने 2021-22 में एनएचएम अनुदान का पूरा उपयोग किया, जिससे ग्रामीण स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को मजबूती मिली. ऐसा करने में गुजरात की विफलता कमजोर योजना और बेहतर स्वास्थ्य नीति की कमी की ओर इशारा करती है. CAG का मानना है कि सभी पैमाने पर विकास के लिए स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी फंडिंग का सही से खर्च करना "महत्वपूर्ण" है.

गुजरात सरकार की मुख्यमंत्री अमृतम योजना जैसी सेवाओं का उद्देश्य इस कमी को पूरा करना है, लेकिन CAG ने इसके क्रियान्वयन की आलोचना की है. इसमें केवल 54 फीसद जरूरतमंद और योग्य परिवारों को ही नामांकित किया गया है. इस बीच, 16,045 आंगनवाड़ी केंद्रों की कमी के कारण 11.63 फीसद शिशु कम वजन के रह गए हैं और 52 फीसद बच्चे आंगनवाड़ी सेवाओं से वंचित रह गए हैं.

गुजरात का स्वास्थ्य सेवा संकट केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि छूटे हुए अवसरों की कहानी है, जहां आर्थिक विकास मानव विकास में परिवर्तित नहीं हुआ है. इसकी वजह से राज्य के सबसे कमजोर वर्ग असुरक्षित रह गए हैं.

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