कांग्रेस हरियाणा यूनिट में बदलाव का नया मॉडल अपनाने जा रही! दूसरे राज्यों में बनेगा नजीर?
कांग्रेस अपने ‘संगठन सृजन अभियान’ के तहत हरियाणा के संगठन को नए तरीके से बदलने जा रही है

बरसों की संगठनात्मक सुस्ती के बाद हरियाणा में कांग्रेस अपने ढांचे को नए सिरे से गढ़ने की कोशिश कर रही है. इसी से यह तय हो सकता है कि पार्टी राज्य में चुनावी तौर पर प्रासंगिक बनी रहती है या नहीं.
पार्टी अपने ‘संगठन सृजन अभियान’ के तहत पहली बार अर्धलोकतांत्रिक और सलाहकारी प्रक्रिया के जरिए पूरे हरियाणा में जिला कांग्रेस कमेटियों (डीसीसी) के अध्यक्षों की नियुक्ति करने जा रही है.
उम्मीद की जा रही है कि पार्टी आलाकमान जुलाई के अंत तक जिला प्रमुखों के नामों को अंतिम रूप देकर घोषणा कर देगा. एआईसीसी में हरियाणा के प्रभारी महासचिव बी.के. हरिप्रसाद के मुताबिक पार्टी को सभी जिलों से फीडबैक मिल गया है. उन्होंने बताया, “कुछ जिलों ने दो से तीन नाम भेजे, तो दूसरों ने पांच से छह. पर्यवेक्षकों ने इंटरव्यू लिए और विचार-विमर्श चल रहा है.” डीसीसी अध्यक्षों के लिए योग्यता के मानदंडों में कम से कम पांच साल पार्टी का काम करने का अनुभव और 35-55 आयु समूह में होना शामिल है. हालांकि जातिगत प्रतिनिधित्व और जिला स्तर पर राजनैतिक तौर पर उपयुक्त होना भी निर्णायक भूमिका निभाएगा.
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटियों (पीसीसी) के साथ तालमेल से नियुक्त एआईसीसी के पर्यवेक्षकों ने शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों के साथ विस्तृत इंटरव्यू किए हैं. हरेक के मामले में विचारधारा के स्तर पर मेल, भाजपा-आरएसएस के नैरेटिव का मुकाबला करने की काबिलियत और गुटबाजी से ग्रस्त स्थानीय इकाइयों को एकजुट करने की क्षमता का आकलन किया गया. महिलाओं, अल्पसंख्यकों और पार्टी के ढांचे से बाहर भी साख रखने वाले जमीनी संगठनकर्ताओं को शामिल करने पर खास जोर दिया गया है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी जून के पहले हफ्ते में कुछ वक्त के लिए चंडीगढ़ में हरियाणा कांग्रेस के मुख्यालय पहुंचे और वहां 17 सदस्यीय समिति की बैठक में हिस्सा लिया, जिसमें राज्य के बड़े नेता और एआईसीसी के पदाधिकारी मौजूद थे. उनमें पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, हरियाणा पीसीसी के प्रमुख उदय भान, लोकसभा सांसद कुमारी शैलजा, पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह और रोहतक के सांसद दीपेंद्र हुड्डा शामिल थे.
बताया जाता है कि राहुल ने उनसे गुटबाजी पर लगाम कसने का आग्रह किया. इसके बाद एआईसीसी ने हरियाणा पीसीसी की तरफ से नियुक्त 51 पर्यवेक्षकों के साथ मिलकर काम करने के लिए सांसदों और पूर्व मंत्रियों सहित 22 पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की, ताकि वे तमाम जिलों में उम्मीदवारों का आकलन कर सकें.
दशक से भी ज्यादा वक्त में यह पहली बार है जब कांग्रेस हरियाणा में अपने संगठन का पिरामिड सिलसिलेवार ढंग और नए सिरे से खड़ा कर रही है. पहले हुई ऐसी कोशिशें नाकाम रहीं. जब राहुल के वफादार अशोक तंवर राज्य इकाई के प्रमुख थे, हुड्डा खेमे ने प्रतिरोध किया. जब कुमारी शैलजा और बाद में उदय भान ने कमान संभाली, गुटबाजी तब भी हावी रही. 2024 के विधानसभा चुनावों ने मृतप्राय संगठन के नाजुक हिस्सों को उघाड़कर रख दिया, जब बीजेपी ने नामुमकिन दिख रही जीत हासिल करते हुए 90 सदस्यों की विधानसभा में 48 सीटें झटक लीं.
लिहाजा यह समूचा उलटफेर होना ही था. पहले नियुक्तियां मोटे तौर पर ऊपर से नीचे की तरफ होती थीं- कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता के साथ सलाह-मशविरा करके राज्य कांग्रेस अध्यक्ष फैसला लेते थे. इस बार अलबत्ता इस कवायद पर राहुल की छाप है, जो आंतरिक सुधारों पर जोर दे रहे हैं, और जिसे पार्टी की चुनावी हार के बाद चंडीगढ़ की उनकी यात्रा से ताकत मिली.
कांग्रेस मिलाजुला मॉडल अपनाती दिख रही है, जो कुछ तो लोकतांत्रिक है और कुछ आलाकमान के निर्देशों से संचालित है. यह भाजपा के जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के उस पुराने तरीके से मिलता-जुलता है जो आरएसएस से जुड़े जमीनी कार्यकर्ताओं के फीडबैक पर आधारित था, लेकिन इसमें ऊपर से नीचे की ओर अनुमोदन की कांग्रेसी प्रवृत्ति को बरकरार रखा गया है. यह देखना अभी बाकी है कि यह टिकाऊ सांचा बन पाता है या नहीं.
कांग्रेस इसी तरह का संगठन सृजन अभियान गुजरात, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और उन दूसरे राज्यों में भी चला रही है जहां पार्टी का संगठन कमजोर है और चुनावी महत्वाकांक्षाएं कुलांचे भर रही हैं. बारी-बारी से सरकार बदलने और जातिगत ध्रुवीकरण के अपने इतिहास के साथ हरियाणा आंतरिक पुनर्गठन की नई मुहिम में प्रायोगिक मॉडल का काम कर सकता है.
जीर्णोद्धार की इस कोशिश की सतह के नीचे अलबत्ता अनकहा तनाव छिपा है, और वह है हरियाणा में भूपेंद्र हुड्डा के लगातार कायम दबदबे को लेकर कांग्रेस आलाकमान की बेचैनी. फिलहाल पार्टी के 32 विधायक और पांच में से चार लोकसभा सांसद उनके वफादार हैं. पीसीसी प्रमुख उदय भान भी हुड्डा खेमे के हैं. फिर भी आलाकमान ने हुड्डा को आधिकारिक तौर पर नेता मानने से इनकार करते हुए कांग्रेस विधानमंडल या सीएलपी के नेता का पद प्रत्यक्ष तौर पर खाली छोड़ दिया है.
दिल्ली में बढ़ती आशंका यह है कि हुड्डा हरियाणा इकाई को अपनी जागीर की तरह बरतना जारी रख सकते हैं और नई आवाजों और वैकल्पिक सत्ता केंद्रों के उभरने में अड़ंगे डाल सकते हैं. केंद्रीय नेतृत्व इसलिए और भी चौकन्ना है क्योंकि 2021 में उसने जब कैप्टन अमरिंदर सिंह को पंजाब के मुख्यमंत्री के पद से अनियोजित तरीके से हटाया था, तो पार्टी एकाएक ढह गई थी और आम आदमी के उभरने का रास्ता साफ हो गया.
उस गलत के कदम के बाद लगे झटकों की गूंज राजस्थान (जहां अशोक गहलोत ने दबाव का प्रतिरोध किया), छत्तीसगढ़ (जहां भूपेश बघेल का दबदबा था), और अब कर्नाटक (जहां सिद्धारमैया के प्रभाव को संतुलित करना चुनौती बना हुआ है) में भी सुनाई दी.
इस संदर्भ में हरियाणा के पुनर्गठन को इस बात को परखने की कसौटी के तौर पर देखा जा रहा है कि क्षेत्रीय क्षत्रपों को अलग-थलग किए बिना कांग्रेस आलाकमान अपना प्रभुत्व दिखा सकता है या नहीं. राज्य के राजनैतिक पर्यवेक्षक पैनी नजर रख रहे हैं : डीसीसी की नई नियुक्तियों से हुड्डा के लगातार जारी असर की झलक मिलेगी या दिल्ली के ज्यादा व्यापक और समावेशी हुक्मनामे की दिशा में बदलाव का संकेत मिलेगा? सार्वजनिक होने के बाद यह सूची पार्टी के पुनर्गठित ढांचे में हुड्डा खेमे की ताकत का आकलन करने के लिए लिटमस टेस्ट का काम करेगी.
अहम बात यह कि नए डीसीसी प्रमुख महज प्रतीकात्मक नहीं होंगे. पार्टी सूत्रों के मुताबिक उन्हें चुनावी उम्मीदवारों की सिफारिश करने का अधिकार होगा, हालांकि अगर वे खुद चुनाव लड़ना चाहें तो उन्हें कम से कम 18 महीने पहले डीसीसी के पदों से इस्तीफा देना होगा. यह उन्हें 2029 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन और जमीनी लामबंदी में निर्णायक शख्सीयत बना देता है.
तिस पर भी संशय कायम हैं. हरियाणा के एक बड़े कांग्रेसी नेता ने कहा, “कागजों पर यह अच्छा दिखता है, लेकिन अभी हमें पता नहीं कि अंतिम सूची से जमीनी हकीकतों की झलक मिलती है या यह राजनैतिक दिखावे तक सिमटकर रह जाएगी. अगर दिल्ली सच्चे स्थानीय सलाह-मशविरे के बिना नाम थोपती है, तो इसका उल्टा असर हो सकता है.”
कभी अजेय रहा बीजेपी-जेजेपी (जननायक जनता पार्टी) गठजोड़ अब इतिहास बन चुका है. बीजेपी ने 2024 के लोकसभा और विधानसभा अपने दम पर लड़े और जीते. अपनी किस्मत को दोबारा चमकाने के लिए दुष्यंत चौटाला की अगुआई वाली जेजेपी और उनके चाचा अभय चौटाला की अगुआई वाला भारतीय राष्ट्रीय लोक दल इस बात पर नजरें गड़ाए हैं कि कांग्रेस 77 की उम्र के बुढ़ाते हुड्डा से कैसे निपटती है. चौटाला परिवार की जाट वोटों पर दबदबे के लिए हुड्डा से होड़ रही है. अगर कांग्रेस इस बदलाव के मनसूबे को ठीक से अंजाम नहीं दे पाती, तो यह समुदाय आसानी से चौटाला परिवार की ओर खिसक सकता है.
आम धारणा यह है कि भाजपा की नायब सिंह सैनी की अगुआई वाली सरकार सैनी के राजनैतिक गुरु और पूर्ववर्ती मनोहर लाल खट्टर के इशारों पर चलती है और फैसले लेने की प्रक्रिया में अफसरशाहों के एक धड़े का दबदबा है. इसमें भी कांग्रेस अपने लिए मौका ताड़ रही है.
मगर नए डीसीसी प्रमुख जब तक भितरघात, जातिवादी दिखावे और संगठन के प्रति उदासीनता की विरासत से उबर नहीं पाते, हो सकता है कि वे सत्ता के दलालों की बजाय महज पदधारी बनकर रह जाएं. कांग्रेस 2029 में विश्वसनीय चुनौती पेश कर पाए, इसके लिए इन नियुक्तियों को प्रतीकात्मकता से आगे जाना होगा.
हरियाणा में कांग्रेस का भविष्य इस बात पर टिका है कि इस खामोश कायाकल्प का नतीजा सच्ची जमीनी गोलबंदी की शक्ल में सामने आता है या यह पार्टी को खड़ा करने के एक और निष्फल प्रयोग में तितर-बितर हो जाता है.