झारखंड : सरकारी अस्पतालों के लिए डॉक्टरों ने बोली लगाकर सैलरी तय की! आखिर कैसे हुआ ये?

झारखंड में पहली बार सरकारी अस्पतालों के लिए बिडिंग प्रक्रिया के जरिए डॉक्टरों की नियुक्ति की गई है

झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी डॉक्टरों को नियुक्तिपत्र सौंपते हुए

इंडियन प्रीमियर लीग में आपने देखा होगा कि खिलाड़ियों पर बोली लगती है. बड़ी-बड़ी कलाकृतियों की भी बोली लगती है और तमाम कारोबारी गतिविधियों में बोली का चलन है. लेकिन इन सब से अलग झारखंड में डॉक्टरों ने बोली लगाकर अपनी सैलरी तय की है. राज्य में ऐसा पहली बार हुआ है. 

सबसे ज्यादा 3 लाख रुपए तो सबसे कम 69 हजार रुपए की बोली लगी. कुल 126 डॉक्टरों ने बोली लगाकर खुद अपना वेतन तय किया. ये सभी अपने विषय के विशेषज्ञ डॉक्टर हैं. इसमें ईएंडटी, गायनोलॉजिस्ट, रेडियोलॉजिस्ट, पेडियाट्रिशियन जैसे विशेषज्ञ शामिल हैं. 

अधिक वेतन पाने वाले दूरदराज के जिलों में गए, जबकि कम वेतन वाले शहरी इलाकों में रहे. अधिक वेतन वाले डॉक्टरों ने 2.50 लाख से 3 लाख तक के बीच अपना वेतन चुना. हालांकि इन्हें वेतन के अलावा और कोई सुविधा जैसे पीएफ, आवास, महंगाई भत्ता जैसी सुविधाएं नहीं मिलेंगी. 

स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अजय कुमार सिंह ने कहा कि, झारखंड में पहली बार बिडिंग प्रक्रिया के तहत डॉक्टरों की नियुक्ति की गई है. कुल 280 आवेदन आए थे, जिसमें से 126 डॉक्टरों का चयन किया गया है. 

उन्होंने यह भी बताया कि यह नियुक्ति नॉन-ट्रांसफरेबल है इसलिए पोस्टिंग के बाद कोई भी ट्रांसफर के लिए आवेदन नहीं कर सकेगा. अगर किसी डॉक्टर ने ट्रांसफर के लिए आवेदन किया तो उसे नौकरी छोड़नी होगी. सिंह के मुताबिक अब सभी जिलों के सदर अस्पतालों को प्राइवेट अस्पताल की तरह दुरुस्त किया जाएगा और डॉक्टरों की जिम्मेदारी है कि अस्पताल को दुरूस्त रखें. 

नेशनल हेल्थ मिशन के रिक्रूटमेंट अधिकारी रविंद्र रजक ने विस्तार से पूरी प्रक्रिया बताई. उन्होंने जानकारी दी, “सभी को लोकेशन के लिए तीन ऑप्शन दिए गए थे. मान लीजिए अगर पाकुड़ जिले में तीन डॉक्टरों ने बिड किया. एक ने 2.90 लाख रुपए सैलरी की बोली लगाई तो दूसरे ने 2.80 लाख रुपए की बोली लगाई, तो इसमें दूसरे वाले को नौकरी मिली.” 

इस प्रक्रिया में 25 से ज्यादा डॉक्टरों का 2.75 लाख से 3 लाख रुपए पर चयन हुआ है. वहीं 50 से ज्यादा डॉक्टरों का चयन 2 लाख से 2.75 लाख रुपए तक में हुआ है. करीब 15 डॉक्टरों ने 69 हजार से 1 लाख रुपए के बीच बोली लगाई. 

आखिर क्यों लगानी पड़ी बोली 

राज्य में कई दफे डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए आवेदन मंगाए जा रहे थे, लेकिन डॉक्टर मिल नहीं रहे थे. राज्य के सुदूर इलाकों में कोई डॉक्टर जाना नहीं चाहता. 

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी कहते हैं, “हमारे बच्चे पढ़ते सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हैं, लेकिन सेवा प्राइवेट हॉस्पिटलों में देते हैं. ऐसे में हमने विशेषज्ञ डॉक्टरों को बुलाकर पूछा कि आपको क्या चाहिए? मन पसंद पोस्टिंग और पैसा दिया है. अब ये पूरे मन से सेवा करें. 

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन झारखंड चैप्टर के सेक्रेटरी डॉ प्रदीप कुमार इसके नफा और नुकसान दोनों तरफ इशारा करते हैं. वे कहते हैं, 
“झारखंड में डॉक्टर टिकना नहीं चाहते. वे काम करने के लिए बड़े शहरों और निजी अस्पतालों में चले जाते हैं. ऐसी स्थिति में सरकार की इस पहल को सकारात्मक तौर पर लेना चाहिए.” 

बीते साल 2 अगस्त 2024 को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल की ओर से लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया गया था कि झारखंड में 8,544 एलोपैथिक डॉक्टर हैं. जबकि साल 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य की आबादी करीब 3 करोड़ 30 लाख है. हालांकि इस वक्त अनुमानित आबादी 4 करोड़ से अधिक बताई जा रही है. इस लिहाज से देखें तो प्रति 4,682 व्यक्ति पर 1 डॉक्टर है. जो कि डबल्यूएचओ द्वारा निर्धारित प्रति 1000 व्यक्ति पर 1 डॉक्टर के मुकाबले काफी कम है. 

बड़ी संख्या में डॉक्टरों की जरूरतों को इस आंकड़े से समझिये. झारखंड इकॉनोमिक सर्वे 2023-24 के मुताबिक राज्य के सरकारी अस्पतालों में इन पेशेंट, यानी जिन्होंने एडमिट होकर इलाज कराया उनकी संख्या करीब साढ़े तीन लाख और आउट पेशेंट यानी जो इलाज कराने आए और डॉक्टर से दिखाकर चले गए, उनकी संख्या एक करोड़ से ज्यादा थी.

क्या ये डॉक्टर काम कर पाएंगे?

इस सवाल के जवाब में डॉ. प्रदीप कुमार उम्मीद से भरे हैं लेकिन यह भी कहते हैं, “इन डॉक्टरों की नियुक्ति तभी सफल हो पाएगी, जब सरकार जिला अस्पतालों या जहां इनको नियुक्त किया गया है, वहां नई मशीनें, नई टेक्नोलॉजी दे. यहां तो कहीं ऑपरेशन थियेटर नहीं है, तो कहीं ब्लड बैंक तक नहीं है. ऐसे में ये विशेषज्ञ डॉक्टर जो भी सीखकर आए हैं, वो भी भूल जाएंगे.” 

यह बात सही भी है. बिड के बाद गढ़वा सदर अस्पताल में 3 लाख की सैलरी पर डॉ. इकबाल अंसारी की नियुक्ति हुई है. वे ईएंडटी (आंख-कान) के विशेषज्ञ हैं. लेकिन अस्पताल में ईएंडटी जांच के लिए जरूरी मशीन ही नहीं है. यहां न तो जांच और न ही सर्जरी के लिए कोई सुविधा है. ईएंडटी जांच के लिए जरूरी जांचों में से एक ऑडियोमेट्री टेस्ट होता है. ये राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में भी बीते दो सालों से नहीं हो पा रहा है क्योंकि मशीन खराब है. इसका खमियाजा ये होता है कि अगर किसी का कान सुन्न पड़ा है, ऐसे में इस जांच के बिना इलाज संभव नहीं है.

गढ़वा के सिविल सर्जन डॉ. जॉन एफ. केने़डी कहते हैं, “ईएनटी विशेषज्ञ चिकित्सक के आने के बाद जरूरत के अनुसार मशीन की खरीदारी की जाएगी. धीरे-धीरे इएनटी के मरीजों का बेहतर इलाज की व्यवस्था होगी.  उसके लिए स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से तैयार है.” 

क्या वेतन विसंगति की बात नहीं उठेगी? इन डॉक्टरों की ये नियुक्ति स्थाई नहीं है. यह अनुबंध आधारित है. अगर इनकी जगह कोई नियमित विशेषज्ञ डॉक्टर बहाल होते हैं, ऐसी स्थिति में अनुबंध पर बहाल हुए डॉक्टर की सेवा समाप्त कर दी जाएगी. हालांकि इसकी संभावना कम है. इन्हें एक साल के बाद प्रदर्शन के आधार पर प्रदर्शन भत्ता दिया जाएगा. 

इन सब के बीच अहम बात ये है कि किसी मेडिकल कॉलेज में अस्टिटेंट प्रोफेसर से प्रोफेसर बनने तक में 10 से 12 साल लग जाते हैं. इसके बाद भी प्रोफेसर की सैलरी 3 लाख नहीं है. यहां तक कि जिन सदर अस्पतालों में इन अनुबंध वाले डॉक्टरों की नियुक्ति हुई है, वहां से सिविल सर्जन की भी इतनी सैलरी नहीं है. 

24 जुलाई को स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. यहां उन्होंने दावा किया कि राज्य में स्वास्थ्य क्रांति चल रही है. लेकिन जब पत्रकारों ने सवाल किया कि हर दिन सुदूर इलाके से कोई न कोई मरीज खाट पर लादकर अस्पताल पहुंच रहा है. किसी की रास्ते में मौत हो जाती है. किसी को एंबुलेंस तक नहीं मिल पा रही है. तो मंत्री ने जवाब दिया, “स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भी इस तरफ ध्यान देना होगा. मुझे मंत्री बने 8 महीने हुए हैं, थोड़ा तो समय दीजिए.’’

Read more!