बिहार : दरभंगा एयरपोर्ट पर बीते 11 में से 7 दिन नहीं उड़ी फ्लाइट; नए एयरपोर्ट कैसे चलेंगे?
दरभंगा एयरपोर्ट को उड़ान योजना के सबसे सफल उदाहरण के तौर पर प्रचारित किया जाता है, हालांकि यहां दिक्कतों की कोई कमी नहीं है. ऐसे में केंद्रीय बजट में बिहार के लिए घोषित तीन नए एयरपोर्टों को लेकर आशंकाएं जाहिर की जा रही हैं

लोकसभा में आम बजट पेश होने के दिन जिस वक्त बिहार को तीन ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट (भागलपुर, सोनपुर और राजगीर) दिये जाने की घोषणा हो रही थी, उस वक्त अगरतला में रहने वाले दरभंगा के आशीष कुमार ने एक्स(ट्विटर) पर लिखा, "नये ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट की तो खूब चर्चा हो रही है, मगर पुराने एयरपोर्ट का क्या हाल है, इस पर किसी का ध्यान नहीं है." अपने ट्वीट के साथ उन्होंने एक स्क्रीनशॉट लगाया थी, जिसमें दिल्ली से दरभंगा जाने वाली इंडिगो की विमान सेवा के रद्द होने की सूचना था. ठीक उसी वक्त मधुबनी जिले के फुलपरास के रहने वाले राज झा 75 किमी दूर फुलपरास से टैक्सी से दरभंगा एयरपोर्ट आये थे और उनकी भी फ्लाइट रद्द हो गई थी. उस रोज दरभंगा एयरपोर्ट से एक भी विमान ने न उड़ान भरी, न कोई फ्लाइट आई. एयरपोर्ट ऑथारिटी ने एक्स पर लिखा- विमानों के आवागमन की संख्या-शून्य, यात्री आवागमन कुल संख्या- शून्य.
राज झा जो दरभंगा से दिल्ली के नियमित यात्री हैं, बताते हैं, "मैं पिछले तीन दिनों से दिल्ली जाने की कोशिश कर रहा था. रोज टैक्सी लेकर एयरपोर्ट आता और पता चलता कि फ्लाइट कैंसिल हो गई और फिर वापस घर लौट जाता. आखिरकार तीन फरवरी को मुझे फ्लाइट मिली और मैं दिल्ली आ सका. और यह मेरे लिए कोई हैरत की बात नहीं है. मैं हर महीने कम से कम दो बार दिल्ली-दरभंगा आना-जाना करता हूं और ठंड के तीन महीनों में ऐसा मेरे साथ कई बार होता है."
लगभग सवा चार साल पहले उड़ान योजना के तहत शुरू हुए दरभंगा एयरपोर्ट की यह कहानी है. पिछले 11 दिनों में सात दिन इस एयरपोर्ट से एक भी फ्लाइट न गई, न आई. शेष चार दिनों में दो दिन आठ फ्लाइट और एक दिन दो फ्लाइट रद्द की गईं, सिर्फ एक दिन 24 जनवरी को यहां से सात फ्लाइटों ने उड़ान भरी और सात आईं, कोई फ्लाइट रद्द नहीं हुई. इस एयरपोर्ट से रोजाना सात फ्लाइट उड़ान भरती हैं और सात आती हैं. एक साप्ताहिक फ्लाइट है, जिसके कारण हफ्ते में एक या दो दिन आठ फ्लाइट आती और जाती हैं. इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि दरभंगा में विमान सेवा का क्या हाल है.
एयरपोर्ट अथॉरिटी के अधिकारी इसकी वजह कोहरे के कारण लो विजिविलिटी बताते हैं. दरभंगा एयरपोर्ट के निदेशक नावेद नाजिम कहते हैं, "विमान के उड़ान भरने के लिए विजिविलिटी 1400 के करीब होनी चाहिए, जो ठंड के दिनों में यहां अक्सर 200 और 300 तक हो जाती है. इसी वजह से ऐसी दिक्कतें आती हैं और हमें उड़ानों को कैंसिल करना पड़ता है."
इन हालात में यात्रियों पर क्या गुजरती होगी, यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. राज झा बताते हैं, "मैं तो आदी हो गया हूं और ज्यादा दूर से नहीं आता, मगर दरभंगा में फ्लाइट लेने दूर-दूर से यात्री आते हैं, कई यात्री नेपाल तक से आते हैं. उनका टैक्सी का किराया विमान किराये से भी काफी अधिक होता है, समझा जा सकता है कि उनपर क्या बीतती होगी. मैं देखता हूं, बड़ी संख्या में रोगी एंबुलेंस से यहां से फ्लाइट लेने आते हैं, उन्हें इमरजेंसी रहती है. विमान रद्द होने पर उनके साथ कैसी समस्या आती होगी, यह सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है."
एक अन्य विमान यात्री सरोज सिंह कहते हैं, "ठंड के दिनों में दरभंगा एयरपोर्ट से आना-जाना हम यात्रियों के लिए जुआ है. अगर फ्लाइट मिल गई तो ठीक वरना, हो गया नुकसान. अगर आपको किसी तय कार्यक्रम में शामिल होने दिल्ली या कहीं और जाना हो तो फिर दरभंगा के बदले पटना से जाना ही बेहतर होगा, वहां फ्लाइट कैंसिलेशन की संभावना कम रहती है."
इस एयरपोर्ट से मजदूरों का एक बड़ा तबका भी यात्रा करता है, जिसे खाड़ी देशों की कंपनियों में काम करने जाना होता है. उनकी दिल्ली या मुंबई से कनेक्टिंग फ्लाइट होती हैं. अक्सर उन्हें ले जाने एजेंट दिल्ली या मुंबई में रहते हैं. ऐसे में अगर उनकी फ्लाइट कैंसिल हुई तो उनका जाना कैंसिल और कई बार वीजा तक रद्द हो जाता है.
राज झा बताते हैं, "दिक्कत सिर्फ दरभंगा से जाने की नहीं है. दिल्ली से दरभंगा आने की भी कई मुश्किलें हैं. मैं खुद कई बार दिल्ली से उड़ा हूं और विमान उतर नहीं पाया तो वापस मुझे दिल्ली पहुंचा दिया गया. कई बार मेरे मित्रों को पटना या वाराणसी उतरना पड़ता है. उसके बाद बस से दरभंगा पहुंचाया जाता है."
मगर लो विजिविलिटी की समस्या तो उत्तर भारत के कई एयरपोर्टों में होती होगी, फिर ऐसी दिक्कत सिर्फ दरभंगा में ही क्यों? इस सवाल का जवाब अभिनव देते हैं, जो सामाजिक कार्यकर्ता हैं और दरभंगा में विमान सेवा शुरू कराने के आंदोलन से जुड़े रहे हैं. वे कहते हैं, "दरअसल लो विजिविलिटी की समस्या का मुकाबला करने के लिए हवाई अड्डों पर इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम लगाया जाता है. मगर अफसोस की बात यह है कि दरभंगा में विमान सेवा शुरू होने के चार साल से अधिक वक्त बीतने के बाद भी यह सिस्टम नहीं लगा है. बताया जाता है कि इसके इंस्टॉलेशन की प्रक्रिया अभी जारी है. इसके लिए अलग से 24 एकड़ जमीन दी गई है और उसकी घेराबंदी का काम अभी चल रहा है. इसे लगाने के लिए कई बार डेडलाइन दी गईं, लेकिन काम पूरा हुआ नहीं."
दरभंगा में 'कैप टू लाइट' लगाए जाने हैं. नावेद नाजिम कहते हैं, "जुलाई, 2025 तक इसकी डेडलाइन रखी गयी है. यह लग जाने से इस तरह की समस्या दूर हो जायेगी." जानकार बताते हैं कि इतने कोहरे वाले इलाके में कैप टू लाइट बहुत प्रभावी नहीं होती है, ज्यादातर हवाई अड्डों पर कैप वन लाइट लगे हैं. मगर नावेद कहते हैं, "500 विजिविलिटी होने पर इस लाइट से काम चल जायेगा."
कोहरे से निपटने की समस्या तो शायद आगे सुलझ जाए लेकिन राज झा एक और दिक्कत की तरफ इशारा करते हैं. वे बताते हैं, "संकट सिर्फ फ्लाइट कैंसिलेशन का नहीं है, किराये का भी है. जब उड़ान योजना शुरू हुई थी तो कहा गया था कि अब हवाई चप्पल वाला भी हवाई यात्रा कर सकेगा. मगर दरभंगा से दिल्ली का किराया किस आधार पर तय होता है, हम कभी समझ नहीं पाते. यहां न्यूनतम किराया 4500 रुपए होता है, आम तौर पर मैं छह हजार रुपये का टिकट लेकर जाता हूं और कई बार 13 हजार तक का टिकट लेता हूं. जबकि यहां के मुकाबले पटना से दिल्ली का किराया काफी सस्ता रहता है. ऐसे में उड़ान योजना का लाभ हवाई चप्पल वाला कैसे उठायेगा?" राज के साथी एक अन्य यात्री भी अपनी शिकायत दर्ज कराते हैं, " यहां फ्लाइट चलाने वाली एयरलाइन कंपनियां बहुत मनमानी करती हैं. फ्लाइट के अंदर सिर्फ चाय पीना चाहें तो नहीं मिलती, वे कहते हैं, चाय के साथ कुछ खाने को भी लेना होगा.’ राज झा एयरपोर्ट में सुविधाओं की कमी का भी सवाल उठाते हैं."
दरभंगा एयरपोर्ट को उड़ान योजना के सबसे सफल उदाहरण के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है, हालांकि यहां दिक्कतों की कोई कमी नहीं है. ऐसे में नए एयरपोर्टों को लेकर लोगों के मन में आशंकाएं होना सहज ही है. सरोज सिंह कहते हैं, "वैसे तो आजादी के वक्त से ही बिहार के 24 शहरों में हवाई पट्टी और एयरपोर्ट मैदान हैं. उनमें से कई हवाई पट्टियों पर पीएम और सीएम के विमान भी उतरते रहे हैं. अगर सरकार इनका विकास करने का दावा कर रही है, तो उसे सुविधाओं के बारे में तो सोचना ही चाहिए."