इस बार कैसे अलग है यूपी में कांग्रेस का कमबैक प्लान?

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के कमबैक प्लान की एक बड़ी खासियत है जमीन स्तर से नेतृत्व उभारने की कवायद

लखनऊ में 6 अक्टूबर को आयोजित किसान न्याय योद्धा सम्मेलन
लखनऊ में 6 अक्टूबर को आयोजित किसान न्याय योद्धा सम्मेलन

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी एक बार फिर अपने पुराने जनाधार की ओर लौटने की कोशिश में है. इस बार पार्टी अब खेतों की मेड़ों, पंचायतों की चौपालों और जातीय समीकरणों के बीच अपनी जमीन तलाश रही है. राहुल गांधी की स्वीकार्यता, किसान आंदोलनों से निकली सहानुभूति और पार्टी की नई संगठनात्मक संरचना को मिलाकर कांग्रेस ने 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए व्यापक रणनीति तैयार की है. 

अखिल भारतीय किसान कांग्रेस के “किसान न्याय योद्धा सम्मेलन” से लेकर विधान परिषद और स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी तक, पार्टी ने संकेत दे दिया है कि अब लड़ाई ऊपर से नहीं, नीचे से शुरू होगी. लखनऊ के मालएवेन्यु स्थ‍ित प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में 6 अक्टूबर को आयोजित किसान न्याय योद्धा सम्मेलन कांग्रेस के नए मिशन की झलक लेकर आया. 

इस कार्यक्रम में प्रदेश के नवनियुक्त पदाधिकारियों, किसान न्याय योद्धाओं और डिजिटल किसान योद्धाओं का परिचय कराया गया. मंच पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय और अखिल भारतीय किसान कांग्रेस के उपाध्यक्ष अखिलेश शुक्ला मौजूद थे. 

कार्यक्रम में किसानों की दस प्रमुख मांगों पर विस्तार से चर्चा हुई. इनमें MSP की कानूनी गारंटी, गन्ना मूल्य में वृद्धि, महंगी बिजली दरों और स्मार्ट मीटर की वापसी, सरकारी बीमा कंपनी के जरिये फसल बीमा, नहरों की सफाई और सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता, किसानों के कर्ज की माफी, साहूकारों के शोषण पर रोक, दुग्ध उत्पादकों को उचित दर, ग्रामीण युवाओं को रोजगार, खाद्य प्रसंस्करण और कोल्ड स्टोरेज योजनाओं से जोड़ने और भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के तहत किसानों को मुआवजा देने जैसी मांगें शामिल थीं. इन मुद्दों पर चर्चा के बाद तय हुआ कि कांग्रेस पार्टी इन सब पर सड़क से लेकर सदन तक संघर्ष करेगी.

अविनाश पांडे ने अपने संबोधन में कांग्रेस से फिर उसी किसान जुड़ाव को नए रूप में जिंदा करने की बात कही. कांग्रेस ने इस सम्मेलन में “डिजिटल किसान न्याय योद्धा” अभियान की शुरुआत भी की. इसका मकसद है कि पार्टी की नीतियां गांव-गांव तक पहुंचे और किसानों की समस्याएं सीधे पार्टी तक आएं. अखिलेश शुक्ला ने कहा कि किसान न्याय योद्धा और डिजिटल योद्धा राहुल गांधी के संदेशों को घर-घर पहुंचाने का काम करेंगे और आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनाने में अपनी भूमिका निभाएंगे. कार्यक्रम में एक और दिलचस्प पहल की गई- “वोट चोर गद्दी छोड़ो” नाम से हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत, जिसमें हजारों किसानों ने BJP और चुनाव आयोग की मिलीभगत के विरोध में हस्ताक्षर किए. यह कांग्रेस का संगठनात्मक नहीं बल्कि राजनीतिक संदेश था कि पार्टी अब प्रतिरोध के रास्ते पर लौट रही है.

इसी बीच, कांग्रेस ने राज्य में जातियों और समुदायों के साथ सीधा संवाद शुरू किया है. 1990 के दशक में मंडल और कमंडल की राजनीति ने यूपी में कांग्रेस का सामाजिक आधार खत्म कर दिया था. अब पार्टी उसी खोए हुए आधार को वापस पाने की रणनीति पर काम कर रही है. कांग्रेस ने अक्टूबर और नवंबर में विषय-आधारित बैठकों की श्रृंखला शुरू की है, जिनमें जाट, गुर्जर, पासी, निषाद, लोधी और अन्य समुदायों के प्रभावशाली नेताओं, विचारकों और सामाजिक प्रतिनिधियों से बातचीत होगी. 

पहला बड़ा सम्मेलन 14 अक्टूबर को मुजफ्फरनगर में होगा, जहां जाट किसान राजनीति का केंद्र माने जाते हैं. यहीं से हालिया किसान आंदोलन की सबसे बड़ी लहर उठी थी, और कांग्रेस इसे अपने किसान पुनर्जीवन अभियान का शुरुआती बिंदु बनाना चाहती है. अविनाश पांडे का कहना है कि कांग्रेस की असली ताकत उसका संगठन है. इसी सोच के साथ पार्टी ने दिसंबर तक 19.78 लाख पदाधिकारियों की नियुक्ति का लक्ष्य तय किया है. यह संगठन पांच स्तरों पर काम करेगा- राज्य, जिला, ब्लॉक, मंडल और बूथ. अब तक आठ हजार मंडलों में नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है और लगभग डेढ़ लाख बूथों पर पदाधिकारी बनाए जा चुके हैं. यह कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी पुनर्गठन पहल है. एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पार्टी अब सिर्फ पुराने कार्यकर्ताओं पर नहीं, बल्कि नए स्थानीय नेताओं पर भरोसा कर रही है जो गांवों में लोगों के बीच सक्रिय हैं. 

संगठन को जमीनी ताकत देने के लिए पार्टी ने विधान परिषद (MLC) और स्थानीय निकाय चुनावों को भी अपनी रणनीति में शामिल किया है. कांग्रेस ने पांच स्नातक और छह शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों की 11 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है. इसके लिए एक “कनेक्ट सेंटर” बनाया गया है, जो प्रदेश भर में वोटर फॉर्म भरवाने और उम्मीदवारों के लिए संपर्क बढ़ाने का काम करेगा. 

यूपी कांग्रेस मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष मनीष हिंदवी को इस सेंटर का मुख्य समन्वयक बनाया गया है. शिक्षक प्रकोष्ठ ने शिक्षकों के मुद्दों पर आंदोलन की रूपरेखा भी तैयार की है, जिसमें दिसंबर में विधान भवन घेराव की योजना शामिल है. कांग्रेस मानती है कि MLC चुनावों के जरिये वह शिक्षक और स्नातक वर्ग के बीच अपनी खोई पकड़ दोबारा हासिल कर सकती है. 

इसके साथ ही पार्टी ने अगले वर्ष होने वाले पंचायत चुनावों को 2027 की तैयारियों का “सेमीफाइनल” घोषित किया है. कांग्रेस 75 जिला पंचायतों, 826 ब्लॉकों और लगभग 58 हजार पंचायतों में करीब 3,500 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. यह संगठन की कार्यक्षमता की वास्तविक परीक्षा होगी. पार्टी ने इन चुनावों को केवल प्रतीकात्मक नहीं बल्कि “नेतृत्व खोज” के अवसर के रूप में देखने का निर्णय लिया है. वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अब कांग्रेस में ऊपर से नाम तय नहीं होंगे, बल्कि स्थानीय चुनावों के जरिये जमीन से निकले लोगों को संगठन में लाया जाएगा. 

कांग्रेस का यह पुनर्गठन सिर्फ चुनावी रणनीति नहीं है, यह सोच में बदलाव भी है. पार्टी अब इस बात की परवाह नहीं करती कि कौन पार्टी छोड़ गया, बल्कि यह देखती है कि कौन पार्टी में आया है. वाराणसी इसका उदाहरण है, जहां हाल में आम आदमी पार्टी के पूर्व उपाध्यक्ष रमाशंकर पटेल और पूर्व महानगर अध्यक्ष अखिलेश पांडे कांग्रेस में शामिल हुए. कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी खुद वहां पहुंचे और सदस्यता दिलाई. कांग्रेस नेताओ का मानना है कि अब जो लोग पार्टी में आ रहे हैं, वे किसी लालच से नहीं बल्कि विचारधारा से जुड़ने के लिए आ रहे हैं. 

पार्टी ने वाराणसी और प्रयागराज जैसे इलाकों में नए कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दी है. पार्षद पूनम विश्वकर्मा को महिला महानगर अध्यक्ष बनाया गया, जबकि कबड्डी खिलाड़ी अनुराधा यादव को जिला महिला कमेटी की अध्यक्षता दी गई. यह कदम संकेत है कि कांग्रेस महिलाओं और युवाओं को अब संगठन की मुख्यधारा में ला रही है. पार्टी ने पुराने नेताओं को भी साथ रखा है. अनिल श्रीवास्तव को जोनल कोऑर्डिनेटर बनाया गया है और सेवादल के पूर्व अध्यक्ष प्रज्ञानाथ शर्मा प्रयागराज के कोऑर्डिनेटर हैं. पार्टी की कोशिश है कि पुराने अनुभव और नई ऊर्जा का संतुलन कायम रहे. कांग्रेस का यह वाराणसी मॉडल दिखाता है कि वह अब “घरानों” की राजनीति से आगे बढ़कर “फील्ड लीडरशिप” पर भरोसा कर रही है. यह बदलाव पार्टी की संस्कृति में नई जान फूंक सकता है.

लखनऊ के शिया कालेज में प्रवक्ता अमित राय बताते हैं, “कांग्रेस ने अब उन तबकों पर भी ध्यान केंद्रित किया है जो लंबे समय से किसी राजनीतिक दल के एजेंडे में हाशिए पर रहे हैं. महिला किसान, दलित किसान और बटाईदार किसानों को पार्टी ने अपने अभियान का हिस्सा बनाया है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान इन वर्गों के बीच जो भरोसा बना, कांग्रेस उसे संगठनात्मक रूप में बदलने की कोशिश कर रही है.” 

कांग्रेस ग्रामीण क्षेत्रों में महिला किसान समूह और दलित पंचायतों में संवाद बैठकों की योजना बन रही है. इसका उद्देश्य है कि पार्टी की उपस्थिति सिर्फ सभाओं तक नहीं बल्कि रोजमर्रा की समस्याओं तक पहुंचे. कांग्रेस ने प्रचार और जनसंपर्क के लिए अब ग्रामीण इलाकों के साप्ताहिक बाजारों और मेलों पर फोकस किया है. इन स्थानों पर प्रचार सामग्री, सदस्यता अभियान और जनसंवाद कार्यक्रम आयोजित करने की योजना है. स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों से संपर्क साधा जा रहा है ताकि कांग्रेस की ऐतिहासिक पहचान और वर्तमान संघर्ष के बीच सेतु बनाया जा सके. अविनाश पांडे कहते हैं, “राहुल गांधी किसानों और युवाओं के लिए उम्मीद का चेहरा हैं. उनकी स्वीकृति हमें संगठन को फिर से जीवित करने का आत्मविश्वास देती है.” पार्टी का मानना है कि अगर वह अपने बूथ स्तर तक के संगठन को स्थायी बना पाई, तो राहुल की राष्ट्रीय छवि उसे चुनावी ताकत में बदल सकती है.

उत्तर प्रदेश में सत्ता की राह खेतों और गांवों से होकर जाती है, यह बात कांग्रेस अब भली-भांति समझ चुकी है. इस बार पार्टी किसी तात्कालिक लहर पर नहीं, बल्कि दीर्घकालिक संरचना पर दांव लगा रही है. पार्टी सत्ता में लौटे या न लौटे, लेकिन यह तय है कि उसने खुद को फिर से प्रासंगिक बनाने का ठोस प्रयास शुरू कर दिया है. 

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