उत्तर प्रदेश : क्या रिंकू सिंह सपा सांसद प्रिया सरोज से सगाई की कीमत चुका रहे हैं?
चुनाव आयोग ने भारतीय क्रिकेटर को यूपी में “स्वीप” अभियान से अलग किया. शिक्षा विभाग की नौकरी में रिंकू सिंह की तैनाती भी अधर में

उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) नवदीप रिणवा ने क्रिकेटर रिंकू सिंह को “व्यवस्थित मतदाता शिक्षा एवं चुनावी भागीदारी” (स्वीप) अभियान के “स्टेट आइकॉन” के रूप में उनकी भूमिका से आधिकारिक रूप से हटा दिया है. चुनाव आयोग (ECI) ने भी इस फैसले पर सहमति दी है. अलीगढ़ जिला निर्वाचन अधिकारी राजनीतिक निष्पक्षता का हवाला देते हुए यह जानकारी दी गई है.
उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय ने 1 अगस्त को अलीगढ़ जिला निर्वाचन अधिकारी को पत्र लिखकर कहा कि सिंह से संबंधित सभी प्रचार सामग्री जैसे पोस्टर, वीडियो और अन्य मीडिया सामग्री तत्काल प्रभाव से हटा दी जानी चाहिए. युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता के कारण, सिंह को मतदाताओं को प्रेरित करने के लिए एक युवा प्रतीक के रूप में अभियान में शामिल किया गया था.
एक अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, "रिंकू सिंह, जो पहले विभिन्न मतदाता जागरूकता अभियानों में शामिल थे, को समाजवादी पार्टी की सांसद प्रिया सरोज से उनकी सगाई के बाद हटा दिया गया है. ECI का मानना है कि रिंकू का एक सक्रिय राजनीतिक व्यक्ति के साथ व्यक्तिगत जुड़ाव “स्वीप” पहल की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है और यह नियमों के भी खिलाफ है. इसलिए, रिंकू से संबंधित सभी प्रचार सामग्री - जिसमें पोस्टर, बैनर, वीडियो और डिजिटल सामग्री शामिल हैं, हटाई जा रही हैं."
भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य रिंकू की मछलीशहर लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी (सपा) की सांसद प्रिया सरोज से 8 जून को सगाई हुई थी. लखनऊ के एक बड़े होटल में हुए इस कार्यक्रम में सपा प्रमुख अखिलेश यादव, डिंपल यादव, शिवपाल यादव और जया बच्चन सहित कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियों के साथ-साथ 20 से ज़्यादा सांसद भी शामिल हुए थे.
अलीगढ़ के जिला निर्वाचन अधिकारी को लिखे अपने पत्र में, चुनाव आयोग ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सार्वजनिक अभियानों में निष्पक्षता और तटस्थता सर्वोपरि है. चुनाव आयोग के एक अधिकारी के मुताबिक, "चुनाव आयोग एक प्रसिद्ध खेल हस्ती के रूप में रिंकू के कद को स्वीकार करता है, हालांकि एक राजनीतिक नेता के साथ उनके व्यक्तिगत संबंधों को सार्वजनिक रूप से पक्षपातपूर्ण माना जा सकता है, जिससे मतदाता जागरूकता अभियान की विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है."
अधिकारी ने बताया कि हालांकि प्रिया सरोज से जुड़ाव के बाद रिंकू सिंह ने कोई राजनीतिक बयान नहीं दिया था या राजनीति में आने की मंशा नहीं जताई थी, लेकिन चुनाव आयोग के नियमों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी तरह का कथित राजनीतिक संबंध किसी भी आधिकारिक जनसंपर्क कार्यक्रम से रिंकू सिंह को हटाने का पर्याप्त आधार हो सकता है.
चुनाव आयोग के इस फैसले पर राजनीतिक गलियारों में तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं. कुछ लोगों ने इसे चुनाव आयोग का एक निष्पक्ष फैसला बताया, जबकि अन्य ने कहा कि एक राजनेता से जुड़ाव के बाद भी रिंकू सिंह राजनीति में शामिल नहीं हुए. सपा के एक युवा नेता चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल खड़े करते हैं, “जया बच्चन पिछले कई वर्षों से सपा से राज्य सभा सांसद हैं और इस दौरान इनके पति अमिताभ बच्चन समय-समय पर चुनाव आयोग और अन्य सरकारी अभियानों का प्रचार करते रहे हैं. अगर अमिताभ बच्चन के लिए कोई नियम सही है तो रिंकू सिंह के लिए यह गलत कैसे हो गया. इस निर्णय से खुद चुनाव आयोग की निष्पक्षता प्रभावित हो रही है.”
रिंकू सिंह अपने शानदार प्रदर्शन के बाद सुर्खियों में आए जब उन्होंने एक आईपीएल मैच के दौरान एक ओवर में लगातार पांच छक्के लगाए, जिससे कोलकाता नाइट राइडर्स (KKR) को 2023 में गुजरात टाइटन्स के खिलाफ रोमांचक जीत मिली. केकेआर ने हाल ही में संपन्न आईपीएल में सिंह को 13 करोड़ रुपये में रिटेन किया था. यूपी में ताला नगरी के रूप में प्रसिद्ध अलीगढ़ के रहने वाले रिंकू सिंह के पिता खानचंद ने तीन दशक पहले शहर की गोविला गैस एजेंसी के एक छोटे से कमरे में रहकर हाकर के रूप में काम शुरू किया था. उनकी चार संतान हैं. भाई-बहनों में रिंकू सिंह तीसरे नंबर के हैं.
आर्थिक तंगी के बीच रिंकू ने 11 वर्ष की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू किया. समाजवादी पार्टी की दलित सांसद प्रिया सरोज से रिंकू की सगाई को पार्टी नेता दलित और ओबीसी के बीच बढ़ते सामांजस्य के रूप में भी प्रचारित कर रहे हैं. सपा लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभिषेक यादव कहते हैं “रिंकू सिंह ने अपने को राजनीति से अलग रखा है. ऐसे में चुनाव आयोग को अपने अभियान से रिंकू सिंह को अलग करना क्रिकेटर के रूप में उनकी उपलब्धि का मजाक उड़ाना है. यह देश के एक शानदार क्रिकेटर का अपमान भी है. केवल किसी नेता से शादी करने से किसी की उपलब्धि प्रभावित नहीं होती. यह उनका व्यक्तिगत मामला है.”
इस बीच, उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) के रूप में क्रिकेटर की नियुक्ति भी मुश्किल में पड़ती दिख रही है, क्योंकि ऐसी खबरें आ रही हैं कि उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग ने उनकी फाइल रोक दी है. जब रिंकू का नाम बीएसए पद के लिए 25 जून को सामने आया था तब भी सोशल मीडिया पर लोगों ने उनकी शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाए थे. इस खबर के आते ही एक बड़ी चर्चा शुरू हो गई थी कि बीएसए जैसे पद पर भर्ती के लिए पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री होना जरूरी है, जबकि रिंकू सिंह अभी हाई स्कूल भी पास नहीं हैं. तो फिर उन्हें यह पद कैसे मिल सकता है?
हालांकि इसका जवाब सरकार की 'अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता सीधी भर्ती नियमावली' में छिपा है. इस खास नियम के मुताबिक, जब किसी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी को उनके योगदान के लिए नौकरी दी जाती है, तो शुरुआती नियुक्ति के लिए उनकी शैक्षिक योग्यता को नहीं देखा जाता. सरकार का मकसद ऐसे जाने-माने चेहरों को विभाग से जोड़कर युवाओं को प्रेरित करना और उन्हें एक तरह से 'ब्रांड एंबेसडर' के रूप में इस्तेमाल करना है. इस नियुक्ति में एक शर्त भी है. रिंकू सिंह को अगले 7 सालों के अंदर अपनी पढ़ाई पूरी करके इस पद के लिए जरूरी शैक्षिक योग्यता (यानी ग्रेजुएशन/पोस्ट ग्रेजुएशन) हासिल करनी होगी. अगर वे ऐसा नहीं कर पाते , तो भविष्य में उनका प्रमोशन नहीं होगा और वे अपने बैच में सबसे जूनियर माने जाएंगे.
बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने रिंकू की बीएसए के रूप में नियुक्ति रद्द होने की खबर की न तो पुष्टि की और न ही खंडन किया है. प्रमुख सचिव (खेल) मनीष चौहान के मुताबिक रिंकू सिंह की फाइल बेसिक शिक्षा विभाग को भेज दी गई थी और उसके बाद क्या हुआ, इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है. जानकारों का मानना है कि रिंकू सिंह की राजनीतिक नजदीकियां ही अब उनके खेल कोटे की नौकरी में रोड़ा बन गई हैं. वहीं रिंकू सिंह के करीबी लोगों का कहना है कि वह बीएसए जैसी नौकरी के बजाय क्रिकेट पर फोकस करना चाहते हैं. आईपीएल और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में व्यस्तता के चलते वे खुद भी नियुक्ति प्रक्रिया को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं.