बिहार : ‘मां के अपमान’ को मुद्दा बनाने में कहां चूकी बीजेपी, इंडिया गठबंधन ने कैसे किया काउंटर?
पिछले दिनों पीएम मोदी ने बिहार से जुड़े एक कार्यक्रम में उनकी मां को गाली दिए जाने का मुद्दा उठाया तो ये साफ था कि वे चुनाव में इस मुद्दे का इस्तेमाल करने जा रहे हैं. इसी के नाम पर बीजेपी ने 4 सितंबर को राज्य में बंद भी आयोजित किया लेकिन ऐसा लगता है कि पार्टी इस मुद्दे को भुनाने में कामयाब नहीं हो पाई

मृणाल आशुतोष लघुकथा लेखक हैं और अपनी सोशल मीडिया पोस्टों के जरिये मोदी के समर्थक और इंडिया गठबंधन के आलोचक नजर आते हैं. पिछले दिनों जब दरभंगा में 'वोटर अधिकार रैली' के मंच से एक व्यक्ति ने प्रधानमंत्री मोदी को मां के नाम की गाली दी गई तो उन्होंने इसकी तीखी आलोचना की. मगर गुरुवार 4 सितंबर, 2025 को जब इस गाली के विरोध में बीजेपी ने बिहार बंद का आयोजन किया तो बंदी के बाद उन्होंने लिखा :
“जनता में मोदी के प्रति जो प्रेम और सम्मान है, वह कम होता नजर आ रहा है. कई बीजेपी समर्थकों ने भी यह माना कि सबकी मां का सम्मान होना चाहिए न कि केवल मोदी की मां का. मोदी द्वारा भूतकाल में की गई टिप्पणियों पर जहां विपक्षी दल क्रुद्ध थे, वहीं बीजेपी समर्थक भी रोष प्रकट कर रहे थे. चाय-पान की दुकान पर जर्सी गाय, कांग्रेस की विधवा, 50 करोड़ की गर्लफ्रैंड, दीदी ओ दीदी आदि की चर्चा बहुत देर तक चलती रही. एक व्यक्ति द्वारा की गई अमर्यादित टिप्पणी के लिए पूरे बिहार को आड़े हाथों लेना समझ से परे है. जब केंद्र और राज्य दोनों जगह बीजेपी की ही सरकार है, तो फिर बंद क्यों, इस फैसले से अधिकतर लोग नाखुश थे. जिस व्यक्ति ने गाली दी, उसे जब गिरफ्तार किया जा चुका है तो इस बन्द का औचित्य था क्या?”
बिहार बंद के बाद ऐसी टिप्पणी सिर्फ मृणाल आशुतोष की पोस्ट में ही नहीं, मोदी और बीजेपी से सहानुभूति रखने वाले कई लोगों के सोशल मीडिया अकाउंट पर दिखी. इसकी वजहें भी थीं. सुबह सात बजे से ही जिस बंद का आयोजन किया गया था, उसने ऑफिस, अस्पताल और जरूरी काम की वजह से घर से निकले लाखों लोगों को परेशान किया. एक शिक्षिका का वीडियो भी वायरल हुआ जिसे स्कूल जाने से रोका जा रहा था और बीजेपी कार्यकर्ता उसके साथ बदसलूकी कर रहे थे.
सचिवालय जा रहे एक कर्मी का वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें वे यह कहते हुए नजर आ रहे थे, "अगर ऐसा था तो सरकार को सभी सरकारी दफ्तरों को बंद करा देना चाहिए था. आखिर बंद कराने वाले ही तो राज्य और केंद्र में सरकार चला रहे हैं." एक वीडियो में गश्ती पर निकले बिहार पुलिस के अधिकारी बेबस नजर आ रहे थे, बंद समर्थकों ने उन्हें भी रोक दिया था. वहीं एक गर्भवती महिला को भी अस्पताल जाने से रोके जाने के वीडियो सोशल मीडिया पर नजर आ रहे थे. ऐसे तमाम वीडियो ने लोगों के मन में बीजेपी और मोदी के प्रति सहानुभूति में कमी ही की.
इसकी एक वजह यह भी रही कि जहां यह बंदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोंदी की मां के साथ-साथ बिहार की महिलाओं के अपमान के मुद्दे को सामने लाने के लिए आयोजित की गई थी, वहीं कई बीजेपी कार्यकर्ता बंद के दौरान महिलाओं का अपमान करते नजर आए. एक कार्यकर्ता को वीडियो में सोनिया गांधी के बारे में अभद्र शब्दों का इस्तेमाल करते हुए भी देखा गया.
ऐसे में राजद नेता तेजस्वी यादव ने अगले दिन सुबह एक पोस्ट में लिखा, “विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ने कल बिहार में दुनिया भर की गुंडागर्दी की. भाजपाई गुंडों ने सरेआम महिलाओं को पीटा, शिक्षिकाओं को पीटा, गर्भवती महिलाओं को रोका, बुजुर्गों को धक्का दिया, छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार किया, बच्चों को स्कूल जाने से रोका, एम्बुलेंस को रोका, शहीद के परिजनों को पीटा लेकिन फिर भी ये नकारे लोग पंचायत तो छोड़िए एक वार्ड तक बंद नहीं करा पाए! धिक्कार है!”
क्या उल्टा पड़ गया दांव?
इस मसले पर टिप्पणी करते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं, “दरअसल बीजेपी का यह दांव उल्टा पड़ गया. उन्हें सहानुभूति के बदले जनता की नाराजगी मिल गई.” वे अपनी बात आगे बढ़ाते हैं, “किसी भी मुद्दे पर सहानुभूति हासिल करने के कई तरीके हो सकते हैं. इनमें बंद सबसे अंतिम तरीका होना चाहिए, क्योंकि यह आम लोगों के लिए परेशानी की वजह बन जाता है. बीजेपी जो नीति, नीयत और सबल राष्ट्र की बात करती है, उससे ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वह ऐसा काम करेगी. जिससे जनता को परेशानी हो. वे हर जिला और ब्लॉक मुख्यालय पर धरना देते, बड़े नेता अनशन पर बैठ सकते थे कि राहुल और तेजस्वी माफी मांगें. उससे लोग ज्यादा कनेक्ट होते और लोगों की सहानुभूति अधिक मिलती.”
प्रवीण बागी के मुताबिक, “हालांकि इस मुद्दे में बहुत दम भी नहीं था. क्योंकि एक तो वह आदमी पकड़ा भी गया. केस भी उस पर हो गया. कानून अब उस मामले को देखेगी. उन्हें जितना समर्थन चाहिए था, सहानुभूति चाहिए थी, वे ले चुके. अब उसको खींचना और अनावश्यक तूल देना ठीक नहीं. अब इस मुद्दे में कोई जान नहीं बची है.”
हालांकि ऐसे दावे से इतर बीजेपी मानकर चल रही थी कि प्रधानमंत्री मोदी की मां के अपमान के मुद्दे पर वह इंडिया गठबंधन के दलों द्वारा हाल ही में निकाली गई वोटर अधिकार यात्रा के प्रभाव को खत्म कर सकती है. दरअसल अपनी विदेश यात्रा से वापस आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो सितंबर को बिहार राज्य जीविका निधि शाखा सहकारी संघ लिमिटेड की शुरुआत के कार्यक्रम को वर्चुअली संबोधित करते हुए कहा था, “आरजेडी-कांग्रेस के मंच से मेरी मां को गालियां दी गईं, ये गालियां सिर्फ मेरी मां का अपमान नहीं है. यह देश की मां, बहन, बेटी का अपमान है.” इसके बाद यह कहा जाने लगा कि अपने इस भावुक संदेश के जरिये पीएम मोदी ने इंडिया गठबंधन की 16 दिन चली वोटर अधिकार यात्रा के असर को खत्म कर दिया है. यह आने वाले चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकता है.
इसके बाद आनन-फानन में बीजेपी ने चार सितंबर को बिहार बंद की घोषणा कर दी. उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने उसी दिन बयान जारी किया, “राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा दरअसल गाली-गलौज यात्रा थी, जिससे बिहार का माहौल बिगड़ा और बिहारी अस्मिता का अपमान हुआ अब एनडीए महिला मोर्चा बंद के जरिये इस अपमान का बदला लेगी.”
आधे मन और आधी तैयारी से बंदी, चिराग बंदी के दौरान सभा कर रहे थे
राजनीतिक टिप्पणीकार एवं टाटा सामाजिक संस्थान के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कहते हैं, “दरअसल पीएम जरूर चाहते होंगे कि उनकी मां के अपमान का मुद्दा बिहार चुनाव में एक भावनात्मक मुद्दा बन सके मगर जिस तरह की बंदी बिहार में दिखी वह आधी-अधूरी तैयारी और आधे-अधूरी मन से किया गया आयोजन था. एक तो बंद का समय ही सुबह सात बजे से दोपहर 12 बजे तक रखा गया, जिससे स्कूल और आफिस जाने वाले लोग परेशान हुए. दूसरा हर बंद से आवश्यक सेवाओं को अलग रखा जाता है, वह भी नहीं किया गया. तीसरी बात कि बंद को लेकर कोई अपील नहीं थी कि व्यापारी दुकान बंद रखें, लोग स्कूल और दफ्तर जाने से बचें. खुद एनडीए में ही इस बंद को लेकर कोई सामंजस्य नजर नहीं आ रहा था. ऐन बंद के वक्त चिराग पासवान मुजफ्फरपुर में अपनी सभा कर रहे थे. इसलिए इसे तो फ्लॉप होना ही था. दरअसल बीजेपी पर अब ग्यारह साल की एंटी इनकंबेंसी है. ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी भी भावनात्मक मुद्दों पर अपील कर लोगों को प्रभावित करने की क्षमता खो रहे हैं. हमने ऐसा ऑपरेशन सिंदूर के वक्त भी देखा और अभी भी.”
इंडिया गठबंधन की काउंटर स्ट्रैटजी
इस बंदी के अपेक्षाकृत सफल न होने और इस मुद्दे के प्रभावी न होने की एक वजह यह भी बताई जाती है कि इंडिया गठबंधन ने एकजुटता से इस मसले पर जवाब दिया. उनकी रिसर्च टीम ने ऐसे दर्जन भर उदाहरण जुटाये जिसमें या तो प्रधानमंत्री मोदी ने खुद अशालीन भाषा का इस्तेमाल किया है, या उनके नेताओं ने और जिन्हें वे सोशल मीडिया पर फॉलो करते है, उन्होंने महिलाओं के साथ गाली-गलौज की. पुष्पेंद्र कहते हैं, “गठबंधन के सभी प्रवक्ताओं ने मजबूती से इन उदाहरणों को मेन स्ट्रीम मीडिया और यू-ट्यूब चैनलों पर रखा. इनमें खुद नेता-प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी शामिल रहे, जिन्होंने बिहार तक के आयोजन में प्रिंटआउट दिखाकर यह प्रभाव पैदा किया कि गाली गलौज के मामले में एनडीए नेताओं का रिकार्ड अच्छा नहीं है. इसका असर आम लोगों के बीच देखने को मिला, जब बंद के दौरान भी वे कह रहे थे कि इन्होंने भी सोनिया गांधी को गाली दी थी.”
गाली के खिलाफ कानून बनाकर मास्टर स्ट्रोक खेल सकते हैं मोदी
इस मसले पर आखिर में टिप्पणी मृणाल आशुतोष की मौजू है, जिसमें वे कहते हैं, “हालांकि बंदी का कोई फायदा नहीं हुआ, मगर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के पास अभी भी एक स्वर्णिम अवसर है. वे कानून बना दें कि अगर कोई सार्वजनिक रूप से गाली-गलौज करता है, अपशब्दों के जरिये मां-बहन का अपमान करता है तो कड़ा दण्ड मिलेगा. गैर-जमानती धारा लगेगी. तो यह क्रांतिकारी कदम होगा. कोई भी राजनीतिक दल या व्यक्ति इसका विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता. महिलाएं इसका पुरजोर समर्थन करेंगी और समझदार पुरूष उनका साथ देंगे.”