अमूल डेयरी चुनाव : पहली बार BJP को मिली जीत, कांग्रेस का दबदबा आखिर कैसे टूटा?
गुजरात में बीते 27 साल और केंद्र में बीते 11 साल से सत्ता संभाल रही BJP अमूल डेयरी का चुनाव पहली बार जीत पाई है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की राजनीति को शुरुआती दिनों से जो लोग देखते आए हैं, उन्हें पता है कि इन दोनों की राजनीति में सहकारिता क्षेत्र की क्या भूमिका रही है. गुजरात में सहकारिता के रास्ते पहले प्रदेश की सत्ता से लेकर केंद्र की सत्ता का सफर इन दोनों नेताओं ने तय किया है. लेकिन इन दोनों के सफलता भरे सियासी सफर में एक कमी यह थी कि दुनिया के सबसे बड़े दूध सहकारिता संगठन अमूल डेयरी का चुनाव BJP कभी जीत नहीं पाई थी. लेकिन इस बार यह कमी भी पूरी हो गई.
इस जीत के साथ ही गुजरात की सहकारिता राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है. कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड को आम बोलचाल में अमूल डेयरी के नाम से जाना जाता है. इसके निदेशक मंडल चुनाव में BJP ने पहली बार पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया. 78 वर्ष पुरानी इस संस्था के 13 सदस्यीय बोर्ड में BJP समर्थित उम्मीदवारों ने 11 सीटें जीत लीं, जबकि कांग्रेस को केवल दो सीटें नसीब हुईं.
यह जीत न केवल BJP के लिए एक मील का पत्थर है, बल्कि गुजरात के दुग्ध सहकारिता क्षेत्र में उसके दबदबे को मजबूत करने वाली साबित हुई है. 10 सितंबर को हुए मतदान में 97.48 फीसदी रिकॉर्ड मतदान हुआ था और इस चुनाव के नतीजे 12 सितंबर यानी शुक्रवार को आए. इतना अधिक मत प्रतिशत यह दिखाता है कि कैसे इस चुनाव को जीतने के लिए BJP और प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस एड़ी-चोटी का जोर लगाकर अपने मतदाताओं को चुनाव तक लेकर आए.
अमूल डेयरी की पृष्ठभूमि सहकारिता आंदोलन की जड़ों से जुड़ी है. 1946 में स्थापित यह संघ गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF) का महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसका वार्षिक टर्नओवर 15,000 करोड़ रुपये से अधिक है. लंबे समय से यह कांग्रेस का गढ़ रहा है. 2020 के चुनाव में कांग्रेस ने 11 सीटों के लिए हुए चुनाव में आठ जीती थीं.
लेकिन 2022 के गुजरात विधानसभा चुनावों में 156 सीटों के साथ हुई BJP की भारी जीत के बाद सियासी समीकरण बदलने लगे. फरवरी 2023 में चार कांग्रेस निदेशकों के BJP में शामिल होने से पार्टी को आंशिक बढ़त मिली, जिससे कांग्रेस का प्रतिनिधित्व घटकर तीन रह गया. BJP का पहले से ही गुजरात के सभी 18 दुग्ध संघों में बहुमत है लेकिन अमूल पर पूर्ण नियंत्रण उसका पुराना सपना था. इस चुनाव में 13 सीटों में से चार BJP ने र्निविरोध जीत ली थीं. जबकि नौ सीटों के लिए चुनाव हुआ. इनमें से BJP ने छह ब्लॉक सीटें और एक व्यक्तिगत सदस्य सीट हासिल की.
आखिर BJP यह चुनाव कैसे जीत पाई? गुजरात BJP और प्रदेश के आणंद जिले के पार्टी नेताओं से बातचीत करने पर पता चलता है कि इस बार BJP की रणनीति काफी सधी हुई थी. चुनाव प्रभारी अजय ब्रह्मभट्ट के नेतृत्व में पार्टी ने कोई बागी उम्मीदवार खड़ा नहीं होने दिया और नामांकन से लेकर मतदान तक हर कदम पर नजर रखी. इस जीत पर ब्रह्मभट्ट कहते हैं, "यह जीत पिछले पांच वर्षों में किए गए विकास कार्यों का नतीजा है. अमूल के इतिहास में पहली बार 13 में से 11 निदेशक हमारे हैं. पहले अधिकतम तीन ही थे."
इस बार के चुनाव में कई सीटों पर जीत का अंतर अधिक था तो कहीं यह अंतर काफी कम रहा. पेटलाड में बिनाबेन तेजस्कुमार पटेल ने 83 में से 78 वोटों से जीत हासिल की. नडियाद में विपुलभाई कांतिभाई पटेल ने 60 वोटों से और खंभात में राजेंद्रसिंह बलवंतसिंह परमार ने 65 वोटों से जीत दर्ज की.
व्यक्तिगत सदस्य सीट पर विजय पटेल ने एक वोट के मामूली अंतर से जीत दर्ज की. चुनाव के दौरान BJP ने विकास योजनाओं, जैसे पशुपालकों के लिए सब्सिडी, बेहतर बाजार पहुंच और बुनियादी ढांचे के विस्तार को प्रमुखता से प्रचारित किया था.
BJP ने 2023 के बागी निदेशकों गौतम चौहान, घेला मानसिंह जाला और कांति सोढ़ा परमार को मजबूती से समर्थन दिया. इनमें से चौहान निर्विरोध जीते. BJP ने ग्रामीण स्तर पर सघन अभियान चलाया, जिसमें स्थानीय विधायक, सांसद और जिला नेताओं ने सक्रिय भूमिका निभाई. आणंद के सांसद मितेशभाई पटेल उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डालने दिल्ली आए और फिर वोट डालकर तुरंत आणंद पहुंच गए. मतदान के दिन वे मतदाताओं को लेकर मतदान केंद्र तक आते दिख रहे थे.
चुनाव जीतने के लिए BJP ने अजय ब्रह्मभट्ट को मुख्य चुनाव प्रभारी बनाया था. उन्होंने पूरी चुनाव मशीनरी को संभाला. मौजूदा चेयरमैन विपुल पटेल को नडियाद ब्लॉक की जिम्मेदारी दी गई, जहां उन्होंने मजबूत जीत दर्ज की. आणंद ब्लॉक में पूर्व विधायक कांति सोढ़ा परमार, काठलाल में घेलाभाई झाला, माटर में भगवतसिंह परमार और पेटलाड में बिनाबेन पटेल जैसे उम्मीदवारों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी गईं. ये सभी BJP के उस कोर ग्रुप का हिस्सा थे, जो ग्रामीण पशुपालकों से सीधा जुड़े हुए हैं. पार्टी ने इन नेताओं को विकास एजेंडे पर फोकस करने का निर्देश दिया. इनमें दूध उत्पादन बढ़ाने, किसानों की आय दोगुनी करने और अमूल ब्रांड को वैश्विक स्तर पर मजबूत बनाने पर जोर दिया गया.
हालांकि, इन सबके बावजूद बोरसड़ और कपड़वांज सीट BJP नहीं जीत पाई और इन दोनों पर कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों को सफलता मिली. कांग्रेस 2020 की आठ सीटों के मुकाबले लुढ़ककर केवल दो सीटों पर सिमट गई. बोरसड़ में पूर्व विधायक राजेंद्रसिंह परमार ने 12 वोटों के अंतर से जीत हासिल की. जबकि कपड़वांज में भूरा सोलंकी ने 11 वोटों से कामयाबी हासिल की. परमार ने BJP पर गंभीर आरोप लगाए. परमार ने कहा, "BJP ने अपनी पूरी पार्टी मशीनरी लगाई, सांसद-विधायक पैसे बांटकर वोट प्रभावित करने की कोशिश की." कांग्रेस ने आरोप लगाया कि BJP ने सहकारिता के सिद्धांतों का उल्लंघन किया और बाहरी दखल से चुनाव प्रभावित किया. पार्टी का कहना है कि अमूल बचाओ आंदोलन की विरासत को BJP ने कमजोर करने की साजिश रची.
BJP के लिए यह केवल एक चुनावी सफलता नहीं, बल्कि गुजरात की सहकारिता राजनीति में ऐतिहासिक बदलाव है. माना जा रहा है कि अमूल जैसी 15,000 करोड़ की संस्था पर नियंत्रण से BJP को आर्थिक और राजनीतिक ताकत मिलेगी. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में BJP के प्रभाव को मजबूत करने में मदद मिलेगी. BJP पहले से ही सभी 18 दुग्ध संघों पर काबिज है, लेकिन अमूल पर बहुमत से वह नीतिगत फैसलों को प्रभावित कर सकेगी. राजनीतिक रूप से देखा जाए तो यह कामयाबी 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले BJP के पक्ष में जाता दिख रहा एक संदेश है. पूरी प्रक्रिया में शामिल BJP के एक नेता का कहना है कि अब पार्टी यह नैरेटिव तैयार करने की दिशा में जुटेगी कि सहकारिता क्षेत्र में कांग्रेस का वर्चस्व टूट चुका है.