दिल्ली की रामलीला में बक्सर के 'विश्वामित्र' की क्या है राजनीति?

बिहार के बक्सर से भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे दिल्ली की एक रामलीला में विश्वामित्र का चरित्र निभा रहे हैं

रामलीला कमिटी के साथ अश्विनी चौबे
रामलीला कमिटी के साथ अश्विनी चौबे

केंद्रीय उपभोक्ता मामले और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे पिछले दो-तीन दिन से रामलीला में एक रोल करने को लेकर चर्चा में हैं. इंडिया टुडे ने जब इस बारे में उनसे सवाल किया तो उनका कहना था, “हां, इस साल मैं रामलीला में रोल अदा कर रहा हूं. विश्वामित्र का रोल कर रहा हूं. आप कहेंगे, विश्वामित्र क्यों? तो मैं उस पुण्यभूमि का सेवक हूं, जिसकी पहचान विश्वामित्र की वजह से है. वही विश्वामित्र जो राम के गुरु थे. उसी विश्वामित्र की नगरी है, बक्सर. जहां का मैं सांसद हूं.” 

इस बात की पुष्टि लवकुश रामलीला के प्रेसिडेंट अर्जुन कुमार भी करते हैं और कहते हैं,  "हमारे अनुरोध पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे जी ने विश्वामित्र का किरदार करना स्वीकार कर लिया है और उन्होंने इसके लिए रिहर्सल भी की है. लाल किला ग्राउंड में इस रामलीला का मंचन होगा और 17 अक्टूबर को हम लोग उन्हें विश्वामित्र के किरदार में देखेंगे."  अभिनेता तो अक्सर राजनीति में आते हैं और राजनेताओं के बारे में भी चुटकियां ली जाती हैं कि वे अभिनेताओं से बेहतर अभिनेता साबित होते हैं, मगर राजनीतिक जीवन में. रंगमंच पर नहीं. 

“क्या आपने पहले भी कभी अभिनय किया है?” यह सवाल जब हमने अश्विनी चौबे से पूछा तो उनका कहना था, “मेरे गांव भागलपुर के दरियापुर में सरस्वती पूजा, शिवरात्रि और यज्ञ वगैरह के आयोजन के मौके पर अक्सर नाटक हुआ करते थे. ये नाटक सामाजिक और देशभक्ति से जुड़े विषयों पर होते थे. उनमें मैं बाल कलाकार की भूमिका निभाता था. एक बार एक नाटक में मैंने कबीर का दोहा, ‘रहना नहीं देस बिराना है’ भी गाया था. रामलीला में पिछले साल भी मैंने विश्वामित्र की भूमिका निभाई थी.”

अश्विनी चौबे अपने संसदीय क्षेत्र बक्सर के बारे में एक दिलचस्प दावा भी करते हैं. वे कहते हैं, “दरअसल रामलीला की शुरुआत बक्सर से ही हुई थी. गोस्वामी तुलसीदास श्रीराम के जीवन पर शोध करते हुए खुद यहां आए थे. अभी जिस रघुनाथपुर में रेल हादसा हुआ है, उसका नाम खुद गोस्वामी जी का रखा हुआ है. वहीं पास में ब्रह्मपुर में उन्होंने ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर की स्थापना कराई थी और वहीं पर रामलीला का पहला मंचन हुआ था.”

वे बक्सर के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के बारे में कई जानकारियां देते हैं. केंद्रीय मंत्री के मुताबिक, “बक्सर सिद्धाश्रम की धरती है. यहां 84 हजार यज्ञ हुए हैं. यहीं आकर राम पराक्रमी कहलाए. यहां राम नहीं आते, अगर महर्षि विश्वामित्र जिद कर उन्हें यहां नहीं लाते तो वे एक राजकुमार बनकर ही रह जाते. यहां उन्होंने ताड़का और सुबाहु का वध किया. राक्षस मारीच को बाण से मारीच देश (मॉरिशस) भेज दिया. श्रीराम ने माता अहिल्या का उद्धार भी यहीं किया है. इतना ही नहीं वामन का अवतार भी यहीं हुआ है.”

दिल्ली रामलीला में विश्वामित्र का किरदार निभाएंगे अश्विनी चौबे

“मगर इस इलाके की वैसी पहचान पूरे देश में क्यों नहीं है? दो टर्म सांसद रहने के बावजूद आपने इसके लिए कुछ क्यों नहीं किया?” इस सवाल पर अश्विनी चौबे अपनी कुछ योजनाओं का जिक्र करते हैं. वे कहते हैं, “मैं यहां पराक्रमी राम की विशालतम मूर्ति बनाने के लिए काम कर रहा हूं. यहां के चरित्रवन के तर्ज पर हमने नगर वन बनाने की योजना बनाई है, जहां महर्षि विश्वामित्र सहित इस इलाके के पांच प्रमुख ऋषियों की मूर्ति स्थापित होगी. मैं भगवान राम की इस पहली कर्मभूमि को दुनिया के क्षितिज पर लाना चाहता हूं.”

मगर स्थानीय लोग मानते हैं कि यह सब केवल कहने की बातें हैं. यहां हुआ कुछ भी नहीं है. भगवान राम की 1008 फीट की मूर्ति की घोषणा पिछले साल स्वामी रामभद्राचार्य के एक आयोजन में जरूर हुई थी. मगर उसको लेकर सिर्फ इतना ही काम हुआ है कि तीन महीने पहले एक टीम स्थल निरीक्षण के लिए आई, उसने कहा कि मूर्ति 300 फीट से ऊंची नहीं बन पाएगी. चैत्ररथ वन जिसका नाम बिगड़कर चरित्रवन हो गया है, के आधार पर जिस नगर वन की घोषणा हुई थी, उस दिशा में भी कोई काम नहीं हुआ है. यहां के विश्वामित्र से जुड़े स्थलों में कचरा और गंदगी का अंबार है.

अश्विनी चौबे ने पिछले दो लोकसभा चुनाव में राजद के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को मात दी है. इस बार उनके पुत्र पुनीत सिंह की राजद की ओर से इस सीट पर मैदान में उतरने की चर्चा है. हालांकि इस चर्चा पर पुनीत सिंह कोई टिप्पणी नहीं करते, मगर वे कहते हैं, “विश्वामित्र का नाम भाजपा के एजेंडे में कभी रहा भी है क्या? कभी आपने भाजपा के आधिकारिक बयान में विश्वामित्र का जिक्र सुना है? विश्वामित्र जिसने राम को शिक्षा-दीक्षा दी. गायत्री मंत्र दिया. और तो और विश्वामित्र ने तो इंद्र के विरोध में दूसरे स्वर्ग का निर्माण करने तक का प्रण कर लिया था. उस विश्वामित्र की भूमि पर कुछ किया भी गया है क्या? बातें जो भी की जा रही हों, जमीन पर तो कुछ भी नहीं दिखता.”

जाने-माने साहित्यकार और पटकथा लेखक निलय उपाध्याय भी बक्सर की उपेक्षा से आहत दिखते हैं. वे कहते हैं, “दरअसल कुबेर ने इस जगह को बसाने की जिम्मेदारी दी थी चित्ररथ को. इस चित्ररथ ने यहां एक वन बसाया, जिसका नाम चैत्ररथ वन था, अब चरित्रवन कहा जाने लगा. तपस्वियों के लिए यह वन इतना महत्वपूर्ण साबित हुआ कि यहां विश्वामित्र ने ही नहीं, अगस्त और वशिष्ठ ने भी सिद्धि प्राप्त की. यह सारा क्षेत्र सिद्धाश्रम कहलाने लगा था. मगर जिस तरह से विश्वामित्र का मजाक इस क्षेत्र में हुआ है, वे जिस तरह अपमानित किए गए हैं, वह शर्मनाक है. क्योंकि बक्सर में राम की मूर्ति तो बनाई जा रही है, मगर विश्वामित्र का कोई उल्लेख नहीं है. सच तो यह कि अगर बक्सर वाले विश्वामित्र के चरित्र को समझ गए तो ऐसे लोगों की बक्सर में कोई जगह ही नहीं होगी. उनको विश्वामित्र की कोई परवाह नहीं है, उनको राम को यहां स्थापित करना है और सामानांतर सत्य को स्थापित करने में हमारे सांसद महोदय को महारत हासिल है.”

अश्विनी कुमार चौबे, जो दो सत्र से बक्सर के सांसद रहे हैं, इस बार उनके टिकट कटने की खबरें भी चर्चाओं में हैं. खबर यह भी है कि एक अन्य भाजपा नेता मनोज कुमार तिवारी, जो गायक और अभिनेता दोनों हैं, बक्सर से टिकट के लिए प्रयासरत हैं. ऐसी खबरें हैं कि इस साल रामलीला में वे भी अंगद की भूमिका निभा रहे हैं. हालांकि ऐसी खबरों से अश्विनी चौबे इनकार करते हैं. वे कहते हैं, “खबरें तो चलती रहती हैं, मगर मैंने तय कर लिया है, मैं प्रभु श्रीराम के चरणों में ही रहूंगा. यहीं से चुनाव लडूंगा. इस पुण्यभूमि को दुनिया भर में स्थापित करना मेरा अधूरा काम है. इसे मैं पूरा जरूर करूंगा.”

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