दस साल बाद बिहार में चुनावी हिंसा की वापसी! इस बार इल्जाम भाजपा पर

चुनावी हिंसा की यह घटना सारण लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रत्याशी राजीव प्रताप रूडी और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की उम्मीदवार रोहिणी आचार्य के समर्थकों के बीच हुई है

गोलीबारी में घायल व्यक्ति का हाल-चाल लेतीं राजद की रोहिणी आचार्य
गोलीबारी में घायल व्यक्ति का हाल-चाल लेतीं राजद की रोहिणी आचार्य

चुनावी हिंसा के लिए बदनाम रहे बिहार में बीते एक दशक के दौरान हुए चुनाव हिंसामुक्त होते रहे तो लोग इसकी बात भूल ही गए थे. मगर 21 मई की सुबह बिहार के लिए एक बुरी खबर लेकर आई. बिहार के छपरा शहर में गोली-बारी की घटना हुई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और दो घायल हो गए.

गोलीबारी की ये घटना सारण लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रत्याशी राजीव प्रताप रूडी और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की उम्मीदवार रोहिणी आचार्य के समर्थकों के बीच हुई. इसमें मारे जाने वाले और जख्मी तीनों राजद समर्थक थे.

इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने भाजपा के खिलाफ जमकर आरोप लगाए. पत्रकारों से बातचीत में रोहिणी ने कहा, "हमारे तीन कार्यकर्ताओं को गोली मारी गई है, इनमें से दो की मौत हो गई है. हमें न्याय चाहिए. ये सब भाजपा वाले गुंडे हैं. इन पर एफआईआर होनी चाहिए. इन सब गुंडों को पकड़ कर जेल में डालना चाहिए."

हालांकि दो लोगों की मौत का उनका दावा गलत था. मौत एक की ही हुई थी. बाद में वे दोनों घायल कार्यकर्ताओं से मिलने के लिए पीएमसीएच भी गईं. इसके बाद सोशल मीडिया पर उन्होंने बयान जारी किया कि छपरा गोलीकांड के संदर्भ में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उच्च स्तरीय अधिकारियों से बात की है. दो कुख्यात अपराधी पकड़े गए हैं, जो फरार हैं उन्हें भी पकड़े जाने का आश्वासन मिला है. दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा. उनकी बंदूकों का लाइसेंस भी रद्द कराया जायेगा. पार्टी और नेतृत्व द्वारा मृतकों के परिवार की हर संभव और हर प्रकार से मदद की जाएगी.

इधर भाजपा प्रत्याशी राजीव प्रताप रूडी ने इन आरोपों पर जवाब देते हुए कहा, "जहां लालू जी रहेंगे वहां ऐसी घटना होगी ही. बिहार इसी बात से डरता है. इसी हिंसा से डरता है. बिहार की राजनीतिक लड़ाई इसी बात के लिए है." हालांकि उन्होंने यह भी कहा, "हमारे कार्यकर्ता डरपोक नहीं हैं. सेल्फ डिफेंस में गोलियां चलीं." मगर इस सवाल पर उन्होंने गोलमोल जवाब दिया कि प्रशासन ने मामले को बढ़ने से क्यों नहीं रोका. उन्होंने सारी जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर डाल दिया. साथ ही  उन्होंने लालू प्रसाद यादव और राजद के पुराने इतिहास पर सारा इल्जाम डालने की कोशिश की.

दरअसल इस पूरे मामले की शुरुआत 20 मई की शाम चुनाव वाले दिन हुई. उस दिन शाम चार बजे रोहिणी आचार्य छपरा शहर के तेलपा मोहल्ले के पास के दो बूथों पर पहुंची थीं. उन्हें देख कर भाजपा समर्थक शोर करने लगे और कहने लगे कि वे बूथ लूटने आई हैं. इसके बाद दोनों पक्षों के बीच हंगामा हुआ, पत्थरबाजी भी हुई और रोहिणी आचार्य राजद नेता भोला यादव के साथ वापस चली गईं.

जहां यह घटना हुई थी, उस जगह के पास भिखारी ठाकुर चौक पर अगली सुबह मंगलवार को गोलीबारी की घटना हुई. बताया जाता है कि सोमवार की शाम एक भाजपा समर्थक रमाकांत सोलंकी ने जो वीडियो बनाया उसी के बाद माहौल खराब हुआ. उस वीडियो में सोलंकी यह कहते दिख रहे थे, "रोहिणी आचार्य आ गई हैं बूथ छापने के लिए. बूथ नहीं छपाएगा. आप बूथ छपवाने के लिए आई हैं." उन्होंने यह वीडियो मीडियो को दे दिया जिससे राजद समर्थक उग्र हो गए. 

इस पूरी घटना के बारे में सारण के एसपी गौरव मंगला का कहना है, "सोमवार के झमेले की प्रतिक्रिया में 21 मई की घटना हुई है. इसमें तीन लोगों को गोली लगी थी जिसमें एक की मृत्यु हो गई है. एक घायल को पटना रेफर किया गया है और तीसरा खतरे से बाहर है. दो लोगों को हिरासत में लिया गया." हिरासत में रमाकांत सोलंकी को भी ले लिया गया है, जो हाल ही में भारतीय कबड्डी महासंघ के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष चुने गए हैं.

इस घटना में मरने वाले चंदन यादव के पिता कहते हैं कि मेरा बेटा तो पढ़ने जा रहा था. पता नहीं क्यों लोगों ने उसे गोली मार दी. राजीव प्रताप रूडी और भाजपा समर्थक चुनाव वाले दिन रोहिणी आचार्य के बूथ पर जाने को गलत और उकसावे की कार्रवाई बता रहे हैं. रूडी कहते हैं, "इन लोगों की आदत है घूम-घूमकर बूथों पर जाना." मगर रोहिणी कहती हैं, "कैंडिडेट होने के नाते बूथ पर जाना मेरा अधिकार है." रूडी एक तरफ 1991 से 2004 तक हुए बिहार में हुई चुनावी हिंसा और इसमें मरने वालों के आंकड़े देते हैं. मगर दूसरी तरफ अपने समर्थकों की गोलीबारी को भी जायज ठहराते हैं.

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मामला अब यादव बनाम राजपूत हो गया है. माहौल खराब हो रहा है. हालांकि सारण पुलिस ने मामले को और बिगड़ने से रोकने के लिए एहतियातन 23 मई तक इलाके में इंटरनेट सेवा पर रोक लगा दी है. 

यह सच है कि 1990 से 2004 के बीच बिहार में चुनावी हिंसा का दौर था. आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान चुनावों में कुल 641 लोगों की हत्या हुई थी. 2005 में चुनाव आयोग के विशेष पर्यवेक्षक केजे राव ने माहौल को शांत किया और उसके बाद से 2014 तक सिर्फ 15 लोगों की हत्या हुई.

2014 के बाद हुए दो विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव में कोई हिंसा नहीं हुई. अब दस साल बाद लोकसभा चुनाव में हुई इस हिंसा ने बिहार के लोगों को फिर से सकते में डाल दिया है. इस बार हिंसा का आरोप राजद के बदले भाजपा पर है.

Read more!