क्या राजस्थान के स्कूल एक राजनीतिक विचारधारा की प्रयोगशाला बन रहे हैं?

बीते महीने राजस्थान का शिक्षा विभाग स्कूलों में 6 दिसंबर के दिन शौर्य दिवस मनाने के एक आदेश के चलते विवादों में था और अब फिर ऐसा ही एक विवादित आदेश सामने आया है

सांकेतिक तस्वीर

राजस्थान का शिक्षा विभाग अभी एक विवाद से निकला नहीं कि दूसरे में फंसता दिख रहा है. पिछले दिनों इस विभाग की तरफ से 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के दिन स्कूलों में ‘शौर्य दिवस’ मनाने के कथित आदेश पर बवाल मचा हुआ था. अब ऐसा ही एक नया विवादित आदेश फिर सामने आ गया है. 

दरअसल, श्रीगंगानगर के जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से यह आदेश जारी हुआ है कि क्रिसमस के अवसर पर बच्चों को सांता क्लॉज की वेशभूषा में स्कूलों में नहीं भेजा जाए. सरकारी स्कूलों के लिए जारी इस आदेश में कहा गया है कि क्रिसमस भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है इसलिए स्कूलों में केवल भारतीय संस्कृति के अनुरूप गतिविधियां ही कराई जाएं. 

शिक्षा विभाग ने यह आदेश भारत तिब्बत सहयोग मंच की ओर से जिला शिक्षा अधिकारी को भेजे गए एक शिकायत पत्र के आधार पर दिया है. पत्र लिखने वाले सुखजीत सिंह अटवाल का कहना है, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 दिसंबर को वीर बाल दिवस घोषित किया है. यह दिन साहिबजादों के बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है मगर पिछले कुछ वर्षों में यहां बच्चों पर जबरन क्रिसमस डे मनाने का दबाव डाला जा रहा है.’’ 

इसी पत्र को आधार बनाकर शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी किया है जिसमें यह हवाला दिया गया है कि श्रीगंगानगर जिला सनातन (हिंदू व सिख) बहुल क्षेत्र है. ऐसे में यहां क्रिसमस डे पर बच्चों पर सांता क्लॉज बनने का दबाव नहीं डाला जाए. किसी स्कूल में अगर जबरन बच्चों को सांता क्लॉज बनाए जाने की सूचना मिली तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.  

इस आदेश को लेकर श्रीगंगानगर के अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी अशोक वधवा कहते हैं, ‘‘25 दिसंबर को क्रिसमस भी है और वीर बाल दिवस भी. नोटिस में क्रिसमस डे मनाने पर कोई रोक नहीं लगाई गई है, बल्कि छात्र-छात्राओं पर अनावश्यक दबाव नहीं डालने के निर्देश दिए गए हैं. अगर छात्र और उनके अभिभावक क्रिसमस मनाने और सांता क्लॉज बनने की अनुमति देते हैं, तो ऐसे आयोजन पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा मगर जबरन दबाव बनाने की शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाएगी.’’ 

हैरानी की बात यह है कि राजस्थान का यही शिक्षा विभाग स्कूलों को सूर्य नमस्कार और वैदिक परंपरा से जुड़े आयोजन करने की छूट देने के साथ उन्हें प्रोत्साहित भी करता है. मगर इनसे इतर इस मामले में किसी दूसरे धर्म से जुड़ी ऐसी परंपरा के खिलाफ आदेश जारी कर रहा है जिसमें पूरी दुनिया और भारत में भी ज्यादातर लोगों को कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगता. 

राजस्थान हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिमन्यु सिंह संविधान का हवाला देते हुए इस आदेश की मुखालफत करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार स्कूलों में किसी एक धर्म या विचारधारा को बढ़ावा देना संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत समानता व अनुच्छेद-25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की भावना के खिलाफ है. अगर सनातन धर्म के नाम पर क्रिसमस डे जैसे आयोजनों पर रोक लगाई जाती है तो फिर सूर्य नमस्कार या शौर्य दिवस जैसे आयोजनों को सरकारी संरक्षण क्यों दिया जाता है’’? वहीं शिक्षाविद् मनीष शर्मा का कहना है, ‘‘यह विडंबना ही है कि जिस राज्य में शिक्षा का बुनियादी ढांचा चरमराया हुआ है, स्कूलों में शिक्षकों और सुविधाओं की भारी कमी है वहां शिक्षा विभाग सांता क्लॉज जैसे आयोजन हों या न हो इसमें उलझा हुआ है.’’ 

इस पूरे मामले में सवाल यह नहीं है कि स्कूलों में कौन-सा त्योहार मनाया जाए. असल चिंता इस बात की होनी चाहिए कि अगर बच्चों में विविधता व सहअस्तित्व की भावना जगाने की जगह सत्ता की वैचारिक पसंद–नापसंद थोपी जाएगी तो आखिर में इसके नतीजे क्या होंगे.

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