झारखंड में ड्रग्स और कफ सिरप की लत कैसे बिगाड़ रही युवाओं का मानसिक संतुलन?
रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड अलाइड साइंस में हर हफ्ते इलाज के लिए करीब 40 ऐसे युवा पहुंचते हैं जो नशे की लत में पड़कर मानसिक संतुलन खो चुके हैं

झारखंड के दुमका जिले के संजीत कुमार (बदला हुआ नाम) बीते आठ सालों से नशे के आदी हैं. जैसा ज्यादातर भारतीय परिवारों में होता है, परिजनों को लगा कि शादी कर देने से स्थिति सुधर जाएगी. लेकिन ऐसा होता नहीं है और हुआ भी नहीं. अब हालात ये हैं कि संजीत का मानसिक संतुलन पूरी तरह बिगड़ चुका है. अब उन्हें घर पर जंजीर से बांधकर रखा जाता है. उनका डेढ़ साल का एक बेटा भी है.
रूपक मंडल (बदला हुआ नाम) पाकुड़ जिले के रहनेवाला है. मात्र 18 साल का यह युवक बीते सात सालों से नशे का आदी है. हालात ये हैं कि इस चक्कर वह तीन बार जेल जा चुका है. आसपास के लोगों के तानों से परेशान पिता पहले तो बीमार पड़े और फिर दो साल पहले उनका निधन हो गया. अब घर को रूपक का भाई जो कि किराने की दुकान चलाते हैं, वही चला रहे हैं. भाई बताते हैं कि हर दिन घर में झगड़ा होता है. लेकिन हम कुछ बोल नहीं सकते हैं क्योंकि इन्हें नशे का सामान उपलब्ध कराने वाले इतने ताकतवर हैं कि वे हमला भी कर सकते हैं.
मालती देवी भी दुमका की रहने वाली हैं. उनका बड़ा बेटा 18 और छोटा बेटा 16 साल का है. दोनों बीते तीन सालों से नशे के लती हैं. पिता बस कंडक्टर हैं. मालती बताती हैं, "दोनों बेटे जबतब घर से पैसे चोरी करते हैं या फिर कहीं मजदूरी कर के पैसा जुटा लेते हैं. कोई दवाई जैसा बोतल लेकर आते हैं, दोनों मिलकर उसे पीता रहते हैं.”
इन तीनों केस में एक बात कॉमन है कि ये सभी गांजे के साथ-साथ कोडिन फॉस्फेट नाम के कफ सीरप के आदी हैं. झारखंड की राजधानी के प्रतिष्ठित मानसिक अस्पताल रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड अलाइड साइंस (रिनपास) के डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा के मुताबिक, "इस हॉस्पिटल में बीते एक साल में हर सप्ताह 40 से अधिक ऐसे युवा इलाज के लिए आ रहे हैं जिनका मानसिक संतुलन गड़बड़ा चुका है. इनमें 90 फीसदी से अधिक कोडिन फॉस्फेट नामक कफ सीरप का इस्तेमाल कर रहे हैं.’’ डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा बताते हैं, "ये मरीज पहले गांजा लेते हैं, इसके बाद 24 से 48 घंटे तक ट्रांस में रहने के लिए कोडिन के साथ गांजा, सिगरेट और कोई मीठा लिक्विड इस्तेमाल करते हैं. खास बात ये है कि दो साल पहले तक इन रोगियों में 18 से 25 साल के युवक-युवतियों की संख्या अधिक होती थी. लेकिन बीते दो सालों में इसमें 12 से 20 साल के नौजवानों की संख्या तेजी से बढ़ी है.’’
सिन्हा आगे जानकारी देते हैं कि पहले कोरेक्स कफ सिरप बिना प्रिस्क्रिप्शन के आसानी से उपलब्ध था और लोग नशे के लिए दस बोतल तक पी जाते थे. इसके बाद इसके नशे को बढ़ाने के लिए बेंजोडायाजेपिन कैटेगरी की गोली, जिसमें डायजीपाम, एल्प्राजोलम और नाइट्राजीपाम शामिल है, उसका इस्तेमाल करते थे. यह उन्हें 24 से 48 घंटे तक नशे की गिरफ्त में रखती थीं. बीते कुछ सालों में कोरेक्स की जगह ब्राउन शुगर ने ले ली है. फिर उसके नशे को लंबे समय तक कायम रखने के लिए कोडिन पिया जा रहा है. चूंकि इस दौरान भूख नहीं लगती, ऐसे में इसके आदी लोग ठंडेे पेय पदार्थ का सेवन करते रहते हैं.
राज्य के कई जिलों में अलग-अलग अखबारों में स्वास्थ बीट कवर कर रहे पत्रकारों की मानें तो झारखंड के लगभग सभी जिलों के ग्रामीण इलाकों के दवा दुकानों पर हर दिन 100 से अधिक युवा इसकी खरीददारी कर रहे हैं. दुमका जिले के गांव हंसडीहा मिली एक जानकारी के मुताबिक यहां भी भारी मात्रा में युवा इसका सेवन कर रहे हैं. कुछ घरों में बिगड़े दिमागी संतुलन वाले युवकों को इलाज के अभाव में जंजीर से बांध कर रख दिया गया है. रांची की एक इंटरनेशनल महिला खिलाड़ी का बेटा भी इस वक्त रिनपास में ही एडमिट है.
रिनपास की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक जहां साल 2022-23 में नशे की वजह से मानसिक रूप से बीमार 503 लोगों को इलाज के लिए एडमिट किया गया. वहीं साल 2023-24 में 693 मरीजों को एडमिट किया गया था. साल 2024 से 2025 तक के आंकड़े आधिकारिक रुप से जारी नहीं किए गए हैं. लेकिन डॉ सिद्धार्थ सिन्हा के मुताबिक अब हर सप्ताह 35 से 40 मरीज भर्ती हो रहे हैं.
नशे के और भी तरीके
बीते 21 नवंबर को वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो की पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) टीम ने 1 किलो 200 ग्राम सांप का जहर बरामद किया था. सांप के जहर के साथ तीन तस्करों को भी गिरफ्तार किया गया था. जबकि सात को हिरासत में लिया गया. तस्करों के पास से पैंगोलिन का शल्क भी बरामद हुआ था. शुरुआती पूछताछ से पता चला कि इनका इस्तेमाल भी नशे के लिए होना था.
बीते साल झारखंड पुलिस ने पूरे राज्य में सात जिलों- खूंटी, गुमला, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला, हजारीबाग, चतरा व लातेहार में नशे के कारोबार से जुड़े 366 स्थलों को चिह्नित किया था. पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, खूंटी ऐसा जिला है, जहां सबसे अधिक 296 स्थल नशे के उत्पाद के लिए पूरे राज्य में चर्चित हैं. जबकि, लातेहार जिले में सबसे अधिक 106 लोग अभी नशे के कारोबार में शामिल हैं.
राज्य पुलिस के ही आंकड़ों के मुताबिक नवंबर 2024 से जनवरी 2025 तक पुलिस की ओर से राज्य भर में चलाए गए व्यापक अभियानों के दौरान झारखंड में 19,086 एकड़ भूमि पर अवैध अफीम की फसल नष्ट की गई थी. पुलिस के अनुमान के मुताबिक इस फसल से 80 हजार किलो अफीम का उत्पादन किया जाना था. एक किग्रा अफीम का बाजार मूल्य करीब पांच लाख रुपये है. ऐसे में 80 हजार किलोग्राम उत्पादित अफीम का बाजार मूल्य करीब 40 अरब रुपए होता.
राज्य में नशा और सट्टेबाजी का भी कनेक्शन मिल रहा है. पलामू जिले का रहनेवाला एक युवक बीते दो सालों से अवैध सट्टेबाजी में लगा था. इस साल की शुरूआत में उसे लगभग 7 लाख रुपए का नुकसान हो गया. पहले डर और फिर डिप्रेशन में आने के बाद उसने गांजा, ब्राउन शुगर लेना शुरू किया और फिर कोडिन फॉस्फेट लेने लगा. पैसे कम पड़े तो 2.50 लाख रुपए की अपनी बाइक को 10 हजार रुपए में गिरवी रख दिया. फिलहाल रिनपास में ही उसका इलाज चल रहा है.