ओडिशा : आदिवासियों का फंड अफसरों ने घर-किराए से लेकर शेयर बाजार तक में उड़ाया!
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक ओडिशा में आदिवासियों के विकास के लिए तय रकम में से करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपए अधिकारियों ने अपने ऊपर खर्च किए या इसमें भारी हेराफेरी की

इस साल 7 मार्च को ओडिशा विधानसभा में शिक्षा मंत्रालय की ओर से दिए गए जवाब के मुताबिक साल 2024 मार्च से 2025 फरवरी तक एसटी-एससी विद्यालयों में कुल 26 बच्चों की मौत डायरिया, मलेरिया से हुई थी. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की सहायक प्राध्यापक कविता पांडेय और उनकी टीम की एक रिसर्च के मुताबिक ओडिशा के आदिवासी भी अब अवसाद से ग्रस्त हो रहे हैं.
आदिवासियों में टीबी, मलेरिया, डायरिया और कई अन्य संक्रमणों व रोगों जैसी शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं अधिक हैं, जिस वजह से ऐसा हो रहा है. इसके अलावा सामाजिक-आर्थिक स्थिति का निम्न स्तर, शिक्षा की कमी, सामाजिक प्रथाएं, अस्वच्छता, कुपोषण, अस्वास्थ्यकर जीवन-शैली और खाद्य असुरक्षा के कारण भी ऐसा हो रहा है.
ऐसी स्थिति से बचने और उसमें सुधार लाने के लिए देशभर के आदिवासी इलाकों के लिए इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसीज (ITDA) का गठन किया जाता है. अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाली आदिवासी आबादी के समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने का काम इसे करना होता है. साल दर साल ओडिशा में इंजीनियरों को यह काम सौंपा गया था. लेकिन पाया गया कि उन्होंने सरकारी खाते से 149 करोड़ रुपये व्यक्तिगत चीजों पर खर्च कर दिए, जिसमें मकान किराया, बीमा प्रीमियम और बिजली बिल का भुगतान शामिल है.
यह खुलासा बीते 24 सितंबर को विधानसभा में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट में किया गया है. जिसमें कहा गया है कि विशेष दखल के लिए बनाई गई एकीकृत आदिवासी विकास एजेंसियों में बड़े पैमाने पर अनियमितता की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2018-19 से 2022-23 की अवधि के दौरान 11 चयनित ITDA का ऑडिट किया गया. जिसमें पाया गया कि विभाग के तहत होनेवाले काम के लिए खर्च के लिए ITDA के खाते के इस्तेमाल के बजाय सभी भुगतान जूनियर इंजीनियर और असिस्टेंट इंजीनियर के बैंक खाते में कर दिए गए.
इन खातों से जूनियर इंजीनियरों और असिस्टेंट इंजीनियरों ने 148.75 करोड़ रपए के व्यक्तिगत लेन-देन किए. इनमें अधिकारियों ने खुद के नाम पर चेक, व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर पॉइंट-ऑफ-सेल (POS) से भुगतान, मोबाइल, बिजली, पानी और ईंधन के बिल का भुगतान, ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर भुगतान, म्यूचुअल फंड और शेयर बाजार में निवेश, बीमा प्रीमियम, यूपीआई लेन-देन और अन्य भुगतान कर दिया, जिनका विभागीय कामों से कोई संबंध नहीं था. कैग के मुताबिक यह सरकारी धन की कथित हेराफेरी को दिखाता है.
उदाहरण के लिए ITDA पारलाखेमुंडी के एक जूनियर इंजीनियर के खाते से 1.81 लाख बीमा प्रीमियम (मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी) के भुगतान में खर्च किए गए. ITDA थुआमुल रामपुर के एक जूनियर इंजीनियर ने 51,230 ईंधन खर्च के लिए POS लेन-देन के जरिए उपयोग किए. ITDA फुलबानी के एक जूनियर इंजीनियर ने जुलाई से दिसंबर 2020 के बीच अपने आधिकारिक खाते से 36,000 मकान किराया चुकाने में खर्च कर दिए.
हेराफेरी और भी हैं
कुल 9 ITDA में 490 कार्यों पर 20.71 करोड़ रुपए का खर्च दिखाया गया है. लेकिन फाइलों में केवल 17.33 करोड़ के वाउचर ही उपलब्ध थे. यानी 3.38 करोड़ का अंतर रहा. विभिन्न योजनाओं के तहत तय किए गए कुल 325 कार्यों में 3.23 करोड़ का भुगतान बिना चालान के किया गया. वहीं 544 कार्यों से जुड़े 2,476 चालानों (22.78 करोड़) में गंभीर गड़बड़ियां पाई गईं है. जैसे तारीख/नंबर न होना, डुप्लीकेट चालान, गैर-जीएसटी पंजीकृत संस्थाओं से चालान, या गलत GST नंबर का होना.
इसी तरह 544 कार्यों की अनुमानित लागत को बिना साइट विज़िट, नक्शे या डिज़ाइन बनाए तय किया गया. इसका नुकसान ये हुआ कि वास्तविक और अनुमानित लागत में अंतर की पुष्टि संभव नहीं हो पाई. इस दौरान खास बात ये भी रही कि किसी भी ITDA ने कभी वार्षिक लेखा (जमा-खर्च का हिसाब) तैयार ही नहीं किया, जबकि सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के प्रावधानों के तहत यह अनिवार्य था. कैग का कहना है कि खातों के अभाव में खर्च, अधिक खर्च, नुकसान आदि को नहीं पकड़ा जा सका.
जून 2005 से सरकार ने तय किया था कि किसी भी ITDA के लिए बिना टेंडर सहकारी समितियों से किसी भी तरह का आर्थिक लेन-देन नहीं किया जाएगा. फिर भी 10 ITDA ने कुल 74.51 करोड़ रुपए की खरीद में से 54.25 करोड़ इन्हीं समितियों से बिना टेंडर के खरीददारी की. यही नहीं, सहकारी समितियों ने भी सामान अपने सदस्यों से नहीं लिया, बल्कि निजी विक्रेताओं से लिया. चौंकाने वाली बात ये भी है कि ITDA ने इन सहकारी समितियों द्वारा दिए गए दामों को बिना जांचे ही सच मान लिया और भुगतान कर दिया.
नियम के मुताबिक न तो आपूर्तिकर्ताओं का पैनल बनाया गया और न ही बाज़ार दरों की पारदर्शी जांच की गई. उदाहरण के तौर पर ITDA पारलाखेमुंडी के अथॉरिटी ने अपनी सीमा से आगे जाकर 73.60 लाख की प्रशासनिक स्वीकृति के खिलाफ 3.74 करोड़ के वाद्य यंत्र और परिधानों की खरीद की. इसमें 2.09 करोड़ की वस्तुएं दो बार रिपीट ऑर्डर से खरीदी गईं, वह भी बिना नए टेंडर के. बता दें, साल 2018-23 की अवधि में इन ITDA के पास उपलब्ध 1,709.47 करोड़ में से केवल 1,190.44 करोड़ (70फीसदी) खर्च किए गए, जो खर्च में लापरवाही को दिखाता है.
साल 2011 की जनगणना के अनुसार, ओडिशा में आदिवासी आबादी 95 लाख थी, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 22.85 फीसदी और देश की आदिवासी जनसंख्या का 9.17 फीसदी थी. भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत, ओडिशा के 63,896 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (छह जिलों को पूरी तरह और सात जिलों को आंशिक रूप से मिलाकर 119 सामुदायिक विकास खंड) को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है, ताकि आदिवासी आबादी के समग्र विकास के कार्य किए जा सकें. इसके लिए ओडिशा में 1979-80 से 2022-23 की अवधि में कुल 22 ITDA की स्थापना की गई है.
इसके विपरीत ये सरकारी अधिकारी साल दर साल घोटाला करते रहे. रिपोर्ट में पाया गया कि जूनियर इंजीनियर्स और अस्सिटेंट इंजीनियर्स के कुल 85 बैंक खाते विभागीय कार्यों के निष्पादन के लिए संचालित किए गए थे. जिसमें कुल 71 बैंक खातों में विभागीय कार्यों के लिए 621.79 करोड़ सरकारी धन स्थानांतरित किए गए थे. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन 85 बैंक खातों में से 14 बैंक खातों के लेन-देन के विवरण, जो 14 जूनियर इंजीनियर्स और अस्सिटेंट इंजीनियर्स के द्वारा संचालित किए गए थे, उसे ITDA ने ऑडिट के लिए उपलब्ध नहीं कराया. जबकि ओडिशा सामान्य वित्तीय नियमावली के नियम 5 के अनुसार, कोई भी सरकारी अधिकारी जिसे सरकारी धन प्राप्त होता है, वह व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होता है कि धन का वितरण संबंधित नियमों, विनियमों या आदेशों के अनुरूप हो तथा सभी लेन-देन का सटीक कागजात यानी सबूत रखा जाए.
देशभर के राज्यों में हर साल कैग की रिपोर्ट आती हैं. अधिकर रिपोर्ट में अनियमितता की बात कही जाती है, वह भी पूरे सबूत के साथ. लेकिन बहुत कम मामलों में कार्रवाई होते देखी गई है. ओडिशा की आदिवासियों को इंतजार रहेगा उनके हक के पैसों के बेजा इस्तेमाल करनेवालों के ऊपर क्या कार्रवाई हुई.