नकली दवाएं और नशे का कारोबार; आगरा कैसे बन रहा ड्रग माफिया का नया ठिकाना?

मल्टी-स्टेट नेटवर्क, सिस्टम की खामियां और बार-बार की बरामदगियां बता रही हैं कि अब आगरा ड्रग्स के जहरीले धंधे का उभरता ठिकाना बन गया है

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सांकेतिक तस्वीर

आगरा के फव्वारा चौक के पास 22 अगस्त को काफी अफरा-तफरी का माहौल था. यूपी की एक स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने यहां दो मेडिकल स्टोरों - बंसल मेडिकल एजेंसी और हेमा मेडिकल स्टोर पर छापा मारा था. यहां दवाओं की जांच होनी थी लेकिन उनकी भारी मात्रा देखकर इन दोनों दुकानों को सील कर दिया गया. 

इस एसटीएफ में पुलिस और फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफएसडीए) के अधिकारी शामिल थे. अगले दिन आसपास लखनऊ और कानपुर सहित सात जिलों के औषधि विभाग के और अधिकारी बुलाए गए. हेमा मेडिकल स्टोर के गोदाम की जांच की गई तो पता चला कि यहां करीब ढाई करोड़ रुपए की नकली दवाएं मौजूद थीं. अधिकारियों ने इन सबको जब्त कर लिया.

इससे पहले 22 अगस्त को भी 80 लाख रुपये की नकली दवाएं जब्त की गई थीं. दूसरी चौंकाने वाली बात यह भी थी कि कार्रवाई रोकने के लिए हेमा मेडिकल स्टोर के संचालक ने एसटीएफ इंस्पेक्टर और सहायक आयुक्त औषधि को एक करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की. एसपी एसटीएफ आगरा यूनिट राकेश यादव बताते हैं, “दवा कारोबारी की फर्म पर छापा मारकर कार्रवाई की गई. इस दौरान कार्रवाई रोकने के लिए संचालक ने टीम को एक करोड़ रुपये की रिश्वत देने की कोशिश की. आरोपी को रुपयों के साथ रंगेहाथ गिरफ्तार कर मुकदमा दर्ज किया गया है.” 

आगरा में नकली दवाओं के गिरोह पर यह इकलौती कार्रवाई नहीं है. पिछले कई वर्षों से यहां नकली और घटिया दवाओं का कारोबार लगातार सामने आ रहा है. यह सिलसिला बताता है कि शहर अब इस अवैध धंधे की एक अहम कड़ी बन चुका है. एफएसडीए के आंकड़े बताते हैं कि यूपी में पिछले एक वर्ष में 30.77 करोड़  रुपए से अधिक की नकली दवाएं जब्त हुई हैं. इनमें 5 नवंबर 2024 को आगरा में 1.36 करोड़ की बड़ी खेप भी शामिल है. राकेश यादव बताते हैं, “आगरा में प्रसिद्ध मानसिेक रोग अस्पताल होने की वजह से यहां पर नींद, एंटी-डिप्रेश और दर्द की दवाओं की बहुत ज्यादा खपत है. इसी की आड़ में आगरा में इन दवाओं की नकली मांग पैदाकर ड्रग माफि‍या नारकोटिक्स दवाओं का अवैध करोबार कर रहे हैं.” 

आगरा में अवैध दवाओं के कारोबार से जुड़ी एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां दवा बाजार में मानसिक रोगों, दर्द और नींद की दवाओं की असल बिक्री 25 लाख रुपए रोज की होती है जबकि इसका तीन गुना करीब नशे के काम में आ रही है. औषधि‍ विभाग के एक अधि‍कारी बताते हैं, “यह आश्चर्यजनक है कि करीब कुल 50 लाख रुपए कीमत की ट्रोमाडॉल (एक नार्कोटिक दवा) और कोडीन सिरप ही आगरा में फर्जी बिल के जरिए बेच दी जाती है. दूसरी नार्कोटिक्स दवाएं जैसे स्पास्को प्रोक्सि‍वान, नाइट्राजीपाम टैबलेट, एल्प्राजोलाम, क्लोनाजीपाम और फैंसीड्रिल सिरप शामिल हैं. इनमें कोडीन और ट्रोमाडॉल की नशे के लिए सबसे अधि‍क कालाबाजारी होती है. ये दवाएं दस गुना दाम तक बिक जाती हैं.”

सहायक आयुक्त औषधि‍ नरेश मोहन दीपक बताते हैं कि दर्द निवाकर इंजेक्शन ट्रोमाडॉल और नींद की टैबलेट एल्प्राजोलाम का इस्तेमाल नशे के लिए किया जाता है. इन दोनों दवाओं का कोई भी कॉम्बिनेशन नहीं आता है. कुछ वर्ष पहले नकली दवाओं के तस्करों के ठिकानों से “हाइ डोज ट्रोमाडॉल” नाम के कैप्सूल जब्त किए गए थे. इन कैप्सूल के रैपर पर ट्रोमाडॉल, एल्प्राजोलाम और दर्द निवारक दवा डाइक्लोफि‍नेक का कंबिनेशन दर्ज था. इस तरह अवैध ढंग से दवाओं के सॉल्ट का उपयोग नशीली दवा के रूप में तस्कर कर रहे हैं. आगरा में एक ट्रैवेल एजेंसी चलाने वाले दिलीप मल्होत्रा बताते हैं, “ हमारा शहर देश का एक बड़ा पर्यटक केंद्र हैं और यहां पर काफी संख्या में विदेश पर्यटक आते हैं जिनमें से कई नशे के आदी होते हैं. इन्हीं पर्यटकों की डिमांड पर ड्रग तस्कर नशीली दवाएं मुहैया कराते हैं. इसके अलावा आगरा के सड़क मार्ग से यूपी के सीमावर्ती राज्यों से अच्छी कनेक्टीविटी ने भी दवाओं की तस्करी के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया है.”  

यूपी में दवाओं के एक बड़े कारोबारी सुनील दुबे के मुताबिक नकली दवाओं पर नकेल कसने के लिए सबसे अहम है दवा के सफ़र को पूरी तरह ट्रैक करने वाली प्रणाली, यानी “एंड-टू-एंड ट्रेसबिलिटी”, जहां हर स्ट्रिप और हर बॉटल पर यूनिक डिजिटल कोड हो, जिसे डॉक्टर से लेकर उपभोक्ता तक कोई भी स्कैन करके सत्यापित कर सके. यह सिस्टम न सिर्फ़ नकली दवाओं की पहचान आसान करेगा बल्कि सप्लाई चेन की पारदर्शिता भी बढ़ाएगा. 

दुबे के मुताबिक, “लाइसेंसिंग की रियल-टाइम निगरानी को मज़बूत करना होगा. आज मल्टी-स्टेट ‘लोन लाइसेंस’ और थर्ड-पार्टी मैन्युफ़ैक्चरिंग की आड़ में कई संदिग्ध इकाइयां काम करती हैं. यदि इनका डेटा-लिंक्ड ऑडिट अनिवार्य हो और संदिग्ध कंपनियों की ब्लैकलिस्ट सार्वजनिक व लगातार अपडेटेड रखी जाए, तो नेटवर्क का बड़ा हिस्सा खुद ही खत्म हो जाएगा.” 

दवा कारोबारियों के मुताबिक एक और अहम पहलू है “क्विक-रिकॉल कम्युनिकेशन”. जब किसी बैच में खामी मिले तो सूचना केवल ड्रग्स विभाग की फ़ाइलों तक सीमित न रहे, बल्कि पुलिस, एफएसडीए, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, केमिस्ट संघ और ई-फार्मेसी प्लेटफ़ॉर्म तक एक संयुक्त कमांड-चेन के जरिये पहुंचे. मरीजों और दुकानों को एसएमएस, व्हाट्सएप और काउंटर डिस्प्ले के जरिए फौरन अलर्ट किया जा सके. 

कारोबारी एनसीआर-आगरा-लखनऊ कॉरिडोर में जॉइंट इंटेलिजेंस सेल की ज़रूरत महसूस कर रहे हैं, जो न सिर्फ़ गोदामों और ट्रांसपोर्ट नेटवर्क बल्कि बारकोड प्रिंटर और पैकेजिंग सप्लाई तक पर विशेष निगरानी रखे. दरअसल यही वो कड़ी है जहां से नकली नेटवर्क को पनपने का मौका मिलता है.

आगरा में नकली दवाओं का जखीरा मिलने के बाद जिला प्रशासन ने जांच के आदेश दिए हैं और ड्रग कंट्रोल विभाग ने विशेष टीम गठित की है. मेडिकल स्टोर्स की जांच तेज़ की जा रही है और दुकानों से सैंपल लेकर लैब टेस्ट किए जा रहे हैं. अधिकारियों का दावा है कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी.

फिर भी बड़ा सवाल यही है कि जहां स्वास्थ्य और जीवन से सीधा जुड़ा मामला हो, वहां इतनी बड़ी मात्रा में नकली दवाएं बाज़ार में कैसे उतर गईं? सिस्टम की खामियां और लापरवाही ही इस ज़हरीले धंधे को हवा दे रही हैं. इसे थामने का कोई पुख्ता उपाय अभी तक तो सामने नहीं आया है. 

जब आगरा में नकली दवाओं के बड़े ड्रग डीलर पकड़े गए 

वर्ष 2025 : एनडीपीएस की टीम ने नुनिहाई में ऑटो से कालाबाजारी के लिए जा रहीं नशे की दवाओं को पकड़ा. ताजगंज में पप्पू और इदरीश के घर बने गोदाम में अवैध रूप से रखीं दवाएं बरामद कीं.

वर्ष 2024 : शास्त्रीपुरम में जीजा-साले अश्वनी गुप्ता-सौरभ दुबे की पशुओं की नकली दवा बनाने की दो फैक्ट्री पकड़ी गईं. कमला नगर निवासी विजय गोयल की नकली दवा-सिरप बनाने की चार फैक्ट्री पकड़ी.

वर्ष 2022 : कमला नगर के मोहित बंसल की हिमाचल प्रदेश के बद्दी में नकली दवा बनाने की फैक्ट्री पकड़ी.

वर्ष 2021 : आवास विकास कॉलोनी में धीरज राजौरा, प्रदीप राजौरा के नकली, एक्सपायर्ड दवाओं की री-पैकिंग की फैक्ट्री पकड़ी. गढ़ी भदौरिया में राजन अग्रवाल की नकली सर्जिकल सामान बनाने की फैक्ट्री पकड़ी.

वर्ष 2019 : फ्रीगंज में दो गोदामों में नकली दवाओं का भंडार पकड़ा.

वर्ष 2018 : कमला नगर निवासी पंकज गुप्ता का नकली और सरकारी दवाओं की कालाबाजारी का अंतरराज्यीय गैंग पकड़ा. 

वर्ष 2016 : कमला नगर निवासी कपिल अरोड़ा और जितेंद्र अरोड़ा की पंजाब एसटीएफ ने नशे के लिए दवाओं की कालाबाजारी पकड़ी.

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