एक दिन में 46 मीटिंग, सौ में नब्बे शोषित, प्राइवेट रिजर्वेशन; क्या है राहुल गांधी की नई पॉलिटिक्स?
15 मई को राहुल गांधी की बिहार में सात घंटे की उथल-पुथल भरी यात्रा ने कई बड़े संदेश दिए. वे दलितों-अतिपिछड़ों के सवाल को लोहिया और जगदेव प्रसाद की राह पर लेकर गए. शिक्षा के न्याय के साथ एससी-एसटी सब प्लान को जोड़कर आर्थिक न्याय की बात भी उठाई

15 मई का दिन बिहार कांग्रेस के लिए बड़ा खूब अफरा-तफरी भरा रहा. इसलिए नहीं कि इस रोज पार्टी के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी बिहार आए और दरभंगा और पटना में उन्होंने दो कार्यक्रम किए. इसलिए भी नहीं कि दरभंगा में प्रशासन ने आखिर-आखिर तक आंबेडकर छात्रावास में राहुल गांधी को मीटिंग करने की इजाजत नहीं दी.
राहुल और कांग्रेस के दूसरे नेताओं को तीन किलोमीटर तक पैदल चल कर आयोजन स्थल पर पहुंचना पड़ा. बहरहाल, बिहार कांग्रेस के लिए 15 मई का दिन अफरा-तफरी भरा इसलिए था कि पार्टी ने एक दिन में राज्य भर के 75 जगहों पर इसी तरह की 75 मीटिंग करने की तैयारी की थी, इसके लिए देश भर से बड़े-बड़े नेता आमंत्रित थे.
यह अलग बात है कि वे 46 मीटिंग ही कर पाए. मगर पूरे दिन की मेहनत पार्टी को बड़ा माइलेज दे गई. प्रशासन की बाधा को तोड़कर हॉस्टल पहुंचे राहुल गांधी ने कह दिया कि उनकी पार्टी अब उन 90 फीसदी लोगों की लड़ाई लड़ेगी, जिन्हें समाज ने हाशिए पर रख छोड़ा है. उन्होंने निजी शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की बात की और साथ ही साथ एससी-एसटी सब प्लान के मुद्दे को भी बहुत मजबूती से उठाया.
राहुल ने अपने इस पूरे कैंपेन से यह संदेश देने की कोशिश की कि अब तक सबको साथ लेकर चलने और सवर्ण हिंदुओं-कुलीन मुसलमानों के नेतृत्व में आगे बढ़ने वाली कांग्रेस ने अपने चरित्र को पूरी तरह बदलने और गैर कांग्रेसवाद के सबसे बड़े पैरोकार लोहिया और रेडिकल सोशलिस्ट जगदेव प्रसाद के रास्ते पर चलने का मन बना चुकी है.
गुरुवार यानी 15 मई को इन सबकी शुरुआत दिन के 11 बजे हुई, जब राहुल गांधी आकाशा एयरलाइंस की कमर्शियल फ्लाइट से दरभंगा उतरे. बुधवार की रात से ही दरभंगा प्रशासन ने आयोजकों से कहना शुरू कर दिया था कि वे राहुल गांधी को आंबेडकर छात्रावास में मीटिंग की इजाजत नहीं दे सके.
पुलिस प्रशासन ने एयरपोर्ट पर ही राहुल गांधी को रोकने की कोशिश की, मगर वे वहां से आगे बढ़े. राहुल के काफिले को दूसरी बार दरभंगा के कामेश्वर संस्कृति विश्वविद्यालय के गेट पर रोका गया. मगर वे प्रशासन को समझा-बुझाकर वहां से भी आगे बढ़ गए. तीसरी दफा जब उन्हें ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के गेट पर रोका गया तो उन्होंने एक स्थानीय कार्यकर्ता की मदद से यह तय किया कि एक दूसरे रास्ते से पैदल ही आयोजन स्थल तक जाएंगे.
उनके इस फैसले ने उन्हें बड़ा माइलेज दे दिया. वे पैदल ही दरभंगा की संकरी सड़कों के बीच अपने कार्यकर्ताओं के साथ निकल पड़े और भीषण गर्मी में तेज गति से लगभग तीन किमी पैदल चलकर आंबेडकर छात्रावास पहुंच गए. छात्र उनके इंतजार में लगभग निराश हो चुके थे, लेकिन राहुल को देखकर वे काफी उत्साहित हो गए. वहां राहुल गांधी ने पांच मिनट ही छात्रों को संबोधित किया. माहौल पूरा गर्म था, राहुल ने इन पांच मिनटों में ही अपनी सारी बात कह दी.
राहुल ने कहा, "मेरी सरकार से तीन मांगें हैं. पहली मांग, सरकार उनकी मांग पर जाति जनगणना कराने का फैसला कर चुकी है, अब उसे ठीक से कराया जाए, जैसा तेलंगाना में कराया गया. दूसरी, निजी शैक्षणिक संस्थानों और दूसरे निजी संस्थानों में भी आरक्षण कराया जाए. तीसरी मांग, एससी-एसटी सब प्लान का पैसा दूसरे मद में डायवर्ट किया जाता है, वह बंद कराया जाए."
मगर उनके संबोधन में जो सबसे महत्वपूर्ण बात थी, वह ये कि देश की 90 फीसदी आबादी के पास कोई रास्ता नहीं है. इनमें दलित, पिछड़े, अतिपिछड़े और आदिवासी हैं. इन्हें 24 घंटे दबाया जाता है. शिक्षा का सिस्टम इन्हें आगे बढ़ने से रोकता है.
सीनियर ब्यूरोक्रेसी, कॉरपोरेट, हाई कोर्ट, बड़ी कंपनियों के मालिक इन तमाम जगहों पर ये लोग कहीं नहीं हैं. ये आपको मनरेगा की लिस्ट में, मजदूरों की कतार में मिलते हैं. देश का सारा धन और संसाधन दस फीसदी लोगों के हाथ में है. इसलिए कांग्रेस अब इन लोगों की लड़ाई लड़ेगी. बाद में उन्होंने एक छात्र से मंच पर सवाल किए और जय भीम के नारे भी लगाए.
दरभंगा से लौटकर राहुल गांधी पटना आए और राज्य के सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ उन्होंने एक मल्टीप्लेक्स में ज्योतिबा फुले के जीवन पर बनी फिल्म 'फुले' देखी, जो हाल के दिनों में विवादों में रही थी. वहां उन्होंने कार्यकर्ताओं को संबोधित किया, उसके बाद वे शाम सवा छह बजे की फ्लाइट से पटना से दिल्ली लौट गए.
बिहार में राहुल गांधी के ये सात घंटे उथल-पुथल भरे और एक तरह से कांग्रेसियों में नई ऊर्जा साबित करने वाले रहे. इन आयोजनों की पृष्ठभूमि बताते हुए हाल ही में कांग्रेस से जुड़े बिहार आंबेडकर कल्याण छात्रावास संघ के अध्यक्ष अमर आजाद कहते हैं, "पिछले दिनों मैंने जब कांग्रेस ज्वॉइन की तो कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद, प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और प्रभारी कृष्णा अल्लावरू जी के साथ मिलकर हमने योजना बनाई कि पार्टी से दलितों-अति पिछड़ों को कैसे जोड़ा जाए."
उन्होंने आगे कहा, "इसी कोशिश में यह योजना बनी थी कि पूरे राज्य के आंबेडकर और कर्पूरी छात्रावास में कार्यक्रम किया जाए. इसके बाद अगले 20 दिनों तक हमलोगों ने पूरे बिहार के आंबेडकर छात्रावासों का दौरा किया. संविधान के सम्मान में, दलित मैदान में, यात्रा निकाली. बैठकें कीं. फिर इस कार्यक्रम की योजना बनीं और तय हुआ कि राहुल गांधी और दूसरे बड़े कांग्रेसी नेता 15 तारीख को एक साथ इन तमाम छात्रावासों में छात्रों के साथ बैठेंगे और उनकी समस्या जानेंगे."
आयोजकों का कहना है कि योजना यह थी कि जहां छात्रावासों में इजाजत मिल जाएगी, वहां हम छात्रावास जाएंगे, नहीं तो दूसरी जगहों पर टाउन हॉल में मीटिंग होगी. एक तरह से यह आयोजन बिहार कांग्रेस का था, मगर इसकी अगुआई यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई के नेता कर रहे थे.
75 जगहों पर कार्यक्रम करने का इरादा था. मगर आखिर-आखिर तक 32 टाउनहॉल और 22 छात्रावासों के कार्यक्रम फाइनल हुए. इनमें संबोधन के लिए पूरे देश से कन्हैया कुमार, अलका लांबा, भक्त चरण दास, श्रीनिवास बीवी, सुप्रिया श्रीनेत, जिग्नेश मेवाणी, अनपुम, रागिनी नायक जैसे तीन दर्जन से अधिक नेताओं को बुलाया गया और एक-एक को दो-दो जगहों पर बैठकें करने की जिम्मेवारी दी गई.
आखिर-आखिर में 46 बैठकें ही फाइनल हो पाईं. मगर इनमें से ज्यादातर बैठकें आयोजित हो गईं. गुरुवार की शाम कन्हैया कुमार ने खुद राजधानी पटना के कर्पूरी छात्रावास के बाहर छात्रों को संबोधित किया, क्योंकि वहां भी प्रशासन ने अंदर जाने की इजाजत नहीं दी थी.
कांग्रेस से पिछले दिनों जुड़े युवा हल्ला बोल के संस्थापक और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुपम कहते हैं, "बिहार देश की सबसे युवा आबादी वाला राज्य है और यहां के युवा पेपर लीक और रोजगार के सवालों से सबसे अधिक जूझते हैं, वे सरकार से असंतुष्ट हैं, हम उनके सवालों को उठाना चाहते थे. इसलिए हमने इस कार्यक्रम की योजना बनाई थी. इससे पहले हमने बेरोजगारी और पलायन पर कैंपेन चलाया था. इस कार्यक्रम में हमने शिक्षा पर फोकस किया है. हम नहीं चाहते थे कि हम सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच बात करें, इसलिए हमने उनके बीच जाकर शिक्षा न्याय संवाद का कार्यक्रम किया."
इस सवाल पर कि क्या उन्हें यह मालूम नहीं था कि प्रशासन छात्रावासों में जाकर कार्यक्रम करने की इजाजत नहीं देगा, अनुपम कहते हैं, "दिल्ली में इस तरह के आयोजन नॉर्मल हैं, पता नहीं बिहार में हमें क्यों रोका गया. हमें इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं थी. हम मानकर चल रहे थे कि इस मामले में नीतीश सरकार भाजपा की दूसरी सरकारों की तरह नहीं है, जो विरोधी आवाजों को स्पेस नहीं देती. मगर इस बार के अनुभव बताते हैं कि अब यह नीतीश की पुरानी सरकार नहीं है, भाजपा ने पूरी तरह सरकार पर अपना कब्जा जमा लिया है."
राहुल गांधी के आयोजन के बाद दरभंगा में उन पर दो मुकदमे दर्ज किए गए हैं. पहली एफआईआर मजिस्ट्रेट खुर्शीद आलम ने दर्ज कराया कि राहुल गांधी और उनके समर्थकों ने निषेधाज्ञा के बावजूद सभा की और कानून व्यवस्था को नजरअंदाज किया. दूसरा मुकदमा जिला कल्याण पदाधिकारी आलोक कुमार ने आंबेडकर कल्याण छात्रावास में बिना अनुमति कार्यक्रम कराने को लेकर कराया. दोनों मुकदमे लहेरियासराय थाने में हुए और राहुल के साथ 20 नामजद और सौ अज्ञात लोगों पर भी मुकदमे हुए.
हालांकि पटना एयरपोर्ट पर राहुल गांधी ने कहा, "हॉस्टल की हालत बहुत खराब थी, इसलिए मुझे जाने नहीं दिया जा रहा था. मेरे ऊपर मुकदमे किये गये हैं, मगर ये मेरे लिए मैडल हैं."
राहुल गांधी की यात्रा और कांग्रेस के इस आयोजन की चर्चा गुरुवार को बिहार के राजनीतिक हलकों में भी खूब रही. जहां राजद और भाकपा-माले ने राहुल गांधी का समर्थन करते हुए रोक लगाने पर प्रशासन की आलोचना की. वहीं विपक्षी दलों ने राहुल के इस कदम को गैर-लोकतांत्रिक बताया.
डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने कहा, "राहुल गुंडों जैसी भाषा बोलते हैं, वे बिहार में अराजकता फैलाने आये हैं." वहीं पार्टी प्रवक्ता मनोज शर्मा ने कहा, "राहुल गांधी बिहार में जाति जेहाद कर रहे हैं."
वहीं राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा, "रिटायर्ड भ्रष्ट अधिकारी और टायर्ड मुख्यमंत्री ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को छात्रों के साथ संवाद करने की अनुमति नहीं देकर लोकतांत्रिक परंपराओं की धज्जियां उड़ाई हैं.” वहीं भाकपा-माले नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, "क्या यही है डबल इंजन सरकार का सुशासन, जहां देश के नेता को छात्रों से मिलने और संवाद स्थापित करने से रोका जा रहा है?"
मगर यह आयोजन सिर्फ शिक्षा न्याय संवाद नहीं था. उनके द्वारा फुले फिल्म को देखना, जय भीम के नारे लगाना, प्राइवेट रिजर्वेशन की मांग करना और पहली बार मजबूती से एससी-एसटी सब प्लान के मुद्दे को उठाना इस बात का इशारा था कि कांग्रेस अब पूरी तरह आंबेडकर और लोहिया के रास्ते पर चलने का मन बना चुकी है.
एससी-एसटी सब प्लान के मुद्दे को समझाते हुए अमर आजाद कहते हैं, "दरअसल यह संवैधानिक प्रावधान है कि हर विभाग की योजना में एससी-एसटी समुदाय की आबादी के प्रतिशत के बराबर बजट राशि इन जातियों के लिए आवंटित करने का प्रावधान है. मगर सरकारें ऐसा नहीं करतीं. अधिकारी उस पैसों को सड़क या खेल जैसी योजनाओं की तरफ डाइवर्ट करते हैं. जबकि इसका इस्तेमाल हम दलितों-आदिवासियों के हित में होना चाहिए था. पहली बार किसी बड़े राजनेता ने इस मसले को इतनी मजबूती से उठाया है."
90 फीसदी की बात कह कर राहुल गांधी ने एक तरह से बिहार के लेनिन कहे जाने वाले नेता जगदेव प्रसाद की लाइन ले ली. जिनका पापुलर नारा था -
"दस का शासन नब्बे पर, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा.
सौ में नब्बे शोषित है, नब्बे भाग हमारा है.
धन-धरती और राजपाट में, नब्बे भाग हमारा है."
दिलचस्प है कि गैर कांग्रेसवाद के जनक माने जाने वाले समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने भी एक जमाने में नारा दिया था, पिछड़ा पावै सौ में साठ. जिनकी वजह से 1967 में पहली बार देश में नौ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें बनी थीं. बाद में लगभग पूरे उत्तर भारत से कांग्रेस हाशिए पर चली गई. ऐसे में कांग्रेस का लोहिया और जगदेव प्रसाद जैसे नेताओं की लाइन पर आना दिलचस्प है.
इस मसले पर बात करते हुए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कहते हैं, "90 फीसदी की बात करने का मतलब है कि वे सिर्फ जाति की बात नहीं कर रहे, वे इसमें कास्ट के साथ क्लास को भी ला रहे हैं. यह इशारा है कि कांग्रेस अब समावेशी राजनीति की राह पर चल रही है. देश और राज्य दोनों जगह दलित नेता को पार्टी की कमान सौंप कर इसने इसका साफ इशारा कर दिया है."
प्रोफेसर आगे बताते हैं, "इसके साथ ही वे सिर्फ सामाजिक गैरबराबरी की बात नहीं कर रहे, वे आर्थिक न्याय का भी सवाल उठा रहे. निजी क्षेत्र में आरक्षण और एससी-एसटी सब प्लान की बातें इसी दिशा में हैं. कांग्रेस जैसी पुरानी, बड़ी और सुस्त गति से फैसले लेने वाली पार्टी में यह बड़ा बदलाव है. राहुल गांधी ने एक तरह से पार्टी के नेतृत्व को समावेशी बनाने और देश की वंचित आबादी के पक्ष में आवाज उठाने की गंभीर शुरुआत कर दी है."