महाराष्ट्र: राज ठाकरे से एकनाथ शिंदे की मुलाकात! आखिर क्या खिचड़ी पक रही है?
इसी साल फरवरी में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ब्रेकफास्ट पर राज ठाकरे से मुलाकात की थी, जिसके बाद सवाल उठे थे कि क्या बीजेपी शिंदे और उनकी शिवसेना को घेरने के लिए ठाकरे का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है

अप्रैल की 15 तारीख को महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे के बीच मुलाकात हुई. मुंबई में हुई इस मीटिंग ने राज्य में सत्तारूढ़ महायुति में राजनीतिक फेरबदल की अटकलों को हवा दे दी है.
हालांकि, शिवाजी पार्क स्थित राज ठाकरे के आवास पर हुई इस रात्रिभोज बैठक को राजनीतिक रंग नहीं दिया गया, लेकिन इससे इस साल होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों के लिए मनसे और महायुति के बीच गठबंधन को लेकर चर्चा शुरू हो गई है.
इसी साल फरवरी में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ब्रेकफास्ट पर राज से मुलाकात की थी, जिसके बाद सवाल उठे थे कि क्या भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) शिंदे और उनकी शिवसेना को घेरने के लिए ठाकरे का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है. शुरुआती दोस्ती के बावजूद, पिछले साल के आखिर में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान शिंदे और राज के बीच रिश्ते ठंडे ही रहे थे.
अब शिंदे की डिनर मीटिंग को संभवतः बिगड़े हुए रिश्तों को पटरी पर लाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. मीटिंग के बाद उन्होंने इसे "सदिचा भेट" या शिष्टाचार भेंट बताया, जिसमें दिवंगत शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के जीवन और कामों पर भी चर्चा हुई.
मनसे के मुंबई प्रमुख संदीप देशपांडे ने कहा कि नेताओं के लिए यह जरूरी नहीं है कि वे जब भी मिलें तो राजनीति और शासन-प्रशासन पर बातचीत करें. उन्होंने कहा, "महाराष्ट्र में, निजी संबंधों को राजनीतिक विभाजन से परे रखा जाता है." हालांकि, एक गंभीर टिप्पणी में देशपांडे ने कहा, "हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे के विचारों को आगे बढ़ाने वाली दोनों (पार्टियों) की विचारधारा में कोई अंतर नहीं है."
जून 2022 में शिवसेना में टूट पड़ गई थी, क्योंकि शिंदे 39 विधायकों के साथ पार्टी छोड़कर बाहर निकल गए और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. इससे उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई.
बीजेपी ने तब शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर सबको चौंका दिया, जबकि फडणवीस उनके उपमुख्यमंत्री बने. अगले साल जुलाई में, अजित पवार भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से टूट कर अलग हो गए और आठ मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के साथ महायुति सरकार में शामिल हो गए. अजित को भी डिप्टी सीएम बनाया गया.
बीजेपी एनसीपी के एक धड़े को अपने पक्ष में करने के लिए बेचैन थी क्योंकि उसे लग रहा था कि शिंदे 2024 के लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे. हालांकि, 2024 में ही विधानसभा चुनावों में महायुति ने 288 में से 237 सीटें जीतकर शानदार जीत हासिल की. बीजेपी 132 सीटों के साथ सबसे आगे रही. शिवसेना ने 57 सीटें जीतीं और शिंदे को उपमुख्यमंत्री पद से संतोष करना पड़ा.
इससे पहले हुए आम चुनावों में (जिसमें एमवीए ने 48 में से 31 सीटें जीतीं) मनसे ने महायुति के उम्मीदवारों का समर्थन किया था और खुद मुकाबले से बाहर रही थी. लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन का प्लान फेल हो गया क्योंकि शिंदे ने अपनी पार्टी के कोटे से मनसे को सीटें देने का विरोध किया. मनसे नेताओं को सेना के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का उनका प्रस्ताव भी खारिज कर दिया गया.
कहा जाता है कि राज ने कुछ शिवसेना नेताओं को नकार दिया था, जिन्होंने चुनाव से पहले उनसे मिलकर तालमेल बिठाने की कोशिश की थी. इसके अलावा, यह भी कहा गया कि शिंदे शायद किसी दूसरे ठाकरे की बाहें मजबूत करने का इरादा नहीं रखते, जो उसी चुनावी क्षेत्र के लिए प्रतिस्पर्धा करेंगे. शिंदे गुट दावा करता है कि उनका गुट ही असली शिवसेना का प्रतिनिधित्व करता है.
मनसे ने 135 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई. जले पर नमक यह कि राज के बेटे अमित भी मुंबई की माहिम सीट से हार गए, वे शिवसेना (यूबीटी) के महेश सावंत और शिवसेना के मौजूदा विधायक सदा सरवणकर के बाद तीसरे नंबर पर रहे. उस चुनाव में तब कल्याण ग्रामीण से मनसे के एकमात्र विधायक रहे राजू पाटिल को भी हार का सामना करना पड़ा.
बीजेपी ने उस चुनाव में अमित का समर्थन करने की बात कही थी, लेकिन इसके बावजूद सरवणकर ने पीछे हटने से इनकार कर दिया. इससे राज ठाकरे के बेटे का चुनावी पदार्पण सफल साबित नहीं हुआ. बीजेपी ने शिवड़ी निर्वाचन क्षेत्र में मनसे के बाला नंदगांवकर का भी समर्थन किया था, लेकिन यह सीट शिवसेना (यूबीटी) विधायक अजय चौधरी ने जीती. कहा जाता है कि शिवसेना समर्थित निर्दलीय और पूर्व पार्षद संजय (नाना) अंबोले की मौजूदगी ने नंदगांवकर के वोटों में कटौती की. अंबोले हाल ही में शिवसेना में शामिल हुए हैं.
इसी तरह, मनसे के संदीप देशपांडे ने वर्ली में शिवसेना विरोधी वोटों को बांटने का काम किया, जहां उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे ने शिवसेना के मिलिंद देवड़ा के खिलाफ लगभग 8,900 वोटों से अपनी सीट बरकरार रखी. मनसे नेताओं का दावा है कि अगर आदित्य और देशपांडे या देवड़ा के बीच सीधा मुकाबला होता, तो देवड़ा आसानी से जीत सकते थे.
जैसा कि एक सीनियर बीजेपी विधायक ने कहा, "राज ने माहिम से अपने बेटे के लिए पार्टी का समर्थन हासिल कर लिया, जबकि राजू पाटिल के लिए ऐसा नहीं कर पाए, जो शिंदे की सेना के राजेश मोरे से हार गए. राज ने अपनी पार्टी की चुनावी हार के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को जिम्मेदार ठहराया."
बृहन्मुंबई नगर निगम सहित स्थानीय निकायों के चुनाव आगामी महीनों में होने की उम्मीद है. यह साफ नहीं है कि बीजेपी मुंबई में शिवसेना के साथ गठबंधन करेगी या नहीं; क्योंकि शिंदे का शहर में कोई खास जनाधार नहीं है. मुंबई की 36 विधानसभा सीटों में शिवसेना के छह विधायक हैं, जबकि शिवसेना (यूबीटी) के 10 विधायक हैं.
हालांकि, शिवसेना-मनसे का एक संयुक्त मोर्चा नगर निगम चुनावों में मराठी वोटों के एक बड़े हिस्से को बांट सकता है, जिससे उद्धव की पार्टी की संभावनाओं पर असर पड़ सकता है.