बिहार चुनाव : पहले चरण में महागठबंधन के लिए बुरे संकेत! वोटिंग पैटर्न कैसे बदला?

बिहार चुनाव के पहले चरण में जिन 121 सीटों पर वोट पड़े, पिछले चुनाव में इनमें से एनडीए को 59 और महागठंधन को 61 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं लग रहा

बिहार में पहले चरण के तहत बंपर वोटिंग हुई (Photo: PTI)
बिहार चुनाव के पहले चरण में करीब 65 फीसद वोटिंग हुई है

वह खगड़िया का गौछारी गांव था, जो परबत्ता विधानसभा में आता है. यहां वोट देने जातीं रेखा देवी, सरिता देवी और प्रेमलता देवी मिलीं. तीन महिलाओं को एक साथ अकेले वोट डालने जाते देखकर अच्छा लगा और यह धारणा भी पुख्ता होती नजर आई कि बिहार में अब महिला वोटर अपनी मर्जी से मतदान करती हैं. 

मगर यह पूछने पर कि आप वोट किस आधार पर डालती हैं, उन तीनों ने बड़ी सरलता से कहा, “परिवार में जो तय होता है, घर के मुखिया जो कहते हैं, उसी आधार पर वोट करते हैं.” रेखा देवी ने कहा, “घर वाले जो हमें बताते हैं, उसी हिसाब से हम वोट करते हैं.” हैरत की बात है कि उन तीनों महिलाओं में से किसी को अपने विधानसभा क्षेत्र का नाम, उम्मीदवारों का नाम या पार्टी का नाम तक मालूम नहीं था.

गौछारी पार का मतदान केंद्र (फोटो : पुष्यमित्र)

ये तीन ही नहीं गौछारी के पोलिंग बूथ पर मिली कई महिला और ज्यादातर बुजुर्ग मतदाताओं का यही हाल था. सिर्फ युवा से अधेड़ उम्र के मतदाता राजनीतिक रूप से जागरुक नजर आए. वे कैंडिडेट और पार्टी का ही जिक्र नहीं कर रहे थे, बल्कि यह भी बता रहे थे कि किस बूथ पर किस पार्टी को अधिक वोट मिल रहा है. उस बूथ पर खड़े मंगल चौरसिया बोले, इस बार तो ‘आओ सनम, जाओ सनम’ चल रहा है. यह पूछने पर कि ‘आओ सनम, जाओ सनम’ का मतलब क्या है? वे बोले, “पहले चुनाव में लंबी-लंबी लाइन लगा करती थी, खूब भीड़ रहती थी. मगर इस बार तो आइये, वोट कीजिये और दू मिनट में घर जाइये.”

गौछारी पार में मतदान केंद्र के बाहर लाइन लगाए पुरुष मतदाता (फोटो : पुष्यमित्र)

जमीनी रिपोर्ट बताती है कि बिहार के कई बूथों पर इस चुनाव में ऐसा ही हाल था. कुछ ही बूथों पर लंबी कतार थी. ज्यादातर बूथों पर सुबह जरूर कतार दिखी, दोपहर होते-होते भीड़ छटने लगी और शाम में सन्नाटा नजर आने लगा. शाम 4.35 मिनट पर यह संवाददाता पटना में अपने बूथ पर जब वोट डालने पहुंचा तो वहां एक भी मतदाता नजर नहीं आया.

हां, खगड़िया में मानसी के पास एक बूथ पर जरूर लंबी कतार थी, मगर वहां खड़े मतदाता जो काफी नाराज थे, उनकी शिकायत थी कि चूंकि यहां राजद समर्थक मतदाताओं की संख्या अधिक है, इसलिए पोलिंग अधिकारी जानबूझकर पोलिंग को धीमा करवा रहे हैं. खगड़िया से शाम तक लंबी कतारों की तसवीरें आती रहीं, मगर ऐसे मामले दूसरी जगह नजर नहीं आये.

चुनाव आयोग के मुताबिक बिहार में पहले चरण में 64.46 फीसदी लोगों ने मतदान किया है. आयोग के मुताबिक अभी फाइनल आंकड़े नहीं आये हैं, एक घंटे बाद फाइनल आंकड़े आयेंगे. जिसमें एक-दो फीसदी का अंतर हो सकता है. पिछले विधानसभा चुनाव में 57.29 फीसदी वोट पड़े थे, उस लिहाज से यह मतदान परसेंट जरूर कुछ अधिक नजर आता है. मगर हमें यह ध्यान रखना पड़ेगा कि इस चुनाव के ठीक पहले चुनाव आयोग ने स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) किया है, जिसमें 68 लाख के करीब मतदाताओं के नाम कटे हैं और 21.53 लाख नये मतदाता जुड़े हैं. SIR का मकसद स्थानांतरित, मृत और दोहरे नाम वाले मतदाताओं का नाम हटाया जाना था. इस लिहाज से वोटिंग परसेंट में कम से कम दस फीसदी की बढ़ोतरी होनी चाहिए थी. माना जा रहा था कि मतदान 70 फीसदी तक जा सकता है. मगर ऐसा नहीं हुआ.

जानकार मानते हैं कि इसकी वजह मतदाताओं की उदासीनता है, साथ ही दीवाली और छठ के बाद बड़ी संख्या में प्रवासी मतदाताओं का लौट जाना भी है. अगर छठ के ठीक बाद वोटिंग होती तो शायद मतदान का प्रतिशत बढ़ जाता, मगर अब तक ज्यादातर प्रवासी मतदाता लौट चुके हैं. इसकी वजह यह है कि पंजाब हरियाणा और आसपास के इलाकों में यह धान कटाई का मौसम है और उस वक्त बिहार के मजदूरों की मांग सबसे अधिक होती है. इस संवाददाता ने पिछले दिनों पटना जंक्शन पर जाकर ऐसे मजदूरों से बात की थी. उन्होंने इस बारे में जानकारी दी थी. चुनाव आयोग ने बताया है कि इस बार महिला मतदाताओं की भागीदारी अच्छी रही है. ऐसा पोलिंग बूथों पर भी दिखा. यह भी इस तरफ इशारा करते हैं कि पुरुष मतदाता बड़ी संख्या में पलायन कर गये हैं.

मतदान में कमी की एक वजह चुनाव के दौरान किसी मुद्दे का प्रभावी नहीं हो पाना भी माना जा रहा है. जहां इस चुनाव में सत्ता पक्ष की तरफ से एनडीए ने घुसपैठ और जंगलराज की वापसी को मुद्दा बनाने की कोशिश की, वहीं विपक्ष ने वोट चोरी, रोजगार और पलायन को मुद्दा बनाया. मगर SIR के बाद सत्ता पक्ष के घुसपैठ और विपक्ष के वोट चोरी के मुद्दे निष्प्रभावी हो गये. ऐसे में विपक्ष ने जरूर रोजगार को मुद्दा बनाने की कोशिश की, मगर वह मुद्दा 2020 के चुनाव की तरह प्रभावी नहीं हो पा रहा, क्योंकि घर-घर सरकारी नौकरी देने का वादा लोगों में भरोसा नहीं जगा पा रहा. उन्हें लगता है कि यह ऐसा वादा है जिसे पूरा नहीं किया जा सकता. जहां तक सत्ता पक्ष के जंगलराज के मुद्दे का सवाल है, मोकामा में दुलार चंद यादव की हत्या और उसमें जदयू उम्मीदवार अनंत कुमार सिंह की गिरफ्तारी के बाद वह मुद्दा भी असरदार नजर नहीं आ रहा.

मतदाताओं के उदासीन होने की एक वजह राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार में जोश की कमी भी रही. पहले दीवाली फिर छठ और फिर अचानक हुई बारिश ने राजनीतिक दलों के लिए प्रचार के मौके सीमित कर दिये. मोदी, राहुल, योगी, नीतीश औऱ तेजस्वी की रैलियां और उनमें कही बातें लोगों की चर्चा का विषय नहीं बन पाईं. ऐसे में वोटरों का इस चुनाव के प्रति आकर्षण बन नहीं पाया.

वोटिंग परसेंटेज से इतर जहां तक बिहार चुनाव के पहले चरण का सवाल है, इसमें राज्य के 18 जिलों के 121 सीटों पर वोट पड़े हैं. पिछले चुनाव में इनमें से एनडीए ने 59 और महागठंधन 61 सीटें मिली थीं. यानी इन सीटों पर महागठबंधन को अपेक्षाकृत बढ़त थी. मगर जो रिपोर्ट अलग-अलग इलाकों से आ रही हैं उस हिसाब से इस चरण में एनडीए को बढ़त मिलती नजर आ रही है और महागठबंधन की सीटें घट सकती हैं. खासकर पटना, सीवान, भोजपुर, बक्सर, सारण, मुजफ्फरपुर और बेगुसराय जिले में जहां पिछले चुनाव में महागठबंधन को अच्छी सीटें आई थीं.

इस चुनाव में अमूमन शांतिपूर्ण मतदान हुआ. सिवा एक दो जगहों में उपद्रव हुआ. पहली घटना लखीसराय में हुई जहां उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा पर कीचड़ फेंकने की घटना हुई. इसके बाद उनकी राजद प्रत्याशी से बहस हुई. वे प्रशासन के खिलाफ भी नाराजगी जाहिर करते नजर आये. वहीं सारण में विधायक सत्येंद्र यादव के वाहन का शीशा पत्थर से तोड़ने की घटना सामने आई. मोकामा के हिंसक वारदात के बाद ऐसा लग रहा था कि चुनाव में हिंसा की घटनाएं बढ़ सकती हैं. मगर पहले चरण में ऐसा कुछ होता नहीं दिखा.

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