बिहार : चिराग का कानून-व्यवस्था पर बयान; नीतीश हैं निशाना या ये बड़े खेल का हिस्सा है?

राज्य की सत्ता के शिखर पर खालीपन को भांपकर एलजेपी नेता खुद को बिहार की अगली सियासत का नया चेहरा बना रहे हैं

चिराग पासवान (फाइल फोटो)

गया की उमस भरी दोपहर में केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान मीडिया के सामने खड़े थे. उनका तेवर उस शांत बिहार की सियासत से बिल्कुल अलग था, जिसकी वे बार-बार आलोचना करते हैं. उन्होंने कहा, “ऐसा लग रहा है कि पुलिस और प्रशासन ने अपराधियों के आगे सच में आत्मसमर्पण कर दिया है.”

चिराग के आरोपों में कोई झिझक नहीं थी. उन्होंने कहा, “एक के बाद एक हत्या, अपहरण, लूट, डकैती और बलात्कार के मामले हो रहे हैं और राज्य का तंत्र बेबस खड़ा है.” उनकी यह बात एनडीए के भीतर चलने वाली दिखावटी राजनीति को तोड़ती नजर आई.

जो इस राजनीति को गहराई से नहीं समझते, उन्हें लग सकता है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के भीतर कोई दरार है. लेकिन असल में यह चिराग का एक सोचा-समझा कदम था. उनका निशाना बिल्कुल साफ थाः जनता दल यूनाइटेड और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो गृह विभाग भी संभालते हैं.

लेकिन बिहार में एनडीए की बड़ी पार्टी बीजेपी इस पर चुप रही. उसने न नीतीश का बचाव किया और न चिराग की आलोचना की.

यह सब अचानक नहीं हुआ. 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी  (एलजेपी) ने 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. इसका असर यह हुआ कि जेडी (यू) की सीटें घटकर 43 रह गईं. यह चोट विधानसभा के भीतर लंबे समय तक महसूस की गई.

अब जब नीतीश उम्र और सेहत के चलते कमजोर लग रहे हैं, चिराग को लग रहा है कि उनके लिए मौका तैयार हो रहा है. उनकी बात उन लोगों तक पहुंच रही है जो अब सिर्फ योजनाओं से खुश नहीं होते. उन्हें खौफ से खाली सड़क-गलियां चाहिए.

बिहार की कानून-व्यवस्था लंबे वक्त से मुश्किल में है. बीते कुछ हफ्तों में राज्य में लगातार हत्या, अपहरण और हिंसक वारदातें हुई हैं. अपराधी खुलेआम वारदात कर रहे हैं. पुलिस अक्सर घटना के बाद ही आती है. न तो पैट्रोलिंग है और न कोई खुफिया कार्रवाई. इसलिए चिराग का बयान सिर्फ भाषण नहीं था. उन्होंने बिना नाम लिए सीधे नीतीश कुमार के गृह विभाग पर सवाल खड़े कर दिए. उनका निशाना राज्य की सबसे ऊंची कुर्सी थी.

लेकिन इस हड़बड़ी के पीछे एक बड़ी राजनैतिक योजना भी हैः चिराग एलजेपी को सहयोगी दल की भूमिका से निकालकर ताकतवर खिलाड़ी बनाना चाहते हैं. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “चिराग एलजेपी को पूरे बिहार की पार्टी बनाना चाहते हैं.”

कागज पर एनडीए अब भी मजबूत नजर आता है. 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 में से 30 सीटें जीतीं. विधानसभा क्षेत्रों में भी उसकी स्थिति ठीक रही. लेकिन इस जीत के पीछे कई नई अनिश्चितताएं छिपी हैं.

नीतीश अब पहले जैसे नहीं हैं. उनका असर और सेहत दोनों कमजोर दिखते हैं. वहीं भाजपा, जो अब पहले से ज्यादा आत्मविश्वास में है, जेडी (यू) की बातों को सिर झुकाकर मानने के मूड में नहीं है. इस खाई में चिराग कदम रख चुके हैं. उनका “बिहार बुला रहा है” अभियान नाराज वोटरों को नए विकल्प के रूप में लुभा रहा है. वे खुद को बिहार की भावी राजनीति का चेहरा बना रहे हैं.

उनकी बातों का असली मतलब भी यही हैः वे खुद को सिर्फ रामविलास पासवान के बेटे की तरह नहीं, बल्कि उनकी विरासत को नए दौर में ढालने वाले नेता की तरह पेश कर रहे हैं. रामविलास फरवरी 2005 में राज्य की सत्ता के बेहद करीब पहुंचे थे, लेकिन मौका हाथ से निकल गया. अब चिराग, जो 40 की उम्र में हैं, उस अधूरे काम को पूरा करने का सपना देख रहे हैं.

उन्होंने बीते कुछ सालों में लगातार खुद को जनता के बीच दिखाया हैः पंचायतों में गए, गांव की शादियों में शामिल हुए, उन मुद्दों पर बोले जिन पर बाकी नेता चुप रहते हैं.

बिहार की संतुलित राजनीति में चिराग की अहमियत सिर्फ वोटों की गिनती से तय नहीं होती, बल्कि वे उस मोड़ की तरह हैं जिससे पूरा खेल पलट सकता है. उनकी मर्जी से गठबंधन बदल सकते हैं. सरकारें गिर सकती हैं. गया में दिया गया उनका बयान सिर्फ शो नहीं था. वह एलजेपी के इरादों का एलान था.

अब एलजेपी इंतजार नहीं करेगी. अब वह सामने आएगी. और उसका बेझिझक और बेखौफ युवा नेता अब वह जगह लेगा जिसकी उसे लंबे समय से तलाश थी. और बहुत से लोग मानते हैं कि यह वक्त अब चिराग का हो सकता है.

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